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किंबहुना - 22

22

मैसेज भेजने के बाद तीन-चार दिन शांति से कट गए थे।

खबर नहीं थी, भीतर ही भीतर इतनी बड़ी खिचड़ी पक रही है!

हुआ यह कि जब उसने पूरी तरह नइंयाँ टेक दी और भरत को ब्लाॅक कर दिया तो वह बुरी तरह घबरा गया। उसे बड़ी ठेस लगती कि जिसने साथ जीने मरने की कसमें खाईं और जो दर्जनों बार अंक शायिनी बनी, उसने इस कदर मुँह मोड़ लिया कि अब उसकी सूरत भी नजर नहीं आती! कहाँ वह रोज भाँति-भाँति के चित्र डालती, अपनी कविताएँ डालती। सच तो यह कि उसे उसकी देह से अधिक उसके शब्दों से मोह हो गया था। वह उसके व्यक्त्तिव से बेहद प्रभावित था। उससे जोड़ी बना कर समाज में उसकी शान बढ़ गई थी। वह फख्र से सब दूर कहता फिरता कि महिला कार्यक्रम अधिकारी हैं! वे बहुत बड़ी कवयित्री हैं! उनकी एंकरिंग देखो, उनका साहित्यिक समाज देखो, उनकी भव्यता देखो, देखते ही रह जाओ।

जाहिर है, अब वह उसे किसी कीमत पर खोना नहीं चाहता था। वह उसके होनहार बेटे को क्रिकेट और बिटिया को आईटी क्षेत्र में भिजवाना चाहता था। उसके तो यही बच्चे थे, और कोई था ही नहीं। और लड़की जो कि कच्ची उम्र के चलते बहकती जा रही थी, उसे भी तो बचाना था! सो, वह उसे पाना चाहता था। क्योंकि मूल तो वही थी। उसे पाकर ही उसकी प्रतिष्ठा से अपनी प्रतिष्ठा और उसके बच्चों में अपने बच्चों को पाया जा सकता था। एक डूबते हुए शख्स की तरह वह तिनके-तिनके का सहारा खोज रहा था। दफ्तर से एक मुश्त छुट्टी ले उसने ताबड़तोड़ प्रयास शुरू कर दिए थे। इसके लिए वह अपने छोटे भाई राम और भान्जे केशव को लेकर आरती के भाई मधुसूदन के यहाँ जबलपुर गया, जो वहाँ प्रतिष्ठित कंपनी टाटा इंफोसिस में मुलाजिम था। वहाँ भाई और भाभी को उसने आरती द्वारा भेजा वह मैसेज दिखाया जिसमें कहा गया थाः

श्रीमान् भरत मेश्राम जी, आप एक शादीशुदा पुरुष हैं और मैं भी एक शादीशुदा महिला हूँ। फिर आप मुझसे सम्बंध बनाने और शादी करने का प्रयास क्यों कर रहे हैं, यह सर्वथा अनुचित है। यदि आपने आगे से मुझे इस सम्बंध में मैसेज भेजा, फोन किया अथवा रिश्तेदारों द्वारा मुझ पर अवैध सम्बंध बनाने और शादी करने का दबाव डलवाया तो मैं आपकी शिकायत बलौदा बाजार के पुलिस अधीक्षक महोदय से कर दूँगी। मैं आपके प्रयासों से तंग आ चुकी हूँ। इसे कोरी धौंस न मानें, यह संदेश मैं अध्यक्ष महोदया, छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग, रायपुर को भी फाॅरवर्ड कर रही हूँ।

पढ़ कर भाभी ने तो दाँतों तले उँगली दबा ली, हाय-राम! दीदी को यह क्या सूझ रहा है...

तो केशव बोला, उन्हें नहीं सूझ रहा, उनके पास तो इतना दिमाग ही नहीं! यह कारगुजारी तो किसी और की है!

सुन कर भाभी ने उसकी ओर देखा, सोचा, पुलिस का काम ही शक करना है। शक के बल पर ही आप मुजरिम तक पहुँचते हैं!

दोनों को चुप देख भरत ने उनसे पूछा, बताओ, इसका मास्टर माइंड कौन है? इसके पीछे किसका हाथ है! किसी का तो है?

साला उन बड़े लोगों के रुतबे में आ गया, सलहज तो पहले से थी। वह शुरू से ही अपनी रेखा दीदी की हाँ में ही हाँ मिला रही थी। वह वहाँ कई समारोहों में जा चुकी थी। वे रसूखदार लोग थे। शासन-प्रशासन सब दूर उनकी पकड़ थी। उनके कई एक रिश्तेदार बड़े अफसर और एक दूर का रिश्तेदार राज्य सरकार में मंत्री था। उन्हें छोड़ना आरती दीदी के हित में न था, यह बात वह भली-भाँति जानती थी। और सवाल रेखा दीदी की इज्जत का भी था।

मधुसूदन हाथ जोड़ बोला, हमें तो नहीं पता, जीजा जी! दीदी के पास कभी जाते भी नहीं हम तो, वही आती-जाती हैं...तो उनके संपर्कों के बारे में नहीं कह सकते। पर आप समाज की एक मीटिंग करो, दीदी को भी उसमें बुलाओ, हम आपका भरपूर साथ देंगे!

जबलपुर से कोई सुराग हाथ न लगा तो केशव ने सागर का रुख कर लिया। और यह बात मधुसूदन ने भी कही थी कि- मीटिंग ही करना पड़ेगी। और उसमें मम्मी को जरूर बुलाना। दीदी उन्हीं की बात मान सकती हैं, हम लोगों की नहीं।

वे लोग मूलतः सागर के ही निवासी थे। वहाँ चकरा घाट पर उनका पैत्रिक मकान भी था। लेकिन नौकरी के कारण खास सागर में कभी रहना नहीं हो पाया। लेकिन दीवाली पर घर जरूर जाते और कभी-कभार अन्य तीज त्योहारों पर भी। आरती को वहाँ जाना हमेशा अच्छा लगता, क्योंकि घर के पास ही तो बंजारा झील थी। सुबह-सुबह पहुँच जाती और घाट की सीढ़ियों पर बैठ सुंदर सूर्योदय देखती। वहीं मन की फसल लहलहाती जो कभी-कभार कविता के रूप में फूट पड़ती। पापा के रिटायरमेंट के बाद मम्मी-पापा वहीं शिफ्ट हो गए थे। केशव, भरत और राम तीनों जब वहाँ पहुँचे तो पापा की दीन दशा देख व्यथित हो गए। मैले-कुचेले कपड़ों में चारपाई पर बैठे वे ज्यादातर अपनी नाक में उँगली डाला करते और पूछा करते, कौन-कहाँ?

ये किसके बारे में जानना चाहते हैं? भरत ने मम्मी से पूछा। दरअसल, वह उन लोगों की सहानुभूति अर्जित करना चाहता था। उन्होंने निर्लिप्त भाव से कहा, उन्हें सुध-बुध खोए अब तो उन्तीस-तीस साल हो गए। एक जमाना था, जब वे खूब फर्राटे से मोटर-साइकिल चलाते, रामायण बाँचते, जम कर होली खेलते, खूब भाँग घोंटते। पूरे दफ्तर और हम जहाँ भी रहते, वहाँ के हीरो होते। पर एक एक्सीडेंट ने जिंदगी नरक बना दी। हमसे पूछो, तीस साल से भुगत रहे। लैट्रीन-बाथरूम तक हाथ पकड़ ले जाना पड़ता है, कुगत हो गई।

सुन कर तीनों ही रंज से भर गए। कुछ देर को लगा कि संसार वाकई क्षण-भंगुर है। एक दिन तो सभी का क्षरण हो जाना है- सूरज, चंदा, धरती, आसमान का भी। अगले पल क्या हो जाए, किसी को कुछ पता नहीं। मम्मी को घोर आश्चर्य हो रहा था कि वे तीनों इकट्ठे अकस्मात् क्यों आए! नाश्ता-पानी कराने के बाद उन्होंने पूछा। तो भरत ने सारी राम कहानी कह सुनाई। और सुन कर वे यकायक ताव में आ गईं। झींकने लगीं कि इस धीयर ने कभी चैन की साँस न लेने दी। आवेश में उन्होंने कहा, फोन लगाओ, हम बात करें!

केशव ने अपने मोबाइल से आरती का नम्बर डायल कर उन्हें दे दिया। बासठ साल की बुढ़िया, पर दाँत बरकरार होने से मुख की शोभा नहीं बिगड़ी। हड्डियाँ खाल जरूर छोड़ने लगी थीं, पर आवाज में अब भी वही कड़क। फोन उठते ही उन्होंने दबंग स्वर में कहा, आरती, हम जे कहा सुन रहे! तुमाए वेई नाटक अब भी चल रहे! शरम करो अब तो, धीधर तुमाई ब्याह लाइक हो गई! अरे, तीन साल हुइ गईं नाता जुरं, ढाई साल से संग रह रईं, अब का माखी छिनक गई? काहे लोहू पीतीं, काहे मुकर रहीं! पहले नईं जनतीं शादीशुदा हैं! अब का फिर सें लाल जोड़ा पहनन की पड़ी! काहे, बोलो, के अपनी धीय को पहरावे के दिना हैं!

ऐसी बमवारी! उसने तो सोचा भी न था कि ये लोग उन तक पहुँच जाएँगे और उन्हें भी मोल्ड कर लेंगे! क्रोध में उसने फोन काट दिया।

भरत ने पूछा, क्या हुआ?

रड़ो बोलती नईं, फोन काट देतीं! उन्होंने खिसिया कर कहा।

तो राम ने कहा कि मम्मी, एक काम करें, एक मीटिंग कर लें! हम टिकट करा देते हैं, भैया, भाभी और आपका। आप लोग रायपुर में आ जाएँ, वहाँ हमारी माँ-बहन और रेखा भी होगी। आरती को वहीं बुला लेते हैं, सामने बैठ कर बात हो जाएगी!

उन्होंने कहा, ठीक है, हम तो आजाएँगे, पापा की ओर इशारा कर बोलीं, तनिक इनकी मुसीबत है!

तीन-चार दिन के लिए कोई व्यवस्था कर देना, पड़ोस में कोई हो, या आसपास कोई रिश्तेदार! केशव ने चिरौरी की।

सो तो मुलक हैं, उन्होंने गर्दन झटक कर कहा, पर तुम एक काम करो, मीटिंग में राकेश को बी बुला लो!

राकेश कौन! भरत ने सुना हुआ-सा नाम याद करने की कोशिश की। तो वे पश्चिम की और उँगली उठा कर बोलीं, वो हमार मझला दमाद, भोपाल वाले...वो बोहत कछु समझदार है। पहले शुरू में इन ने बात बिगाड़ दई, तब उन ने ई बनाई!

बात तीनों नेगियों को जम गई। राम की होंडा सिटी से आए थे, भोपाल अब ज्यादा दूर भी न था। सो सम्मान पूर्वक मम्मी-पापा को प्रणाम कर वे भोपाल के लिए रवाना हो गए।

रात फिर भारी पड़ने जा रही थी। उसने दोस्त को फोन लगा दिया। बोली, साहेब, आज तो इतना तनाव है कि सर फटा जा रहा है!

क्यों, क्या हुआ! उसने घबराहट में पूछा, बिटिया तो चली गई थी ना, उसे फिर तंग किया क्या...?

नहीं, उसकी बात नहीं, वो तो सुरक्षित है... पर इन लोगों ने क्या किया कि भाई के पास जबलपुर पहुँच गए और वहाँ से माँ के पास सागर!

तो!

दबाव डलवा रहे हैं, हम पर!

अरे!

हाँ!

डलवाने दो, तुम कोई बच्ची तो नहीं कि डरा-धमका लेंगे, बहला-फुसला लेंगे!

हाँ, सो तो कुछ नहीं, पर टेंशन तो होता है, यार!

टेंशन न करो, मुकाबला करो, बहादुरी से, बुझने से पहले शमा भड़कती है, इसके बाद चुप बैठ जाएँगे।

क्या पता, लग रहा है, कोई बड़ा षडयंत्र करने जा रहे हैं!

बदनामी के सिवा और क्या करेंगे, मैडम! वह तनिक खीजा, इतनी कमजोर न बनो, जबरन थोड़े ना ले जाएँगे!

हाँ, सो तो है, पर खिसिया रहे हैं... बच्चों का डर लगता है, अपना नहीं। कल हर्ष एकदम हाँफता-दौड़ता अंदर आया, माँ-माँ, पापा आ गए! सुनते ही हाथ-पाँव फूल गए। घबराहट में दौड़े कि मैन गेट बंद कर लें! देखा तो कार वही, पर उनकी न थी। हर्ष को देर तक सीने से चिपकाए रहे, जो बहुत डर गया था। हम सब बेहद खौफ में जी रहे हैं, क्या कहें!

मैं कल किसी वकील से बात करके इन लोगों का पुख्ता इंतजाम कराता हूँ, अभी तुम बच्चे को सीने से लगा कर सो जाओ, किसी तरह।

और सुनो, उसने दुबारा कहा, कल मंगलवार है, सुबह जल्दी उठ कर सुंदरकाण्ड कर लेना!

रामायण नहीं है हम पर।

उसकी तो छोटी सी पुस्तिका आती है।

हाँ-हाँ, पहले तो थी। हनुमान, शिव, देवी-चालीसा, दुर्गा-शप्तसती वगैरह सब! विश्वास उठ गया तो पूजा का पूरा आला उठा कर जिसमें सिंहासन, मूर्तियाँ, रामायण, पुस्तिकाएँ, कण्ठी-माला, चन्दन लकड़ी, शंख सब था; गठरी बाँध पुष्पा को दे दिया!

अच्छा नहीं किया, उसने कहा, असली सहारा तो ईश्वर का ही होता है!

तो अब क्या करें? उसने घबराहट में पूछा।

सुबह हम फोन से सुना देंगे, नहा-धोकर तैयार हो जाना।

लेकिन जल्दी, सुबह इन्हें भेजना और ऑफिस जाना रहता है...।

ठीक है, कोशिश करेंगे, एक तो बज गया, सो जाओ अब!

फिर याद आया तो दुबारा फोन लगा कर कहा, सुनो, विपत्ति में तुम तो पगला ही गईं, हमारी भी मति मारी गई है, अरे डाउनलोड कर लो ना...

नहीं, आप फोन पर ही सुना देना, हमसे न होगा। आपके विश्वास से ही हमारा विश्वास बन रहा है, उसने दो टूक कहा, अब तो आप ही इस नैया के खिवैया हैं!

सुन कर अच्छा लगा, बोला, अच्छा एक किस तो दे दो!

समय आने पर...

समय तो आ गया!

यहाँ से कैसे!

सेल्फी से...

अच्छा ठीक! वह हँसी और केमरा जूम कर लिप्स की एक सेल्फी ले, वाट्सएप पर सेंड कर दी।

तब उसने फोन लगा कर किस की एक जोरदार ध्वनि उसके कान में गुँजा दी। आरती उसी ध्वनि में अलमस्त हो थोड़ी देर में सो गई। तो सुबह साढ़े चार बजे फिर उसके फोन से ही नींद टूटी। जब उसने कहा, उठो, उठो देर हो गई। जल्दी से फ्रेश होकर, नहा कर पूजा घर में पहुँचो। अगरबत्ती हो तो जला लेना!

जी। उसने अलसाए स्वर में कहा।

इसके बाद पंद्रह मिनट बाद उसने ही फोन किया, जी तैयार हैं, तो उसे ताज्जुब हुआ कि इतनी जल्दी! तब उसने बताया कि हमें तैयार होने में पाँच-सात मिनट लगते हैं, बस! अगरबत्ती जला ली? उसने पूछा तो उसने बताया, थी नहीं, न जाने कब से, आटे का दीपक बना, रुई की बत्ती लगा जला लिया है।

बढ़िया! वह संतुष्ट हुआ। इसके बाद पाठ शुरू हो गया। उसे अच्छा अभ्यास था। उसने पेंतीस मिनट में खत्म कर दिया। न कहीं भूला, अटका, न दोहराया। शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाण शांतिप्रदं, से प्रारंभ किया तो फिर सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान, सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान, तक पूरा एकबारगी उसके कान में उतार दिया! साफ समझ भी आया। आरती चकित रह गई।

आप सचमुच मेधावी हैं! उसने कहा।

यानी च्यवन ऋषि के पुत्र?

जय हो! ज्ञान अखण्ड है, आपका...।

आप भी कम ज्ञानी नहीं, मेम! उसने सम्मान पूर्वक कहा।

पर आपसे अधिक नहीं।

सुन कर अच्छा लगा, बोला, सब उन्हीं की कृपा है, आप भी उन्हीं पर भरोसा रखें।

हमारा भरोसा तो आपके भरोसे पर है, वे आपकी मनोकामना पूर्ण करें।

सुन कर दिल बाग-बाग हो गया। क्योंकि उसकी कामना तो वही थी! दोगुने उत्साह से बोला, पाठ का त्वरित फल हमें तो मिल गया मेम!

आपको मिल गया तो समझो हमें मिल गया! उसने हँस कर मुहर लगा दी।

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