वह जो नहीं कहा समीक्षा - उठो नीलांजन समीक्षा sneh goswami द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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वह जो नहीं कहा समीक्षा - उठो नीलांजन समीक्षा

हिंदी और पंजाबी के वरिष्ठ लेखक श्री ओम प्रकाश गासो के आशीर्वचन उठो नीलांजन के लिए जो आज से दो साल पहले उनवान प्रकाशन से छपी

मधुर स्पर्श को प्रस्तुत करती रचनाएं -शुभकामना
ओम प्रकाश गासो
( अनेक पुरुस्कारों से सम्मानित वरिष्ठ लेखक एवं कवि, हिंदी और पंजाबी दोनों में समान रूप से कर्मशील एवं रचनारत . उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सम्मानित )

जीवन की कोमलता को कला की प्राकृतिक प्रभा कहा जा सकता है . प्रकृति और प्रभा को स्वोकार करने वाली स्वीकृति आनन्द को अपनाती है . आनन्द की इस प्रभा को साहित्य कहा जा सकता है . साहित्य सौन्दर्य -बोध का सूचक ही नहीं ,उसका उत्पादक भी होता है .सुन्दरता को भावना कहा जा सकता है .
सुन्दरता क्या होती है ?
• सुन्दरता सहज होती है .
• सुन्दरता स्पष्ट होती है .
• सुन्दरता मौलिक होती है .
• सुन्दरता सुरम्य होती है .
• सुन्दरता को तृप्ति कहा जा सकता है .
इस प्रकार की सौन्दर्य अनुभूति को आधार बना कर कहा जा सकता है की स्नेह गोस्वामी की कहानियों के कथन जीवन-धरा को सुरम्य बनाये रखने वाले प्रिय प्रकरण हैं .
• स्नेह गोस्वामी की आराध्य -आस्था है . कठोरता से उत्पन्न होने वाले पलों की पीड़ा का पखेरू असीम की और जाना चाहता है .
• इस सन्दर्भ की सार्थकता को निरुपित करने वाली कहानी "पिंजरा " की व्स्तुकथा समस्या और समाधान दोनों चाहती है . “पिंजरा " कहानी में पीड़ित आन्तरिकता को धीमे स्वरों में अंकुश को आराधना जैसी भाव भूमि द्वारा प्रस्तुत किया गया है .
• देखा जाए तो स्नेह गोस्वामी की कहानियों में समस्या और समाधान दोनों साथ - साथ चलते हैं . इस तरह से जब कोई पिछड़े संस्कार किसी न किसी तरह का अवरोध बन बैठते हैं तो कहानीकारा प्रयत्न और सुमेल को भी अपनी लेखन कला का हिस्सा बना लेती है इस तरह से उस की रचना में अकस्मात आनन्द का प्रवेश हो जाता है .
• स्नेह गोस्वामी उपराम -क्षणों की उपरामता को सरोकार के स्वरूप में प्रस्तुत करते समय अन्याय की निर्ममता के समक्ष पाठक को सहज भाव से लाकर खड़ा कर देती हैं अन्याय का क्रूर कर्म सुखद और दुखद तमन्ना और तासीर का अपना एक अनोखा सन्दर्भ होता है .
• स्नेह गोस्वामी इस प्रकार के सन्दर्भ को गुण और ज्ञान की सीमा रेखाओं में बड़ी सहजता से विभाजित करती हैं .
इस संग्रह में " उम्मीद "एक और खूबसूरत कहानी है .इस कहानी का वातावरण जो भी है ,वह तो है पर इस कहानी का शौर्य -पल आज के समाज का यथार्थ है .
• देखा जाए तो व्यवहारिक प्रणालियों के प्रदूष्ण को उजागर करने वाली दिव्य आँखों जैसी इन कहानियों की अपनी एक वेदना है .
• देखा जाए तो इन कहानियों का अपना एक संकट भी है . क्लेश को अंकुरित करने वाला संकट सामाजिक मूल्य बोध को कलंकित क्र जाता है . इस कारण कभी कभी चिन्तन की चिंगारी को समाज का सामना करने के लिए डटना पड़ता है .
• घरेलु बातों को परोसने का स्नेह गोस्वामी का सलीका बहुत रोचक है . उसकी रचनाओं के इस सलीके में जीवन की किसी न किसी फिसलन को पकड़ने का प्रयास है और यह प्रयास किसी न किसी असलियत को कोने से पकड़ कर किसी न किसी उद्देश्य को पाठक के सामने रूपमान कर जाता है . इस प्रकार वह परम्परा और आधुनिकता के परिपेक्ष्य के बहुत समीप बनी रहती हैं . और अक्सर इसी अपने समय बोध द्वारा वह धीरे से कला भाव की चपत भी लगा जाती हैं . इस प्रकार की चपत से आधुनिकता की जीवन शैली की चंचलता को श्रम सार होना पड़ता है .
• स्नेह गोस्वामी का इस प्रकार का कला प्रकरण उसकी कहानी " बांसुरी के स्वर " में बेहद ही उद्घोषक वाणी में मुखरित हो रहा है . इस कहानी का नायक अर्जुन जीवन में अक्षर बन कर जीना चाहता है . मगर उसकी साधना को पराजित करने वाला धोखा उसको पछाड़ कर कहाँ से कहाँ फैंक जा ता है . इस तरह के दर्द की पीड़ा के दर्द की पुकार बन कर लेखिका की कहानियों की सार्थक अनुभूति का अपना एक शिक्षा प्रद पाठ बनता है .
• मै एक पाठक के तौर पर उसके इस तरह के शिक्षाप्रद पाठ को स्वीकार करके सुन्दर , सुरमय , सुखद और सहज आनन्द लेता रहा . मेरी ओर से स्नेह लता गोस्वामी को उसकी इस पुस्तक के प्रकाशन पर मेरा विनम्र आशीर्वाद
• ओम प्रकाश गासो
• 9463561123