वो पहली बारिश - भाग 46 Daanu द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वो पहली बारिश - भाग 46



“वो शायद मेरी ही गलती ही थी, की मैंने इसे ये सब कहा। मुझे नहीं पता था, की मेरी कही भी उस एक बात को ये इतने दिनों तक लेकर बैठा रहेगा।", शुभम ने आगे बोला।

“तो तू क्या सचमुच में बचपन में बोली हुई शुभम की उस बात की वजह से पहली बारिश के इतने पीछे पड़ा रहता है?”, कुनाल ने अजीब तरीके से ध्रुव की तरफ देखते हुए बोला।


“मैंने तुम सब लोगों को सबूत दिखाए है, की ये सच है, तो क्या फर्क पड़ता है, की किसने क्या बोला।", कुनाल की बात का जवाब देते हुए ध्रुव फटाफट से बोला और वहाँ से फिर से अपने कमरे की ओर बढ़ गया।

ध्रुव के जाते ही कमरे में अजीब सी शांति हो गई, और कोई कुछ नहीं बोल रहा था।

“हम.. हम बात करके देखते है ध्रुव से फिर", निया ने धीरे से बोला।

“मुझे नहीं लगता, की इसका कोई भी फायदा होगा।", शुभम ने निया को देखते हुए बोला। "मैं ये कोशिश बहुत बार कर चुका हूँ, लेकिन वो मानने को तैयार नहीं है।

“ओह.. उसका ये विचार इतना पक्का है क्योंकि..”, रिया कुछ कह ही रही होती है, की सब लोग उसे देखने लग जाते है, जिससे वो थोड़ी असहज हो जाती है। "अ.. अ.. रहने दो।", वो तुरंत से अपनी बात को खत्म करते हुए बोली।

“नहीं.. नहीं, बताओ क्या कह रही हो", शुभम ने रिया को आगे बोलने का इशारा करते हुए कहा।

“अगर.. अगर ध्रुव को ये विश्वास सिर्फ इसलिए हुआ, की उसने रिश्ते टूटते हुए देखे है, तो अगर वो इन्हीं रिश्तों को दोबारा से जुडते हुए देखेगा, तो क्या ये विश्वास वापस या जाएगा?”, रिया ने धीरे से बोला।

“अ.. नहीं पता, हो सकता है।", शुभम ने सकारात्मकता दिखते हुए बोला।

“हो तो सकता है, पर ऐसा होगा किसके साथ?”, कुनाल ने ये पूछा।

“इस कमरे से, तो कोई भी हो सकता है..”, निया ने चारों की तरफ देखते हुए बोला।

“हाँ..", शुभम ऐसे ही निया के हाँ में हाँ मिला रहा था, जब उसने ध्यान दिया की निया क्या बोल गई, “क्या? तुम सब भी? ये ध्रुव ने दोस्त बनाने का कोई मापदंड रखा हुआ है क्या, की जिनका भी ब्रेकअप पहली बारिश में हुआ है, मैं बस उन्हीं से दोस्ती रखूँगा।"

“हाँ.. और गलती से नहीं हुआ है, तो मैं तब करा दूंगा।", कुनाल ताना मारता हुआ सा बोला।

शुभम ने कुनाल की इस बात पे ध्यान नहीं दिया, और सब से पूछा।
“तो बताओ फिर कौन करेगा ये काम?”

“मैं तो नहीं कर सकती, इस बात को बहुत समय हो गया है।", रिया ने तुरंत ने अपने पक्ष में बोला।
“और तू करने जाएगी भी ना, तो मैं नहीं करने दूंगा। अर्रे इतना बेकार इंसान था वो..”, कुनाल ने फट से जवाब दिया।

“और मैं भी नहीं कर सकती।", निया ने भी धीरे से जवाब दिया।

“और मेरा तो कुछ हो गया, तो भी आपका भाई कुछ मानेगा नहीं, बस हम से एक इस फ्लैट से जरूर निकल जाएगा।", कुनाल ने भी बोला।

“तो एक आप ही बचे।", अपने सामने खड़े शुभम को देखते हुए निया बोली।

“मैं करना तो चाहता हूँ.. पर मैं कुछ कर नहीं सकता, इस बारें में।", शुभम ने परेशान सा मुंह बनाते हुए बोला।

“क्या पता हम.. हम कुछ कर पाए।", रिया ने थोड़े सोचते हुए बोला।

“मतलब?”, शुभम ने पूछा।

“मतलब, आपने जितना अभी तक बताया है, तान्या ने आपके साथ ब्रेकअप नहीं किया है, बल्कि बस आपसे ना कहा है।", रिया ने समझाते हुए कहा।

“तो?”

“तो.. ये की जहां तक मैं लड़कियों को जानती हूँ, हो सकता है, की उन्हें किसी बात का बुरा लगा हो, या कुछ हो जो आप भूल गए हो। क्योंकि अगर रिश्ता ही तोड़ना होता, तो वो सीधे सीधे कह देती ना, की हमारा रिश्ता खत्म समझो।"

“हहम्म.. एस कुछ तो नहीं कहा उसने।", हल्की सी मुस्कान आए चेहरे के साथ शुभम बोला।

“तो फिर.. आप मुझे और निया को बताओ, की कैसे क्या क्या हुआ? हमे पक्का यकीन है, कुछ तो होगा, जो रह गया होगा।", रिया शुभम को बोलती है।

“हाँ..”, शुभम हॉल में दोबारा से उठ कर ठीक से बैठते हुए, उत्साह से बोला।

“अर्रे.. क्या हाँ? सोना नहीं है, क्या आप लोगों को, सब आज ही करना है?”, कुनाल उनके हॉल में लगी हुई एक घड़ी की ओर इशारा करते हुए बोलता है।

“हाँ.. कोई नहीं कल इस बारे में बात करते है। ", शुभम ने भी हामी भरते हुए कहा, और निया और रिया अपने फ्लैट में चले जाते है।

अगली सुबह, ध्रुव सुबह सुबह ही अपना लैपटॉप लेकर फ्लैट से निकल जाता है, और शुभम और कुनाल नाश्ते में शुभम के बनाए हुए, टोस्ट खा ही रहे होते है, जब निया और रिया दस्तक देते है।

“फटाफट आओ.. और सेंडविच खा लो।", कुनाल दरवाज़ा खोलते ही बोलता है।

“ध्रुव.. ध्रुव.. कहाँ है?”, ध्रुव के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था, पर ना तो वो कहीं बाहर दिख रहा था, और ना ही उसकी कोई आवाज या रही थी, तो निया ने उसका पता जानने के लिए उन दोनों से पूछा।

“पता नहीं.. सुबह सुबह कहीं तो चला गया है।", कुनाल ने उबासी लेते हुए बोला।

“पक्का से हमारे कॉलेज की लाइब्रेरी गया होगा।", निया के सामने बैठा शुभम पूरे आत्मविश्वास से बोला।

“पर वहाँ क्यों?”

“जब भी मैं उसकी कोई बात नहीं मानता था, तो वो अक्सर यही करता था, किताबें, अखबार , जहां उसे कुछ भी मिले, वो मुझे दिखाने ले आता था।

**********************

कुछ देर में ही, शुभम उन दोनों को सब कुछ समझा देता है। कुछ सोचने के बाद, रिया और निया दोनों एक ही स्वर में बोले।

“बाबा..”

“हह?”

“आप तान्या की जगह उनके बाबा से बात करके देखो ना?”

ये सुनते ही अपना पीटना कल्पना करता हुआ, शुभम तेज़ी से सिर हिलाते हुआ ज़ोर से बोलता है।

“नहीं नहीं.. अबे कुछ और बताओ, सीधा जूते चप्पल क्यों पड़वाने है!”

“आप ना पहले एक काम करो, उन्हें फोन करो और उसे स्पीकर पे डालो", रिया ने सुझाव दिया।

उसका सुझाव मानते हुए शुभम ने फोन कर दिया, और अभी एक ही घंटी गई थी की सामने से आवाज आ गई।

“हैलो..”

तान्या की आवाज सुनते ही परेशान सा शुभम रिया और निया की तरफ देखता है, और हाथों से इशारा करके पूछता है, की आगे क्या बोले।

“हैलो..”, बिना आवाज करे, बस अपने होट घुमाते हुए हैरान सी रिया बोलती है।


“हाँ बोलो।", शुभम के हैलो बोलते ही सामने से तान्या की अवाज़ आई, और इधर दोनों निया और रिया एक दूसरे को देख कर ना में गर्दन हिलाने लगी।

रिया शुभम के सामने बैठ कर एक कागज पे लिखती है, “आइ एम सॉरी..”, जो शुभम बिना सोचे समझे पढ़ देता है, पर बोलते ही उसे अंदाजा होता है, की वो क्या बोल गया, और वो रिया को बड़ी बड़ी आँखों से देखता है।

पर बावजूत इसके, निया और रिया की स्क्रिप्ट के बदलौत शुभम काफी देर तक तान्या से बात करता है, और आखिरकार उसे मिलने के लिए मना लेता है।

***********************

“आपने क्या कहा था उनसे?”, एक बार फिर हैरानी से पूछती हुई रिया बोली।

“यही की तुम्हारी आँखें, जापान की सबसे महंगी मछली, टूना से भी बहुत सुंदर है।"

“हह? ऐसे कौन कहता है?”

“क्यों इसमें क्या बुराई है! इतनी बड़ी तारीफ़ ही तो की है मैंने।", शुभम ने अपने बचाव में बोला, जिसे सुनते ही उन दोनों को कुछ देर एक दूसरे को देखा और फिर रिया बोली।

“शुरू से शुरू करते है.. बहुत सारी चीजों पे काम करना होगा।"

उसके बाद काफी देर तक, वो दोनों शुभम को काफी सारी बातें समझाती रही, की आज मिल कर तान्या के साथ कैसे बात करनी है और कैसे उसे सब बोलना है।

***********************

धीरे से अपने घर का दरवाज़ा बंद करते हुए सुनील अंदर आया, तो उसकी आहट से जागी चंचल बाहर आ गई।

“आज जल्दी उठ गई तुम?”, चंचल को देखते हुए सुनील ने बोला।

“सोई ही नहीं थी, तो उठती कैसे?”

“क्यों क्या हुआ?”, इस उम्मीद में की चंचल कल हुई बातों के लिए माफी मांगेगी, सुनील ने चंचल से सवाल किया, पर चंचल बिना किसी भी सवाल पे ध्यान देते हुए बोली।
“बस यूं ही.. नींद नहीं आ रही थी।", ये बोलते ही वो वहाँ से चली गई।

सुनील जो चंचल से पहले ही थोड़ा नाराज था, उसके यहाँ ना होने की बात पे गौर ना करने के कारण, उससे और नाराज हो गया।

चंचल जहां रसोई में खड़े होकर खाना बना रही थी, वहीं सुनील अपने कमरे में गया, और अपना समान उठा कर बाहर चला गया, वो दरवाज़ा खोल कर बाहर गया ही थी, की चंचल रसोई से दो प्लेट लेकर हॉल में आई।

“खाना बन गया है..”, धीरे से बोलते हुए चंचल ने प्लेट रखी और वहीं सोफ़े पे दीवार से सिर टेक कर बैठ गई।

वो शायद उसके और सुनील के बारे में ही सोच रही थी, जब उसका फोन बजा, और स्क्रीन पे "माँ" फ्लैश हुआ।

घबराते हुए चंचल ने फोन उठाया, और बोली।

“हैलो..”

“ये हैलो वेलो छोड़.. मैं ट्रेन में बैठ गई हूँ, रात को 8 बजे तक पहुँच जाऊँगी, स्टेशन आ जाना।"

“हह? क्या माँ?”

“हह क्या? तू कभी मत समझियों, चल सुनील को फोन दे।"

“वो.. वो यहाँ नहीं है, अभी..”, चंचल थोड़ी गबराहट में बोली।

“यहाँ नहीं है, मतलब? तूने फिर कोई झगड़ा किया?”

“नहीं.. मैंने कोई झगड़ा नहीं किया है, बाहर समान लेने गया है, वो।", चंचल अपना झूठ छुपाते हुए बोली।

“तू क्यों नहीं गई फिर उसके साथ?”

“आप.. आप क्या कह रहे थे, आपकी ट्रेन यहाँ कब या जाएगी?", बात बदलते हुए और अपने माँ की आने की खबर को हज़म करते हुए चंचल ने पूछा।
“8 बजे तक आ जाएगी।"

“ठीक है, हम आपको वहीं मिलेंगे।", चंचल ने सीधे बैठते हुए कहा। "आप प्लीज खुद मत आना, और वहाँ किसी से झगड़ा तो बिल्कुल मत करना।", चंचल ने बड़े आराम से बोला।
“इतने आराम से तू उससे बात करले ना, तो तुम्हारी आधी दिक्कतें वहीं खत्म हो जाए।", माँ ने चंचल को समझाया।

“कैसी दिक्कतें? हमारे बीच कोई दिक्कतें नहीं है। अच्छा अब मुझे जाना होगा.. बाय.. मिलते है माँ।", चंचल ने अपने बचाव में कहा, और फट से फोन काट दिया।

***********************

रविवार की सुबह की चाय का मज़ा लेती नीतू, अपने लैपटॉप में बैठ कर कुछ पुरानी तस्वीरें देख रही थी, की तभी उसका फोन बजता है।

“इतनी देर कहाँ लगा दी तूने फोन उठाने में?”

“क्या कह रहे हो, दो घंटी के बाद उठा ही तो लिया था.. वैसे कैसे हो आप?”, नीतू ने सवाल किया।

“कैसी होंगी मैं, मेरे सारे बच्चे दूर दूर जाकर बैठे हुए है, मैंने तुझसे कहा था ना, की इस बार घर आ जाइयों.. फिर आई क्यों नहीं?”

“क्योंकि मुझे पता था, की आपने क्या करना था..”, नीतू ने हँसते हुए जवाब दिया।

“वैसे अच्छा ही है, की तू नहीं आई।"

“हह?”

“इस बार जिस लड़के की मैं बात कर रही थी ना, वो वहीं रहता है। मैंने उसे तेरी फोटो दिखाई उसे, तो पता है, उसे तू देखते ही पसंद आ गई।"

“बुआ!!..”

“क्या? अब शादी तो करेगी ना, वैसी ही इतनी उम्र निकाल दी तूने, पापा का कर्ज चुकाते चुकाते।"

“आप जो हर बार नमूने ढूंढ के लाते हो ना, उनसे तो नहीं कर सकती।"

“इस बार वाला पक्का नमूना नहीं है, और वो तो तुझे अभी कुछ देर में खुद भी पता लग जाएगा।"

“हहम्म?”, नीतू के इस सवाल का कुछ भी जवाब उसकी बुआ देती, उससे पहले ही उन्हें किसी ने बुला लिया, और वो फोन रख कर चली गई।

***********************

रविवार की दोपहर, ब्लू हार्ट कैफ़े में काली जीन्स, नीली टी-शर्ट पहन कर, हाथ में एक छोटा सा सफेद गुलाब लिए, और कानों में छोटा सा हेड्सेट लगाए शुभम बैठ कर तान्या के आने का इंतज़ार था।
और तय समय के अनुसार जब तान्या वहाँ पहुँची, तो उसने वो सफेद गुलाब उसे दिया, और बोला।
"ये तुम्हारे लिए। मेरे बुलाने पे तुम यहाँ आई, उसके लिए बहुत शुक्रिया.. मुझे पता है, की तुम मुझे अपना जवाब कल दे चुकी हो, पर मेरे मन में एक छोटा सा मलाल था, आज बस मैं वहीं निकालना चाहता हूँ।"

“क्या?”, तान्या ने उससे पूछा।

“पहले ये बताओ.. की तुम क्या खाओगी।"

कुछ देर बाद, जब तान्या ने खाना खा लिया तो वो बड़े ध्यान से शुभम को देखने लग गई, आज उसका अंदाज कुछ अलग ही लग रहा था।

“वो क्या है ना, मेरे घरवालों ने मेरी शादी कहीं और तय कर दी है।", खाना खत्म करते ही शुभम बोला और ये सुनते ही कोल्ड ड्रिंक पीती हुई तान्या को एकदम से खासी आ गई।
“आराम से.. आराम से।"

“पर इतनी जल्दी?”, तान्या ने पूछा।

“नहीं.. कुछ दिन हो गए, इस बात को तो, पर क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता था, इसलिए मैं यहाँ आते ही सबसे पहले तुमसे ये बताने के लिए मिला।"

“अच्छा..”, तान्या ने धीरे से बोला।

“हाँ.. खैर मैं बस यही एक बात तुम्हें बताना चाहता था.. अब इस बात को लेकर अगर तुम्हारी ना है, तो मैं और क्या ही कर सकता हूँ।", ये कहते हुए शुभम उठा और वहीं दूसरे कोने में बैठी निया और रिया को परेशान होते हुए देखने लगा। "क्या ये करना जरूरी है?”, वो धीरे से उनसे बुदबुदाया।

“हाँ..”, रिया ने जैसे ही उसको ये जवाब दिया, वो उठा और तान्या से बोला।

“अच्छा.. अब मैं चलता हूँ, मैं और यहाँ नहीं रुक सकता।"

वो आगे को निकल ही जाता है, की तान्या एकदम से आवाज लगाती है।

“शुभम..”

वो चेहरे पे मुस्कान लिए पीछे मुड़ता है, तो तान्या बोलती है।

“वो बुरा मत मानना, मेरे पास कैश नहीं है, और मैं भी तक यहाँ अपना खाता नहीं इस्तेमाल कर पा रही हूँ, तो तुम बिल भरते हुए जाओगे क्या!”

“हह.. हाँ"

“आपने बिल नहीं भर था?”, रिया ने थोड़ी जोर से पूछा था।

“हाँ.. तो तुमने तो कहा था की उठ जाओ।"

“हाँ.. पर मुझे लगा की आपने बिल भर दिया होगा, वो आपकी टेबल पे तो रख के गया था।", रिया ने अपने सिर पे हाथ रखते हुए कहा।

“पर मैं सब वही कर रहा था, जो तुमने कहा था..”, शुभम बोला, और वापस टेबल पे जाकर बिल के पैसे वहाँ रख दिए और तान्या की ओर देखने लगा।

“शुभम.. ऐसे तुमने पहले कभी नहीं किया।", तान्या से हल्के से उससे बोला।

“मुझे माफ करना.. मेरे दिमाग से ही निकल गया की मुझे बिल भरना है।"

“मैं बिल की बात नहीं कर रही।"

“तो?”

“मुझे छोड़ के आगे बढ़ जाना।"

“हह?”

“पता है, जब हम सब एक बार घूमने गए थे, और मुझे चोट लग गई थी, तो जहां बाकी लोग मुझे छोड़ कर आगे बढ़ गए थे, तुम वहीं रुक गए थे।"


“हाँ तो..”

“कुछ नहीं।", तान्या ने बोला और उठी, “अगर मैं ये कहूँ की, मैं शादी करने के लिए तैयार हूँ, पर मुझे कुछ टाइम चाहिए.. तो क्या तुम दे पाओगे?”

“हहम्म..”, शुभम ये सुन कर खुश हो गया और तुरंत से आगे बोला, “तुम्हें सबको मनाने के लिए टाइम चाहिए?”

“नहीं.. ये पक्का करने के लिए, की तुम्हें आगे जाते हुए देख कर, मुझे तुमसे दूर जाने का दुख हुआ, या पीछे रह जाना का।"

“हहम्म??”

“6 महीने.. 6 महीने बाद शादी करते है।", ये बोलते हुए तान्या उठी मुस्कराई और शुभम की ओर बढ़ कर उसने उसे गले से लगा लिया।


***********************

“कहाँ हो तुम?”, परेशान चंचल ने सुनील को फोन करते हुए पूछा।

“यही कहीं..”, सुनील ने गोल मोल जवाब दिया।

“क्या तुम..”, एक लंबी सांस लेते हुए चंचल ने दोबारा से कहने शुरू किया, “क्या तुम अभी के अभी वापस या सकते हो?”

“हह?”

“माँ या रही है, और उन्हें पता लग गया तो हम तो गए।"

“हम नहीं.. तुम। जब तुमने फैसला ले लिया है, तो ये फैसला माँ को भी तो बताना होगा ना।"

“हाँ, शायद.. पर अभी मैं तैयार नहीं हूँ।"

“तो, तुम्हें मुझसे क्या चाहिए.. की मैं वहाँ आ जाऊ और ऐसे बर्ताव करू की हमारे बीच सब सही है?”

“हाँ..”

“पर क्यों.. मैं ऐसा क्यों करू?”

“क्योंकि शायद, मेरी तरह.. तुम भी नहीं चाहते, की हमारे परिवार वाले परेशान हो।"

“हहम्म.. वो तो है।"

“तो फिर आ जाओ अभी, हमे शाम को माँ को लेने जाना है, और उससे पहले घर की हालत भी थोड़ी ठीक करनी है।"

“ठीक है", ये बोल कर गाड़ी में अपने समान के साथ बैठा हुआ सुनील वहाँ से उठा और उसे लेकर वापस अपने घर की ओर जाने लगा।

***********************

अपने लिए चाय का एक और कप बनती हुई नीतू, अपनी रसोई की थल्ली पे ही लैपटॉप रख कर, अपने काम की चीजों पे नजर डाल रही थी, की तभी उसके घर की घंटी बजती है।

“हाय..”, दरवाज़ा खोल कर हैरान खड़ी हुई नीतू को, उसके सामने खड़ा दीवेश बोलता है।
“आप यहाँ?”, वो हैरानी से उससे पूछती है।

“हाँ.. इसकी वजह से..”, अपने फोन में नीतू की उसके परिवार वालों के साथ एक फोटो दिखाते हुए, दीवेश बोलता है।

“ये.. ये आपके पास...”, नीतू अभी भी उतनी ही भौचक्की सी हो कर बोल ही रही होती है, की दीवेश बोल पड़ता है।

“लगता है, तुम्हारी बात नहीं हुई है, अपने घर पे किसी से..”

“हहम्म?”

“ये फोटो मेरे घर वालों को तुम्हारे घर वालों ने दी है।"

“वैसे अगर तुम्हें ठीक लगे तो कहीं बाहर चल कर बात करे?”

“हाँ.. एक मिनट..”, नीतू रसोई में जाती है, और तुरंत से गैस बंद करके, अपना लैपटॉप भी बाहर ले आती है, और अपना दरवाज़ा लॉक करते हुए, दीवेश के साथ बाहर की तरफ चलती है।

“तुम रसोई में भी काम करती हो?”

“नहीं.. वो तो बस थोड़ा ज्यादा काम था न इसलिए..”

“ज्यादा था, अच्छा है.. अच्छा लग रहा है, मुझे ये जान कर..”, दीवेश अभी बोल ही रहा होता है, की नीतू उससे रोकते हुए पूछती है।

“आप कुछ बता रहे थे ना, की आप यहाँ कैसे।"

“हाँ.. वो मुझे ये फोटो मेरे घरवालों ने दी है।", लिफ्ट में चड़ते हुए वो बोला। "मेरे घर वालों को लगता है, की अब समय या गया है, की मैं बीती बातों को भूल कर, आगे बढ़ जाऊ, और इसलिए वो मेरे लिए रिश्ता ढूंढ रहे है, और तुम्हारे वाले भी यकीनन यही चाहते है और शायद इसलिए दोनों एक दूसरे से मिल लिए।"
"कितनी अजीब बात है ना, और जो बीती वो मुझे भूलने को कहते है, वो मुझ पे कभी बीती ही नहीं, और जो बीती है, उसे ही वो मेरे सामने ले आए।", सोसाइटी के गार्डन की तरफ बढ़ते हुए, दीवेश नीतू के सामने आगे आकर खड़े होते हुए बोला।

नीतू ने सांस अंदर खीचते हुए जल्दी से बोला, “तो आप वहीं हो, जिसे बुआ ने भेजा..”

“ओह.. चलो समझ तो आया तुम्हें की मैं क्या कह रहा हूँ।"

“पर आपने तो कहा था ना, की आप अब मुझसे नहीं मिलोगे, तो फिर क्या हो गया?”

“इतना नापसंद करती हो तुम मुझे, की अब मिलने में भी दिक्कत है।"

“शायद"

“तो एक काम करो, मुझे भी अपने जैसा बना दो।"

“कैसा?”

“क्योंकि हमारे घरवाले चाहते है की हम मिले,तो बस 5 बार मिलते है हम। और उन 5 बार में तो मुझे ऐसी 5 वजह दे दो, की मैं तुम्हें नापसंद करू।"