Motorni ka Buddhu - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-13)

मॉटरनी का बुद्धु---(भाग-13)

अपने बीते दिनों को याद करते करते कई बार भूपेंद्र जी सो जाते तो कई बार जागते हुए ही रात बीत जाया करती। अगली सुबह अपने टाइम पर उठ कर गेट को बाहर से लॉक करके वॉक पर चल दिए। पार्क में मिलने वाले दोस्तों में राजीव जी के अलावा राघव और विनोद जी भी मिल गए। राघव और विनोद दोनो ही प्राइमरी स्कूल के टीचर थे। कई बार पढाई संबंधी या सरकारी कामों से रिलेटड बातें भूपेंद्र जी से पूछ लिया करते थे तो दोस्ती वाला रिश्ता कायम हो गया था। जहाँ भी मिले अभिवादन का आदान प्रदान और चेहरे पर मुस्कान लिए मिला करते थे और फिर अपनी अपनी राह पकड़ लेते। आज भी जब उन्होंने नमस्ते की तो उन्होंने भी नमस्कार कह दिया। कुछ देर इधर उधर की बातें कर उन्होंने विदा ले ली बच गए राजीव जी और भूपेंद्र जी। " क्या बात है दोस्त कल काफी जल्दी में थे तो मैंने टोका नहीं, सब ठीक है न"?" सब ठीक है यार, कल हमारी मैडम को हॉस्पिटल ले जाना था कुछ टेस्ट करवाने थे", भूपेंद्र जी ने जवाब दिया। "रिपोर्टस आ गयीं? क्या आया"? राजीव जी का दूसरा प्रश्न आ गया!" रिपोर्टस आज आएँगी, शाम को डॉ. ने बुलाया है मिलने के लिए, फिर पता चलेगा कि कैसी हैं अब वो"। "यार तुम परेशान न हो, भाभी जी ठीक हो जाएँगीं, रिपोर्टस भी ठीक आँएगी", राजीव जी की बात सुन कर भूपेंद्र जी बोले,"हाँ सब ठीक होगा"! बैचेन तो आज भी थे क्योंकि रिपोर्टस के लिए दिल की धड़कने तेज हो रही थी पर ऊपर से खुद को संभाले हुए नार्मल दिखने की कोशिश कर रहे थे। वॉक का टाइम खत्म हो गया था, वो सीधा घर की तरफ चल दिए। सुबह जब घर से निकले थे तो संध्या के माथे को सहलाया तो कुछ गरम सा लगा था उन्हें, उस समय तो उन्हें लगा कि शायद उन्हें ही वहम हुआ हो....पर अब जब याद आ गया तो उन्हें अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि थर्मामीटर क्यों नहीं लगा कर देखा? लगभग दौड़ते से वो अपने कमरे में गए तो देखा सभ्यता संधु का डायपर चेंज कर रही थी।
वो बाहर आ गए और सोचने लगे" "हमारी बेटी बहुत समझदार है मॉटरनी, हम दोनो का और अपने भाई का पूरा ध्यान रखती है, "संधु तुम लड़कियाँ शुरू से ही इतनी संवेदनशील क्यों होती हो? सब समझने लगती हो बिना कहे फिर चाहे तुम या तुम्हारी बेटी, माँ हो या मेरी अपनी बहनें, तुम लोग जो करती हो न हम आदमी तो सोच भी नहीं सकते"! " मॉटर जी जैसे तुम ये सब एक्सेप्ट कर लेते हो न कि हम औरते तुम लोगों से कैसे बेहतर हैं, वैसे ही सब एक्सेप्ट कर लें न तो सबकी लाइफ ईजी हो जाए", भूपेंद्र जी को लगा कि संध्या ने सचमुच उनके कान में फुसफुसा कर कहा हो, पर अगले ही पल वो वर्तमान में आ गए।
सभ्यता चाय ले आयी थी। सच तो ये था कि उन्हें संध्या के छोड़ कर कहीं जाने का मन नहीं करता था, पर फिर अपनी जिम्मेदारियों का ख्याल आता तो मन को मना लेते कि कुछ घंटों की ही बात है फिर संधु भी तो सब काम से फ्री हो जाएगी। स्कूल में भी कोई न कोई उन्हें मॉटरनी की याद दिला ही देता !जब टीचर्स को पता चला कि मैम की तबियत ठीक नहीं है तो सबने उनसे उनके हालचाल पूछने लगे। बस सबसे बात करते और काम में दिन कब बीत गया, उन्हें पता ही नहीं चला।संभव को पता था कि रिपोर्ट के लिए डॉ. से मिलना है तो वो छुट्टी होने के टाइम तक पहुँच गया था। कुछ काम निपटा दोनो पापा बेटा हॉस्पिटल चल दिए।" पापा आपने लंच किया"? संभव ने पूछा तो उन्होंने "हाँ कर लिया" कह दिया। "पापा लग तो नहीं रहा, आपका टिफिन खाली तो नही दिखता भारी है"! "तुम दोनो अपनी माँ पर गए हो जेम्स बॉण्ड हो जैसे", अपने झूठ को पकड़ा देख वो बोले। संभव ने एक साफ सुथरे होटल पर गाड़ी रोक दी। "पापा 10 मिनट रूक कर कुछ खा लेते हैं, फिर चलते हैं"! "मुझे भूख नहीं है बेटा तभी लंच नहीं किया जल्दी चलते हैं फिर घर जा कर खाँएगें", भूपेंद्र जी ने कहा तो संभव मुस्कुरा दिया।"पापा मैंने भी नहीं खाया क्योंकि सोचा आपके साथ खाऊँगा, अभी डॉ. को आने में टाइम हैं, फिर वहाँ जा कर भी तो इंतजार ही करना है न"? संभव ने खाना नहीं खाया सुन भूपेंद्र जी जल्दी से कार का दरवाजा खोल बाहर निकल आए, "चल कुछ खाते हैं पहले मुझे भी भूख लगी है"! दोनो ने जल्दी से खाना आर्डर किया और फटाफट खा कर हॉस्पिटल पहुँच गए। डॉ. शायद उसी वक्त आए थे, उन्होंने झट से अंदर बुला लिया। पता चला कि वो राउण्ड से ही अभी लौटे हैं। ब्लड रिपोर्टस संभव ले आया था और MRI की रिपोर्ट और इमेज उनके सामने थी।भूपेंद्र उनको रिपोर्टस देखते हुए बेचैन हो रहे थे, "डॉ. सब ठीक है न"? भूपेंद्र जी ने पूछा तो डॉ. बोले," ठीक नहीं वो बहुत ठीक हैं, मुझे लगा कि जैसे उन्हें परसो परेशानी हुई तो कोई दिक्कत न हो, पर नहीं वो ठीक हैं और सबसे बड़ी बात ये है जितने टाइम से कोमा में हैं, उतना टाइम रेयर ही कोई रहा होगा हमारे देश में जहाँ तक मैं सोचता हूँ। बाहर के देशों का काफी केस स्टडीज पढी हैं मैंने इससे भी लंबे टाइम कोमा में रहने के बाद भी लोग ठीक हो गए हैं, आपकी वाइफ का ब्रेन काम कर रहा है, साँसे वो खुद ले रही हैं उनके अंदर के जख्म भी ठीक हो गए हैं, भगवान ने चाहा तो वो जल्दी ठीक हो जाएँगी"। डॉ. की बात सुन कर भूपेंद्र जी खुशी के मारे बोल ही नहीं पा रहे थे, उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वो क्या कहें?
पापा की हालत बेटा समझ रहा था तो उसी ने ही आगे पूछा," हमें मॉम को जल्दी से ठीक होने के लिए क्या करना चाहिए सर"? " बेटा उनकी देखभाल यूँ ही करते रहो, बाकी काम तो तुम्हारे पापा ने बिना मेरे कहे कि करना शुरू कर दिया था, संध्या जी की फिजियोथेरेपी होते रहने की वजह से उनके पैरों और शरीर में स्टिफनेस नहीं हुई, आप वो फिर से शुरू कर दिजिए"! "जी सर कल से ही शुरू कर देते हैं", संभव ने कहा। डॉ. की बातें भूपेंद्र जी भी ध्यान से सुन रहे थे," सर आप उन्हें बाहर भी ले जाया कीजिए पार्क वगैरह, व्हील चेयर पर बैठा कर शायद खुली हवा में अच्छा लगेगा ", डॉ. ने कहा तो भूपेंद्र जी बोले," मैं कल से ही ले जाऊँगा"! दोनो उठने लगे तो डॉ. बोले," सर आपकी वाइफ आप सबको सुन सकती हैं, आप खूब बातें कीजिए, मैं अपने और डॉक्टर्स से भी ये केस डिस्कस कर रहा हूँ, देखते हैं कि कुछ अच्छा सुनने को मिले, आप अपनी उम्मीद को जगाए रखिए क्योंकि आप की वाइफ की रिकवरी सबूत है इस बात की, कि वो भी जीना चाहती हैं"।
भूपेंद्र जी इन पाँच सालों में बेइन्तहा खुश थे, उन्हें वो सुनने को मिला जिसे सुनने की आस न जाने कब से लगाए बैठे थे, इन पाँच सालों में उन्होंने न जाने कितने आर्टिकल ढूँढ ढूँढ कर पढ डाले थे इस बीमारी से रिलेटिड वो खुद ही नहीं जानते थे। कितने ही डॉक्टरो को वो संध्या की रिपोर्टस भेज चुके थे, पर कोई ठीक से नहीं बता पा रहा था.....। वो जल्दी से जल्दी घर पहुँचना चाहते थे, वो डॉ. को थैंक्यू भी न बोल पाए, क्योंकि उनसे बोला ही नहीं जा रहा था बस डॉ. को गले से ही लगा लिया और डॉ. ने उनके कंधो को थपथपा दिया। बेटा उन्हें संभालता हुआ घर ले आया।
क्रमश:

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