Saahab - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

साहब - मेरे ताऊजी (पार्ट 1)

"बाऊजी का जवाब नही था।नाम था उनका।रोब था"सुरेश बोला
मेरे ताऊजी के एल शर्मा बांदीकुई में रेलवे में मेल ड्राइवर थे।लोग उन्हें के एल शर्मा के नाम से जानते थे।पर उनका पूरा नाम था--कन्हैया लाल शर्मा।
मंझला कद,साफ गोरा रंग।उन्हें सफेद रंग पसन्द था। सफेद पेंट और सफेद कमीज और सिर पर हेट।उन्हें जो न जानता हो।वह उन्हें देखकर अंग्रेज समझने की भूल कर बैठता।गलती अनजान,अजनबी की भी नही होती क्योंकि वह लगते ही अंग्रेज थे।
उन्हें रेलवे की तरफ से बंगला मिला हुआ था।बगल वाले बंगले में रेलवे के लोको फ़ौरमेन रहते थे।कुछ अंग्रेज ड्राइवर फिलिप,कार आदि भी थे।जो इंगलेंड के रहने। वाले थे और रेल सेवा से रिटायर होने के बाद अपने देश लौट गए थे।
बांदीकुई में उन दिनों भी दो बाजार थे।अंग्रेजी बाजार और राज बाजार।अंग्रेजी बाजार उन दिनों काफी बड़ा था।सब सामान वहाँ मिल जाता था।रेलवे की कोपरेटी भी थीं।वहाँ भी सब सामान मिलता था।
उन दिनों पूरे देश मे ट्रेनें स्टीम इंजिन से चलती थी।लोहे का इंजिन जिसमे तीन लोग होते थे। ड्राइवर,उसका असिस्टेंट और फायर मेन।फायर मेन की ड्यूटी होती थी।लगातार इंजिन में कोयले डालना ताकि स्टीम बनती रहे।
ताऊजी के बंगले में आउट हाउस भी थे।जिनमें उन्होंने सर्वेंट रख रखे थे।वह ड्यूटी पर भी सफेद पेंट और कमीज पहन कर जाते और हेट लगाते थे।कपड़े धोबी धोता था।हजामत के लिए नाई आता था।और बंगले में बगीचा लगा रखा था।जिसकी देखभाल माली करता था।
ताऊजी ने दो गाय पाल रखी थी।जिससे दूध हमेशा मिलता रहता था।गाय को चारे के साथ खल और बिनोला रोज दिया जाता था।
उन दिनों शराब का प्रचलन था लेकिन कम ही लोग शराब पीते और जो भी पीते थे।वे छुपकर पीते थे।ताऊजी को भी शराब पीने की आदत थी।लेकिन वह बंगले पर ही पीते थे।और शराब भी थ्री एक्स रम।रामदयाल भाया से उनकी दोस्ती थी।वह अस्पताल में कम्पाउंडर थे और ताऊजी के हमप्याला। हमराज।
ताऊजी हनुमान के। पक्के भगत थे।वह मंगलवार का व्रत रखते थे।अंग्रेजी बाजार में मंदिर है।वह हर मंगलवार को उस मंदिर में जाकर सुंदरकांड का पाठ करते थे।मंदिर के सामने ही रामचन्द्र हलवाई की दुकान थी।उससे प्रशाद के लिए दो रु की बर्फी खरीदते थे।उन दिनों दो रु की एज किलो बर्फी आती थी।
ताऊजी को शराब पीने की आदत थी लेकिन वह मंगलवार को शराब को छूते भी नही थे।नियम के पक्के थे।
अब तो मोबाइल का जमाना है।पहले कॉल बॉय हुआ करते थे।वे दो घण्टे पहले ड्राइवर और गार्ड के घर पर जाकर उन्हें ड्यूटी पर आने और कौनसी गाड़ी लेकर जाना है।इसकी सूचना बंगले पर देकर आते थे।
एक बार।एक नया काल बॉय आया था।वह ताऊजी के बंगले पर आया।काल बॉय रजिस्टर लेकर आता था।उस रजिस्टर पर ड्राइवर गार्ड के हस्ताक्षर कराने पड़ते थे।वह काल बॉय रजिस्टर ताऊजी को देते हुए बोला,"बाउजी इस पर दस्खत कर दीजिए।"
"साले। ताऊजी गुस्सा हो गए और काल बॉय के जोर का थप्पड़ जड़ दिया।
काल बॉय रोता हुआ लोको पहुंचा
"क्या हुआ?" टाइम कीपर ने पूछा था।
"बाउजी ने काल बॉय ने पूरी बात बताई थी।
"उन्हें बाउजी नही साहब कहकर बुलाना था।
ताऊजी साहब कहलाना पसंद करते थे।उनकी नज़र में साहब उच्च वर्ग में और बाउजी निम्न वर्ग में आते थे


अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED