अग्निजा - 61 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 61

प्रकरण-61

बहुत समय बीत गया, पर जीतू कहीं दिखाई ही नहीं दिया। तभी केतकी के कंधे पर पीछे से किसी का प्रेम भरा स्पर्श महसूस किया। उसने पीछे मुड़ कर देखा और खुश हो गई, “उपाध्याय मैडम, आप?”

“हां, एक छात्रा से मुलाकात करनी थी, इस लिए यहां आई थी। लेकिन तुम यहां कैसे?” तभी जीतू आ पहुंचा। केतकी ने पहचान कराई, “ये मेरे होने वाले पति...आज ही सगाई हुई है हमारी।”

“ऐसा क्या....अरे वाह...बहुत अच्छा...बहुत बधाई और शुभकामनाएं..”

“थैंक यू...और ये उपाध्याय मैडम...इन्होंने मेरी बड़ी मदद की है।”

“ह्म्म...अच्छा...अच्छा....बहुत अच्छा...चलो अब चलें...नहीं तो बहुत देर हो जाएगी।” केतकी कुछ कह पाती इससे पहले ही उसने एक रिक्शे वाले को हाथ दिया। उपाध्याय मैडम दोनों की तरफ देखती रहीं। जीतू को याद आया कि कल्पु जानकारी लेकर आई थी कि यही औरत केतकी को सभी बातें सिखाती रहती है। उसने केतकी की तरफदेखा, और कड़ाई से पूछा, “ऐसे किसी भी ऐरे-गैरे से मिलवाने की जरूरत क्या है?”

“ऐरे-गैरे मतलब, आप उनके बारे में जानते ही कितना हैं?”

“लेकिन मुझे ये औरत कुछ जंची नहीं, समझ में आया?” जीतू की इस बात से केतकी को आश्चर्य हुआ,लेकिन मुंह बंद रखने का आदेश याद आया। रिक्शे में बैठने के बाद जीतू गुटका चबाते-चबाते बिना कुछ बोले तिरछी नजरों से केतकी को देखता रहा। केतकी को ऐसा लगा कि कुछ दिन जीतू की बातें सुननी चाहिए, उसके बात-व्यवहार का निरीक्षण करना चाहिए और समझने का प्रयास करना चाहिए। तब तक कुछ बोलना ठीक नहीं। थिएटर में पहुंचने के बाद मालूम हुआ कि जीतू ने ‘प्लेटफॉर्म’ फिल्म की टिकिटें खरीदी थीं।

“अजय देवगन मेरा पसंदीदा हीरो है। उसकी हर फिल्म मैं देखता ही हूं। एक नहीं दो-दो, चार-चार बार ...बड़ा मजा आता है...। तुमने ‘फूल और कांटे’ कितनी बार देखी है?”

“एक बार भी नहीं।”

“क्या बात करती हो? मैंने तो बीस-पच्चीस बार देख डाली...अभी भी वो मुझे उतना ही पसंद है...अब कहीं लगेगी तो तुम्हें भी दिखाने ले चलूंगा...रुको, कुछ खाने के लिए लेकर आता हूं। हम लोग आज मौज करने के लिए ही निकले हैं न...”

जीतू चार समोसे लेकर आ गया। “मैं जब भी यहां आता हूं, यहां के समोसे जरूर खाता हूं। तुमको भी पसंद आएंगे।”

थिएटर अच्छा नहीं था और पब्लिक भी ठीकठाक नहीं दिख रही थी। पिक्चर भी ऐसी-वैसी ही थी। जीतू को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। उसने अजय देवगन समोसा और फिर गुटका....तीनों का मजा लूटा। केतकी ने जैसे-तैसे आधा समोसा खाया। दूसरा समोसा उसने जीतू के सामने रख दिया। उसने वो भी खा लिया। परदे पर चल रहे अजय देवगन के संवादों को वह भी जोर-जोर से बोल रहा था। शायद उसने यह फिल्म पहले भी देख रखी थी। गाने बजते तो वह भी साथ-साथ गुनगुनाने लगता था। मारपीट के दृष्यों में तालियां और सीटियां बजाने लगता। फिल्म में अजय देवगन के साथ पृथ्वी नाम का एक और नया अभिनेता था। उसको देख कर जीतू बोला, “ देखो मैं कह रहा हूं, यह पृथ्वी है न एक दिन सिनेमाजगत में सुप्रसिद्ध हीरो बनेगा, पक्का। ” केतकी को यह सबकुछ अच्छा नहीं लग रहा था। लेकिन उसे एक बात की खुशी थी कि जीतू अपनी पसंदीदा बातों का आनंद उठा सकता है। वह ऐसा कब कर पाएगी?

जीतू ने एक-दो बार केतकी का हाथ पकड़ने की कोशिश की। लेकिन केतकी को ऐसा लग रहा था कि आसपास के लोग उन्हें देख रहे हैं। वह जीतू को नाराज नहीं करना चाहती थी लेकिन उसमें उत्साह भी नहीं था। केतकी इन सब बातों को सकारात्मक तरीके से लेने का बड़ा प्रयास कर रही थी। वह अपने ही मन को समझाती रही, जीतू जैसा बाहर है वैसा ही अंदर से भी है। वह बड़ी सहजता के साथ व्यवहार करता है, दिखावा नहीं करता। वह विचार कर रही थी कि कुछ ही दिनों में उन दोनों में अच्छी दोस्ती हो जाएगी और आगे का जीवन आसानी से चलेगा। सिनेमा खत्म होने के बाद केतकी ने जीतू से कहा, “आपके कारण बड़े दिनों बाद थिएटर में सिनेमा देखने का मौका मिला, वरना इन सब बातों के लिए तो समय ही नहीं मिल पाता था।”

“हम्म...मेरे साथ, मेरी कहना मान कर रहोगी तो रानी की तरह राज करोगी....रानी की तरह...और हां, मुझे मीठा-मीठा बोलना नहीं आता...तुमको समय मिलता नहीं इसका क्या मतलब? तुम्हारा बाप तुमको कहीं जाने नहीं देता था, यह कहो न। घर के कामकाज से फुर्सत मिलेगी तब तो जाओगी न? सच है कि नहीं? लेकिन अब सब भूल जाओ। मैं हूं न तुम्हारे साथ। ”

केतकी की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। “मैं हूं न तुम्हारे साथ।” यह बात किसी ने पहली बार ही कही थी उससे। यही सुन कर उसके जी को अच्छा लगा। केतकी ने अनजाने ही जीतू का हाथ अपने हाथों में लिया और कहा, “हां, आप मेरे साथ हैं यह सुन कर खुशी हो रही है मुझे, थैंक यू।”

“आपस में इस तरह थैंक यू वैंक यू नहीं बोला जाता। तुम्हारे रीसेस का टाइम हो गया है, तुमको कुछ खाना है क्या? ”

“नहीं, मुझे बिलकुल भूख नहीं है। हम कहीं एकांत में जाकर शांति से बैठते हैं। किसी अच्छे बगीचे में?” जीतू केतकी की तरफ देखने लगा। “ये चुपचाप बैठना मुझे पसंद नहीं। इससे अच्छा तो फिर से सिनेमा देखें?  बोलो तो ब्लैक में टिकट लेता हूं।”

“नहीं, नहीं सिनेमा नहीं...इससे अच्छा तो तालाब के किनारे चलें?”

“हां ठीक है, वहां चलते हैं। वहां पर तुमको एक जगह बढ़िया पानी पूरी और भेल खिलाता हूं।” जीतू ने तुरंत एक रिक्शा रोका। केतकी को कहीं पढ़ी हुई बात याद आ गई, “पुरुष के दिल तक पहुंचने का रास्ता उसके पेट से होकर जाता है।” उसे लगा कि अब उसे भी कुछ अच्छे व्यंजन सीखने होंगे। लेकिन...नहीं...अब तक क्या कम काम किए हैं घऱ में...अब बिलकुल नहीं...इससे अच्छा खाना पकाने के लिए अच्छी सी बाई रख लें। लेकिन उसको अपने ये विचार अपने मन की कोरी कल्पना ही लग रहे थे। काम वाली बाई रखना सास और पति को अच्छा थोड़े ही लगेगा?

तालाब किनारे बहुत भीड़ थी। शांति से एकांत में बैठ कर कहीं बातें की जाएं, केतकी को ऐसी कोई जगह ही नहीं दिख रही थी। जीतू को भी उसका अपना भेल वाला दिखाई नहीं दे रहा था। दोनों ने वापस लौटने का मन बनाया। नारियल पानी पीते हुए खड़े रहे। तभी दूर से किसी ने आवाज लगाई, “...ऐ जित्या...”जीतू ने पीछे मुड़ कर देखा और उसी तरफ तेजी से भागा। उसकी खुशी देख कर केतकी ने अंदाज लगाया कि कोई खास मित्र होगा। जीतू उसको साथ लेकर आया। उसने केतकी से परिचय करवाया। “ये प्रवीण..हम दोनों स्कूल में साथ पढ़ते थे। इसने जल्दी ही पढ़ाई छोड़ दी...अब व्यवसाय कर रहा है...तीन-तीन थिएटरों में कालाबाजारी से टिकटें बेचने का...पुलिस के साथ अच्छी सेटिंग कर रखी है इसने..यदि हमें टिकट चाहिए हों तो मुझसे कभी भी अधिक पैसे नहीं लेता।”

“जित्या...मेरी तारीफ बहुत हुई...यह कौन है? कोई नयी?”

“चुप रहो...ये केतकी है...आज ही हमारी सगाई हुई है।”

“वाह..बधाई...साले किसी को कुछ बताया तक नहीं...चल अब पार्टी देना पड़ेगा...आज ही...सॉरी भाभी हां कहें तो...”

“अरे, वह क्यों नहीं कहेगी...तुम सब जब कहोगे तभी पार्टी दे दूंगा।”

“नही, नहीं भाभी की सहमति होगी, तभी...”

“अरे, पुराने दोस्तों से मुलाकात तो खुशी की बात होती है...आपको जब मुलाकात करनी हो, तब मिलें, प्लीज।”

“देखा पव्या...तेरी भाभी कितनी समझदार है...”

“तो फिर चलो...आज ही करते हैं पार्टी...अभी...”

“ठीक...आज ही करते हैं...केतकी, मैं तुम्हें रिक्शे में बिठा देता हूं...”

“नहीं, कोई आवश्यकता नहीं। मै चली जाऊंगी। आप आराम से अपनी पार्टी कर लें। ऑल द बेस्ट।” केतकी ने हंस कर कहा। जीतू ने हां का इशारा किया और वह रिक्शे की तरफ मुड़ गई और पव्या ने जीतू की तरफ देख कर आंख मारी।

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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