गुमनाम राजा - 1 Harshit Ranjan द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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गुमनाम राजा - 1

हमारे देश आदि काल से अपनी कला-कृति, ज्ञान, औषधियों, योद्धाओं आदि के लिए संपूर्ण विश्य मे प्रसिद्ध रहा है । इन सभी के साथ-साथ एक और चीज़ है जिसके लिए हमारा देश संपूर्ण विश्व मे ं जाना जाता है और वो हैं हमारे देश के राजा तथा महाराजा ।

हमारा देश हजारों साल से अपने राजाओं की संपत्ति, शान-ओ-शौकत तथा उनके पराक्रम के लिए मशहूर है । इनमें से कुछ राजाओं के नाम तो हर किसी को मूँह-ज़ुबानी याद हैं जैसे कि राजा पोरस, चक्रवर्ती सम्राट अशोक, राजा विक्रमादित्य, पृथ्वीराज चौहान आदि ।
लेकिन भारतवर्ष के इतिहास में ऐसे ई राजा हुए हैं जिन्होंने अपनी प्रजा तथा अपने राज्य के हित के लिए अनेको काम किए लेकिन इसके बावजूद भी उनका नाम इतिहास के पन्नों में दबा रह गया । आइए उनमें से कुछ राजाओं के बारे में जानें :-

1) राजा यशोधर्मन :
यशोधर्मन छठी शताब्दी के आरंभिक काल में मालवा
के राजा थे । इनके पिया राजा प्रकाशधर्मा औलिकार वंश के शासक थे । अपने पिता के देहावसान के पश्चात इन्होंने मालवा की शासन व्यवस्था की बागडोर अपने हाथों में संभाली और मालवा की गद्दी पर बैठकर उसे गौरवान्वित किया । राजा बनने के एक वर्ष के अंतर्गत ही इन्होंने
आर्यवर्थ के अधिकतर हिस्सो पर कब्ज़ा करके वहाँ पर अपनी शासन व्यवस्था स्थापित की । वैसे तो यशोधर्मन ने अपने झीवन में अनेको युद्ध लड़े लेकिन जिस युद्ध ने इन्हें सबसे ज्यादा प्रसिद्ध दिलाई वो था सोंठानी का युद्ध ।
ये युद्ध तब हुआ जब भारत में गुप्ता साम्राज्य की जड़ें
तेज़ी से कमज़ोर हो रही थीं । इसी वक्त भारत में हूणों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था । हूण वास्तविक में एक जनजाती थी जो छठी शताब्दी के आरंभिक काल में ख़ैबर
के रास्ते से भारत में आई थी । यहाँ पर आने के कुछ ही सालों बाद इस जनजाती ने भारत के छोटे-छोटे स्थानीय राजाओं को हराकर अपने आप को एक साम्राज्य के रूप में स्थापित कर लिया । जैसे-जैसे भारत में हूणों की पकड़ मजबूत हुई वैसे-वैसे इनका अत्याचार भी बढ़ता गया ।
हूणों के प्रभाव को कम करने के लिए यशोधर्मन के पिता राजा प्रकाशधर्मा ने हूणों पर आक्रमण किया । परिणामस्वरूप, हूण ये लड़ाई हार गए और उनकी पकड़
मध्य भारत में कमज़ोर पड़ गई । इस आक्रमण में हूणों के राजा तोरामण की मृत्यु हो गई । उनके मरने के बाद उनका बेटा मिहिरकुल राजा बना जो आगे जाकर अत्यंत ही आतातायी शासक साबित हुआ ।

अपने पिता द्वारा किए गए प्रयास को पूर्णरूप से सफल करने के लिए राजा यशोधर्मन ने तत्कालीन गुप्त सम्राट
नरसिम्हगुप्त के साथ संधी की और दोनों ने मिलकर
हूणों पर आक्रमण किया । इस युद्ध में हूणों की पराजय हुई और यशोधर्मन की विशाल सेना के डर से वे लोग
भारतवर्ष की सीमाओं से बाहर भाग गए । इस युद्ध में गुप्ता साम्राज्य ने भले ही हिस्सा लिया था परंतु उनकी भूमिका इस युद्ध में निम्न मात्र ही थी ।

सोंठानी के युद्ध में राजा यशोधर्मन ने जिस पराक्रम का प्रदर्शन किया था उसका उल्लेख मंदासुर शिलालेख में मिलता है ।

( अन्य राजाओं के बारे में हम अगले पाठ में जानेंगे )

तब तक के लिए धन्यवाद ।