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नारी जीवन

आधुनिक नारी की पहली समस्या फैशन परसती है। कुछ अलग दिखायी देने ,आकर्षक व्यक्तित्व की बढ़ती चाह ने आधुनिक नारी को फैशन की और प्रेरित किया। टेलीविज़न,सिनेमा, रंगीन पत्रिकाएँ देख-देखकर वह फैशन की दासी बन गई है। वहउसके लिए वह तड़पती है, उसके बिना उसका मन कुंठित होता है, उसमें आत्महीनता आती है ।इसके लिए समय और धन का दुरुपयोग मन की अशान्ति का कारण बनता है, पारिवारिक एकता को छिनन-भिन्‍न करता है। फैशन परस्ती की समस्या कमोवेश सभी भारतीय नारियों की समस्या है।

आधुनिक नारी की दूसरी समस्या है–असफल वैवाहित जीवन। भारतीय नारी को सच्चा और अच्छा जीवन-साथी नहीं मिल पाता। अच्छा जीवन-साथी मिल भी जाए तो जातिवाद, बिरादरीवाद, मूल्यवाद (दहेज) की दीवार उन्हें मिलने नहीं देती । जीवन-साथी को समझंने, परखने का अवसर भारतीय समाज देता ही कहाँ है ?

विवशतावश दो शरीरों का मिलन ही विवाह है। मजबूरी के मिलन का फल समझौता है। जहाँ समझौता नहीं हो पाता, वहाँ गृह-कलह होता है। आए दिन झगड़े होते हैं। रोना-पीटना रहता है। केश-विन्यास,वस्त्र-परिधान तथा एड़ी से चोटी तक एक-रंगीय पहनावा, वक्ष के उभार, आँखों की बनावट आदि प्रतिदिन बदलते फैशनों को ओढ़ लेना चाहती है ।

तीसरी समस्या है–दहेज की । दहेज के दानव ने भारतीय नारी को ग्रस रखा है । माता- पिता दहेज की माँग पूरा करते-करते कर्जदार होते जाते हैं। न देने पर ससुराल में कन्या से अमानुषिक व्यवहार होता है। कष्ट और यातना सहती नव-विवाहिता अग्निकुंड में स्वाहा कर दी जाती है या फिर घर की छत से गिराकर यमलोक पहुँचा दी जाती है।

नारी का एक वर्ग प्रेममय जीवन में एक पुरुष से बंधना नहीं चाहता। जीवन की उन्मुक्तता के साथ वह अपनी मर्जी से जिन्दगी जीना चाहती है और विवाह-विहीन संतान सुख का आनन्द लेना चाहती है । समलैंगिकता में भी उसकी दिलचस्पी बढ़ी है, जो अन्तत: नारी के मनोरोग का कारण बनती है।
नारी की एक अन्य समस्या है–अर्थ-स्वातन्त्रय की । आर्थिक परावलम्बन के कारण वह पुरुष की दासता स्वीकार करती है । इसी कारण उसे पुरुष के अत्याचार, अनाचार और अहं को सहन करना पड़ता है । उसकी हाँ में हाँ मिलानी पड़ती है। गलत, समाज-विरुद्ध,राष्ट्र-द्रोही कार्य में भी सम्मिलित होना पड़ता है। जानती है कि उसे दो वक्‍त की रोटी तो चाहिए ही। यही कारण है कि पति के असामयिक निधन से नारी का जीवन विषमय बन जाता है।

जहाँ नारी अर्थेपार्जन करती है, वहाँ स्वच्छन्दता ने उसे अपने जाल में फसाया। नौकरी-प्राप्ति के छल-छद्‌म के जाल में उसका सतीत्व लुटा, रूप सौन्दर्य का पान हुआ। नौकरी मिल गई तो सहयोगियों तथा बाँस पर रौब डालने की प्रवृत्ति ने नारी को आकर्षक और सुन्दर बनने की प्रेरणा दी । मुक्त हास-परिहास उसके स्वभाव का अंग बन गए । बच्चों, पति-देवर, सास-ससुर की उपेक्षा होने लगी। स्वाभाविक प्रेम छू-मंतर होने लगा। पत्नी दबती है तो बुझी-बुझी रहती है और हावी होती है तो पुरुष का भगवान्‌ ही रक्षक है । कार्य-शक्ति की भी सीमा है। नौकरी करने वाली नारी से घर के काम की अपेक्षा किसी सीमा तक ही की जा सकती है

आज नारी उच्च, उच्चतर तथा उच्चतम शिक्षा प्राप्त कर सकती है। इस मार्ग में कहीं कोई रुकावट नहीं, व्यवधान नहीं। आज कॉलिज तथा विश्वविद्यालय का वातावरण

अध्ययन की प्रेरणा नहीं देता। चिन्तन और मनन की भावना जागृत नहीं करता। वह तो सिखाता है उच्छृंखलता, विलासिता और नशे की दासता। फलत: आज की नवयुवती पाश्चात्य नारी का अन्धानुकरण करती है। नशा उसकी प्यास है, सैक्स (काम) उसकी भूख है और-विलासिता उसकी कामना है। इनकी प्राप्ति जीवन का चरम लक्ष्य है। वे माँ को जननी और पिता को पूज्य नहीं समझतीं। जीवन को भारतीय मान्यताएँ उसके लिए अस्न हैं। अत्याधुनिक घरों में, उच्च पदासीन नारी के लिए पति का मूल्य नौकर या मित्र से अधिक नहीं। जब तक पटी पट गई, नहीं तो अलग-अलग।
देश के गिरते अनुशासन और कानून को अवहेलना ने नारी की विषम स्थिति बना दी है। गृह मंत्रालय के अन्तर्गत काम कर रहे अपराध पंजीकरण ब्यूरो की रिपोर्ट में कहा गया है–हर 47 मिनिट में एक महिला बलात्कार का शिकार होती है जबकि हर 44 मिनिट में औसतन एक महिला का अपहरण होता है। छेड़खानी करना, अश्लील सिने गीत द्वारा टॉटिंग कसना तथा अपमानित करना, सीटी बजाकर उसको लज्जित करना, उसके आभूषण झपटना, बैग छोनना तो दैनिक शोषण हैं ही।

आधुनिक नारी (विशेषत: नगरों में रहने वाली) संक्रमण के चौराहे पर खड़ी है, जहाँ ‘पग-पग पर समस्याएँ मुँह बाए खड़ी हैं। कॉलेज और विश्वविद्यालयों के विषाक्त वातावरण में उच्च शिक्षा की समस्या है| उच्च-शिक्षा प्राप्त कर लेने पर नौकरी प्राप्ति की समस्या है। नौकरी मिलने पर बॉस को संतुष्ट रखने की समस्या है। दूसरी ओर नौकरी की ओर पग न बढ़ाए तो पति पर आश्रित रहने की समस्या है। अर्थाभाव में पारिवारिक प्रसन्‍नता की समस्या है। इससे भी बढ़कर समस्या है, अपने आपको फैशन और वासना की मृग-मरीचिका से बचाने की
नारी-समस्थाओं का हल है–आत्म-संयम ।

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