🌹ऐसा क्यों होता है इसके पीछे कोई वैज्ञानिक या आध्यात्मिक आधार है या कोई स्वास्थ्य से जुड़ी कोई बात है जानते इस लेख मे -
विवाह - विवाह संस्कार प्रायः सभी समुदायों में होता है सनातन धर्म में भी कई रस्मों के साथ सम्पन्न होता है भारतवर्ष में विवाह से पूर्व होने वाली कई रस्में हैं जो सभी जगह पर कुछ भिन्नता के साथ करवाई जाती है जो सांस्कृतिक रूप से हिन्दु विवाह में एक रिवाज के रूप में सब जगह पर प्रचलित हैं आज हम हल्दी रस्म के बारें में चर्चा करेंगे ।
🌹हल्दी रस्म- विवाह से सात दिन पूर्व, पांच दिन पूर्व, या तीन दिन पूर्व शुरू होती है । यह रस्म वर एवं वधू की राशि के अनुसार सात दिन पांच दिन या तीन दिन की होती है । यह रस्म वर वधू दोनों को अपने अपने गृह स्थान पर करनी होती है ।
🌹सुहागिन स्त्रियों का रहता है इसमें काम - इसमें सुहागिन स्त्रियां अपने पति के साथ भाग लेती हैं इसमे सात या पांच स्त्रियां पांवों से सिर तक हरी दूब या कुशा से तैल हल्दी लगाती हैं यह सब चक्की ऊंखल मूसल व सूपा के सामने होता है । आजकल कृत्रिम सूपा ऊंखल मूसल ले लिए जाते हैं । पहले दिन को हल्दी का चढाना व आखिरी दिन हल्दी की उतराई होती है इसमें चढ़ते क्रम में पांव से सिर तक तैल हल्दी लगाई जाती है आखिरी दिन सिर से पांव की तरफ उतरते क्रम मे हल्दी लगाई जाती है । इस प्रक्रिया मे क्षेत्र विशेष से कुछ अन्तर आ सकता है किन्तु किसी न किसी रूप में हल्दी रस्म होती है ।
🌹वैज्ञानिक आधार- विवाह में यह रस्म क्यों होती है यदि हम हल्दी और तैल पर विचार करें तो यह रसोई में पायी जाने वाली वस्तु है जिसे खाने मे स्तेमाल किया जाता है इससे खाना टेस्टी बन जाता है । किन्तु खाने की वस्तु का विवाह की रस्म में स्तेमाल होना इसके पीछे क्या हो सकता है ? इसे आयुर्वेद की दृष्टि से देखे तो हल्दी का सेवन स्वास्थ्य वर्धक है और इसे त्वचा पर लगाते हैं तो यह त्वचा के विषाणुओं को खत्म करती है और त्वचा में निखार लाती है साथ ही स्पर्शादि से विषाणु व रोगाणुओं से सुरक्षित रखती है । इस तथ्य के आधार से भी इसका उपयोग होना स्वास्थ्य वर्धक समझा जा सकता है ।
🌹हल्दी ही क्यों ? इस तरह का लाभ तो अन्य जड़ी बूंटी से भी हो सकता है सौन्दर्य प्रसादन के लिए अन्य औषधियां ली जा सकती है । सेमल के कांटो को दूध मे घिसकर उबटन करने से तीन दिन में ही त्वचा कान्तिवान व चेहरे की छांया गायब हो जाती है । लोध बच धनिया के चूर्ण को पानी के साथ लगाने से सात दिन में झांई गायब और मुख चंद्रमा के समान दमक उठता है । अतः इस तरह के बहुत नुस्खे आयुर्वेद मे मिल जायेंगे किन्तु हल्दी का उपयोग सिर्फ इसके लिए ही नही होता हल्दी रस्म इस लिए भी की जाती है क्योंकि यह नकारात्मक ऊर्जा को भी रोकती है शरीर से निकलने वाली ओरा को खंडित होने से बचाती है । दंपति अपना दांपत्य जीवन शुरू करते हैं तो इनके आपसी मेल से विषाणु के हमले से सुरक्षा के साथ साथ दो आपसी ओराओं के मिलन मे सामंजस्य बिठाती है । तैल वात शामक है इसमें एक प्रभाव और होता है यह भी ओरा मे सामंजस्य बिठाता है विचारो भावनाओं के दुष्प्रभाव को सोख लेता है । इस लिए पीड़ा निवारण मे तैल मे मुख दिखाकर उसे दान किया जाता है ।
अतः हल्दी रस्म जो आज के दौर मे खत्म होती जा रही है इसे प्रतीक रूप में करने लगे हैं संभवतः दांपत्य जीवन मे तालमेल न बन पाना ओरा का विखंडन ही हो ।
क्रमशः -- ऐसा क्यों आगे नये विषय के साथ