मेरी लेखन यात्रा (भाग 4) Kishanlal Sharma द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मेरी लेखन यात्रा (भाग 4)

लाल निशान (भरतपुर,)फतेहपुर सन्देश,जेलस टाइम्स,नीरज ज्योति, उत्तर उजाला,दिशा नरेश,स्वराज टाइम्स,अजीत समाचार,नवल,जाह्नवी,राष्ट्रधर्म,पंजाब सौरभ,मित्र संगम,जगमग दीप ज्योति,साहित्य जनमंच,गगनांचल
नन्हे सम्राट,कत्यूरी मानसरोवर,केरल ज्योति,मैसूर हिंदी प्रचार परिषद पत्रिका,बाल प्रहरी,सुमन सागर,कथासमय, हरिगन्धा,साक्षात्कार,अदबी माला, अदब नामा,साहित्य भारती, अहा जिंदगी,
एक लंबी लिस्ट है।सन 1978 से लगातार बिना रुके लेखन कार्य जारी है।
शुरू में जब लेखन की शुरुआत हुई तब मेरी 8 घण्टे की ड्यूटी रहती थी।शिफ्ट ड्यूटी बदलती रहती थी।कभी सुबह की शिफ्ट,कभी दोपहर और कभी रात।कोई भी शिफ्ट हो।मैं लिखता जरूर था।
उन दिनों देश प्रदेश की पत्रिको में लेखन के साथ करीब 2 दशक तक बसन्त प्रकाशन के लिए भी लिखा।उसका कोई रिकॉर्ड नही रखा।हॉ वहा से पारिश्रमिक बराबर मिलता था।बाद में जैन साहिब के मना करने पर लिखना उसके लिए बन्द कर दिया।
बाल लेखन भी कुछ किया।बाल कहानिया
अमर उजाला, नन्हे सम्राट,लोटपोट,दैनिक नवज्योति,हंसती दुनिया,बाल प्रहरी,देवपुत्र,पंजाब सौरभ आदि में छपी।
यहां मैं पहले भी अपने कुछ मित्रों का जिक्र कर चुका हूँ।एक बार फिर
जय प्रकाश चंद।जैसा उसने स्वंय मुझे बताया था।चन्द्र नाम उसने यादवेंद्र शर्मा चन्द्र से प्रभावित होकर लगाया था।
सांवला रंग,मंझला कद,पेंट शर्ट और उस पर लाल रंग की टाई और हाथ मे ब्रीफकेस।एम ए होने और रिज़र्व क्लास के होने के बावजूद नौकरी नही मिली थी।और प्राइवेट नौकरी एक कालीन बनाने की छोटी सी इकाई में काम कर रहा था।वहां उसके साथ विधा नाम की लड़की भी काम करती थी।जिस पर उसने एक उपन्यास भी लिखा था।उसकी एक खासियत थी।वह किसी भी कहानी को रफ नही लिखता था।सीधे फेयर ही लिखता था।
वह जब भी मेरे पास आता कोई न कोई प्लाट पर डिसकस जरूर करता।मेरा 1983 में भरतपुर ट्रांसफर हो गया तब एक साल तक सम्पर्क टूट गया।फिर 1996 में भी ऐसा ही हुआ।2000 में मैं सवाई माधोपुर चला गया।और वहां से शामगढ़।फिर 2002 में वापस आगरा आया।बाद में वह बसन्त प्रकाशन में काम करने लगा था।यहां पर ज्यादा वेतन नही मिलता था।इसलिए वह 2 या 3 कहानी रोज इसी प्रकाशन के लिये लिखता था।
उसके साथ मेरी कहानिया फिल्मी दुनिया,सच्चे किस्से,रोमांटिक दुनिया आदि में छपी।मेरी ड्यूटी आगरा फोर्ट पर थी।वह शाम को अछनेरा लौटता तब मेरे पास आकर बैठता था।हमारे बीच साहित्यिक चर्चा ही ज्यादा होती थी।आर्थिक सिथति सही नही थी।लेकिन स्वभाविमानी था।एम ए तक पढ़ा होने और जाति के कारण नोकरी मिलनी चाहिए थी।लेकिन भाग्य का साथ देना भी जरुरी है।,रामकुमार भृमर से उसके अच्छे सम्बन्ध थे और वह दिल्ली रह भी आया था।
जय प्रकाश सब विधाओं में लिखता था।कहानी,कविता, लेख।उसका एक उपन्यास भी छपा था।
गरीबी में आटा गिला।यह एक कहावत है।इसका मतलब आप समझ गए होंगे।एक तो वह वैसे ही कम पेसो में नौकरी कर रहा था।उस पर वह नौकरी छूट गयी।जिस बसंत प्रकाशन में वह काम करता था।उसके मालिक और मालकिन की हत्या हो गयी।यह हत्या केस काफी समय तक अखबार में छाया रहा।और आखिर में यह प्रकाशन बन्द ही हो गया।उसके बाद जय प्रकाश को और छोटे मोटे काम करने पड़े।और आखिर में वह बीमार पड़ गया।कई दिनों तक आगरा में अस्पताल में भर्ती भी रहा।और फिर उसे छुट्टी मिल गयी।लड़की का रिश्ता तय हो चुका था।और उसकी शादी का कन्यादान करने के बाद उसकी तबियत बिगड़ गयी।बेटी के विदा होने के बाद वह भी इस संसार को छोड़ गया