मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-15) सीमा बी. द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-15)

मॉटरनी का बुद्धु---(भाग-15)

बच्चे आगे बढते जा रहे थे और संध्या के पास टाइम ज्यादा बचने लगा था, क्योंकि बच्चे मैथ्स और साइंस पढा दिया करते पर 10में संभव को साइंस की ट्यूशन रख कर देनी पड़ी। सभ्यता पापा से पढ लेती थी। संध्या को बच्चों को भेजने के बाद जो थोड़ा टाइम मिलता आस पास के बच्चों को पढाने में निकाल देती या फिर पास के गाँव चली जाती उनको अपने बच्चों को स्कूल भेजने को कहती और औरतों को भी जागरूक करती रहती। खाली बैठना उसे आता ही नहीं था।वो अपनी ही दुनिया में मस्त थे कि सभ्यता अपनी माँ का डिनर ले आयी और पापा को भी डिनर के लिए बुलाया। भूपेंद्र जी खाना खाते हुए भी सोच रहे थे कि, "संध्या को पार्क कैसे ले जा पाँएगे? खाने के लिए जो पाइप लगा है उसे रोज हटाना या लगाना सेफ नहीं होगा", पर वो मैनेज करने की कोशिश तो करेंगे ही। "पापा आप क्या सोच रहे हैं"? संभव ने पापा को चुपचाप खाते देखा तो पूछ लिया! "बेटा तेरी माँ को पार्क में ले जाना मुझे सेफ नहीं लग रहा खाने की पाइप को रोज लगाना और हटाना उसे दर्द पहुँचाएगा बस यही सोच रहा हूँ। "पापा फूड पाइप को लगा रहने देंगे बस जो बीकर है उससे हटा देंगे और पाइप को हम ठीक से फोल्ड करके किसी चीज से हल्का सा बाँध देगे तो वो लटकेगा भी नहीं और आप मॉम को एक सही जगह पर चेयर पर बैठे रहना और आप बेंच पर बैठ जाना, सब हो जाएगा कल मैं साथ चलूँगा आपके, अगर दिक्कत होगी तो हम माँ को अपने घर में ही किचन गार्डन के पास बैठा देंगे, उनके लिए तो अपने रूम से निकलना ही चेंज हो जाएगा न", बेटे की बात सुन कर उनकी टेंशन खत्म हो गयी। खाना खा कर भूपेंद्र जी थोड़ी देर बाहर टहलने लगे, फिर कमरे में आ गए।"पापा मैंने मॉम का डायपर चेंज कर दिया है", सभ्यता ने पानी की बॉटल और गिलास रखते हुए कहा। "ठीक है छोटी, अब तुम जा कर सो जाओ, कल दिनभर तुम बिजी रहोगी"!"पापा कल पढाई नही हो पाएगी तो कुछ देर पढने के बाद सो जाऊँगी, कह कर छोटी कमरे से बाहर चली गयी। ब्रश करके वो अपनी मॉटरनी के पास आ कर लेट गए।" संधु तू बच्चो को कहती थी न कि मेरी तरह जिद्दी हैं, पर सच तो यही है न कि दोनो तुझ पर गए हैं। कितना समझाया और कितना मनाया पर तूने हम तीनों के साथ कभी कार नहीं चलायी, पर सुन ना तेरी यही जिद तुझे ठीक करने वाली है। मुझे पता है तू हम तीनों के बिना नहीं रह सकती, बस अब तू जल्दी से आँखे खोल दे"। न जाने दिन में कितनी बार वो ये बात दोहराते हैं और रात को उसके कान में कभी गायत्रीमंत्र तो कभी दुर्गा मंत्र बोला करते हैं। पत्नियों को पति के लिए व्रत करना साधारण बात मानी जाती रही है, पर भूपेंद्र तो शुरू से अपनी मॉटरनी के साथ करवाचौथ का व्रत करते आए हैं और पाँच सालों से तो अकेले ही कर रहे हैं ये व्रत संध्या की सलामती के लिए और लंबी उम्र के लिए। कितना मजाक बनाया गया उनका रिश्तेदारों और दोस्तों द्वारा पर उन्होंने व्रत रखना नहीॆ छोड़ा। जहाँ लोग भूपेंद्र का मजाक बनाते वहीं संध्या का परिवार और सहेलियाँ उसे लकी मानती थी जो उसे साक्षात शिव ही पति के रूप में मिल गए हैं। व्रत की बात याद आते ही भूपेंद्र बोले,"संधु सोमवार के व्रत रखा करूँगा अब मैं....बस याद दिला दिया करना एक दिन पहले ही। हाँ ठीक है ज्यादा नखरे मत दिखा मैं मोबाइल में अलार्म भी लगाए ले रहा हूँ, कह कर वो मोबाइल ले कर बैठ गए", अलार्म की सैटिंग करके फिर संधु के ऊपर हाथ रख कर लेट गए। पूरे दिन की थकान के बाद भी उनकी आँखो में नींद नहीं थी। मन बैचेन हो उठता है अक्सर जब वो संधु की यादों से बाहर आ कर कुछ और सोचने लगते हैं, बस यही बेचैनी ही तो है जो उन्हें उनकी मॉटरनी के साथ अतीत में ले जाता है। भूपेंद्र के लिए सुख की परिभाषा पूरे परिवार की सुखी रहने में थी। संध्या के लिए सुख की परिभाषा भूपेंद्र से जुड़ा हर रिश्ता था। शायद इसीलिए कभी संध्या के पापा या भाई भूपेंद्र या संध्या के बिजनेस पार्टनर नहीं बना पाए।संध्या के पैरेंटस ने दोनो बहन भाई के लिए उनके बचपन से ही फ्यूचर के लिए जोड़ना शुरू कर दिया था। काफी प्रापर्टी अगर संध्या के भाई के नाम थी तो संध्या के हिस्से में भी बहुत कुछ था। संध्या के भाई को भी कभी एतराज नहीं हुआ और जब उसने बिजनेस संभाला तब से वो संध्या के हिस्से का प्रॉफिट अलग करता रहा है। ये बात भूपेंद्र जी को भी पता थी। संध्या के कहने पर एक बड़ा घर बनाने की सोच रहे थे तो संध्या ने अपने पापा के दिए पैसे इस्तेमाल करने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया। भूपेंद्र और भाइयों ने मिल कर संध्या का ये सपना पूरा किया, पर संध्या को उसके पैसे खर्च नहीं करने दिए। संध्या के नाम ही किया गया था ये घर।फिर धीरे धीरे भूपेंद्र ने भाइयों के लिए घर बनवाने में मदद की । भूपेंद्र के बाबा ने भी अपनी तरफ से पूरी मदद की। वैसे तो महेश को घर सरकार की तरफ से मिला हुआ ही था, तो वो घर बनवा कर किराए पर दे दिया गया। संध्या ने भी कुछ पैसे की दोनो बच्चों के नाम उनके फ्यूचर के लिए F.D करवा कर रख दीं। भूपेंद्र कई बार मजाक में कहता, "संधु तुम तो सेठानी हो अब सेठानी कहा करूँगा", तो वो कहती...." सेठ की बीवी को सेठानी कहा जाता है तुम तो मॉटर हो मॉटरनी ही सही लगेगा"। उसकी हाजिरजवाबी हमेशा उन्हें चुप करा देती और संध्या को मौका मिल जाता "बुद्धु" कहने का।
भूपेंद्र जी याद करके मुस्कुरा दिए, सच तो यही था कि मॉटरनी के मुँह से बुद्धु सुन वो खुश हो जाते क्योंकि वे जानते हैं कि वो बुद्धु बहुत प्यार से कहा करती है और वो कहते तो ये बुद्धु किसका है....मॉटरनी का कह कर वो हँस देती। हजारो बार वो ये दोहराते हैं और शायद दोहराते रहेंगे...पर कहा ही जाता है न कि कभी कभी खुशियों को अपनी ही नजर लग जाती है और ये ध्यान आते ही भूपेंद्र जी की आँखो के आगे वो खौफनाक दिन आ गया जिसका नतीजा संध्या कितने ही सालों से उनकी आँखों कै सामने भुगत रही है। संध्या हमेशा की तरह शाम को मार्किट जा रही थी, भूपेंद्र अपने एक दोस्त के बेटी की शादी से उस दिन लखनऊ से वापिस आए थे। उन्होंने संध्या को मना किया कि कल मैं ले आऊँगा तुम मत जाओ, पर शायद कुछ जरूरी सामान चाहिए था तो वो बोली,"मॉटर जी तुम आराम करो मैं जल्दी ही आ जाऊँगी"! "अच्छा भागवान तू मत जा संभव को भेज दे वो ले आएगा", संध्या न मानी तो वो बोले पर उसने कहा," देखो, उसका ड्राइविॆग लाइसेंस आया नही है और वो ऑटो पर जाएगा नहीं तो मैं बस गयी और आयी", उसकी बात सुन कर वो चुप हो गए क्योंकि वो ठीक कह रही थी। कानून हमारी सेफ्टी के लिए ही बने हैं और मार्किट में इस वक्त भीड़ होती है, वैसे भी संध्या के खिलाफ जाना मतलब कानून के खिलाफ कोई काम करने वाला माहौल तो वैसे ही रहा है, सोच कर वो भी मुस्कुरा कर लेट गए। संध्या की आदत थी कि जो खरीदना है उसी जगह जाओ और सामान ले कर घर आओ, बेवजह की विंडो शॉपिंग उसे पसंद नहीं थी, ये वाला औरतों का गुण उसमें दूर दूर तक नहीं था। बच्चे घर में थे तो वो घर पर ही रहना कह कर सो गए। पूरी रात के जागे भूपेंद्र गहरी नींद में सो गए। अचानक उनके मोबाइल पर घंटी बजी, नींद में थे तो फोन उठाने की बजाय काट दिया। 2-3 बार फोन की घंटी बजती रही तो भूपेंद्र जी की घबरा कर उठ गए। जल्दी से फोन उठाया तो देखा संध्या के फोन से फोन था तो उन्होंने जल्दी से फोन मिलाया, पर उधर से आवाज किसी और की सुन वो घबरा गए पर अपने को संभाल कर बोले," ये फोन आपके पास कैसे आया? कौन बोल रहे हैं आप"? दूसरी तरफ से आदमी की आवाज आयी," सर जिनका ये फोन है, आप की क्या लगती हैं"? "मैं उनका हसबैंड बोल रहा हूँ, क्या बात है"? "सर उनका एक्सीडेंट हो गया है, मैं उन्हें हॉस्पिटल ले आया हूँ, पुलिस भी आ गयी है उनका इलाज शुरू हो गया है, पर आप जितनी जल्दी हो सके बड़े वाले सरकारी हॉस्पिटल में आ जाएँ"! "क्या हुआ है संधु को मेरी वाइफ को चोट ज्यादा तो नहीं आयी" ?
भूपेंद्र जी ने बौखला कर पूछा।" सर वो बेहोश हैं, बाकी आप आ जाएँ तो मिल कर सब बताता हूँ"। भूपेंद्र जी को समझ ही नहीं आया कि वो क्या करें? बच्चों को ले कर तुरंत ऑटो से हॉस्पिटल पहुँच गए। वहाँ पहुँच कर उन्होंने संध्या के फोन पर फोन किया तो उसी आदमी ने उन्हें बताया कि वो कहाँ है।
क्रमश: