मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-20) सीमा बी. द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-20)

मॉटरनी का बुद्धु---(भाग-20)

हॉस्पिटल से आ कर संध्या को उसके कमरे में लिटा दिया। दिनभर की चहल पहल से वो थक गयी थी तो वो चाय पी कर सो गयी। भूपेंद्र जी हॉल में बच्चों के पास आ गए।" पापा हमें नाना नानी और चाचा बुआ को मॉम के बारे में फोन करके बता देना चाहिए न"!संभव ने भूपेंद्र जी से पूछा तो वो बोले," मैं भी यही सोच रहा था पर अभी रूक जाते हैं, वो एक लंबी नींद से जागी है तो थोड़ा उसे एडजस्ट होने दो, बातें करने लगे और थोड़ा चले फिरे, हम सबको बताएँगे तो सब भागे चले आँएगे। पता नहीं तेरी माँ सब को देख कर कैसे रिएक्ट करेगी। इन पाँच सालों में हम भी तो बदल गए हैं थोड़ा...तुम दोनो बड़े हो गए हो और मैं बूढा तभी तुम्हारी माँ हम सबको बस देखती रहती है"! "भाई पापा ठीक कह रहे हैं, पहले मॉम को Comfotable होने देते हैं, फिर सब को बता देंगे", सभ्यता को भी पापा की बात ठीक लगी।"ठीक है पापा, मैं कल शाम को वोल्वो से निकल जाऊँगा तभी परसों टाइम से ऑफिस पहुँच पाऊँगा, मैं नेक्सट वीकेंड पर आऊँगा"! "ठीक है बेटा तुम बेफिक्र हो कर जाओ,अभी तो हम दोनो फ्री हैं, तो बिना टैंशन अपना काम करो", बेटे का कंधा थपथपाते हुए उन्होंने कहा। रात का खाना खा कर बच्चे कुछ देर माँ के पास बैठ कर सारी एल्बम्स निकाल कर उन्हें दिखा रहे थे, कुछ फोटो उन दोनो के फोन में भी थी तो वो हर फोटो के पीछे की कहानी बता रहे थे और संध्या भी मजे से सुन रही थी। भूपेंद्र जी खाना खा कर बाहर कुछ देर टहल कर आए, पर बच्चे अभी भी माँ के साथ बिजी थे। संध्या को दो तकिए पीछे लगा कर बिठा दिया था। दोनो माँ के आजू बाजू बैठे अपनी बातों की मस्ती में थे, संभव और सभ्यता अब माँ के साथ सेल्फी ले रहे थे। भूपेंद्र जी ने देखा तो बोले,"मॉटरनी तो बिजी हो गयी अपने बच्चों के साथ, मुझे तो किसी ने याद भी नहीं किया"! "पापा चलो आप भी आओ एक फैमिली सेल्फी हो जाए", कह कर संभव ने चारो की फोटो ले ली। "अच्छा अब जाओ और हमें आराम करने दो", भूपेंद्र जी ने हँसते हुए कहा और दोनो जाने लगे तो भूपेंद्र जी ने याद दिलाया दिया कि," फोटो किसी के साथ शेयर मत करना"! अगली शाम संभव चला गया और जाते जाते माँ के पैर छू कर बोल कर गया कि, "मॉम जल्दी से ठीक हो जाओ, हम सब आपकी आवाज सुनने को तरस गए हैं", भूपेंद्र जी ने संध्या को हाथ उसके सिर पर रख दिया, संध्या की आँखो में आँसू आ गए थे, शायद बेटे के जाने की तकलीफ हो रही थी, वो बोलने की कोशिश कर रही थी...पर जबान साथ नहीं दे रही भूपेंद्र जी को ऐसा लग रहा था....पर उसने रूक रूक कर कहा,"God Bless You Beta", मां ने बेटे की फरमाइश पूरी कर दी और संभव तो कस कर माँ के गले से लग गया और दोनो भाई बहन और संध्या खूब रोए। भूपेंद्र जी बोले,"चलो बेटा देर हो रही है, तुम्हें बस स्टॉप पर छोड़ देता हूँ"। पापा बेटा चले गए और सभ्यता वहीं बैठी रही जब तक पापा वापिस नहीं आए। अगले कुछ दिन भूपेंद्र जी और सभ्यता काफी बिजी रहे। लीला काकी नहीं आ रही थी तो खाना वगैरह भी उसे ही बनाना होता और खाली टाइम माँ के साथ बिताती। नर्स को भूपेंद्र जी ने मना कर दिया क्योंकि दवा वगैरह संध्या खुद खाने लगी थी। खाना और फल खाने लगी थी तो थोड़ा सुधार होता दिख रहा था, पर चलने की प्रैक्टिस कर रही थी पर ज्यादा देर खड़ी नहीं रह पाती तो भूपेंद्र जी उसे कम ही उठने देते। ये भी कम नहीं था कि वॉशरूम धीरे धीरे यूज करने लग गयी थी, बस उसे सहारे की जरूरत पड़ती थी उठने बैठने को.....भूपेंद्र जी ने प्लबंर को बुला कर दीवार में कमोड के साथ एक रॉड लगवा दी थी सहारे के लिए और एक रॉड नहाने की जगह पर साइड में रॉड लगवा दी पकड कर स्टूल पर बैठने के लिए। फिजियोथेरपिस्ट भी बहुत मेहनत कर रहा था संध्या को अपने पैरो पर खडा करने के लिए। इस बीच संभव वीकेंड पर आया तो माँ में फर्क उसे दिखायी दे रहा था। काफी दिन से भूपेंद्र जी पार्क नहीं गए थे तो राजीव जी ने उन्हें फोन करके हाल चाल और न आने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा, "थोड़ा मॉटरनी की सेवा में लगा हूँ", तो "उन्होंने कहा ठीक है यार पर तेरे बिना मजा नहीं आ रहा", राजीव जी की बात सुन कर बँस कर बोले,"जल्दी ही मिलते हैं"! संध्या बोलने लगी थी और खूब बातें करने लगी थी। वो भूपेंद्र और सभ्यता को हर वक्त अपनी नजरों के सामने रखना चाहती थी। दोनो तरफ के परिवार फोन पर हालचाल ले लिया करते थे और सबको बस एक ही बात कहते कि पहले से फर्क है। भूपेंद्र जी के स्कूल की छुट्टियाँ खत्म हो रही थी। उधर सभ्यता का भी रिजल्ट आ गया। बहुत अच्छे नंबरों से वो पास हुई थी, उसको आगे पढना था पर वो घर से दूर नहीं जाना चाहती थी, उसके लिए संध्या ने उसे तैयार किया और कहा कि वो दिल्ली के कॉलेज में एडमिशन ले। भूपेंद्र जी का मन नहीॆ था बेटी को दूर भेजने का पर संध्या को पढाई में किसी तरह का लाड प्यार शुरू से पसंद नहीं था तो उन्हें "हाँ" तो कहना ही था। रेगुलर के लिए फार्म भर दिया गया। क्लासेस शुरी तो वैसे भी अगस्त सिंतबर तक ही होनी थी, पर उससे पहले संध्या का 50 वां जन्मदिन आ रहा था, जिसकी गुपचुप तैयारियाँ बाप बेटा कर रहे थे। स्कूल खुलने के बाद भूपेंद्र दी रोज संध्या को लेकर पार्क जाने लगे थे। कार से उतर कर भूपेंद्र उसे सहारा ले कर अंदर ले आते और बेंच पर बिठा देते....खुद थोड़ा टहलते फिर संध्या के पास आ कर बैठ जाते। संध्या को देख कर राजीव जी और बाकी दोस्त बहुत हैरान हुए। सब भूपेंद्र के प्यार और सेवा की तारीफ तो कर ही रहे थे, साथ ही संध्या की हिम्मत की वाहवाही हो रही थी। संध्या को गर्व हो रहा था अपने 'बुद्धु' पर क्योंकि उसके विश्वास और प्यार ने ही उसे ठीक कर दिया था। अपने पैरो पर फिर से खडे होने की वो भी खूब कोशिश कर रही थी। भूपेंद्र जी स्कूल जाने लगे तो संध्या कुछ दिन तो परेशान रही, पर फिर 1-2 बार सभ्यता उसे कार में स्कूल ले गयी। भूपेंद्र जी प्रिंसीपल तो 7-8साल पहले ही बन गए थे, पर कभी संध्या स्कूल नही आती थी, पर भूपेंद्र जी को प्रिसींपल रूम में चेयर पर बैठे देख वो बहुत खुश हो गयी थी। सभी टीचर्स संध्या मैडम को देख कर अपनी खुशी व्यक्त कर रहे थे। संध्या ज्यादा लोगो को एक साथ देख कर बेचैन हो गयी थी। भूपेंद्र जी उसे ले कर घर आ गए। पहले भूपेंद्र जी ने सोचा था कि संध्या के जन्मदिन पर ही सबसे उसको मिलवाएँगे पर उसको भीड देख कर बेचैन होते देख वो सोच में पड़ गए। संभव से जब ये बात शेयर की तो उसी ने कहा,"पापा पहले चाचूऔर बुआ लोगो से मिलवा दो मॉम को फिर मामा लोगो को बुला लेते हैं ऐसे मॉम सबसे बारी बारी से मिलेंगी तो परेशान नहीं होंगी", भूपेंद्र जी को संभव की बात ठीक लगी। फिर सिलिसला शुरू हुआ बारी बारी से सबसे मिलवाने का पहले दोनो बहनों और उनके परिवार, फिर भाइयो की फैमिली फिर संध्या के मायके वालों को बताया गया.... सब बहुत खुश थे संध्या से मिल कर। संध्या के मम्मी पापा बहुत बुजुर्ग हो गए थे उन्हें भूपेंद्र जी ने कहा भी कि आप वीडियो कॉल कर लो आप परेशान होंगे पर वो माने नहीं और चले आए। अपने मम्मी पापा को देख कर संध्या खुश हो गयी थी और उन लोगो में तो जैसे जान आ गयी थी। बहुत सारे फ्रूटस, गिफ्टस न जाने क्या क्या ले कर आए थे वो लोग। अपने देवरों और ननदो को देख कर उनसे बातें करके संध्या को अच्छा लगा और उसने सब को गिफ्टस भी दिए। साडियाँ वगैरह काफी थी उसके पास और कुछ गिफ्टस सभ्यता पहले ही ले आयी थी। यही तो उसकी मॉम की आदत थी कि कोई भी आए, उसे कुछ तो जरूर देना है। संध्या धीरे धीरे अच्छा और हल्का महसूस कर रही थी।
क्रमश: