किंबहुना - 23 अशोक असफल द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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किंबहुना - 23

23

भान्जा केशव, मामा द्वय को लेकर भोपाल में होशंगाबाद रोड स्थित कुंदन नगर के फेज-2 के 99 नम्बर के मकान पर जब पहुँचा, सुबह के चार बज रहे थे। इतनी जल्दी शहरों में कौन जागता, पर उन्हें कहीं और ठौर भी तो न था। बहरहाल, घंटी बजने पर कुत्ते की भौं-भौं के साथ राकेश ने जब गेट खोला, वे तीनों भीगी बिल्ली बने खड़े थे। अपने साढ़ू केशव को वह तुरंत पहचान गया, जिसके अगले ही क्षण में मामा श्री द्वय को भी। अरे- आइये, आइये यकायक उत्फुल्लित हो हाथ पकड़ भीतर ले आया:

कहाँ से आना हो रहा है, नातेदार जी!

तीनों ने एक साथ कहा, फिलहाल तो सागर से।

अच्छा, मम्मी-पापा कैसे हैं।

मम्मी तो ठीक हैं, पापा तो बेचारे तकलीफ में ही हैं!

हाँ- साब! वे बेचारे तो आज से नहीं... क्या करें! हाॅल कम ड्राइंगरूम में बिठाता हुआ बोला। थोड़ी देर में आरती की दूसरे नम्बर की बहन मनीषा उनके लिए चाय ले आई!

अरे, आपको इतनी सुबह कष्ट करना पड़ा। भरत दुखी हुआ।

क्या हुआ, मामा जी, ये तो फर्ज है। आपकी परेशानी से ज्यादा नहीं! उसने कहा तो भरत ने कयास लगाया कि आने से पहले ही खबर आ गई, इसका मतलब, कोई लगा है, इधर की उधर करने में। मास्टर माइंड इनमें से ही कोई कहीं तो नहीं! उसने पूछा, मम्मी ने आपको फोन किया?

नहीं तो! वह तपाक से बोली, अभी इन्होंने ही बताया कि आप लोग सागर से आ रहे हैं, तो रात आराम कहाँ कर पाए, जरूर थक गए होंगे। फ्रेश हो लीजिए और नाश्ता करके सो लीजिए एक-एक नींद!

वह सोच रहा था कि आरती में और इसमें कितना बड़ा फर्क है! राकेश ने चार बजे उठा दिया तो उठ गई, जरा भी न झुँझलाई। उसकी तो कोरी बातों में प्रेम झलकता है, कर्म में नहीं। निभाना नहीं जानती वह औरत! वह बेकार पीछे पड़ा है, मोह तोड़ क्यों नहीं लेता।

पर वह दिल से मजबूर था। इतने दिनों में उसका आदी जो हो गया था।

नींद किसे थी, बातें होने लगीं।

राकेश को यह तीसरी बार कष्ट हो रहा था। पहली बार तब हुआ, जब उसने आरती को पसंद कर लिया मगर बाद में पता चला कि वह तो छुपा कर किसी और से शादी भी कर चुकी है! कोई जब कल्पना कर ले कि अमुक आपका पति है या पत्नी, फिर रिश्ता न हो तो कितनी तकलीफ होती है, उसे भुलाने में कितना वक्त लगता है, यह वही जानता है...। दूसरी बार तब कष्ट हुआ जब उसने आलम को छोड़ भरत को पकड़ा। और तीसरी बार तब हो रहा है, जब भरत को छोड़ रही है! वह तपाक से बोला, वे बड़ी छुपी रुस्तम हैं, जरूर कहीं और नजर होगी!

यही मामा जी कहते हैं, केशव बोला।

है तो कोई मास्टर माइंड जरूर इसके पीछे, भरत ने जोड़ा, वह इतना दिमाग नहीं चला सकती।

तब राम ने कहा, लेकिन वे अब अपना अहित करने जा रही हैं! इस बात में छुपे निहित संदेश को राकेश ने पकड़ा और उसने उसी दम बौखलाहट में आरती को फोन लगा दिया। छूटते ही उसने कहा, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, क्या!

कैसे बात करते हो, हाँ? पाठ के बाद जैसे शक्ति आ गई थी।

तो ये सब क्या हो रहा है? वह हड़बड़ा गया।

वही, जो होना चाहिए, हमें पता है, आप किसकी दम पर गरज रहे हो!

और आप किसकी दम पे गरज रही हैं?

अपनी दम पर, उसने कहा, स्वर्ग के आगे तो न ले जाओगे!

कैसी बात करती हो?

जैसी तुम सुनना चाहते हो...

अच्छा फोन बंद कर दो, हमें आपसे कोई बात ही नहीं करना!

कहा किसने था? आरती ने फिर एक थप्पड़-सा जड़ दिया।

खीज कर फोन काट दिया राकेश ने!

अचानक गहरी शांति छा गई। तब थोड़ी देर बाद केशव ने कहा, अब बोलो, क्या किया जाए इनका?

आप जो करो, हम साथ हैं। वह बोला।

यों जबलपुर में बने ऐजेण्डे पर मुहर लग गई। तय हो गया कि सबके टिकट करवा दिए जाएँगे। 16 अक्टूबर को रायपुर में मीटिंग होगी।

दीदी नहीं आईं तो!

मनीषा ने एक सहज सा प्रश्न कर दिया। क्योंकि वह बचपन से उनका नेचर जानती थी, वे किसी की मानती नहीं। मन की करती हैं, हरदम। तो सब लोग विचार करने लगे कि हाँ, ये तो सोचा ही नहीं था! सहसा राम बोला, क्यों न हम रवान ही चलें और सिंधुजा मंदिर में ही बिठालें उन्हें, न मानें तो वहीं फजीता करें!

ना-ना...ये ठीक नहीं। भरत बोला।

पर केशव को यही उचित लगा, क्योंकि वह इन दिनों बलौदा बाजार का ही टीआई था। लकदक वर्दी और पुलिस जीप में मीटिंग में पहुँचेगा तो रिश्तेदारों पर भी धाक् होगी और वे भी सहम जाएँगी। इस पर राकेश ने भी मुहर लगा दी, गोया पुरानी टीस थी। तो भरत की असहमति के बावजूद तय हो गया। और वे लोग दोपहर का खाना खा कर भोपाल से रायपुर के लिए लौट पड़े।

रास्ते में आॅनलाइन सभी के टिकट करा दिए गए थे। जबलपुर से मधुसूदन और उसकी पत्नी सुधा, भोपाल से मनीषा और उसका पति राकेश, सागर से मम्मी अकेली। अब सभी का सेल फोन पर जीवंत संपर्क बना हुआ था। पर किसी ने आरती को ये न बताया कि मीटिंग रवान में रखी गई है! तारीख तो बता दी।

तारीख से ही घबराहट इतनी बढ़ गई कि उसका पारावार न रहा। यही तो वह तारीख थी जब उसे अजमेर जाना था। उसने आज दिन में ही ऑफिस से ही फोन लगा दिया दोस्त को कि लो हो गया कल्याण!

क्यों, क्या हो गया? उसने पूछा।

वही, जिसका हमें डर था, उन लोगों ने 16 की मीटिंग सैट कर ली...

जरूरी है कि तुम उसमें जाओ!

कैसे न जाएँगे, खींच कर ले जाए जाएँगे ऽ... उसने हल्की चीख के साथ कहा।

अरे भई, ऐसे-कैसे! उसने धैर्य बँधाना चाहा।

ऐसे ही जाना पड़ेगा, हम जानते हैं, कोई बचाने वाला नहीं, कोई ईश्वर, कानून, संगठन हमारे लिए न आएगा, हम जानते है! वह रोने को हो आई। मुँह लाल पड़ गया था।

उसने ठहर कर कहा, सुनो आरती, किसी की इतनी औकात नहीं है कि एक औरत को उसकी मर्जी के बिना कहीं ले जाए!

समाज की ताकत को आप नहीं जानते! गोया, उसके भीतर अखण्ड भय भरा हुआ था, उसने उसका कथन नकार दिया, मम्मी, भाई-भाभी, छोटी और मँझली दोनों बहनें और दोनों बहनोई और उनकी माँ, बहन, भाई सब इकट्ठे होंगे तो हमें लेने के देने पड़ जाएँगे, आप नहीं जानते!

तो न्यायालय क्या चरने चला जाएगा! उसने आवेश में कहा, हम हैवियस काॅर्पस एक्ट न लगवा देंगे! और वहीं छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट रायपुर में आकर लगवा देंगे।

उससे क्या होगा?

उससे, उसने धौंस दी, चाहे वे गड्डे में गाड़ दें तुम्हें, एसपी सात दिन के भीतर खोद कर आपको कोर्ट में हाजिर करा देगा!

देख लेंगेऽ! वह सुबकते हुए चीखी। घर जाकर बिस्तर पड़ रही और उँगलियों में बाम भर माथा ठोकने लगी। हर्ष आ गया और चपेटने लगा, उठाने लगा तो उसे रोते हुए घूँसे मारने लगी। ऐसे में कुछ नहीं सुहाता। पर बेटा तो बेटा ही होता है, उसे फर्श पर बिठा और खुद पलंग पर बैठ तेल की शीशी सर पर औंधा, खूब बाल भिगो उसकी मालिश करने लगा...। आराम मिल गया या बेहोशी आ गई, पता नहीं वह सो गई। तब नींद उसी के फोन से खुली। आरती, मैंने वकील साहब से बात कर ली है, आप उन्हें डिटेल्स दे दो!

अरे- नहीं, उसे डर लगा।

क्यों नहीं, उसने जोर दिया।

छोड़ो... नाहक बखेड़ा हो जाएगा! फोन काट दिया।

तब तक अगला फोन उस वकील का ही आ गया, जिसे शीतल ने केस समझा दिया था। उसने कहा, देखिए, डरिये नहीं, आप जब तक एफआईआर नहीं कराएँगी, आपका गला नहीं छूटने वाला। पोजीशन ये है कि अब या तो आप उस पार्टी के डिटेंशन में जाएँ या कानून की मदद लें। बोलिए क्या मंजूर है?

तो उसे कुछ ढाढ़स बँधा, सोच समझ कर बोली, जहर खाके मर जाएँगे, पर वहाँ न जाएँगे।

नहीं जाना तो हम जो, जो पूछें, बता दें, एक बात बता दें, दाई से पेट, डॉक्टर से मर्ज और वकील से घटना कभी नहीं छुपाना चाहिए!

हाँ!

तब पूछा, आपका पूरा नाम?

आरती कुलश्रेष्ठ।

पति का नाम?

आलम शाह खांन।

पता?

जी-63, जैन कॉलोनी, बलौदा बाजार (छ.ग.)

वर्तमान लिव-इन रिलेटिव का नाम?

भरत मेश्राम।

इंस्पेक्टर बहन का नाम?

रेखा नेताम।

उसके पति का नाम?

केशव नेताम।

सही-सही घटना क्या हुई।

आलम से तंग आकर हमने तलाक का केस किया हुआ था। भरत मेश्राम ने भी अपनी पत्नी के विरुद्ध तलाक का केस किया हुआ था। भरत मेश्राम हमारी बहन रेखा नेताम के मामा ससुर हैं। सभी ने मिल कर हमारी उनसे सगाई करा दी। हमने शर्त रखी थी कि विवाह तलाक के बाद ही होगा। अब उनका तलाक का केस खारिज हो चुका है तो हम विवाह नहीं करना चाहते, पर वे दबाव बना रहे हैं।

सगाई के बाद आप उनके साथ रहने लगी थीं क्या?

हाँ!

अब नहीं रहना चाहतीं?

ना!

क्यों?

वे हमारी लड़की पर गलत नजर रख रहे हैं।

बच्ची कितने साले की है?

जी, 15 की।

नाम?

रेश्मा।

और भी लड़की है?

नहीं, लड़का है।

नाम?

हर्ष।

उम्र?

11 वर्ष।

एक बात बता दें,

जी,

अब आपको जरूरत हो तो कोई एक विश्वसनीय दोस्त बना लेना, ध्यान रहे एक से अधिक नहीं अन्यथा आपकी बच्ची खतरे में पड़ सकती है। और सगाई, ब्याह के लफड़े में कतई नहीं पड़ना वरना आपकी नौकरी चली जाएगी और सजा भी हो जाएगी, क्योंकि आपका तलाक नहीं हुआ है।

उसने सख्त हिदायत दी।

शर्म और डर से आरती का चेहरा झुक गया था।

आगे उसने कहा, अब ध्यान से सुनिए, आगे क्या करना है,

जी,

कल आपको एक ड्राफ्ट मिल जाएगा, जिसे आप स्वयं एसपी के पास लेकर जाएँगी। बच्ची को भी ले जाना और पर्सनल रिक्वेस्ट करना और जरा रो देना कि टीआई आरोपी का रिश्तेदार है, इसलिए आपके पास आना पड़ा। हमने लिखा नहीं है, पर वे हमारी बच्ची के साथ बदसलूकी कर चुके हैं! हम माँ-बेटी की इज्जत अब आपके ही हाथ में है, सर जी! ये कहना और रोकर कहना समझीं!

जी!

और इतना नहीं करोगी तो हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं, कह कर उसने फोन काट दिया।

आरती को रात भर नींद न आई कि यह कैसे करेगी, इसमें तो बड़ी बदनामी होगी। छोटी जगह, यहाँ सब उसे जानते हैं। बड़ी इज्जत है, सब खाक में मिल जाएगी।

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