राणा पूंजा भील धरमा द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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राणा पूंजा भील

आदिवासी योद्धा पूंजा भील जिन्होंने हल्दीघाटी युद्ध किया। जिसके धनुष मात्र से अकबर की सेना में हड़कंप मच जाता था। ऐसे आदिवासी योद्धा को नमन।

राणा पूंजा भील का जन्म मेरपुर में हुआ था। उनके पिता के देहांत होने के पश्चात 15 वर्ष की अल्पायु में उन्हें मेरपुर का मुखिया बना दिया गया। यह उनकी योग्यता की पहली परीक्षा थी, इस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर वे जल्दी ही ‘भोमट के भील सरदार’ बन गए। अपनी संगठन शक्ति और जनता के प्रति प्यार-दुलार के चलते वे वीर भील नायक बन गए, उनकी ख्याति संपूर्ण मेवाड़ में फैल गई।

अकबर और राणा प्रताप भीलों की सैनिक सहायता प्राप्त करने के लिए भीलों के सरदार पूंजा भील के पास आए क्योंकि (मेरपूर) भोमट क्षेत्र के वन क्षेत्र में भीलों का अधिकार था और भोमट क्षेत्र को पार कर के ही मेवाड़ पहुंचा जा सकता था। राणा प्रताप का एक कारण यह भी था भीलों से सहायता पाने का कि भील गुरिल्ला युद्ध प्रणाली में भील माहीर होते हैं।

भीलों के 'कीका' राणा प्रताप
भीलों ने ही राणा प्रताप का पालन पोषण किया था। भील राणा प्रताप को 'कीका' कहा करते थे। इसलिए पूंजा भील ने राणा प्रताप की हल्दीघाटी युद्ध में सहायता देना उचित समझा।

तत्कालीन भीलों के कबीले हुआ करते थे, कबीलों के सरदार हुआ करते थे। जिनकी आज्ञा का पालन समस्त भील कबीले वाले किया करते थे। पूंजा भील भी‌ भोमट क्षेत्र के सरदार थे, जिन्हें बाहरी लोग वहां का राजा कहते थे।

जब राणा प्रताप मेवाड़ राज्य छोड़कर जंगल में आ गये,‌ तब‌ इन्हीं भीलों ने उन्हें अपने क्षरणार्थ रखा। उनके परिवार की मुगलों से रक्षा की। भील सरदार पूंजा भील ने इन्हीं जंगलों में जहां भीलों के घर हुआ करते थे, वहां राणा प्रताप के परिवार को आश्रय दिया।

उपाधि
राणा प्रताप ने भील पूंजा को हल्दीघाटी युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए 'राणा' की उपाधि से सम्मानित किया। जब से पूंजा भील के आगे सम्मान के साथ राणा लगाया जाता है- 'राणा पूंजा भील'। आज उनकी इस उपाधि को समस्त भील समाज के लोगों ने भी धारण किया है और वे भी अपने नाम में 'राणा' शब्द जोड़ते हैं जो‌ सदियो से चला आ रहा है।

राणा पूंजा भील पुरस्कार
राणा पुंजा भील पुरस्कार एक राज्य स्तरीय पुरस्कार है। यह पुरस्कार आपसी विश्वास के स्मरण में आदिवासी मूल के एक व्यक्ति द्वारा समाज को स्थायी मूल्य के कार्यों को सम्मानित करने के लिए स्थापित किया गया था और भील आदिवासी और मेवाड़ घराने के बीच सहयोग जारी रखा था एवं इसकी स्थापना 1986 में की गई थी। यह पुरस्कार राणा पूंजा भील के याद मे बनाया गया था।
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राणा पुंजा भील पुरस्कार एक राज्य स्तरीय पुरस्कार है। यह पुरस्कार आपसी विश्वास के स्मरण में आदिवासी मूल के एक व्यक्ति द्वारा समाज को स्थायी मूल्य के कार्यों को सम्मानित करने के लिए स्थापित किया गया था और भील आदिवासी और मेवाड़ घराने के बीच सहयोग जारी रखा था एवं इसकी स्थापना 1986 में की गई थी। यह पुरस्कार राणा पूंजा भील के याद मे बनाया गया था।
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