हारा हुआ आदमी (अंतिम किश्त) Kishanlal Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हारा हुआ आदमी (अंतिम किश्त)

निशा की खामोशी ने देवेन को झकझोर दिया।वह राहुल के साथ चली गयी थी।काफी देर बाद लौटी थी।उसको देखकर न देवेन की न ही माया की हिम्मत हुई थी कि उस से बात कर सके।निशा की खामोशी से देवेन समझ गया था कि यह तूफान आने का संकेत है।
वहा से आते ही निशा अपने कपड़े जमाने लगी।उसे कपड़े जमाते देखकर देवेन की तो उससे कुछ पूछने की हिम्मत नही हुई।जैसे तैसे साहस कर कर माया उसके पास जाकर बोली,"यह क्या कर रही हो बेटी?"
"बेटी?"व्यंग्य से विद्रूप सा मुँह बनाकर निशा बोली,"बेटी नही सौतन कहो।"
"तुम गलत समझ रही हो।"
"आंखों से देख लिया वो सब गलत था।"
"भूल हो गयी।"
"न जाने कब से यह भूल कर रहे हो तुम दोनों।बार बार देवेन कितनी खुशी खुशी आगरा आता था।वह इस भूल को ही दोहराने के लिए आता था।"
"ऐसी बात नही है बेटी।"
"मुझे बेटी मत कहो।माँ होकर सौतन बनने का काम किया है।इतनी ही वासना की भूखी थी तो दूसरी शादी कर लेती।मैंने तो नही रोका था।"और निशा गुस्से में न जाने क्या क्या बके जा रही थी।माया निशा से उम्र में बड़ी जरूर थी लेकिन बहुत ज्यादा भी नही।फिर भी निशा ने हमेशा उसे माँ ही माना था।वो ही सम्मान अपनी सौतेली माँ को दिया जितना सम्मान वह अपनी सगी माँ को देती।लेकिन आज मां की करतूत,गन्दी,घिनोनी हरकत अपनी आंखों से देखकर।माँ की छवि भरभरा कर टूट गयी।जिसे वह अब तक देवी समझती थी।आज दुष्ट नज़र आ रही थी।
और निशा नही मानी उसने सूटकेस उठाया और राहुल को लेकर चल पड़ी।देवेन को चुपचाप उसके पीछे पीछे आना पड़ा।आगरा से दिल्ली लौटते समय निशा रास्ते मे कुछ नही बोली थी।एक दो बार देवेन ने कुछ कहने की कोशिश की लेकिन निशा ने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया था।
और वे दिल्ली वापस लौट आये थे।निशा ने जो खामोशी आगरा में ओढ़ी वो यहां आकर भी नही टूटी थी।उनके दाम्पत्य संबंधो में खिंचाव आ गया था।दाम्पत्य जीवन मे दरार पड़ गयी थी।एक घर मे एक छत के नीचे रहते हुए भी वे एक दूसरे के लिए अजनबी बन गए थे।
देवेन हंसमुख स्वभाव का दिलखुश इंसान था।वह पत्नी से हंसी मजाक छेड़छाड़ करता रहता था।निशा भी कुछ कम नही थी।लेकिन निशा के बदले व्यवहार ने उसे सहमा दिया था।देवेन ने अपराध किया था और पकड़ा भी गया था।इसलिए उसमे इतना नैतिक साहस नही रहा था कि वह अपनी तरफ से पहल करके पत्नी से माफी मांग सके।
निशा के मौन ,खामोशी,चुप्पी और भाव भंगिमा और मुद्रा ने देवेन को गहरे सोच और उलझन में डाल दिया था।देवेन की समझ मे नही आ रहा था कि सब कुछ अपनी आंखों से देखकर भी वह चुप क्यों है?वह कुछ बोलती क्यो नही?उससे कुछ कहती क्यो नही?काफी सोच विचार के बाद भी वह कुछ समझ नही पा रहा था।अनुमान नही लगा पा रहा था।
एक शाम को जब वह बैंक से लौटा तो निशा नही मिली।उसका पत्र मिला था।पत्र में लिखा था,"तुम्हे पत्नी की नही एक अदद नारी शरीर चाहिए।जो माँ का मिल गया है।
और निशा,राहुल को साथ लेकर उसकी जिंदगी से चली गयी थी।