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अपनी अपनी सोच

नोटबंदी के दौरान लिखी गई मेरी एक रचना
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रामू एक दिहाड़ी मजदूर था। सरकार के नोट बंदी के फैसले से खासा उत्साहित हमेशा की तरह नुक्कड़ पर खड़ा था। इसी नुक्कड़ से उन्हें रोजगार मिलता था।

नोटबंदी सरकार का एक ऐतिहासिक फैसला है। लोगों को थोड़ी असुविधा जरुर होगी लेकिन काला धन और काला बाजारी से देश को हमेशा के लिए निज़ात मिल जाएगी उसका यही मानना था। अपने इसी सोच के साथ कि सरकार के विकास से ही आम आदमी का विकास भी सम्भव है वह सरकार के इस फैसले के साथ था।

दोपहर का वक्त हो चला था। नुक्कड़ पर कोई भी उन्हें काम पर ले जाने के लिए आया ही नहीं। रामू के साथ ही अन्य सभी दिहाड़ी मजदूर भी इस स्थिति से हैरत में थे। कुछ को तो नोटबंदी के फैसले के बारे में जानकारी ही नहीं थी।
इन्हीं में श्याम नाम का एक मजदूर भी था। दोपहर तक खड़ा रहने के बाद मजदूरों में भी सरकार के फैसले के समर्थन और विरोध में बहस छिड़ गई।

श्याम सरकार के फैसले से खासा नाराज था। वह बोला, "भाइयों, हम मजदूर लोग हैं। हमारे पास तो अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए भी पैसे नहीं हैं। इस नोट बंदी से हमारा क्या भला होनेवाला है ? उलटे जो पैसेवाले हमें काम देते थे वही लोग तकलीफ में आ गए हैं। अब हमें काम कौन देगा ? दोपहर होने को आई है पर काम मिला क्या किसीको ? ” सभी मजदूरों ने उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा, ” नहीं !"

”तो भाइयों, क्या हमें अब भी सरकार के इस निर्णय का समर्थन करना चाहिए ?"

” नहीं !" सम्म्मिलित आवाज आई।

खुश होते हुए श्याम अभी और कुछ कहता कि तभी रामू बीच में ही बोल पड़ा, "भाइयों, जल्दबाजी में कोई निर्णय करने से पहले जरा मेरी भी सुन लो। मैं तो कहता हूँ कि हमें सरकार के फैसले का स्वागत करना चाहिए। कुछ बड़े पैसेवालों ने देश का आधे से अधिक धन काले धन के रूप में छिपा रखा है जो जरुर बड़ी नोटों के रूप में होगा। इसके अलावा सीमापार से भी इन्हीं बंद हुए नोटों की नकली मुद्रा बाजार में चलायी जाती थी और हमारी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाया जाता था। इन नकली नोटों के शिकार भी तो हम और तुम जैसे गरीब लोग ही ज्यादा होते थे न !
इसीलिए सरकार ने इन बड़े नोटों को बंद कर दिया है। अब सरकार हिसाबी या सफेद धन के रूप में मिले नोटों और जब्त किए गए काले धन वाली नोटों के मूल्य के बराबर दूसरे नोट छापेगी जिससे सरकार के पास जब्त काले धन या सफेद धन पर कर के रूप में रकम प्राप्त होने से उसकी आय बढ़ेगी। सरकार की आय बढ़ेगी तो उसका फायदा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हम आम जनता को ही होगा न ?"

बड़ी देर से उसकी बात सुन रहे मजदूरों ने उसकी बात को सिरे से ख़ारिज कर दिया। कुछ रामू की बातों से सहमत थे लेकिन उतने मुखर नहीं थे। विवाद बढ़ न जाये सोचकर रामू ने भी चुप्पी साध ली और घर लौट आया।

दूसरे दिन जब तक वह नुक्कड़ पर पहुँचता सभी मजदूर काम पर जा चुके थे। वहाँ कोई मजदूर नहीं था। रामू बहुत खुश हुआ कि आज तो उसे काम अवश्य मिल जायेगा। तभी एक साधारण सा दिखनेवाला आदमी उसके पास आया।
रामू के नजदीक आकर उसने उससे कहा, "हमारे मालिक के पास पैसे बदलवाने के लिए बैंक की कतार में खड़े होने का समय नहीं है। तुम्हें उनके बदले कतार में खड़े रहकर पैसे बदलवा कर लाना है। इसके बदले तुम्हें तुम्हारी पूरी दिहाड़ी मिल जाएगी। कोई मेहनत नहीं और दिहाड़ी भी पूरी। बोलो, चलोगे ?"

रामू ने एक पल सोचा और समझ गया यह जरुर काले धन का ही चक्कर है। काले धन को सफेद करने में वह किसी का साथ नहीं देगा भले ही उसका नुकसान हो जाए सो तुरंत ही उसने उसे मना कर दिया।

दोपहर तक भी उसे दूसरा कोई काम नहीं मिला।

दूसरे दिन भी यही वाकया हुआ। वही आदमी आकर सभी मजदूरों को ले गया। सभी मजदुर बड़े खुश थे। सिर्फ खड़े ही रहकर बिना मेहनत के पूरी दिहाड़ी जो मिल रही थी लेकिन रामू अपने निर्णय पर अड़िग था। दूसरे मजदूरों ने भी उसे समझाया लेकिन रामू दूसरे दिन भी इस काम पर नहीं गया। उसकी अंतरात्मा इस गलत काम का साथ देने के खिलाफ थी।

आज भी वह खाली हाथ ही घर वापस लौटा था। शाम को उसकी पत्नी ने उसे सौ का एक नोट देते हुए बताया कि उसके पास बची हुई यह अंतिम नोट है जिससे वह बाजार जाकर बच्चों के लिए दूध और सब्जी जैसी जरुरी चीजें ले आये।

रामू ने सोचा कोई बात नहीं ! आज का काम तो इस पैसे से चल जायेगा और फिर कल तो काम मिल ही जायेगा।

तीसरे दिन नुक्कड़ पर फिर वही दृश्य ! आज एक आदमी और भी आ गया था। ज्यादा दिहाड़ी देने का वादा करके आधे से अधिक मजदूरों को वह अपने साथ ले गया।

दोपहर तक रामू बेकार खड़े खड़े आखिर फिर घर पर आ गया।
शाम को पत्नी ने ताने कसे। बच्चों के भूख की दुहाई दी क्यूँकि बगलवाली झुग्गी में रहनेवाले मजदूर श्याम ने उससे नुक्कड़ का सब हाल बता दिया था। रामू की हठधर्मिता उसे खल रही थी।

सुबह काम पर जाने से पहले रामू को पत्नी ने चेतावनी दी, ”अगर आज भी काम नहीं मिला तो वापस घर पर नहीं आना। अब मैं और दुःख नहीं उठा सकती। बच्चों का दुःख भी तुमको नहीं दिख रहा है। तुम्हारे आदर्श क्या तुम्हारा और बच्चों का पेट भर सकते हैं ? क्या तुम्हारे कोशिश करने से ही समाज साफ़ सुथरा हो जायेगा ?
याद रखना मैंने क्या कहा है। मैं भीख माँग कर बच्चों को पाल लूँगी, लेकिन तुम्हारे जैसा नाकारा पति बरदाश्त नहीं कर पाऊँगी।"

रोज की तरह आज भी रामू नुक्कड़ पर पहुँचा। वही रोज वाला आदमी आया। सभी मजदूरों की गिनती कर उन्हें सामने खड़े टेंपो में बैठने के लिए कह दिया लेकिन उसने रामू की तरफ देखा भी नहीं।

टेंपो चलने ही वाला था कि तभी रामू उठा और उसकी तरफ दौड़ पड़ा।

शाम को जब वह घर पहुँचा, उसका मुँह लटका हुआ था। उसकी पत्नी ने उसकी जेब टटोली। सौ सौ के पाँच नए नोट देख वह और बच्चे ख़ुशी से झूम उठे लेकिन रामू का दिल कराह रहा था। वह समझ रहा था अपना जमीर मारकर कमाए गए उन नोटों की कीमत !

मौलिक / स्वरचित
राजकुमार कांदु

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