क्या वो एक वेश्या थी ? (भाग-2) Shiv Shanker Gahlot द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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क्या वो एक वेश्या थी ? (भाग-2)

वक्त गुजरता गया । सरीन का नवीन और शांति के साथ मिलना जुलना जारी रहा । नवीन भूला नहीं था कि कैसे सुरीन ने उसे पिलाकर आउट कर दिया था । एक दिन सरीन ने शहर के बाहर बने अपने फार्म हाउस मे नवीन और शांति दोनों को बुलाया । दरअसल देहरादून से एक नौजवान लड़की आयी हुई थी जो शांति के दोस्त नरेश काला के पास ठहरी हुई थी । नरेश का रंग काला था तो उसके नाम के साथ काला सरनेम की तरह जुड़ गया था । नरेश काला उससे धंधा करा रहा था । काला ने ही शांति से कहा था कि वो दो चार पैसे वाले लोगों से मिलवा दे ताकि कुछ पैसे बनाये जा सकें । शांति ने काला को सरीन से मिलवा दिया । सरीन को लड़की बाजी का शौक था ये शांति जानता था और पैसे वाला तो वो था ही । सरीन ने उस लड़की को अपने फार्म हाउस पर बुलवाया और साथ मे शांति को कहा कि नवीन को भी लेकर वहां आ जाये । शांति ने नवीन को सारी बातें विस्तार बतायीं और शाम को दोनों फार्महाउस पर पहुंचे ।


फार्म हाउस में ड्राइंगरूम और बैडरूम थे और दोनों अन्दर बने दरवाजे से जुड़े थे । ड्राइंगरूम मे नवीन, शांति और सरीन सबने मिलकर दारू पीना शुरु कर दिया । काला पीता नहीं था । बगल के बैडरूम मे निशा को बैठा दिया गया। था । यही नाम था उस लड़की का । ड्राइंगरूम मे कार्पेट, बैड, टेबल और कुर्सियां सजी हुई थीं । बारी बारी से सरीन और शांति निशा के कमरे मे गये । सरीन लड़कियों से प्यार से बातें करता था । तरह-तरह से खेलना उसका शौक था । अत्यधिक शराब पीने और जी भरकर नॉन-वेज खाने से उसका शरीर भारी और चेहरा ऑयली हो गया था । निशा के वजन से दुगना उसका वजन होगा । सैक्स करते हुए निशा को भारी पड़ रहा था जिसे वो काम समझकर बर्दाश्त कर रही थी । सरीन निबटकर वापस आया तो शांति चला गया । वो दुबला पतला था । उसने निशा को ज्यादा कुछ परेशान नहीं किया और निशा ने भी सरीन के बाद राहत महसूस की । नवीन की बारी आयी तो वो भी कमरे मे पहुंचा । कमरे मे खासा अंधेरा सा था और एक ज़ीरो वाट की रोशनी वाला बल्ब ही जला हुआ था । ऐसे मे निशा की शक्ल भी ढंग से नज़र नहीं आ रही थी । नवीन ने कपड़े उतारे और निशा के साथ लेट कर उससे बातें करने लगा ।


“आपका नाम क्या है? “ - नवीन ने पूछा ।


“लिली “ - कहकर वो चुप हो गयी । वो देखने मे खूबसूरत थी । उसका रंग साफ था और नैन नक्श से पता चलता था कि कहीं पहाड़ की रहने वाली थी । परन्तु उसके चेहरे पर उदासी के भाव थे । नवीन को अच्छा नहीं लगा ।


“मुझे मालूम है कि आपका नाम लिली नहीं है ।” - नवीन कुछ मुस्कुराते हुए बोला ।


“नहीं! मेरा नाम लिली ही है । आप कैसे कहते हो कि ये मेरा नाम नहीं है ।” - उसने कहा ।


“आप शक्ल से और कद काठी से पहाड़ी लगती हो । और पहाड़ी लड़कियों के ऐसे नाम नहीं होते ।” - नवीन ने उसके दोनों गालों पर हाथ रखकर उन्हें दबाया और अपना चेहरा उसके चेहरे के पास लाकर मुस्कुराते हुए कहा ।


उसके चेहरे से उदासी के भाव कुछ कम हो गये और वो सहज होकर मुस्कुराने लगी थी ।


वो देर तक बातें करते रहे । वो देहरादून की रहने वाली थी और इन्टरमीडीयेट कॉलेज पूरा कर चुकी थी । हां वो पहाड़ी थी और उसका गांव देहरादून से ऊपर पहाड़ी पर का ।


“अच्छा फिर मिलोगी?” - नवीन ने पूछा ।


“आप बुलाओगे तो जरूर मिलूंगी ।” - वो बोली ।


नवीन और मधु दोनों रतिक्रीड़ा मे लीन हो गये । बातचीत से सहज होकर मधु और नवीन दोनों एक दूसरे से संसर्ग मे आनन्द उठा रहे थे । बाद में नवीन ने मधु को अपने ऑफिस का एड्रैस लिखकर दिया और चुपचाप मुट्ठी मे बन्द कर उसे नोट भी दिये हालांकि सबके पैसे सरीन ने ही देने थे । ये नवीन की तरफ से तोहफे के रूप में थे । उसने अगली बार अकेले मिलने का वादा पक्का कर लिया ।


दो तीन दिन बाद ही मधु नवीन के ऑफिस आ गयी । वो सभ्य सुसंस्कृत पढ़ी लिखी थी । इसके अलावा वो जीन्स और टॉप पहन कर अाधुनिक लगती थी । उसका कद भी ठीक ठाक था और सुन्दर तो वो थी ही । उसके बाल बॉब कट थे और यौवन उसके चेहरे से टपकता था । बालों ने साइड मे आधा कानों को ढका हुआ था । उसने कानों मे सोने के छोटे छोटे से वायर के कुंडल डाले हुए थे जो उसके लुक को सुन्दर बना रहे थे । वो कहीं से भी धंधे वाली नहीं लगती थी । निशा नवीन के ऑफिस मे बैठी रही जैसे नॉर्मली कोई मेहमान हो । नवीन लेशमात्र भी असहज नहीं था । नवीन के दिल मे निशा के लिये सम्मान का भाव था जैसा कि एक महिला के प्रति होना चाहिये । धंधे मे उसे लोग तरह तरह की बातें करके बेइज्जत करते थे । वो अभी इस बेइज्जती से अभ्यस्त नहीं हुई थी । वैसे भी लड़कियां जब तरह तरह के सम्बोधनों और बेइज्जत सूचक शब्दों की आदि हो जाती हैं तो वो भी मर्दों की बेइज्जती करने मे पीछे नहीं रहती । कोठों पर जाने वाले मर्दों से पूछो तो पता चलेगा वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाएं किस तरह मर्दों को जरा सा भी सम्मान से नहीं देती । महिलाओं के सानिध्य और यौन जरूरतों को पूरा करने कोठों पर जाने से पहले लोगों को अपनी इज्जत का टोकरा नीचे ही छोड़कर जाना पड़ता है । निशा एक सामान्य लड़की थी जो इन सबसे अछूती थी । नवीन ने जो उसे सम्मान और प्यार दिया था उससे वो खासी खुश थी । उसे जितने भी लोग महानगर मे मिले थे किसी ने उसे सम्मान देना तो दूर सामान्य महिला भी नहीं समझा । वो उसे महज़ एक सुन्दर शरीर की मालिक समझते जिसे पैसे देकर खरीद लिया गया है ।


निशा हर दूसरे तीसरे दिन नवीन दत्ता के ऑफिस पहुंच जाती और देर तक बैठी रहती । कुछ इधर उधर की गप शप चलती रहती । एक बार तो लंच करने के बाद जब नवीन पास की सड़क पर टहल रहा था तब निशा आती दिखाई दी । वो नवीन से मिलने ही आ रही थी । पास आते ही दौड़ कर बांह पकड़ कर झूल गयी जैसे बच्ची बाप के गले में झूल जाती है ।