इश्क़ ए बिस्मिल - 35 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 35

“आई एम सॉर्री उमैर....मैं बोहत मायूस हो गई थी इसलिए फ्रस्ट्रेशन में वो सब बोल गई....मुझ से गलती हो गई...please मुझे माफ कर दो।“ वह बोहत जल्दी जल्दी बोल रही थी। उमैर ने अपनी कार रिवर्स में की थी। उसके सॉर्री कहने की देर थी की उमैर ने उसके पास वापसी का इरादा बना लिया था। मगर उसके पास पहुंच ने से पहले, वह भी अपने दिल का हाल कह देना चाहता था सो उसने गाड़ी वापसी के रास्ते में डाल कर गाड़ी को साइड पर लगा दी थी।

“आई लव यू सनम....आई लव यू सो मच...मैं तुम्हे खोना नहीं चाहता...किसी भी क़ीमत पर नहीं।“ सनम के बात के जवाब में उस ने अलग ही बात कह दी, सनम के माफी मांगने पर उसे या तो माफ कर देना चाहिए था या फ़िर अपने गिले शिकवे लेकर बैठ जाने चाहिए थे...मगर यहाँ तो उल्टी ही गंगा बह निकली थी, जिसे सुनकर सनम के अंदर बाहर हर तरफ़ सुकून भर गया था।

“मैं जल्द से जल्द तुमसे शादी करना चाहता हूँ... मेरी इस बात को कभी झूठा मत समझना वरना मैं टूट जाऊंगा... मैं बोहत परेशान हूँ सनम मुझे अब तुम्हारे साथ की बोहत सख़्त ज़रूरत है प्लिज़ मेरा साथ कभी मत छोड़ना।“ वह जैसे उसके सामने हाथ फैलाए उसके साथ की भीख मांग रहा था। उसकी इस हरक़त पर सनम को अंदर ही अंदर ख़ुद पर गुरूर आ रहा था, और उसे खुद पर गुरूर क्यों ना आता इतनी बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी के मालिक का बेटा उसके आगे झोली फैलाए हुए खड़ा था और उसके साथ की भीक जो मांग रहा था।

इसी गुरूर के नशे में उसने अपना पेन्त्रा बदला था और उमैर से कहने लगी थी।

“तुम्हारी कभी कभी ऐसी हरक़त मुझे बोहत हर्ट कर देती है उमैर। मुझे इस तरह कैफे में अकेला छोड़ कर आ गए। हम बैठ कर प्रॉब्लम सॉर्ट आउट कर सकते थे, मगर तुम?....मैंने तुम्हारे लिए क्या कुछ नहीं किया... तुम्हे पता है इस बार मेरी बंगलौर की टूर में क्या हुआ? एक बोहत बड़ी आई टी कंपनी के मालिक ने मुझे शादी के लिए प्रोपोज किया था मगर मैंने उसे excuse करने में एक सेकंड भी नहीं लगायी क्योंकि तुम्हारे प्यार के होते हुए मुझे दुनिया में और किसी का प्यार नहीं दिखता। मैं जहाँ भी जाती हूँ लोग मुझे अपना बनाने की तलब में फिरते रहते है लेकिन मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारी तलब है।“ वह कह रही थी और उमैर उसे चुप चाप सुन रहा था जैसे पहले सुनता आया था मगर अब फ़र्क सिर्फ़ ये था की पहले उसके कानों में सनम की रसदार बातें रस घोला करती थी और उसके दिल और दिमाग़ दोनों पर छा जाया करती थी लेकिन अब ये आलम था की कानों में सिर्फ़ सनम की बातें ही रहती थी मगर दिल और दिमाग़ पर ना जाने क्यों आज कल अरीज का चेहरा उसकी शख्सियत छा जाती थी, और इस तरह वह ना चाहते हुए भी सनम और अरीज की तुलना करने बैठ जाता था।

वापसी के लिए उठे उसके इरादे पीछे हट गए थे और वह अब अपने घर खान विल्ला के रास्तों की तरफ़ जा रहा था।


कल रात ही सोनिया अपनी सहेलियों के साथ ट्रिप से वापस आई थी। आसिफ़ा बेगम ने उस से मिलते ही उसकी बलाइयाँ और सद्क़े उतारे थे जैसे वह ट्रिप से वापस नहीं बल्कि कोई जंग फतेह कर के वापस आई हो। रात तो गुज़र गई मगर सुबह होते ही जैसे पूरे घर में इमर्जेंसी लागू हो गया था। आसिफ़ा बेगम ने नसीमा बुआ को और नसीमा बुआ ने पूरे घर को चेतावनी दे रखी थी की घर की शेहज़ादी आराम फरमा रही है तो भूल कर भी कोई शोर शराबा नहीं होनी चाहिए।

अरीज रोज़ की तरह आज भी सफाई में लगी हुई थी, अज़ीन को उसने कमरे से ना निकलने की नसीहत दे रखी थी।

आज सफाई करते करते वह घर के दूसरे हिस्से में पहुंची थी जहाँ पर एक स्टोर रूम था। पूरे घर की सफाई हो चुकी थी अब सिर्फ़ ये स्टोर रूम ही बच गया था जिसकी सफाई करना खुद में एक बोहत बड़ा टास्क भी था।वह स्टोर रूम काफी बड़ा था। पूरा स्टोर रूम इतना ज़्यादा भरा और फैला हुआ था की पैर रखने तक की जगह तक नहीं थी। अरीज ने एक लम्बी सांस लेकर खुद में हिम्मत बांधी थी। कमर पे अपना दुपट्टा कस कर वह सफाई करने के लिए शुरू हो गई थी। हर चीज़ पर जैसे धूल की चादर बिछ गई थी। उसने डस्टर से सबको झाड़ना शुरू किया। बोहत बड़े बड़े भारी भारी carton के बॉक्सेस थे जिसे उठा उठा कर बिना खोले वह सलीके से एक तरफ़ लगा रही थी। इतना करने से ही कमरे में काफी जगह बन गई थी।

एक बड़ा सा टेबल था जिसपर बोहत सारी किताबें थी और भी ना जाने क्या क्या बिखरा पड़ा था। उसने उस पर कपड़ा मारा तो उनकी शकल निकल आई बोहत सारे फोटो फ्रैमस् एक के उपर एक पड़े थे, और पहली ही फ्रेम में उसे उसके बाबा दिखे थे। उन्हें देखते ही वह जैसे सब कुछ भूल बैठी थी। तज्जस्सूस (curiosity, जिज्ञासा) की इंतेहा थी के वह एक के बाद फ़िर दूसरे फोटो फ्रेम को पूछ कर देख रही थी। और लगभग सभी में उसे उसके बाबा दिखाई दिये थे। उसकी आँखें नम थी मगर होंठ मुस्कुरा रहे थे। उसने एक फोटो फ्रेम को अपने सीने से लगा लिया था और अपनी आँखे बंद कर ली थी जैसे वह उन्हें महसूस कर रही हो। तभी उसके पीछे किसी के क़दमों की आहट हुई थी उसे लगा कोई नौकर होगा इसलिए उसने ज़्यादा ध्यान नही दिया उसे जो सुकून बख़्श रहा था वह उसे अपने सीने से लगाई हुई थी मगर अगले ही पल उसके नथोनो में एक जानी पहचानी क्लोन की खुशबू ने उसे जैसे अलर्ट कर दिया उसने जैसे मुड़ कर देखा सामने उमैर अपने हाथ पर हाथ बाँधे खड़ा था।

उमैर घर पहुंचते ही अरीज को तलाश कर रहा था, पूरे घर को छान मारने के बाद उसकी तलाश यहाँ पर खत्म हुई थी। उमैर को देखते ही अरीज के हाथ ढीले पड़ गए थे उसने वह फ्रेम वापस से टेबल पर रख दी थी।

“मुझे तुमसे एक बात करनी है।“ उसे काम में लगा देख कर उमैर ने उस से कहा था। अरीज वापस से अपने काम में लग गई थी जैसे उमैर के होने या ना होने से उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था।

“कहिए....मैं सुन रही हूँ।“ वह अभी भी अपने काम में लगी हुई थी। उमैर ने उसे गौर से देखा था। मैले कपड़े, मैले हाथ, धूल से अटा हुआ चेहरा, धूल में सना हुआ घने बालों का बिखरा सा जुड़ा... उमैर की जगह कोई और होता तो उसे सिर्फ़ यही सब दिखता मगर उमैर अभी कुछ और देख रहा था। गिलाफ़ी आँखें, घने लम्बी पलकें, बिना बनावट के खूबसूरत काली भवे, रौशन पेशानी, खड़ी नाक, भरे खूबसूरत पंखुड़ियों से होंठ, बिखरी कारवाँ के भटके आवारा ज़ुल्फ़ों की लटें जो बार बार उसके कामों में खलल पहुंचाने उसके मूंह के सामने आ रही थी जिसे उजलत में बार बार पीछे करती उसकी मर्मरी सी उंगलियाँ।

क्या वह कोई शेहज़ादी थी जो भेस बना कर उसके घर में बसेरा डाले हुए थी?

वह जैसे अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था जब अरीज का काम करता हुआ हाथ रुका था और उसने अपनी बायीं तरफ़ नज़रे उठा कर उमैर को देखा था।


आख़िर क्या कहना चाहता था उमैर अरीज से?...

क्या अरीज का उमैर को इग्नोर करना सही था?....

जानने के लिए मेरे साथ बने रहे और पढ़ते रहें इश्क़ ए बिस्मिल