क्रिमिनल जस्टिस – सीज़न २ – बिहाइंड क्लोज्ड डोर –रिव्यू Mahendra Sharma द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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क्रिमिनल जस्टिस – सीज़न २ – बिहाइंड क्लोज्ड डोर –रिव्यू

क्रिमिनल जस्टिस – सीज़न २ – बिहाइंड क्लोज्ड डोर –रिव्यू

क्रिमिनल जस्टिस सिरीज़ हॉटस्टार पर उपलब्ध है, कहानी की खासियत ये है की आप अंत तक कहानी के साथ जुड़े रहेंगे जब तक की सच सामने न आए। कोर्ट रूम ड्रामा में इस सिरीज़ के मुकाबले में शायद ही कोई अन्य सिरीज़ बनी हो। पंकज त्रिपाठी वेब सिरीज़ के बेताज बादशाह हैं। उनके किरदार को सुपर हीरो नहीं बनाया जाता और न ही उन्हें भारी भरकम डायलॉग्स दिए जाते हैं ,पर उनको स्क्रीन पर देखकर यह तय हो जाता है की किरदार को न्याय मिलेगा। उनकी सादगी में लोग खुद को देखते है इसलिए उनकी सिरीज़ दर्शकों को पसंद आती है।

क्रिमिनल जस्टिस सिरीज़ में संदिग्ध पुलिस और पब्लिक के सामने कोर्ट में पेश होता है, उसपर कड़े इल्जाम लगाए गए होते हैं पर केवल एक वकील को लगता है की संदिग्ध को न्याय मिलना चाहिए, वकील को लगता है कुछ ऐसा है जो है पर सामने नहीं आ रहा। और कहानी फिर उस कत्ल के आसपास घूमती है, कत्ल क्यों हुआ, कैसे हुआ और संदिग्ध कैसे कत्ल के इल्ज़ाम में कोर्ट में पेश किया गया। इस कहानी में प्राइम सस्पेक्ट मतलब संदिग्ध आखरी एपिसोड तक शक के दायरे में होता है और वकील माधव मिश्रा मतलब पंकज त्रिपाठी उसे बचाने के लिए कानून और तफ्तीश की हर आखरी सीडी तक जाते नज़र आते हैं।

क्रिमिनल जस्टिस सीज़न २ में कहानी है एक शादीशुदा महिला की जिसको अपने पति को छुरा गोंपकर मारने के प्रयास में गिरफ्तार किया गया है। और जबतक केस चल रहा है उस महिला के पति का देहांत होता है और केस अटेम्प्ट टु मर्डर से सीधा मर्डर केस में तब्दील हो जाता है। महिला की एक 12 साल की बेटी इस कत्ल की आई विटनेस है। क्योंकि उसी ने अपने पिता की पीठ से छुरा निकाला जो उसकी मां ने अपने पति के पीठ में घोंपा था।

बात कत्ल से शुरू तो हुई पर जब तक कत्ल का मोटिव मतलब मकसद न मिले तब तक केस पूरा नहीं होता, यहां भी मकसद बहुत ही पेचीदा और हैरत एंगेज है। एक शादी शुदा महिला कैसे मजबूर हो जाती है अपने पति पर जानलेवा हमला करने पर और क्यों? और वो भी तब जब उनकी १२ साल की बेटी है और लग्नजीवन अब एक स्तर से आगे बढ़ चुका है। क्यों एक बहुत ही सफल वकील मतलब इस महिला का पति अपनी पत्नी के लिए दुश्मन से भी खतरनाक बन जाता है?

मनोवज्ञान की दृष्टि से इस कहानी में बहुत ही पेचीदा सवालों को आपके सामने रखा गया है। जैसे की क्या शादीशुदा जिंदगी में केवल महिला को ही एडजेस्ट करना है? क्या किसी व्यक्ति को इस हद तक सताया जाय की व्यक्ति खुद को ही दोषी मान बैठे? क्या परिवार के अन्य सदस्यों को अपने बच्चों की शादीशुदा जीवन की कुछ जानकारी नहीं रखनी चाहिए? इस सिरीज़ में दिखाया गया है की महिला के पिता भी उसकी शादीशुदा जिंदगी से परिचित नहीं थे। महिला की सांस भी अंजान थी की उसके बेटे के जीवन
में क्या चल रहा है।

महिला जेल में जिस प्रकार का माहोल दिखाया गया है अगर वह सच है तो नर्क शायद इसी का नाम होगा। कैसे कैसे गुनहगारों से इस महिला का पाला पढ़ा वो तो देखते ही आपको चक्कर आ जाएंगे। आप कभी किसी जेल के आस पास जाने से भी डरेंगे ऐसे किरदार और सीन दिखाए गए हैं।

सिस्टमेटिक ब्रेनवोश और सोशीयल आइसोलेशन कर के किस प्रकार एक नामी वकीलने अपनी ही बेटी का प्रयोग करके एक मां, एक पत्नी का जीवन नर्क बनाया, उसे बारीकी से दिखाया गया है। महिला अनु चंद्रा प्रेगनेंट थी और उसे जेल में एक बच्चा हुआ। उसकी क्या कहानी थी और कत्ल से उसका क्या संबंध था वह तो आपको सिरीज़ देखने पर पता चलेगा। यहां अनुमान लगाना वर्जित है।

मुझे कहानी दिलचस्प लगी क्योंकि शायद आपने और मैंने कई ऐसी महिलाएं देखी हैं जिन्हे सामाजिक तौर पर खुश माना जाता है पर वे अपने निजी जीवन में कौनसे सैलाब से झूज रही हैं वे ही जानतीं हैं। किन विकट परिस्थितियों में वे गुनाह करने पर मजबूर होतीं हैं और क्या मानसिक परेशानी से वे गुज़र रहीं हैं केवल वे जानें। अगर इससे अधिक मैंने लिखा तो कहानी का मज़ा किरकिरा हो जाएगा। आप खुद देख लें।

पंकज त्रिपाठी के साथ साथी वकील हैं अनुप्रिया गोन्यका जिनका काम काबीले तारीफ है। उनकी पत्नी बनी हैं खुशबू अत्रे जिनका कॉमिक टाइमिंग लाजवाब है। बी ए पास फिल्म वालीं शिल्पा शुक्ला का एक्ट ठीक ठाक है। दीप्ति नवल को इतने समय के बाद पर्दे पर देखकर अच्छा लगा। आशीष विद्यार्थी का समय समाप्त हुआ लगता है, काफी ओवर ऐक्ट लगा। अन्य कलाकारों में मीता वशिष्ठ भी मंझी हुईं एक्ट्रेस हैं।

ज्यादा कहानी बताकर मैं अपना फायदा करके इस सिरीज़ का नुकसान नहीं करना चाहता। बस अगर कोर्ट रूम ड्रामा पसंद है तो यह सिरीज़ आपको पसंद आएगी।

महेंद्र शर्मा २७.१०.२०२२