इश्क़ ए बिस्मिल - 17 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 17

उमैर को चार सौ चालीस वाॅट का शाॅक लगा था। क्या उसके बाबा उस से मज़ाक कर रहे थे? या फिर शादी को ही मज़ाक समझ रहे थे। वह हैरानी और काफ़ी ग़ौर से उनका चेहरा देख रहा था कि शायद वह मज़ाक ही कर रहे हो, अब शायद वो हंस पड़ेंगे, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ था। उसने कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोला था मगर कुछ कह नहीं सका।

“क्या हुआ उमैर? तुम ने अभी अभी कहा था कि तुम मुझे इन्कार नहीं करोगे। तुम्हारी इस चुप्पी से मैं क्या समझूं? तुम्हारा इन्कार या फिर इकरार?” ज़मान ख़ान ने बेटे को तन्ज़ (ताना) किया था।

“बाबा मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है। ऐसी क्या इमरजेंसी आ गई है? इतना बड़ा फ़ैसला?” उमैर ने अपनी पेशानी पर हाथ फेरते हुए कहा था।

“हां यही समझ लो इमरजेंसी आ गई है।“ उन्होंने बड़े इत्मीनान से कहा था।

“बाबा मैं नहीं कर सकता ये, शादी कोई खेल नहीं है। मेरी पूरी ज़िंदगी भर का सवाल है, मैं कैसे कुछ लम्हों में यह फ़ैसला कर सकता हूं?” उमैर बार बार अपना सर पकड़ रहा था, उसका सर टेंशन से फटा जा रहा था।

“तुम मुझे कब से जानते हो उमैर?” ज़मान ख़ान के सवाल पर उसे हंसने का मन कर रहा था मगर अभी वह झूठी हंसी भी नहीं हंस सकता था।

“यह कैसा सवाल है बाबा आपको क्या हो गया है?” वह पागल पागल सा हो रहा था।

“शायद तुम ने जब से होश संभाला है तब से? .... सही कहा ना मैंने?” उमैर सिर्फ़ उन्हें देख कर रह गया।

“वह लड़की मुझे पिछले ९ घंटों से जान रही है, और उसने मुझे अपनी ज़िंदगी का फ़ैसला करने का हक़ दे दिया है।“ ज़मान ख़ान की अल्फ़ाज़ में मान का ग़ुरूर झलक रहा था। उमैर को अपने बाबा की बात पर बड़ी हैरानी हुई थी इसलिए नहीं कि एक अनजान लड़की ने उन पर इतना भरोसा किया था बल्कि इसलिए कि उसके बाबा उसकी शादी ऐसी लड़की से कराना चाहते थे जिसे वह खुद थीक तरह से नहीं जानते थे, सिर्फ़ नौ घंटे की मुलाकात और इतना भरोसा?

“क्या उस लड़की ने आप से कहा है इस निकाह के लिए?” उमैर को लग रहा था कि उसके बाबा को कोई बेवकूफ़ बना रहा है। कोई फ़राॅड के चुंगल में वह फस गये है।

“नहीं, उस से तुम्हारा निकाह मेरी ख़्वाहिश है।“ उमैर की सोच को उन्होंने गलत साबित कर दिया।

“क्या उसे पता है कि आप उसका निकाह करने जा रहे हैं?” उसने एक और सवाल किया।

“नहीं, मैं पहले तुम्हें राज़ी करना चाहता था उसके बाद उससे पूछूंगा।“ ज़मान ख़ान ने मुख्तसर सा जवाब दिया था।

यह सुनकर उमैर थोड़ा रिलेक्स हुआ था “तो पहले आप उस से कंफ़ाॅर्म कर लें अगर उसने हां कर दी तो फिर मैं भी तैयार हूं।“ उसे जाने क्यों यक़ीन था कि अरीज शादी से इन्कार कर देगी, उसे लग रहा था कि उसके बाबा हवा में महल खड़ा कर रहे हैं।

ज़मान ख़ान ने उसे देखा था फिर कुछ सोच कर वहां से चल पड़े थे और अरीज के पास पहूंच गए थे। अरीज को लगा था वह आकर गाड़ी में बैठेंगे मगर उन्होंने उससे कहा था। “ अरीज गाड़ी से बाहर आऐं, मुझे आप से एक ज़रूरी बात करनी है।“

अरीज हैरान हुई थी लेकिन उस ने वैसा ही किया वह गाड़ी से बाहर आ गई थी और ज़मान ख़ान ड्राइवर से थोड़ी दूरी पर बात करना चाहते थे सो उसे लेकर साईड पर चलें गए।

वह थोड़ा हिचकिचा रहे थे मगर फिर भी उन्होंने उससे पूछा था “बेटा मैं आपका निकाह करवाना चाहता हूं।“

अरीज पर जैसे बिजली गिरी थी, उसे बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि ज़मान ख़ान उस से यह कहने वाले हैं। वह उनका सिर्फ़ चेहरा देखती रह गई। ज़मान ख़ान को पता था कि वह अचानक से पूछने पर ऐसा ही रिएक्ट करेगी इस लिए उन्हें हैरानी नहीं हुई थी।

“बेटा मैं जानता हूं आपको हैरानी हुई होगी या फिर मेरी यह बात अच्छी नहीं लगी होगी, मगर बेटा मैं जो कुछ भी कर रहा हूं बहुत सोच समझकर कर रहा हूं और आपकी भलाई भी इसी में है, मेरा यक़ीन कीजिए।“ ज़मान ख़ान ने उसके सिर पर हाथ रखा था।

अरीज कशमकश में थी, वह जिस पोज़िशन में थी वहां कोई आप्शन नहीं था, जिस आदमी ने उसे यक़ीन दिलाकर उसकी ज़िम्मेदारी ली थी अब वही उसका निकाह कर के अपनी जान छुड़ा रहे थे। अरीज को खुद पर रोना आ रहा था। अगर वह कही नौकरी कर के अपने पैरों पर खड़ी हो भी जाती तो अज़ीन के लिए घर पर किसी एक बन्दे की ज़रूरत पड़ती ही। वैसे भी आई.ए. पास को नौकरी भी क्या मिलनी थी। उसे एक घर चाहिए था, एक आसरा चाहिए था और शायद यह उसे निकाह के तौर पर मिल सकता था।

अपनी बेबसी पर आंखों में आंसू लिए उसने ज़मान ख़ान को देखा था फिर कहा “मैं निकाह के लिए तैयार हूं।“

उसने हां कर दी थी। यह जाने बगैर कि जिस से उसका निकाह होने वाला था वह लड़का कौन है? कैसा है? किस कैरेक्टर का है? दिल में लाखों अंदेशा लिए, अपनी मजबूरी के आगे उसने हथियार डाल दिए थे।

ज़मान ख़ान के होंठों पर मुस्कुराहट फैल गई थी। वह उसे लेकर अंदर मस्जिद में दाख़िल हो गए थे और क़ाज़ी साहब के साथ कुछ बातें कर रहे थे फिर अरीज को क़ाज़ी साहब के हुजरे में बैठाकर खुद मस्जिद से बाहर आए थे। अपने किसी दोस्त को काॅल कर के बुलाया था और गाड़ी से एक फ़ाइल निकाली थी। अज़ीन गाड़ी में ही सो रही थी, उसे गोद में उठा लिया था और ड्राइवर नदीम को निकाह का गवाह बन ने को बोल रहे थे। वह गवाह बन ने को तैयार हो गया था इसलिए उसे लेकर मस्जिद में वापस आए थे। क़ाज़ी साहब निकाह के पेपर्स बनाने की तैयारी कर रहे थे।

उमैर मस्जिद की दुसरी तरफ बैचैनी से टहल रहा था। ज़मान ख़ान उसके पास आए थे और अरीज के निकाह पर मंज़ूरी की खबर दी थी जो उमैर के सर पर धमाके जैसा असर किया था। वह हक्का-बक्का खड़ा का खड़ा रह गया था। उसे यक़ीन नहीं हो रहा था कि कोई लड़की एक पल में इतना बड़ा डिज़शन ले सकती है।