Motorni ka Buddhu - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-11)

मॉटरनी का बुद्धु--(भाग-11)

भूपेंद्र जी और उनके बाबा का मानना था कि औरतों के बीच के मामलों में न पड़ो तो ही अच्छा। तभी परिवार को जोड़ कर रखा जा सकता है। संभव के साथ बैठे टीवी देखते हुए भी उनका ध्यान संध्या पर ही था, पर वो बेटे को भी अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे वो भी तब जब उन्हें पता है कि वो बिल्कुल उन पर गया है। डिनर करके ही वो अपने कमरे में आए और हमेशा की तरह संध्या के सिरहाने बैठ कर उसका माथा सहलाने लगे," संधु कल कुछ टेस्ट करवाने जाना है तुम्हारे, मुझे पता है कि तुम ठीक हो पर फिर भी डॉ. का कहना मानना ही पड़ेगा, कल हॉफ डे में ही आ जाँऊगा तो तैयार रहना", बोल कर वे संध्या का चेहरा निहारने लगे जैसे वो अभी कहेगी," हाँ मैं तुम्हें तैयार मिलूँगी, अब चलो हाथ सीधा करो मुझे सोना है और कह कर सीने से लग जाएगी"। भूपेंद्र जी आ कर बिस्तर पर आँखे बंद करके लेट गए। कुछ लोग यादों से भागते हैं पर भूपेंद्र जी के जीवन का आधार ही यादें हैं। रमेश और महेश को अपने भाइयों जैसा प्यार दिया और ननदो की दोस्त बन गयी। अपने भाई की शादी में बहुत खुश थी वो। भूपेंद्र जी ने उसे बच्चों के साथ 15 दिन पहले ही जाने को कहा तो उसने मना कर दिया और बोली, "3-4 दिन पहले एक साथ चलेंगे और साथ ही आँएगे..... वहाँ सब काम करने के लिए बहुत लोग हैं फिर हमारे बच्चो का स्कूल है वो कैसे मिस कर सकते हैं"? माँ ने कहा भी कि, "मैं हूँ न तू चली जा बहु पर उसने जाने से मना कर दिया"! रात को भूपेंद्र ने बोला, "संधु तू चली जा, कहीं वहाँ मम्मी पापा को ये न लगे कि हम तुझे आने से रोकते हैं"!"मेरे बुद्धु जाने में कोई हर्ज नहीं, बच्चों की पढाई का भी देखा जा सकता है, पर तुम्हें देखे बिना मैं इतने दिन नहीं रह सकती, अब कोई कुछ भी सोचे मुझे कोई दिक्कत नहीं....पर सच यही है कि तुम आसपास नहीं रहते तो मैं घबरा जाती हूँ", अपनी बीवी की बातें सुन कर भूपेंद्र की आँखे तक मुस्कुरा दी थी और बोले, ओ मेरी पगलिया, मैं भी नहीं रह सकता पर मुझे लगा सेल्फिश हो रहा हूँ, कहीं तेरा जाने का मन हो पर अब ठीक है सब साथ ही चलेंगे"! उस शादी के बाद संध्या के परिवारों मे जितनी शादियाँ हुई वो एक दिन पहले जाते और शादी के अगले दिन वापिस आ जाते। संभव को वो सभ्यता का ध्यान रखना बहुत जल्दी ही सीखा दिया था जिसने संभव को जिम्मेदार भाई बना दिया। हर बात में सभ्यता को वो भाई से एक बार पूछो ऐसे ही करना है या नहीं, स्पेशली जब स्कूल का कुछ काम मिलता। संभव को पापा के छोटे छोटे काम करने को कहती और करने पर खूब शाबाशी देती और ईनाम भी। एक असाधारण माँ और बीवी थी भूपेंद्र की नजरो में संध्या और उससे भी बढकर एक बेहतरीन इंसान। जिंदगी को खुल कर जीने का जज्बा था तो छुट्टियाँ होती गर्मियों कि या क्रिसमस पर तो माँ बाबा को लेकर घूमने का प्रोग्राम बना लेती और मॉटर जी को बीवी का कहना मानने की इतनी आदत हो गयी थी कि उसकी पूरी बात सुने बिना ही कह देते,"Okk done"! फिर भी वो गुस्सा हो जाती और मुँह फुलाए कहती," तुम बिना बात सुने ऐसे काहे कहते हो"! " क्योंकि ना कहने पर भी अपनी बात मनवा कर ही छोड़ती है, तो समझदारी है पहले ही मान लूँ और तेरी बोलने की मेहनत बचा लूँ", उनकी बात सुन कर बस वो बच्चों जैसे शरारती आँखो से हँस देती। कई बार वो सोचा करते कि ववकई लोगों को इतनी खुशियाँ मिलती है? जितनी मेरे पास हैं, फिर सोई बीवी की और बच्चों की चुपचाप से नजर उतार लेते। ऐसा नहीं था कि उन दोनो में कभी लड़ाई नहीं होती थी, जब होती तो घमासान होती और कई बार 2-3 दिन तक बात ही न करते। संध्या और माँ बाबा वेजिटेरियन थे, पर वो तीनो भाई कभी ऑमलेट या चिकन वगैरह बाहर खा लिया करते थे, बात वहाँ तक तो ठीक थी। भूपेंद्र जी कभी कभार छुट्टी के दिन अपने दोस्तो के साथ नॉनवेज खा लेते तो संध्या भी कुछ न कहती, पर 2-3 बार भूपेंद्र जी को उनके दोस्तों ने शराब पिला दी। कॉलेज टाइम में 2-4 बार पी चुके थे,पर जब से संध्या आई थी उनकी लाइफ में वो पीने पिलाने से दूर ही रहते पर नौकरी जिनके साथ करते हैं तो कई बार दोस्तों ने पिलाने की कोशिश की पर उन्होंने कई बार मना कर दिया, दोस्त उन्हें जोरू का गुलाम और डरपोक पति जैसे विशेषणों से नवाज दिया करते, बस इसी रौं में बह कर चिकन और दारू पी बैठे। घर उनका एक टीचर दोस्त अपनी बाइक पर छोड़ गया। भूपेंद्र जी को नशा कुछ ज्यादा ही हो गया था तो वो अपने कमरे में जाने लगे तो संध्या ने उन्हें बैठक में ही सोने को कह दिया, जब वो जिद करने लगे कि कमरे में ही सोना है संधु, तो वो चिल्ला दी," कमरे में दारू पी कर नहीं आ सकते तुम और अब चुप करके सो जाओ, सुबह बात करेंगे कह कर कमरा बंद कर लिया। अगली सुबह कुछ याद था कुछ भूल गए थे, पर अपनी गलती का एहसास तो था पर औरो की बीवियाँ तो एडजस्ट करती हैं तो मेरी बीवी को भी करना चाहिए वाला भाव कुछ देर के लिए ही टिक पाया क्योंकि संध्या सब काम तो कर रही थी पर बात नहीं कर रही थी। " संधु रात को थोड़ी ज्यादा हो गयी, आइंदा ध्यान रखूँगा प्लीज माफ कर दे न", उनकी बात सुनकर वो बोली,"मतलब आगे भी पीनी है तुम्हें? बेवड़ा बनना है क्या? मैं और मेरे बच्चे नहीं रहेंगे ऐसे माहौल में कह देती हूँ, अकेले रह कर जो मर्जी करना"! संधु की बात सुन कर उनसे बोलते ही नहीं बना, मैं तेरे और बच्चों के बिना कैसे रह सकता हूँ संधु? मैं नहीं पीऊँगा यार "! "ठीक है मॉटर जी, आगे से न पीने में ही भलाई है और आगे से कभी पी कर आओ तो एक हफ्ते तक कमरे में पैर मत रखना और अपना काम खुद करना"! संध्या की चेतावनी के बावजूद भी 2 बार वही गलती हो गयी और सचमुच 1 हफ्ते तक न वो पास आयी न कमरे में अंदर आने दिया। कुछ दोस्तों को मजा आता है किसी के साथ जबरदस्ती करके और भूपेंद्र जी को ज्यादा मान मनौव्वल करवाना आता नहीं था पर 3बार गलती के बाद वो समझ गए कि अगर यही रवैया रहा तो संधु और बच्चों से दूर हो जाएगा। उस बात को तकरीबन 18-20 साल हो गए कभी शराब के हाथ नहीं लगाया। ऐसे ही एक दिन जब उन्होंने संध्या को कहा कि, "उनके एक दोस्त की जन्मदिन पार्टी है तो चिकन मटन खाने का प्रोग्राम है तो मेरे लिए खाना मत बनाना"! " भूपेन तुम्हें अच्छा लगता है जानवरों को मार कर खाना? मुझे तो सोच कर उल्टी होती है और तुम बेजुबान जानवरों को खा लेते हो? अगर कोई हमें या हमारे बच्चों को मार खाए तो? तिम नॉनवेज मत खाया करो प्लीज, हम अपने बच्चों के लिए पाप इकट्ठा कर रहे हैं"! संध्या की बात सुनकर उनका दिमाग घूम गया, उनकी बीवी पूजा पाठ नहीं करना चाहती पर कर्म पर विश्वास कितना गहरा रखती है, पाप पुण्य में आस्था रखती है। अब तक नॉनवेज भी कभी कभार खाते थे क्योंकि संध्या उस रात उनसे दूरी बना कर रखती थी, उन्हें लगता था कि बदबू तो आती नहीं, पर फिर भी संध्या की इच्छा का मान रखते थे....उस दिन के बाद उन्होंने कभी नहीं खाया। संध्या बहुत खुश हो गयी और उसे खुश देख मॉटर जी ने तो खुश होना ही था। खाने पीने वाले दोस्त धीरे धीरे कटते चले गए और वो अपने परिवार में ही मस्त रहने लगे।
क्रमश:

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