मुक्ति - अनचाहे सम्बन्ध से - 3 - अंतिम भाग Kishanlal Sharma द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मुक्ति - अनचाहे सम्बन्ध से - 3 - अंतिम भाग

पर उसे जाना पड़ा।वह बीच बचाव करने के लिए गया था।जब झगड़ा ज्यादा होता तब मोहन नाराज होकर घर से चला जाता और फिर कई दिनों तक लौटकर नही आता।ऐसे ही एक रात को झगड़ा होने पर मोहन गुस्सा होकर चला गया।वह उसे समझाने लगा।और उसके समझाने पर वह उसके कंधे पर सिर रखकर सुबकने लगी।वह उसके गालो को सहलाने लगा।
पहली बार कोई औरत उससे इतनी सटी हुई थी।उसकी रगों में दौड़ रहा खून गर्म हो गया।और वह अपने पर काबू नही रख सका।उसने उसे बिस्तर में दबोच लिया।उसने उसका कोई विरोध नही किया।और वह उसके शरीर पर छाता चला गया।पहली बार उसने औरत के जिस्म का स्वाद चखा था।
पहले जब उसका अपने पति से झगड़ा होता।वह सोचता काश पति पत्नी न झगड़े।लेकिन अब उसे दुख की जगह खुशी होती।जितने दिन मोहन रूठा रहता।उतने दिन के लिए उसकी मौज हो जाती।वह उसके शरीर का भरपूर आनंद लेता।उसके उससे अवैध सम्बन्ध है।इसकी भनक अभी तक किसी को नही लगी थी।
सुधा के प्यार ने उसे दीवाना बना दिया था।उसके मादक बदन का नशा उस पर इस कदर हावी हो चुका था कि वह दुनिया को भूल गया।उसे सुधा के जिस्म के सिवाय कुछ नजर ही नही आता था। लेकिन निशा ने उसकी जिंदगी में आते ही उसे झकझोर डाला।
निशा समाज की नजरों में उसकी पत्नी थी।उसकी पहली झलक ने ही उसे दीवाना बना दिया था।उसकी सुंदरता,मादक कुंवारे जिस्म और उसके साथ बिताई रंगीन रातों ने उसे अपना बना लिया था।अभी तो केवल दस दिन ही उनका साथ रहा था।इन बीते दस फिनो में वे एक दूसरे को अच्छी तरह समझ भी नही पाए थे।पर इन दस दिनों में ही प्यार की अमिट छाप निशा ने उसके दिल पर छोड़ दी थी।
वह बिस्तर में लेटा लेटा सुधा और निशा की तुलना करने लगा।सुधा मोहन की पत्नी थी जबकि निशा उसकी।सुधा उसके लिए पराई थी तो निशा अपनी।निशा एक खिलती कली थी तो सुधा बासी फूल।निशा के शरीर से नैसर्गिक खुशबू आती थी तो सुधा को अपना शरीर पाउडर और सेंट से महकाना पड़ता था।
निशा के जिंदगी में आने और उसके साथ दिन गुजारने के बाद वह समझ चुका था कि पत्नी के प्रति प्यार सच्चा और सुधा के प्रति झूठा था।निशा से प्रेम था जबकि सुधा से वासना।प्रेम और वासना में अंतर होता है।पत्नी से प्रेम होता है जबकि पराई औरत से वासना।निशा उसके रोम रोम में बस चुकी थी।उसके दिल की धड़कन बन चुकी थी।और निशा के आने के बाद सुधा से उसे उबकाई आने लगी।
दूर पुलिस के घण्टे ने एक एक करके बारह बजने की उद्घोषणा की थी।घण्टे की आवाज ने उसे चोंका दिया था।वह बिस्तर से उठ खड़ा हुआ।उसके आने का समय हो गया था।वह किसी भी समय आ सकती थी।उसने जल्दी से अपना बैग उठाया और कमरे से निकलकर छत पर आ गया।चारो तरफ अंधेरा और रात की नीरवता।कभी कभी कुत्तों के भोंकने की आवाजें।उसने छत पर आकर अंधेरे में अपना बैग नीचे फेंक दिया और फिर वह भी धीरे धीरे गली में आ गया।नीचे आते ही उसने अपना बैग उठाया और भागने लगा।वह जितना जल्दी हो सके सुधा से दूर पहुंच जाना चाहता था