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खिड़की के पार

मेरा नाम चांदनी है चांदनी मिश्रा । मैं 25 साल की हूं और मैं एक वकील हूं , दिखने में अच्छी हूं शायद इसलिए मैं अपने कॉलेज के दिनों में आकर्षण का केंद्र रहती थी। मैं वर्तमान में मुंबई में अपनी बहन के साथ रहती हूं । मेरी बहन डॉक्टर है (हार्ट स्पेशलिस्ट ) । मेरे मम्मी पापा इंदौर में रहतें हैं, और आज मैं और मेरी बहन उनसे मिलने जा रहे हैं । वो कुछ दिनों बाद होली है ना । हमलोग मुंबई से इंदौर तक का सफ़र बस से तय करने वाले हैं । आप लोग सोच रहे होंगे कितनी कंजूस है दोनों बहनें इतनी अच्छी अच्छी नौकरियां करती है फिर भी बस से जा रही है । पर इसकी वजह कुछ और है मुझे बचपन से ही बस का सफ़र बहुत पसंद है । और बस में सफ़र करते वक्त खिड़की के बाहर के नजारे देखना मेरा सबसे पसंदीदा काम है ।
खैर हम लोग बस स्टैंड पहुंच गए। बस भी थोड़ी देर बाद आ गई हमने जल्दी जल्दी अपने बैग्स पकड़े और बस की तरफ़ चल दिए । बस चढ़कर अपनी अपनी सीट्स पर बैठ गए । बस चल पड़ी और मैं अपना फ़ोन स्क्रॉल करने लगी ।
थोड़ी देर बाद मेरे कानों से टकराया पड़ोसन फ़िल्म का वह लोकप्रिय गीत


" मेरे सामने वाली खिड़की में
एक चांद का टुकड़ा रहता है।"

इस गीत को सुनते अचानक मुझे याद आई हमारे घर की वह खिड़की जिससे मैं "उसे" देखा करती थी । वह भी तो था एकदम चांद के टुकड़े जैसा गोरा रंग, घुंगराले बाल , और आंखों में एक प्यारा सा चश्मा । बात तब की है जब मैं बी ए कर रही थी । एक दिन मेरे पड़ोस में रहने वाले शर्मा अंकल के यहां एक लड़का आया था , मैंने अपनी बहन से पूछा तो उसने बताया कि वह शर्मा अंकल के यहां पेइंग है ।
मुझे लडकों में शुरू से ही इतनी ज़्यादा रुचि नहीं थी पर जब मैने उसे पहली बार देखा तो मैं उसे देखती ही रह गई थी। वैसे उसे "उसे", ना कहकर "उन्हें " बोलना ज्यादा सही रहेगा क्योंकि वह मुझसे 2-3 साल बड़े थे । वह खिड़की के उस पार अपनी पढ़ाई में मग्न रहते और मैं परदे की ओट से उन्हें ताड़ने में । मैंने उन्हें अधिकतर पढ़ाई करते हुए ही देखा था । मैं तो कभी कभी सोचती थी कि कोई इंसान कैसे इतना पढ़ सकता है । यह सिलसिला लगभग तीन महीनों तक चलता रहा । कभी कभी वाह भी मेरी खिड़की पर झांकते थे शायद उन्हें पता लग गया था कि मैं उन्हें देखती हूं । एक रोज़ की बात है । मैं अपने कॉलेज से लौट रही थी , कॉलेज मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं था। और उस दिन मुझे ऑटो भी नहीं मिला तो मैंने पैदल आने का तय कर लिया । मैं आ ही रही थी कि अचानक से एक लड़का मेरे सामने आकर खड़ा हो गया । मैंने उस लड़के को देखा तो उसकी शक्ल मुझे जानी पहचानी सी लगी । फिर मुझे याद आया कि यह तो मेरे क्लास का ही एक लड़का विनोद था ।
मैंने उससे पूछा - किया हुआ मेरे रास्ते में क्यों खड़े हो ?

विनोद - मुझे तुमसे कुछ बात करनी है ।

मैं - हां बोलो ।

विनोद - वो यहां नहीं थोडा सा साइड में चलो न ।

मैं - नही जो कहना है यही कहो ।

विनोद - वो वो ठीक है चांदनी आई लव यू ।

मैं - हैं ये कब हुआ ? मैं तो तुम्हें ढंग से जानती भी नहीं हूं ।

विनोद - मैं तो तुम्से उसी दिन से प्यार करने लगा था जिस दिन तुम्हें पहली बार देखा था।

मैं - देखो ये फिल्मी डायलॉग्स न किसी और के सामन जाकर मारना । बड़ा आया पहले दिन से प्यार करने वाला । अब हटो सामने से मुझे घर जाना है । इतना कहकर मैं जाने लगी तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया ।

मैं - हाथ छोड़ो मेरा।

विनोद - तुम मुझे ऐसे छोड़कर नहीं जा सकती मेरी बात तो सुनो ।

मैं - क्या सुनो मैं तुम्हें जानती नहीं हूं और अगर जानती भी होती तो मुझे इन सब में कोई इंटरेस्ट नहीं है । तो अब अपनी प्यार की पोटली उठाओ और घर जाओ ।
इतना कहकर मैं अपना हाथ छुड़ाने लगी । मेरा हाथ में छोड़ रहा था मैंने उससे अपना हाथ जैसे तैसे छुड़ाया और खींच कर एक थप्पड़ लगा दिया ।

मैं - अगली बार से ऐसी कोई हरकत की ना तो पैर तोड़ कर हाथ में रख दूंगी । इतना कहकर मैं घर चली आई । उस घटना को कई दिन बीत गए थे। और कई निवासी विनोद मुझे दिख भी नहीं रहा था तो मुझे लगा कि वह मेरी धमकी से डर कर भाग गया । अब मैं पूरी तरह निश्चिंत हो चुकी थी । कुछ दिनों बाद मेरे कॉलेज में एक प्रोग्राम था तो उस दिन मुझे घर आने में थोड़ी देर हो गई । मैं आ ही रही थी कि तभी मुझे लगा कि कोई मेरे पीछे पीछे चल रहा है । मैंने तुरंत पीछे मुड़कर देखा तो पीछे कोई नहीं था । मैंने अब तेज तेज चलना शुरू कर दिया । मुझे फिर महसूस हुआ कि कोई मेरे पीछे है । इस बार मैंने पीछे मुड़कर देखा और कहा - तुम जो कोई भी हो सामने आओ ऐसे कायरों जैसे छुप छुप कर क्या पीछा कर रहे हो ।

तभी एक लड़का दीवार की ओट से बाहर निकलता है और वह कोई और नहीं बल्कि विनोद रहता है ।

मैं - तुम यहां पे क्या कर रहे हो ?

विनोद - तुझे सबक सिखाने के लिए । और तुझे क्या लगा मैं तेरी धमकियों से डर गया । मैं तो बस एक सही मौके की तलाश में था और आज वह मौका मुझे मिल गया ।

मैं - मेरे पास आए तो हाथ पैर तोड़कर दूंगी ।

विनोद - वही तो तेरे हाथ पैर बहुत ज़्यादा चलतें हैं ना तो इस बार मैं तुझपे दूर से ही वार करूंगा । इतना कहते हुए उसने एक बोतल निकाली और उसे दिखाते हुए कहा जानती है यह क्या है ? यह तेज़ाब है जो पलभर में किसी को भी जला सकता है ।

मैं वह बोतल देखकर घबरा गई मैं धीरे धीरे पीछे हटने लगी । विनोद ढक्कन खोलते हुए हंस रहा था और मेरी तरफ़ बढ़ रहा था । और तभी उसने तेज़ाब मेरी तरफ़ फेंक दी पर इससे पहले कि वह मुझे छूं पाती किसी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींच लिया । मैंने अभी भी आंखे बंद कर के रखी थी। तभी एक आवाज़ मेरे कानों से टकराई - अब आप आंखे खोल सकती हैं ।

मैंने आंखे खोल कर देखा तो पाया कि वह इंसान कोई और नहीं बल्कि वो खिड़की वाले महाशय है जिनको मैं अकसर देखा करती थी । मैं कुछ समय तक उनकी तरफ़ देखती रही फिर थैंक यू कहकर साइड हट गई ।

विनोद जो काफ़ी समय से हम दोनों को देख रहा था उनसे बोला - देख तू जो भी है यहां से निकल जा वरना मारा जाएगा । इतना कहकर उसने अपने पीछे से एक छुरी निकाल ली ।

चाकू को देखकर पहले तो वो हल्का सा मुस्कुराए और फ़िर कहा - इस तरह के खिलौने लेकर घूमने से अच्छा साथ में एक गन उठा कर लाता । कम से कम तेरे बचने के चांसेज थे पर अब इतना वो तेज़ी से विनोद की तरफ़ लपके और उससे चाकू छीन लिया ।

विनोद घबरा गया और भागने की कोशिश करने लगा पर उन्होंने उसे पकड़ लिया । और दो तीन थप्पड़ , तीन चार मुक्के जड़ दिए। मैंने इसी बीच पुलिस को फ़ोन करके सब कुछ बता दिया था और थोड़ी देर बाद वहां पुलिस पहुंची और विनोद को गिरफ्तार कर के ले गई ।मैं उनके साथ पुलिस स्टेशन गई और विनोद के खिलाफ़ एफ आई आर दर्ज कराकर आ गई ।

आते वक्त मैंने उनसे - थैंक यू मेरी मदद करने के लिए ।

उन्होंने कहा - थैंक यू मत कहिए पर अगली बार से आप संभलकर रहिएगा हर बार तो कोई आपकी मदद करने वाला नही रहेगा ।

मैं - जी मैं आगे से ध्यान रखूंगी ।
ऐसे हम लोग घर पहुंच गए , वह शर्मा अंकल के घर की तरफ़ जा ही रहे थे कि मैंने उनसे कहा - सुनिए , आपने मेरी इतनी मदद की क्या मैं आपका नाम जान सकती हूं ।

उन्होंने कहा - जी मेरा नाम शौर्य है, शौर्य शुक्ला ।

मैंने कहा - और मेरा नाम चांदनी है चांदनी मिश्रा ।
अपनी स्टाइल को कॉपी होते देख वो हल्का सा मुस्कुरा दिए और घर की तरफ़ चले गए ।

मैंने घर आकर सबको आज की घटना के बारे में बता दिया । सब बहुत परेशान हो गए थे , मैंने उनसे यह कहा कि किस तरह शौर्य जी ने मेरी मदद की । वे बहुत खुश हुए उन्होंने कहा कि कल शौर्य जी को चाय के लिए बुला कर लाना ।
खैर मैं अपने कमरे में गई और खिड़की से झांकने लगी तो मैंने पाया कि खिड़की तो अभी बंद है । मैं अभी खिड़की की तरफ झांक ही नहीं थी कि खिड़की खुली और शौर्य जी दिख गए । वो मुझे देखते ही हल्का सा मुस्कुरा दिए और मैं झेंपकर वहां से हट गई ।
दूसरे दिन मैं शर्मा अंकल के घर गई और शौर्य जी को हमारे घर पर चाय के लिए इनवाइट किया । वो मेरे साथ आ गए । हमलोग घर पहुंचे तो मम्मी ने शौर्य जी की बहुत खातिरदारी की । फिर थोड़ी देर बाद वो चले गए ।
अब हमारे थोड़ी बहुत बातचीत हो जाया करती थी । अब तो मैं उनसे खिड़की से भी बात करना शुरू कर देती थी । हम दोनों ने एक दूसरे से कुछ कहा तो नहीं था पर हमारे बीच एक अनकही सी एक डोर थी जो हमे जोड़े हुए थी । ऐसे ही एक दिन मैं सुबह उठकर जब खिड़की के पास गई थी तो खिड़की बंद थी । ऐसा कभी होता नहीं था कि सुबह सुबह खिड़की खुली न हों। मैंने सोचा शायद आज भूल गए होंगे। यही सोच सोचकर मैं कॉलेज चली गई और जब वापस आई तब भी खिड़की बंद ही थी । मैंने अब सोचा कि अपनी बहन से पूछ लेती हूं ।

मैंने उससे पूछा - अच्छा नेहा तूने उनको देखा है जो शर्मा अंकल के यहां पेइंग गेस्ट हैं। वह आज सुबह से नहीं दिखे ।

नेहा - दीदी पेइंग गेस्ट हैं नहीं थे वो तो कल ही यहां से चले गए ।

मैं - चले गए पर क्यों ?

नेहा ने मेरी तरफ़ हैरानी से देखा ।

मैं - मेरा मतलब था कि कोई गड़बड़ हुई है क्या ?

नेहा - नहीं ऐसा कुछ मुझे नहीं पता ।

मैं - ओह अच्छा । तू अब जा । इतना कहकर मैंने उसे भेज दिया ।
फिर मैं गुस्से से खिड़की की तरफ़ देखती हुई बड़बड़ाने लगी जाना ही था तो बता के जाना था न । ऐसे कैसे बिना बताए चले गए । फिर। ख्याल आया कि मैं उनकी लगती ही क्या हूं जो वो मुझे बताएंगे । इतना सोचकर मेरी आंखे नम हो गईं और मैं फूट फूट कर रोने लगी । कुछ दिनों तक ऐसे ही उदास रही फिर मैंने ख़ुद को संभाल लिया और कॉलेज खत्म होने के बाद मुंबई चली आई आगे की पढ़ाई के लिए । तभी नेहा की आवाज़ से मैं अपने ख्यालों से बाहर आ गई ।

नेहा - दी चलिए जब तक बस रुकी है हमलोग पास वाले ढाबे से कुछ खाकर आतें है ।

मैंने कहा - तू जा मुझे अभी भूख नहीं है ।

नेहा - अरे दी ऐसे कैसे नहीं है आप सुबह को सिर्फ एक रोटी खाकर निकली थी और अभी दोपहर हो चुकी है । अगर आपने अभी खाना नहीं खाया तो आपको एसिडिटी हो सकती है और फिर ............

मैं - अरे बस कर मेरी मां । मैं जा रही हूं जब देखो तब अपनी डॉक्टरगिरी झाड़ती रहती है । इतना कहकर मैं मुंह बनाते हुए ढाबे की तरफ़ चलने लगी ।

मुझे मुंह बनाते देख नेहा हंसते हुए बोली - क्या दी आप इतने बड़े हो गए हो फिर भी आपकी यह अजीबो गरीब टाइप के फेस बनाने की आदत नहीं गई ।

अब मैंने चिड़कर उससे कहा - और तेरी भी बात बात भाषण मारने की ।
इतना कहकर मैं जल्दी से ढाबे की तरफ़ चली आई । मैंने जल्दी से एक प्लेट चावल और कोई भी शाकाहारी सब्जी लाने का ऑर्डर दे दिया ।
नेहा आकर मेरे बगल में बैठ गई उसने भी चावल ऑर्डर किया और मुझसे कहा - दी आपको पता है ना परसों आपको लड़के वाले देखने आने वाले हैं।

मैं - हां पता है उनका तो हमेशा यही ड्रामा रहता है । जब देखो तब शादी की रट लगाए रहतीं हैं ।

नेहा - हां तो इसमें गलत क्या है अच्छा तो है ना जब आपकी शादी होगी उसके बाद ही तो मेरी शादी होगी ना ।

मैं - तुझे तो बस शादी करने की पड़ी है ।

नेहा - हां तो आपको नहीं करनी मतलब क्या किसी को भी नहीं । वैसे दी आपको पता है मैंने सुना है इस बार वाला लड़का आई पी एस ऑफिसर है अगर आपको वो पसंद नहीं आया तो मुझे बता देना मैं कर लूंगी उससे शादी ।

मैं - कर लेना अभी मुझे खाने दे ।
हमलोग खाना खाकर वापस बस में चढ़ गए और शाम तक हम इंदौर में थे ।
पापा हमें लेने के लिए आए हुए थे मैं दौड़कर उनके पास गई और उनके गले लग गई और कहा - आई मिस्ड यू पापा ।
पापा - आई मिस्ड यू मोर मेरी बच्ची ।

नेहा - हां पापा आप तो बस दीदी को ही प्यार करतें हैं । सही है मेरा है ही कौन मैं तो अकेली हूं ना ।

पापा - तू नहीं सुधरेगी न नौटंकीबाज । चल आ कहते उन्होने अपने एक हाथ फ़ैला दिया । नेहा दौड़ कर आके उनसे लिपट गई । फिर हम लोग पूरे रास्ते बात करते हुए घर पहुंचे । घर पहुंचने के बाद हम दोनों मां मां चिल्लाने लग गए ।

तभी किचन से मां बाहर निकलीं । हम दोनों जाकर उनके गले लग गए मां की आंखों में आसूं आ गए ।

नेहा - ओ हो मां आप भी न कितना सा
सेंटी होते हो , अपने ये आंसू बचाकर रखिए थोड़े दिन बाद दीदी की बिदाई में बहाइयेगा । इतना कहकर उसने मेरी तरफ़ देखा तो पाया कि मैं उसे गुस्से से घूर रही थी ।

वो तुरंत मां के पीछे छिप गई और मैं उसको मारने के लिए दौड़ी वह भी मां बचाओ चिल्लाते हुए कमरे की तरफ़ भागी और मैं उसके पीछे पीछे । बहुत दौड़ भाग के बाद आखिर मैंने उसे पकड़ ही लिया और उसके कंधे पर मारते हुए कहा - बड़ी आई मुझे भगाने वाली ।
थोड़ी देर बाद हम फ्रेश होकर डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए थे ।
खाने के बाद जब हम सब हॉल में बैठे हुए थे तो मां ने कहा - बेटा कल जल्दी उठ कर तैयार हो जाना कल तुझे देखने लड़के वाले आ रहे हैं ।

मैं - मां आप हर बार ऐसा ही करती हैं मैं छुट्टियों में घर आती हूं और आप लड़के वालों को बुलाकर सारे मूड का कचरा कर देती हैं ।

मां - पर बेटा एक बार लड़के से मिल तो ले । तुझे मेरी कसम ।

मैं - आप ना मां टू मच हो । ठीक मैं मिल लूंगी उससे। पर सिर्फ आपके लिए ।

मां - मेरी अच्छी बच्ची ।

मैं - बस मां इतना ही मक्खन लगाइए । इतना कहकर मैं अपने कमरे में चली आई और उस खिड़की को घूरने लगी जो अब भी बंद थी । मैं अपने बेड पर लेट गई और फिर से शौर्य जी के बारे में सोचने लगी । ऐसे ही सोचते सोचते मैं सो गई । सुबह सुबह मां उठा दिया और जल्दी तैयार होने का फरमान सुना गई । खैर मैं दस बजे तक तैयार होकर नीचे आई तो लड़के के माता पिता पहले से ही वहां बैठे हुए थे मैंने जाकर उनके पैर छुएं और उसके बाद सोफे पर बैठ गई क्योंकि उन्होंने पहले ही चाय पी ली थी। मैंने इधर उधर देखा तो मुझे लड़का कही नहीं दिखा ।

मुझे इधर उधर देखता पाकर लड़के की मां ने कहा - वह गुड्डू को जरा सा काम आ गया है वो बस आता ही होगा । उन्होंने मुझसे कुछ सामान्य से सवाल पूछे और फिर मुझे अपने कमरे में भेज दिया गया । मैं कमरे में जाकर उस खिड़की को घूरते हुए सोचने लगी कि कैसे लड़के को मना किया जाए । मैं सोच ही रही थी कि एक आवाज़ मेरे कानों से टकराई - खिड़की पर से किसे ढूंढ रहीं हैं ? कही वो मैं तो नहीं ।
मैं आवाज़ सुनकर पलटी तो मैं हैरान रह गई और मेरे मुंह से निकला आप यहां ? क्या कर रहें हैं ।
पीछे शौर्य खड़े थे पर एक अलग ही अवतार में आंखों से चश्मा हट गया था हल्की हल्की दाढ़ी उगा कर रखी थी । ब्लू कलर की जींस और व्हाइट कलर की शर्ट में बड़े ही डैशिंग लग रहे थे । उनसे नज़र हटाना मुश्किल हो रहा था । पर मैंने उनसे नज़र फेरी और वापस खिड़की की तरफ़ देखने लगी ।
शौर्य आकर मेरे बगल में खड़े हो गए और कहा - अपने लिया लड़की देखने आया हूं । और कुछ नहीं पूछेंगी?

मैं - मैं क्या पूछू आपसे मैं हूं ही कौन आपकी जो आपसे कुछ पूछ सकूं।

शौर्य - आप ऐसा क्यों बोल रहीं हैं ।

मैं - और नहीं तो क्या तभी तो आपने जाने से ही मुझे एक बार भी बताना सही नहीं समझा ।

शौर्य - तो वकील साहिबा इसलिए मुझसे गुस्सा हैं ।

मैं - मैं कौन होती हूं आपसे गुस्सा .... । मैंने इतना कहा था कि उन्होने मेरा मुंह बंद कर दिया और कहा - क्या कबसे आप अपने आप को गैर बताए जा रहीं हैं । आप जानना ही चाहतीं हैं ना कि आप मेरी लगती कौन है तो सुनिए
मेरे सीने में जो धड़कता है
वह दिल हैं आप
मेरे रास्तों को जो रौशन करे
वह रोशनी हैं आप
मेरे दिल को जो सुकून दे
वह ख़्वाब हैं आप
और कुछ सुनना है आपको । मैं तो बस मुंह खोले उन्हें देखे जा रही थी एक शांत गंभीर सा रहने वाला लड़का ये सब भी बोल सकता है मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था।
फिर मैंने कहा - मेरा इतना ही खयाल था तो जाने से पहले बताया क्यों नहीं ।

शौर्य - अगर आपको बताकर जाने की कोशिश करता तो शायद जा ही नहीं पता । मुझे ही पता है कि मैंने कैसे खुद को समझाया था ।
इतना सुनते ही मेरी आंखे नम हो गई और मैं उनके सीने से जा लगी । मैं रोते रोते बोले जा रही थी - फिर भी तो आपको बताना चाहिए था न पता है मैं कितना डर गई थी कि हम दुबारा कभी मिलेंगे भी या नहीं ।

शौर्य ने मुझे शांत कराते हुए कहा - बस करिए वकील साहिबा कितना रोएंगी ।
मैंने उनसे अलग होते हुए पूछा - आप ऐसे अचानक से क्यों चले गए थे ?

शौर्य - मेरी यू पी एस सी क्लियर हो गई थी और मुझे ट्रेनिंग के लिए जाना पड़ा था ।

मैं - तो ट्रैनिंग क्या इतने सालों तक चलती है ।

शौर्य - मैं तो पहले ही आपको लेने आने वाला था पर जब आपके बारे में पता करवाया तो पता चला कि आप पढ़ाई कर रहीं हैं । तो मैंने सोचा कि आपकी पढ़ाई पूरी हो जाए तब पुछ सोचा जाए ।

मैं - हां पर फिर भी आपको बताना चाहिए था । अच्छा आप अपनी ट्रेनिंग के बारे में कुछ बताइए । फिर बताने लगे कैसे उन्हे सुबह 5 -6 किलोमीटर तक दौड़ लगानी पड़ती थी और भी बहुत कुछ । हम लोग बात कर ही रहे थे कि नेहा आ टपकी और कहने लगी - आपलोगों को नीचे सब बुला रहें हैं ।
हमलोग नीचे चले गए । नीचे पहुंचते ही शौर्य ने कहा - मां आप अब अपनी सहेलियों से अपनी बहु की बुराई कर सकतीं हैं और उससे खाना भी बनवा सकतीं हैं। इतना कहकर वो निकल गए ।
और मैं हल्के से मुस्कुराने लगी । जब मां ने मुझसे मेरे फैसले के बारे में पूछा तो मैंने मुस्कुरा कर हां में सिर हिला दिया और वहां से अपने कमरे में आ गई । मैंने खिड़की से बाहर झांका तो शौर्य खिड़की की तरफ़ ही देख रहे थे । तभी शौर्य ने मेरी तरफ़ कुछ फेंका तो वह कंकड़ में लिपटा एक नोट था जिसमें उनका नंबर लिखा हुआ था। मैंने मुस्कुरा कर उनकी तरफ़ देखा तो वह भी मुझे ही देख रहे थे । तभी उनके मां पापा आ गए और उनको खिड़की की तरफ़ देखता पाकर हल्का सा खांस दिया । शौर्य ने हड़बड़ाकर उनकी तरफ देखा और उनके लिए गाड़ी का गेट खोल दिया । जाने से पहले उन्होंने मेरी तरफ़ देख कर हाथ हिला दिया । मैंने भी अपना हाथ हिला दिया । हमारी शादी की तारीख 1 महीने बाद की तय हुई । दूसरे दिन होली थी हम सब होली खेल रहे थे मैं सोच रही थी काश शौर्य यहां होते । तभी एक हाथ आया ओर मुझे पकड़ कर कोने की तरफ़ ले आया । मैंने देखा तो वह शौर्य थे पूरे रंगे हुए । मैने हैरानी से उनकी तरफ़ देखा - आप ! आप यहां कैसे ?

शौर्य - आपस मिलने का मन किया तो आ गया ।

मैं - ओह ! रुकिए मैं आपको रंग लगती हूं । इतना कहकर मैंने पूरी रंग से भरी हुई थाली उनके ऊपर उड़ेल दिया । और मैं हंसते हुए वहां भाग आई । मैं एक पेड़ के पीछे छुपी हुई थी । मुझे लग रहा था कि मैं बच गई । तभी मेरे ऊपर रंगों की बरसात हुई और मैं पूरी रंग बिरंगी हो गई ।

तभी शौर्य पीछे से हंसते हुए बाहर निकले - आप तो एकदम रंग बिरंगी तितली जैसी लग रहीं हैं ।

मैंने उन्हें घूरते हुए कहा - अब तो आप नहीं बचेंगे इतना कहकर मैंने पिचकारी से उनको पूरा भीगा दिया। हमलोगों
ने बहुत मस्ती की और फिर थोड़ी देर बाद शौर्य अपने घर चले गए । ऐसे ही देखते ही देखते एक महीना बीत गया । इस एक महीने में हमने फोन पर ढेर सारी बातें की , कई बार मिले । आज हम दोनों की शादी है । मैं तैयार होकर बैठी हूं थोड़ी सी उदास हूं थोड़ी खुश भी और थोड़ी घबराहट भी हो रही है । पता नहीं शौर्य के यहां सब घरवाले कैसे होंगे , उनके मां पापा से तो मैं मिल चुकी बस उनकी बहन बची है शौर्य ने बताया है उसके बारे में । मैं सोच रही ही रही थी नेहा ने आकर कहा - दी बारात आ गई । चलिए छत पर से आपको दिखाती हूं । नेहा और मेरी कुछ फ्रेंड्स मुझे छुपते छुपाते छत तक लेके गई ।
मैंने शौर्य को देखा तो देखते ही रह गई उनके चेहरे से तो ऐसे नज़र हटाना मुश्किल होता था और आज तो वो मेहरून कलर की शेरवानी में गज़ब ही ढा रहे थे ।

मेरी एक दोस्त शीतल ने कहा - यार जीजू को देख न कितने हॉट लग रहें हैं । मन तो कर रहा है कि चांदनी को भगा कर खुद शादी कर लूं।

मैं - ऐसा करने की सोचना भी मत वरना मैं तुम लोगों को छोडूंगी नहीं ।

सब एक साथ - ओ हो जलन हो रही है चंदू को ।

तभी मां ने आकर कहा - क्यों मेरी बच्ची को परेशान कर रही हो तुम सब । ( फिर मुझे अपनी तरफ़ घुमा कर , काजल का टीका लगाते हुए ) बहुत प्यारी लग रही है इतना कहते हुए उनकी आंखों से आंसू टपक पड़े ।

मैं भी रोने लगी तो नेहा ने कहा - क्या मां आप दोनो को तो आजकल जहां मौका मिलता है वहां रो देती हैं । अरे बस करिए नहीं तो आपका मेकअप खराब हो जाएगा फिर जीजू आप को देख कर भाग जाएंगे ।
मैं रोते रोते मुस्कुरा दी । फिर मुझे शादी के मंडप में ले जाया गया । सारी विधियां हुई और हमारी शादी पूरी हुई । सब कुछ होते होते सुबह हो गई । मैं अपने कमरे में जाकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी । तभी मां आई और मुझे चुप कर
कराने लगी फिर मां खुद भी रो पड़ी ।
जब बहुत देर तक हम दोनों नीचे नहीं गए तो पापा ऊपर से और हमलोगों को रोते देखकर उनकी भी आंखे नम हो गई । मैंने उन्हें देखा और उनसे गले लगकर रोने लग गई ।
फिर मैं रोने लगी और मुझे जैसे तैसे नीचे लाया गया । मुझे नेहा कही नहीं दिख रही थी मैं उसको ढूंढने के लिए गई तो वह गार्डन के एक बेंच पर बैठी हुई थी । मैं उसके बगल में जाकर बैठ गई और उसकी तरफ़ देखा तो वह रो रही थी और अपने आंसू रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी ।

मैंने उसको गले लगा कहा - याद आएगी ना मेरी ।

उसने रोते हुए कहा - बहुत । और मुझसे गले लग कर रो पड़ी मैं भी रोने लगी ।

मैं - अब रोना बंद कर नहीं तो मां पापा को कौन संभालेगा । वो रोते हुए अपने आंसू पोछने लगी ।

हमदोनों दरवाजे तक गए और मैं मां पापा को देखकर फिर से रोने लग गई । इसी तरह मैं अपना घर छोड़कर शौर्य के घर चली आई । वहां मेरा गृहप्रवेश हुआ और शादी के बाद की सारी रस्में होने लगी । 11 -12 बजे तक सब कुछ निपटा कर मुझे शौर्य की बहन के रूम में भेज दिया गया । मैं शौर्य की बहन से मिली बिलकुल अलग है अपने भाई से चुलबुली और मस्ती मज़ाक करने वाली । ऐसा नहीं है कि शौर्य मस्ती नहीं करते हैं पर सबके साथ नहीं कुछ गिने चुने लोगों के साथ ही । और बोलते भी कम
हैं । पर उनकी बहन बहुत ही ज्यादा बोलती है पर बहत प्यारी है । उसने मुझसे कुछ देर बात की और फिर मुझे आराम करने बोल कर वहां से चली गई । मैं बहुत थक गई थी इसलिए मैं बिन कपड़े बदले ही सो गई । शाम को मुझे रिद्धिमा ( शौर्य की बहन ) उठाने आई वो मेरे लिए खाना लाई थी मैंने थोड़ा सा खाना खाया । फिर रिद्धिमा मुझे तैयार करते हुए कहने लगी - भाभी आप इंदौर से हैं ना ।

मैं - हां क्यों ।

रिद्धिमा - आप यहां आई हैं कभी ।

मैं - हां कई साल पहले एक बार आई थी मेरी बुआ की बेटी की शादी में ।

रिद्धिमा - कहीं आप रोशनी भाभी और शिवम भैया की शादी की तो बात नहीं कर रही है ।

मैं - हां पर तुम्हें कैसे पता ।

रिद्धिमा - वो क्या है ना शिवम भैया मेरी मासी के बेटे हैं ।

मैं - वैसे तुम ये सब क्यों पूछ रही हो।

रिद्धिमा - वो क्या है ना भाभी मेरे भैया को आप उसी शादी में पहली बार दिखी और उनको आपसे तभी प्यार हो गया था ।

मैं - क्या ?

रिद्धिमा - और नहीं तो क्या शादी से आने के बाद उन्होंने मुझे आपके बारे में बताया था । और फ़िर उन्होंने आपका पता लगाया और इंदौर चले गए ।
मैं तो हैरान होकर उसे देखे जा रही थी बातें करते करते कब रात हो गई हमें बुलाने आईं। रिद्धिमा मुझे शौर्य के कमरे में ले जा रही मुझे बहुत घबराहट हो रही थी । मैं कमरे में गई और कमरे को ध्यान से देखने लगी । फिर खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई ।
थोड़ी देर बाद शौर्य आतें हैं और मेरे बगल में आकर खड़े हो जाते हैं ।

शौर्य - क्या सोच रहीं हैं आप ।

मैं - आपने मुझे पहली बार कहां देखा था ।

शौर्य- इंदौर में ।

मैं - झूठ मत बोलिए क्योंकि मुझे सब पता चल गया है।

शौर्य ने एक गहरी सांस ली - रिद्धि ने बताया ।
मैंने हां में सर हिला दिया । उन्होंने अलमारी खोली और उसके अंदर से कुछ तस्वीरें निकली । मैंने उन तस्वीरों को देखा तो वह मेरी तस्वीरें जो की 5 -6 साल पुरानी थी । वह तस्वीरें रोशनी दीदी की शादी के समय की थी ।

उन्होंने कहना शुरू किया - मैंने आपको पहली बार शिवम भैया की शादी में देखा था । और आप मुझे पहली नज़र में ही भा गई थी । मैं पूरी शादी में आपके पीछे पीछे घूमता रहा ताकि आपसे बात कर सकूं । पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ , और आप शादी के बाद चली गईं । मैंने बड़ी मेहनत से शिवम भैया से आपके बड़े में पता किया पर वो बस इतना ही बता पाए कि आप इंदौर में रहतीं हैं ।

फिर आपने मेरा एड्रेस कैसे पता किया ?मैंने पूछा ।

शौर्य - वो तो बस एक को इंसीडेंस था । मैं पढ़ाई का बहाना बनाकर इंदौर के लिए निकल गया । वहां मेरे पापा के दोस्त शर्मा अंकल रहते थे पापा ने मुझे उनके पास रूकने के लिए कहा । जब मैं वहां गया तो मुझे आप मिल गई । मैं तो उस दिन खुशी से नाच रहा था । फिर ख्याल आया कि आप तो मुझे जानती भी नहीं हैं । ये सोचकर मैं थोड़ा उदास हो गया पर मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी । फिर मैंने एक दिन आपको खिड़की से झांकते हुए देखा । मैं रोज़ आप पे गौर करने लगा , और कुछ दिनों तक ओबेजर्व करने के बाद पता चला कि आप भी शायद मुझे पसंद करतीं हैं ।
ऐसा नहीं है कि मैं आपको नहीं देखता था पर जब आप पढ़ती रहतीं थीं या कुछ काम करती तब देखता था । ताकि आपको पता ना चले । और फिर वो विनोद वाला वाकया हो गया और मुझे आपसे बात करने का मौका मिल गया ।

मैं तो बस मुंह खोले उन्हें देख रही थी आपने कभी कुछ कहा क्यों नहीं?

शौर्य - बस ऐसे ही नहीं कहा । और जब कहने वाला था तब ट्रेनिंग के लिए बुलावा आ गया । इतना कहकर वो चुप हो गए ।
मैं उनकी तरफ़ देख रही थी और सोच रही थी कितना प्यार करतें हैं मुझसे ।

मैं सोच ही रही थी कि वो आए और मुझे पीछे से पकड़ कर बोले - वैसे मैंने तो आपसे उसी दिन आपसे अपनी दिल की बात कह दी पर आपने अब तक मुझे अपने दिल की बात नहीं बताई ।

मैं टालते हुए बोली - मुझे नींद आ रही है । इतना कहकर मैं जा ही रही थी कि उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी तरफ़ खींचते हुए कहा - आज आप नहीं बच सकतीं ।

मैंने उनके पास जाकर कहा - आंखे बंद करिए ।

शौर्य - क्यों ?

मैं - करिए तो ।
उन्होंने अपनी आंखे बंद की तो मैं उनके पास गई और उनके कान पास जाकर कहा - आई लव यू पड़ोसी जी ।

उन्होंने आंखे खोलते हुए कहा - पड़ोसी जी ?

मैं - हां आपने पड़ोसन नहीं देखी है क्या ? पता है मैं न जब जब आपको देखती थी एक ही गाना याद आता था ।

शौर्य - और वो गानाकौन सा है?

मैं - " मेरे सामने वाली खिड़की में
एक चांद का टुकड़ा रहता है "
इतना गाकर मैंने उनकी तरफ़ देखा और आई विंक कर दी। शौर्य ने हंसते हुए मुझे सीने से लगा लिया मैंने भी उन्हें कस कर पकड़ लिया । और हम दोनों हमारे सामने वाली खिड़की को देखने लगे ।

ये मेरी कहानी का अंत नहीं ये तो मेरी खूबसूरत जिंदगी की शुरुआत है जिसमें मैं हूं शौर्य हैं और ढेर सारी खुशियां है ।
समाप्त ।








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