जादुई तोहफ़ा - 5 - अंतिम भाग जॉन हेम्ब्रम द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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जादुई तोहफ़ा - 5 - अंतिम भाग

अनुज पूरी शाम उस ताबीज़ के बारे में सोचता रहा। उसका मन इधर से उधर घूमता ही रहा।

"क्या उसने सिर्फ मज़ाक में कहा था,या वाकई ऐसा कुछ है?"


"क्या बात है छोटे मालिक?" उसे परेशान देखा उसके माली ने उससे पूछा। वही माली जो उस पेड़ को अपनी संपत्ति मानता था।

"क्या तुम्हें पता है की आखिर बचपन में मेरे साथ क्या हुआ था?"

"आप किस बारे में बात कर रहे है?"

"तुम्हे पता है, मैं क्या कह रहा हूं।"
माली कुछ देर चुप रहा। फिर बोला —

"आप वो आम का पेड़ देख रहे है।" उसने आम के पेड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा।

"मुझे बस इतना जानना है की आखिर क्या है जो सब मुझसे छिपा रहे है?"

"ठीक है तो शायद आपको बता ही देना चाहिए ,बचपन में आप आपके दोस्तों के साथ इसी आम के पेड़ पर चढ़े थे लेकिन टहनी टूट जाने की वजह से गिर गए थे और आपके पैर में मोच आ गई थी। फिर जब आपको अस्पताल से लाया गया तो मालकिन ने बताया कि आप कभी नहीं चल पाएंगे और मुझे आपका खास ध्यान रखने को कहा और ऐसा किसी और के साथ न हो इसलिए मुझे उस पेड़ से बच्चो को दूर रखने को कहा गया।"

"तो क्या तुम्हे भी यही लगता है की अब मैं और कभी नही चल पाऊंगा।"

"नहीं छोटे मालिक ऐसा नहीं है।"

"ठीक है कोई बात नहीं।" और इतना कहकर अनुज वहां से जाने लगा।
अपने कमरे में पहुंचकर उसने ताबीज़ को ध्यान से देखा और बिना ज्यादा सोचे उसने उसे देखकर कहा कहा।

"मुझे चलना है,क्या तुम मेरी इच्छा पूरी नहीं कर सकते? मुझे भरोसा है।"

इतना कह वह अपनी व्हीलचेयर से उठने की कोशिश करने लगा। लड़खड़ाते हुए ही सही लेकिन वह चल पा रहा था उसे यकीन नहीं हो रहा था की वो चल पा रहा है। उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे। उसने कुछ कदम आगे बढ़ाए और फिर खुश होकर उस ताबीज़ का शुक्रिया अदा करने लगा उसे भरोसा हो गया की अब वो चल सकता है। सिर्फ और सिर्फ प्रतीक के बदौलत।
लेकिन फिर वह वापस अपनी व्हीलचेयर पर जाकर बैठ गया। वह सबसे पहले ये खबर प्रतीक को देना चाहता था आखिर उसी ने तो उसकी जिंदगी बदली।

अगले दिन रोज की तरह वो व्हीलचेयर पर बैठा बगीचे में उसका इंतजार कर रहा था।

"तुम आ गए।" अनुज ने उसकी ओर देखकर कहा।

"हां आज ज्यादा कुछ काम नहीं था, तो सोचा तुमसे मिल लूं।"

" तुम ठीक तो हो न?"

"क्यों?"

"नहीं! वो ऐसे ही।" प्रतीक ने हिचकिचाते हुए कहा

"ठीक हूं में।" अनुज ने जवाब दिया
और फिर रोज की तरह प्रतीक पेड़ से उतरकर बगीचे में आ गया। और उसके सामने जाकर खड़ा हो गया।

उसे सामने खड़ा देख अनुज को उसे सब बताने की चाह हुई और अचानक से वो खड़ा हो गया। प्रतीक ये देख हैरान था।

"ये कैसे…" उसने घबराहट में कहा।

"तुम्हारी बदौलत.." और इतना कह उसने उसे गले से लगा लिया दोनो कि ही आंखों में खुशी का आंसू थे।


[ समाप्त ]