आंसू सूख गए - 2 LM Sharma द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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आंसू सूख गए - 2

जीवन का अंत सुखद होना चाहिए, यदि जीवन का अंत सुखद नहीं है तो वह अन्त नहीं है । । जीवन में बहुत सारी त्रासदी होती हैं परंतु दूसरी तरफ यह भी सत्य है कि जीवन में प्रसन्नता का भी कोई अभाव नहीं है। जीवन त्रासदी तथा प्रसन्नता दोनों का मिश्रण है। आपकी किस्मत में जो है वह मिल जाएगा। मेरा जीवन भी एक त्रासदी से भरा हुआ था।
मैं एक गरीब परिवार में पैदा हुआ , जहां पर हर प्रकार की गरीबी थी। गरीबी इतनी थी कि दो समय की रोटी जुटाना भी कठिन था ।
परिवार में चार बहन भाई थे। पिता की कोई नियमित आय नहीं थी । वह छोटा मोटा काम कर लिया करते थे । परंतु इससे परिवार का पालन पोषण नहीं होता था । कभी-कभी हम सबको भूखा सोना पड़ता था। यह एक प्रकार से जीवन का अंग बन चुका था। कभी-कभी मां हमारा ध्यान भटकाने के लिए चूल्हे पर कुछ रख दिया करती थी और कहती थी कि आलू उबल रहे हैं , इसी आशा में हम सो जाया करते थे । सत्य यह था कि आलू कभी उबले ही नहीं। घर में उबालने के लिए कुछ था ही नहीं। यह क़िया हम को बहलाने के लिए थी।
समय बड़ा कठिन था। उस समय गरीबी के कारण मानसिक तनाव तथा खिन्नता बहुत कम थी। खाना न मिलने के कारण घर में किसी भी प्रकार से लड़ाई झगड़ा नहीं होता था । सब भाई बहन भूख सहन कर लेते थे। घर में जो भी कुछ था उसी में प्रसन्न रहते थे। समय ही कुछ ऐसा था कि जीवन की आवश्यकताएं बहुत कम थी । इसलिए प्रसन्नता अधिक थी । यह गरीबों की प्रसन्नता थी । मन लाग्यो मेरो यार फकीरी में।
जिस भौगोलिक क्षेत्र में हम रहते थे वह अफीम की कृषि के लिए प्रसिद्ध था । अधिकांश लोग अफीम का नशा करते थे। उन नशा करने वाले व्यक्तियों में मेरे पिता भी शामिल थे। वे अफीम का नशा कभी कभी कर लिया करते थे।
हमारा अपना कोई मकान नहीं था और किराए के मकान में ही रहते थे । मकान का किराया केवल 25 पैसे प्रति माह था परंतु पिता यह 25 पैसे भी किराए के रूप में नहीं दे पाते थे। किराया न देने के कारण मकान मालिक हमारी गृहस्थी की छोटी-छोटी वस्तुओं को सड़क पर फेंक दिया करता था। हम बहन भाई मिलकर घर की छोटी-छोटी वस्तुओं को सड़क से एकत्र कर लिया करते थे। ऐसे समय में हम केवल एक मूक दर्शक बन कर रह जाते थे । क्योंकि हमारे करने के लिए कुछ था ही नहीं। हम छोटे छोटे भाई बहनों को देखकर किसी को भी तरस या रोना नहीं आता था। रोड पर चलने वाले हमको देख कर चले जाते थे। यह भी हमारे जीवन का एक अंग बन चुका था । एक बार की घटना मुझे अच्छी तरह याद है कि किराऐ पर घर न मिलने के कारण एक अस्तबल में रहना पड़ा । वहां बदबू और गंदगी अत्यधिक थी परंतु क्या किया जाए । रहना हमारी विवशता थी । मनुष्य और जानवर कुछ समय के लिए मित्र बनकर रहे ।
जीवन के ये उतार-चढ़ाव मेरे मस्तिष्क पटल पर गहरा प्रभाव छोड़ गए । मैंने देखा कि इसका मुख्य कारण मेरे पिताजी की नियमित आय ना होना था । पैसे के अभाव में तथा अफीम के नशा से पिताजी की आत्मशक्ति कम हो गई थी, उनका आत्मविश्वास मर चुका था । इसी के कारण मेरे प्रिय पिता कुछ अधिक करने में सक्षम नहीं थे ।
समय बीत ता गया ।
एक दिन घर में कुछ ऐसा घटित हुआ जिसकी कल्पना से भी आज मेरी रूह कांप जाती है।। हमारे घर बहुत दूर का एक रिश्तेदार हमसे मिलने आया। हमने उसे कभी नहीं देखा था । वह परिवार के लिए एक नया चेहरा था। परंतु पिता उससे भली-भाति‌ परिचित थे। यह अपरिचित व्यक्ति एक बहुत ही विचित्र प्रकार का प्रस्ताव लेकर आया। जिस प्रकार के प्रस्ताव की परिवार को कभी उम्मीद ही नहीं थी।यह अपरिचित व्यक्ति हमारी आर्थिक व्यवस्था से भलीभांति परिचित था । उसने कहा कि वह अपने एक बच्चे को दूर के रिश्तेदार के यहां गोद दे दें। गोद देना तो एक बहाना था वास्तव में वह चाहता था कि वे अपने एक बच्चे को दूर के रिश्तेदार को विक्री कर दें । इस अपरिचित व्यक्ति ने पिता से कहा कि जहां आपका बालक जाएगा वह एक बहुत ही अमीर और धनाढ्य परिवार है और उनसे आपको अच्छी रकम मिल जाएगी । जहां पर पैसे की बात आई वहां पर पिता की बुद्धि घूम गई और उन्होंने मन ही मन मुझे बिक्री करने का मन बना लिया । इस अपरिचित व्यक्ति ने कहा कि उनके यहां कोई संतान नहीं है।
परिवार की गरीबी को देखते हुए मेरे पिता ने कहा कि वह उसके प्रस्ताव पर चिंतन करेंगे। पूरी रात भर मेरे पिता ने प्रस्ताव के अच्छे और बुरे पहलुओं पर अपने आप मंथन कर लिया। पिता का ध्यान पैसे पर अधिक और बच्चे के लाड प्यार पर कम । इस निर्णय में मेरी मां से कोई सहमति नहीं दी गई थी । वह केवल परिवार के लिए खाना बनाने तक ही सीमित थी। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे पिता ने मेरी मां को कभी भी इस प्रस्ताव में भागीदार नहीं बनाया। दो तीन बार चर्चा करने के पश्चात पिता ने यह निर्णय लिया कि वह अपने एक बच्चे को बिक्री कर देंगे। पिता ने अपने दूसरे नंबर के पुत्र को बिक्री करने का निर्णय ले लिया। दूसरे नंबर का पुत्र मैं ही था। उस समय मेरी आयु मात्र 5 वर्ष की थी अंततः चर्चा समाप्त हो गई और पैसे पर एक राय बन गई।
विक्रय पत्र या गोदनामा बनाया गया। यह गोदनामा मेरे पिता और मेरे नवीन पिता के बीच में बनाया गया। नवीन पिता के स्थान पर नवीन मालिक कहना अधिक उचित रहेगा । दूसरे शब्दों में कहें तो यह एक प्रकार से मानव की बिक्री है। यह सब गुप्त पत्रों तथा कानूनी भाषा में लिखा गया । इस प्रकरण का मुझे मेरे जीवन की तीसरी अवस्था में ज्ञात हुआ‌‌। ‌‌‌‌‌‌‌तब तक मेरे आंसू सूख गए थे ।
अंततः एक दिन वह आया कि मैं अपने पिता के साथ तथा उस अपरिचित व्यक्ति के साथ रेलवे स्टेशन की ओर जाने के लिए बाध्य हो गया । उस समय मेरी मां भी मेरे साथ थी । गर्मी का मौसम था लू चल रही थी तथा मेरी मां ने मेरा हाथ पकड़ा हुआ था, उसने मुझे अपनी साड़ी के पल्लू से ढका हुआ था । स्टेशन की ओर जाते समय मां मुझे बार-बार प्यार करती जाती। आंसुओं के कारण उसके वस्त्र भीग गए थे । रास्ते में चलते चलते कई बार मेरी मां ने मुझे अपनी गोदी में लिया और फिर मुझे प्यार करने लगी । अपनी छाती से चिपका कर वह और रोने लगती थी । ‌‌ आज जब मैं इस कथा को लिख रहा हूं तो मेरे भी आंसू बह रहे हैं। यह आखिरी समय था जब मैं अपनी मां की गोदी का आनंद ले रहा था । उसके पश्चात मुझे याद नहीं की मैं कभी दोबारा अपनी मां की गोदी में बैठा। चलते चलते मेरी मां रोती जाती जैसे-जैसे रेलवे स्टेशन समीप आता तो उसके आंसुओं की धारा और बढ़ जाती । आखिर वह मेरी मां थी केवल मेरी मां मेरी प्यारी मां जिसने मुझे 9 महीने पेट में रखा और 5 साल तक मेरी परवरिश की । मैं उसे कैसे भुला सकता था ,परंतु नियति को कुछ और ही मंजूर था।
चलते चलते रेलवे स्टेशन भी आ गया और हम प्लेटफार पर पहुंच गए । हम मुश्किल से प्लेटफार्म पर बैठे ही थे कि ट्रेन भी स्टशन आ पहुंची । यह वह ट्रेन थी जिसमें मुझे जीवन की अगली याात्र तय करनी थी।। अब मेरी मां को ज्ञात हो गया था कि मेरे पिता ने मेरा सौदा कर दिया है । परंतु वह कुछ नहीं कर सकती थी। उसके लिए गरीबी एक बहुत बड़ा अभिशाप था और इसी के कारण उसे अपने एक पुत्र को बिक्री करना पड़ा ।
हम सब ट्रेन में बैठे गये और ट्रेन ने चलना शुरू कर दिया । जैसे-जैसे ट्रेन चलती वैसे वैसे मेरी मां भी साथ चलती परंतु ट्रेन ने गति पकड़ी और मां जल्दी ही मेरी आंखों से ओझल हो गई। मां को दूर देखकर मैं अंदर ही अंदर रोने लगा । कभी मैं पापा के पास जाता तो कभी अकेला बैठ जाता। मुझे ज्ञात नहीं की मां ने घर लौटने पर कुछ खाया होगा या नहीं परंतु यह सत्य है कि वह रात भर मेरे बारे में सोच कर रोई अवश्य होगी । मेरी मां मेरी प्यारी मां ।
मेरी मन की गहराइयों में एक अनोखा भंवर चल रहा था । मुझे ऐसा लग रहा था कि मुझे बलपूर्वक अपनी मां से अलग किया गया है । मां की अनुपस्थिति में मैं अपने में एक अजीब प्रकार का खालीपन महसूस कर रहा था। 20 घंटे चलने के पश्चात मैं अपने नए घर पर आ गया जहां पर केवल 3 प्राणी थे, एक मेरे नवीन माता-पिता तथा एक मेरी नवीन दादी उसके अलावा इतने बड़े घर में कोई नहीं था । यह मेरे जीवन के अंत तक का नया घर था ‌‌ मुझे अब यही रहना था ।
मेरे पिता मेरी किस्मत के रचयिता बने। मेरे साथ मेरे पिता तो थे ही परंतु मेरा छोटा भाई भी आया था। उस को देखकर मैं प्रसन्न हो जाता था परंतु यह प्रसन्नता केवल दो रात तक ही रही। निश्चित मूल राशि मिल जाने के पश्चात मेरे पिता मुझे छोड़कर ऐसे निकले जैसे गौतम बुद्ध अपनी पत्नी तथा बच्चे को छोड़कर मध्य रात्रि में चले गए थे । पिता तथा भाई को घर में ना देख कर मैं रोने लगा। थोड़ी देर तक तो मेरे आंसू निकले परंतु उसके पश्चात दिल कठोर हो गया और आंसू सूख गए, आखिर में कब तक रोता।
अब मैं अपरिचित लोगों के बीच में था घर बहुत बड़ा था । घर में तीन प्राणी थे मुझे मिलाकर अब 4 हो गए । मेरे नवीन माता पित तो अच्छे थे परंतु
मेरी दादी सबसे अच्छी थी वह मुझसे बहुत प्यार करती थी । उसके प्यार के कारण मैं घर में बना रहा । वह रोजाना मेरे लिए बाजार से कुछ न कुछ लाती ।ऐसा लगता कि वह मेरे पूर्व जन्म में भी मेरी दादी रही होगी। उसके प्यार ने मुझे जल्दी ही घर का एक अभिन्न अंग बना लिया । अब मैं अपने को अजनबी नहीं मानता था । संभवत मेरी मां मुझे इतना प्यार नहीं करती थी जितना मेरी दादी करती थी ।
मेरी दादी मां जल्दी ही भगवान को प्यारी हो गई उनके जाने के बाद मेरे जीवन ने नया मोड़ लिया। दादी के पश्चात मेरे जीवन में फिर से एक खालीपन आया। मुझे मेरी नई मां से इतना प्यार नहीं मिला जितना मुझे दादी से मिला था। मां ने मुझे घर से दूर एक कमरे में स्थान दे दिया यहां पर खाना बनाने के लिए एक महाराज थे । परंतु शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं थी। शौचालय के लिए मुझे कम से कम आधा किलोमीटर दूर जाना पड़ता था । यह वह समय था जब ऊपरवाला मेरे धैर्य की परीक्षा ले रहा था। मैंने यह समय भगवान का नाम लेते लेते व्यतीत कर दिया ।
मुझे ईश्वर में बहुत गहरा विश्वास था या यूं कहे कि अधिक विश्वास था । यह वह समय था जब मुझे ज्ञात हुआ कि मुझे मेरे पिता द्वारा इस घर में बिक्री कर दिया गया है परंतु अब इस बात का मेरे ऊपर कोई गहरा प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि अब मेरी परेशानी सुनने वाला कोई नहीं था।
जीवन ने फिर एक बार मोड़ लिया और मेरे पिता ने मुझे देश के बहुत बड़े तथा प्रसिद्ध पब्लिक स्कूल में भर्ती करवा दिया गया । मैं जिस स्कूल में भर्ती हुआ था उसमें देश के अमीर तथा कुलीन घराने के बच्चे पढ़ते थे । मैं भी उनमें से एक भाग्यशाली था।
समय बीतने के साथ मैं पढ़ता गया और मैंने हायर सेकेडरी की परीक्षा फर्स्ट डिवीजन से पास कर ली । घर में लौटते समय मेरा बहुत गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया । अब मैं 18 वर्ष का हो चुका था और यह वह आयु थी जहां पर बच्चों की शादी हो जाती थी । मेरे पिता ने भी मेरे लिए एक संस्कार तथा रूपवती कन्या से मेरी शादी कर दी।
इंग्लिश में कहते हैं कि जिसका अंत शुभ हो वह सब शुभ ही होता है ।जीवन के अनेक उतार-चढ़ाव से निकलकर आज मैं एक सफल उद्योगपति बन गया हूं और अपने बिजनेस में बहुत अच्छा कर रहा हूं यह मेरी जीवन की सबसे बड़ी सफलता है और आज मैं बहुत प्रसन्न हूं।
L.M Sharma