रहनुमा kirti chaturvedi द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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रहनुमा

रहनुमा

आज ईद का दिन था। साहिल नमाज़ पढ़ने गए हुए थे। अंबर घर को सजाने में लगी थी। अंबर कॉलेज में पढ़ रही है। बेहद प्यारी और खूबसूरत अंबर को देखकर निगहत के मन में कई बार ख्याल आता कि अगर बचपन में अंबर ने उस दिन दादी के घर से निकल कर ऐसी हिम्मत न दिखाई होती तो उसके बुरे हालात कभी बदलने वाले नहीं थे। उसी की हिम्मत थी जिसने उनकी जिंदगी गुलज़ार कर दी थी। अपने अब्बा साहिल की परी बेटी अंबर न तो बीते दिन याद करती है न ही अपनी मां को करने देती है। वर्तमान में जीना ही उसे प्रिय है। उसने मन में ठाना हुआ है कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना और दूसरों की मदद करना ही उसकी ज़िंदगी का मकसद है। किसी शायर ने सच ही कहा है कि खुद ही को बुलंद कर इतना कि खुदा बंदे से खुद पूछे कि बता तेरी रज़ा क्या है। निगहत को आज न जाने क्यूं बीता हुआ कल याद आने लगा कि किन हालात का वह षिकार बन गई थी और रब ने किस तरह से उसकी मदद की और अंबर को ही उसका रहनुमा बनाकर उसे सही राह दिखाई थी।

                       

करीब आठ साल पहले की बात है। उस दिन अंबर बहुत खुष नज़र आ रही थी। खुष होने की वजह भी उसके पास वाजिब थी। आज उसकी अम्मी को देखने साहिल खान जो तषरीफ ला रहे थे। अंबर कभी टेबिल को जमाती तो कभी पर्दे ठीक करती। फिर अंदर जाकर नाष्ते की प्लेटों को सही करती। उसकी नानी देख रही थीं कि बारह बरस की बच्ची जैसे अचानक बड़ी हो गई हो। अंदर जाकर अपनी मां निगहत के हाथों को प्यार से थाम कर कहती कि अम्मां घबराना नहीं अगर वो मुझे नहीं अच्छे लगे तो आपको बता दूंगी। आप परेषान न हो। तभी डोर बेल की आवाज आई और अंबर उछलती हुई बाहर चली गई। बाहर साहिल और उसका दोस्त अकरम आए थे। जैसे ही अंबर को उसके नाना और मामा ने साहिल से मिलवाया वो उसे बड़े अच्छे लगे। गोरा सुर्ख रंग, खूबसूरत , छह फीट दो इंच लंबा कद और बेहद शरीफ और खुष मिजाज़ साहिल सभी को पसंद आए। अंबर तो उनसे मिलकर पूरे समय खिलखिलाती ही रही। नहीं तो भला इससे पहले वो अपनी अम्मी के लिए आए न जाने कितने रिष्ते ठुकरा चुकी थी। उसे कभी किसी का बातचीत का अंदाज नहीं समझ आता तो कभी किसी का रवैया नहीं समझ आता। कोई अंबर को भांप रहा होता कि अच्छा है मां के साथ ये बच्ची बला बनकर आएगी या फिर इसकी जिम्मेदारी भी उठानी होेगी। तो कोई इस जुगाड़ में नजर आता कि चलो भी घर में कामकाज में हाथ ही बंटा देगी। बहरहाल उसकी अम्मी जब सादे लिबास में बाहर चाय की ट्रे लेकर आईं। तो साहिल मियां भी उन्हें देखते ही रह गए। मासूम और सादगी से भरी निगहत का कद भी पांच फुट और छह इंच लंबा था। खूबसूरत और सलीकेमंद, बातचीत में नज़ाकत और मीठा लहज़ा और आंखों में सच्चाई की बानगी देखकर साहिल मियां भी दंग रह गए। दिल ही दिल में सोचने लगे कि कमबख्त बहुत ही पत्थर दिल इंसान होगा जिसने निगहत और अंबर जैसी प्यारी बच्ची को छोड़ दिया। बल्कि ये कहा जाना मुनासिब होगा कि निहायत ही बदनसीब होगा जो घर आए हीरे की परख नहीं कर सका। चंद सवालात और एक कप बेहतरीन चाय की प्याली पीने के बाद तो साहिल मियां का दिल चाह रहा था कि  आज और अभी निकाह की रस्म हो जाती तो वे इन मां बेटी की रूखसती साथ ही ले लेते। खैर साहब रस्मे दुनिया और दस्तूर का ख्याल रखते हुए और बैचेन दिल को काबू में करते हुए साहिल खान वहां से अकेले ही रवाना हो गए।

अगले ही दिन मोबाइल पर साहिल की ओर से लड़की वालों को हां का पैगाम  दिया गया। उधर निगहत के घरवालों को भी ये रिष्ता बहुत ही काबिल इंसान का लगा कि अल्लाह का ये नेक बंदा न जाने आज के पहले कहां छिपा हुआ था। जो अब जाकर सामने आया है, अगर पहले ही मिल गया होता तो कहानी ही कुछ ओर होती और सबसे ज्यादा खुष होने वाली तो अंबर थी। जिसे साहिल बहुत अच्छे लगे थे।

इसके बाद साहिल साहब ने अपने घरवालों को ये शादी करने का फैसला  सुनाया और सबको राज़ी किया। षादी की तैयारियां शुरू हुई। उन्होंने अपने घर के पास एक नया डूपलैक्स किराए पर लिया। उसे दुल्हन के स्वागत के लिए सजाया और संवारा गया। दूल्हन के जे़वर और लिबास आदि खरीदे गए। दूल्हे मियां का भी सूट तैयार हुआ। तय हुआ कि जुमे के दिन जौहर की नमाज़ के बाद चंद लोगों की बारात दुल्हन के घर जाएगी और निकाह के बाद दुल्हन को घर लेकर आ जाएगी। अगले दिन कुछ करीबी लोगों के लिए दावते-वलीमा यानी रिसेप्षन पार्टी दे दी जाएगी।

 

आज दुल्हन के लाल सुर्ख लिबास में सजी हुई निगहत का दिल बहुत तेज धड़क रहा था। हाथ भर-भर कर पहनी हुई लाल रंग की चूड़ियां और गोरे हाथों पर सजी पिया के नाम की मेंह्रदी खूब फब रही थी। मगर दिल न जाने क्यूं किसी आषंका के चलते धड़क रहा था। उसकी प्यारी सी बेटी अपने मोबाइल से अम्मी की खूब सारी तस्वीरें खींच रही थी। मगर निगहत को कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि सारा शोर-शराबा थम जाए और कुछ लम्हें उसे अपनी बेटी के साथ तन्हाई के मिल जाए। इतने में ही बारात के आने का हल्ला मचा थोड़ी देर में ससुराल की बहुत सी महिला रिष्तेदार उसके सामने मौजूद थीं। सब उसे ही निहार रहीं थी। कोई हाथ की मेंहदी को छूकर देखता तो किसी को हेयर स्टाइल देखना था। किसी को दुल्हन का जोड़ा भा रहा था तो कोई उसके चेहरे पर नूर तलाष रहा था। कोई दुल्हन के जे़वरों को अपनी ही नज़रों से तोल रहा था।

मेहमानों की खातिर तवाजों की जा रही थी। इतने में ही काज़ी साहब के अंदर आने का ऐलान हुआ। सब औरतों ने पर्दा कर लिया उनके अंदर कमरे में आने की जगह बनाई गई फिर काज़ी साहब ने निकाह की रस्म अदा की। रस्म खत्म होते ही निगहत अब साहिल की बीबी थी। सब लोग दुआ कर रहे थे। दुल्हन के घरवालों की आंखों में खुषी के आंसू थे। उसके बाद दावत की बारी थी। बेहद लज़ीज खाना पका था। सबने बडे़ चाव से खाया। दावत के बाद दुल्हन को रूखसत किए जाने की तैयारी की जाने लगी। निगहत बेहद खामोषी के साथ अपने ज़ज्बात काबू किए हुए थी। आज उसे अपने लख्ते जिगर के टुकड़े यानी अपनी बेटी को छोड़कर पहली बार जाना था। वर्ना तो पैदाइष के बाद से वो उसकी आंखों का तारा थी। उधर अंबर का भी दिल बैठा जा रहा था कि अम्मी बस जाने वाली हैं। निगहत की आंखों से आंसू निकल रहे थे। इतने में भाभियों ने उसे न रोने का इषारा किया। बाहर से चचा की आवाज आई और किसी ने कहा कि चलो देर न करो, रूखसती का वक्त हो गया। चंद गाड़ियों का काफिला बाहर निकला और दुल्हन मायके वालों के गले मिलकर नए घर के लिए रवाना हो गई। घर आकर फिर महफिल जमीं। अभी साहिल का भी अपने दोस्तों से छुटकारा पाना आसान न था और दुल्हन को देखने वालो की कतार जमा थीे। वहां मौजूद किसी रिष्तेदार ने दुल्हन की थकान को ध्यान में रखकर कहा कि उसे उसके कमरे में छोड़ दिया जाए।

उसकी जिठानी ने निगहत को उसके कमरे तक छोड़ दिया और कहा घर में मेहमानों के बीच बैठे-बैठे तुम थक जाओगी। थोड़ी देर तुम आराम कर लोे। पर निगहत के दिल को आराम कहा था। वह तो बस चौदह साल पहले गुज़री हुई यादों को भुला नहीं पा रही थी। दरअसल बात कुछ इस तरह थी कि निगहत की यह दूसरी शादी थी। एक बार पहले भी वह अरमान दिल में लिए रेहान की दुल्हन बनी थी।

उसे याद आया जब वह एक दिन कॉलेज से लौटी ही थी कि अम्मी ने फरमान सुना दिया कि जल्दी से तैयार हो जाओ तुम्हें देखने के लिए कुछ लोग आ रहे हैं। निगहत बोली क्या अम्मी आप भी क्यूं इतनी जल्दी कर रही हैं। मुझे नहीं करनी अभी षादी-वादी। अम्मी ने बडे़ प्यार से उसे समझाया कि अरे भाई घर में तुमसे छोटी बहन भी हैं। जब तुम्हारी षादी होगी फिर सबकी जिम्मेदारी हम पर है। तभी फोन आया कि रेहान की अम्मी और उनकी बहनें बस पहुंचने वाली ही है। न चाहते हुए भी वह खामोष रह गई। रेहान की अम्मी और बहनें आकर निगहत को देखकर चली गई।

निगहत बेचारी समझी ही नहीं कि किस्मत उसके लिए क्या फैसला करने जा रही है। रेहान कुवैत में नौकरी करता था और छुट्टियों में दिल्ली आया हुआ था। इसलिए उसके घरवालों को उसकी शादी की जल्दी थी। दो दिन बाद ही रेहान के घर से फोन आ गया कि निगहत उन्हें पसंद आयी है। रेहान के कुवैत जाने से पहले निकाह जल्दी करना चाहते हैं। बस फिर क्या था घर में धूम मच गई। सभी शादी को लेकर खुष थे कि घर बैठे इतना अच्छा रिष्ता मिल गया। आनन-फानन में षादी की तैयारियां हुईं। बारात आई और निगहत की बिदाई कर दी गई। घर में सभी को उम्मीद थी कि वीसा मिलने के बाद निगहत भी अपने मियां के पास कुवैत चली जाएगी।

निगहत की ससुराल में भरा-पूरा घर था। सास-ससुर, जेठ-जिठानी, दो देवर, दो ननदें क्वांरे ही थे और एक ननद भी अपने पति से अलग होकर घर की शोभा बढ़ा रही थी। निगहत की मुलाकात जब रेहान से हुई तो वह घरवालों के लिए बहुत पजेसिव नजर आया। एक सप्ताह बाद ही रेहान की वापसी थी। अगले ही दिन चूल्हा छुबाई के नाम पर उसे किचिन में पहंुचा दिया गया। अब तो दिन भर निगहत काम में लगी रहती। रेहान से मुलाकात रात में ही होती। उसके जाने के एक दिन पहले निगहत ने बहुत धीरे से रेहान से पूछा कि वह उसे कब वहां ले जाएंगे। इस पर रेहान का पारा चढ़ गया बोला हद करती हो तुम भी। अभी में वहां तुम्हें नहीं ले जाने वाला तुम यहां पर अब्बा-अम्मी की खिदमत करो। ये जाने का कौन सा राग अलाप लिया तुमने। निगहत उसकी झिड़की पर चुप रह गई। अगले दिन रेहान वापिस लौट गया। निगहत मुरझाई सी दिन भर घर भर की फरमाइषें पूरी करती रहती। कुछ ही समय बाद घर में काम करने वाली बुआ को भी जानबूझ कर हटा दिया गया। तीन मंजिला घर में सफाई और खाने में उसका दिन कब निकलता और कब रात होती पता ही नहीं चलता। न उसे मायके जाने की इज़ाजत थी न ही उसके मायके वाले बिना बुलाए आ सकते थे। एक-दो बार भाई और अब्बू आए तो भी उसके ससुर और जेठ वहीं जमे रहे। एक बार अम्मी और भाभी आई तो सास-ननदों ने तन्हाई में उनसे मिलने नहीं दिया। लिहाजा न निगहत उन्हें कुछ बता सकी। न वे लोग दिल की बात जान सके। रेहान का भी जब फोन आता तो उसके घरवालों से बात करने के बाद जब तक निगहत का नंबर आता तब तक रेहान के फोन की बैलेंस लिमिट खत्म होने लगती थी।

जब कभी उसके मायके से बुलावा आता तो भेजने के नाम पर उन्हें टाल दिया जाता। शादी के दो साल बाद उसकी छोटी बहन अलवीरा का विवाह तय हुआ। वहां भी निगहत को सिर्फ बतौर मेहमान जाने की इजाज़त मिली यानी ससुराल वालों के साथ जाओ और उनके ही साथ लौट आओ। वो वहां रूक नहीं सकती थी। वह मन मसोस कर रह जाती कि अपनी मां से खुलकर बात भी नहीं कर सकती। चंद दिनों की छुट्टी में रेहान जब भी आए तो पूरे घरवाले उनके तोहफे बटोरनें में लगे रहते। रेहान के साथ बाहर रिष्तेदारों से मिलने भी उसकी अम्मी और बहनें साथ जाया करती। मगर निगहत को कहीं भी जाने की आज़ादी नहीं थी। उसे घर पर ही रूकना होता था। अब निगहत को समझ में आने लगा था कि रेहान के घरवालों ने उसकी शादी दुनिया को दिखाने के लिए की थी। उन्हें बहू की जरूरत नहीं बल्कि पूरे समय घर में कामकाज करने के लिए एक गुलाम या बांदी चाहिए थी। जो निगहत के रूप में उन्हें मिल गई थी। रेहान के सामने कोई भी उससे बत्तमीज़ी करे या झिडकियां पड़ें। इससे रेहान मियां की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। इस बार रेहान जब चला गया तो कुछ समय बाद निगहत उम्मीद से थी। उसे लगा शायद अब नए मेहमान की आमद से सबका व्यवहार उसके प्रति बदल जाए। मगर ज़ालिम ससुराल वालों पर क्या फर्क पड़ना था। पूरे समय सास-ननदों और जिठानी की तानाकषी जारी रहती थी। घर में कोई मेहमान आता तो सामने दिखावे में सहानुभूति दर्षाई जाती कि ये यहां हैं भैया वहां अकेले मगर ये खुद ही नहीं जाना चाहती। इन्हें मायके वालों से ज्यादा मोहब्बत है। वैसे भी निगहत की प्रैगनेंसी की खबर से वे सब तो नाखुष ही थे। खैर भला किसी के चाहने और न चाहने से क्या होता है। वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है। कुछ महीनों बाद निगहत की गोद में अंबर आ गई।

बेटी के गोद में आ जाने से निगहत की सारी दुनिया ही बदल गई। उसे न तो घर के ढेर सारे कामकाज से कोई दिक्कत थी न घरवालों के बर्ताव से कोई षिकायत। जब रेहान ने ही उसका साथ नहीं दिया तो फिर वह भला उन लोगों से क्या उम्मीद रखती। वह तो पूरा प्रयास करती कि जैसे ही काम खत्म हो वह बेटी को अपनी गोद में लेकर सब तकलीफें भुला देती। नन्हीं सी अंबर जब उसे अम्मां कहती हुई किलकारी लेती तो उसके चेहरे पर सुकून नज़र आने लगता। इस बार जब रेहान आया तो उसे अंबर को पहली बार देखकर कोई खुषी नहीं हुई। निगहत ने बहुत चाहा कि वह अपने अब्बा के पास जाए उन्हें पहचानना सीखे। मगर अंबर तो जैसे रेहान को देखकर ही रोने लगती थी। उधर रेहान के आते ही निगहत के लिए घरवालों की षिकायतों का जो पिटारा खुलता तो फिर बंद होने का नाम ही नहीं लेता था। रेहान इस बार भी हमेषा की तरह नाखुष ही कुवैत लौट गया।

अब तक निगहत ने हालात से समझौता कर लिया था। बिना किसी से गिला-षिकवा किए हुए खामोषी से घर के काम करना और अपनी बेटी के साथ सपनों की दुनियां में खो जाना। वह हमेषा ख्वाब देखती कि वह और उसकी बेटी पार्क में खेल रहे हैं। बहुत सारे खिलौनों के बीच अंबर भाग रही है। वह उसे पकड़ने को उसके पीछे दौड़ लगा रही है। इतने में कोई उससे अंबर को छीन लेता है। वह घबराकर उठ जाती और जब पाती कि बेटी तो उसके दामन में सो रही है तो वह उसे खूब सारा प्यार करने लगती। खैर समय गुजरता रहा। उसने रेहान को मनाकर अंबर को स्कूल में दाखिला दिला दिया था। अब वह उसको स्कूल भेजकर सबको नाष्ता कराती। सफाई करती और खाना पकाती। बर्तन-कपड़ों से फुर्सत पाते-पाते अंबर के आने का वक्त हो जाता। फिर उसे नहला कर, खाना खिलाकर सुलाती और तब तक शाम के खाने का वक्त हो जाता। जब तक अंबर जागती उसे किचिन में पास बिठाकर होमवर्क कराने के साथ साथ खाना बनाती जाती। महीने में एक बार रस्मी तौर पर रेहान से  बात हो पाती। धीरे-धीरे रेहान का आना कम होता गया और घरवालों के कहर बढ़ने लगे। जुल्म की भी इंतेहा होती है। एक दिन किसी मामूली सी बात पर उसकी बड़ी ननद रेहाना नाराज हुई तो बात मारपीट तक जा पहंुची। इसमें जिठानी और सास भी कूद पड़ी। फिर तो निगहत को हमेषा की तरह इस बार भी बुरी तरह से मारा गया। यहां तक कि निगहत के बेहोष होने पर भी किसी को तरस न आया। अपनी मां के रोने की आवाज सुनकर अंबर नीचे उतरी तो देखा कि उसकी मां बेहोष नीचे गिरी हुई है और उसके माथे पर चोट लग जाने से खून बह रहा है। अंबर उन लोगों पर चिल्लाई कि मेरी मां ने आप सबका क्या बिगाड़ा है। क्यूं मार रहे हो उन्हें इतना कहना था कि रेहाना झपटकर अंबर को मारने लपकी।

बस फिर क्या था। नन्हीं सी अंबर ने एकदम घर के बाहर के दरवाजे की तरफ दौड़ लगा दी। सब लोग उसको पकड़ने लपके। मगर वह तो हिरनी की तरह कुचालें भरती हुई गली के बाहर खडे़ ऑटो  में जा बैठी। ऑटो चालक भी छोटी बच्ची को देखकर घबरा गया कि क्या हुआ। वह उससे बोली कि जल्दी से जनकपुरी ले चलो। दरअसल अंबर ने मां से पूछकर नानी के घर का पता याद कर लिया था। जैसे ही नानी का घर आ गया। अंबर ऑटो से उतरी और कहा भैया रूकना में अभी पैसे ला रही हूं। यहां अंबर अपनी मां के साथ पहले एक-दो बार आ चुकी थी। नाना-नानी सामने हॉल में बैठे थे। मामा अपने काम पर निकलने ही वाले थे। सब लोग बदहवास हालत में अंबर को अचानक आया देखकर चौंक गए। बोले क्या हुआ बेटी तुम्हारी अम्मी कहां है। खौफज़दा अंबर ने कहा कि पहले ऑटो वाले का पैमेंट कर दीजिए। फिर बताती हूं, मामा ने ऑटो को रवाना किया तब तक अंबर पानी पीकर सामान्य हो चुकी थी। बोली आप लोग दादी के यहां जाकर अम्मी को डॉक्टर को दिखा लाइए। नहीं तो मेरी  अम्मी नहीं बच सकेंगी। इतना कहकर वह हिचकियों से रोने लगी।

पहली बार निगहत के घरवालों के सामने राज खुला कि वहां उन दोनों पर कैसे जुल्म ढाए जाते हैं। नानी ने अंबर को संभाला जो कि अभी भी रो रही थी। नाना और मामा फौरन ही निगहत के घर निकल गए। जाकर देखा तो निगहत रो-रोकर बेहाल थी और ससुराल वाले शोर मचा रहे थे कि अंबर न जाने कहां चली गई। दिन का वक्त था, इसलिए ससुराल के सारे मर्द काम के लिए बाहर थे। घर में सास-ननदें और जिठानी मौजूद थी। निगहत के अब्बा और मामा को वहां देखकर उन्होंने बहाना बनाया कि निगहत फिसल गई इसलिए बेहोष हो गई और चोटें आई है। नाना ने कहा कि उठो निगहत तुम्हें डॉक्टर के पास ले जाना है तो साथ में उनकी सास भी चलने को राजी हो गई। मामा ने निगहत को बताया कि अंबर उनके पास पहंुच गई है। तुम पहले डॉक्टर के पास चलो। फिर उसकी सास से कहा कि डॉक्टर से इलाज कराकर वो दोनों को वापिस छोड़ जाएंगे। ये सुनकर सब चुप रहे और वो तीनों बाहर निकल आए। डॉक्टर को दिखाकर निगहत की मरहम पट्टी करवाई और वे उसे अपने घर ले आए। घर आते ही लिपटकर मां बेटी रोने लगी। फिर अंबर ने कहा नाना अब हम वापिस नहीं जाएंगे। नानी ने प्यार के साथ उसे लिपटाते हुए कहा कि नहीं अब वहां कोई नहीं जाएगा। आज सेे हमारा उनसे रिष्ता खत्म वो सब हमारे लिए मर गए। काष पहले पता होता तो हम वहां तुम लोगों को रहने भी नहीं देते। अब जाकर निगहत के इतने सालों के जुल्मों का अंत हुआ था। इसके बाद निगहत की ससुराल से बहुत बुलावे तो बहुत आए मगर अब मायके वालों ने वापिस भेजने के लिए हामी नहीं भरी। रेहान को जब पता चला तो उसका कुवैत से फोन आया और गुस्से में आगबबूला हुआ चिल्लाता रहा। मगर निगहत कुछ बोली नहीं और उसका फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।

निगहत की ससुराल वालों को गुस्सा तो बहुत आया कि बिना पैसे काम करने वाली गुलाम चली गई। जब भी काम करते तो दस-दस बार उसे कोसते और याद करते। मगर दिल ही दिल ये एहसास भी सालता था कि अकेली निगहत के दम पर घर की सारी व्यवस्थाएं टिकी थी। जो भी मेहमान घर में आता फौरन ही सास और ननद या जिठानी का हुक्म आता कि पकोड़े तल दो, बिरयानी पकेगी। खाना ज्यादा पकेगा। कई बार तो एक हांडी पक जाने के बाद भी दूसरी हांडी की तैयारी करवा दी जाती। वह मासूम बिना गिला किए सर पर पल्लू लिए काम में जुटी रहती। अब तो घर भर का ये हाल था कि न सफाई हो पाती, न बर्तन धुलते और न ही खाना बनने के आसार होते। पूरे समय सब एक दूसरे पर काम टालते लिहाजा बहुत जल्दी काम वाली बुआ को भी वापिस बुला लिया गया। रेहान भी आया तो पूरे किस्से को नमक मिर्च लगाकर उसके आगे बखान किया गया। उसे भी वापिस जाने की जल्दी थी। क्योंकि उसे भी एहसास हो चला था कि अब्बा-अम्मां को उससे कम और जो पैसा वो भेजता है, उससे मोहब्बत ज्यादा थी। इतने साल घर से दूर रहने से उसकी बेरूखी भी घरवालों के प्रति बढ़ गई थी।

इधर निगहत की बेटी को स्कूल में एडमिषन दिला दिया गया। अब वो अपनी अम्मी के साथ बेहद खुष थी। नहीं तो वहां दादी के घर अम्मी दिन भर काम में जुटी रहती और जब थककर चूर कमरे में पहंुचती तो इंतजार में सो चुकी होती थी। देखा जाए तो अल्लाह ने जो हिम्मत अंबर को दी थी, वह उसमें नहीं थी। मायके में सब परेषान हो जाएंगे। कभी तो हालात बदलेंगे इसलिए वह सब सहती रही। धीरे-धीरे निगहत जो गुज़रा उसे दुखस्वपन समझकर भूलने की कोषिष कर रही थी। उसके चेहरे पर मुस्कान लौटने लगी थी। निगहत की बचपन की स्कूल की एक दोस्त थी शबनम उसको जब निगहत पर गुजरी दास्तान का पता चली तो वह परेषान हो गई और तय किया जो भी करना पडे़ वह करेगी और निगहत को इन हालात से छुटकारा दिलाकर रहेगी। उसने तकरीबन रोज ही निगहत के पास आना जाना षुरू कर दिया। निगहत ने भी अपनी छूटी हुई पढ़ाई पूरी करने का फैसला किया। कॉलेज में एडमिषन ले लिया और पढ़ाई में व्यस्त हो गई।

शबनम के भाई के एक दोस्त साहिल खान थे, जो कि व्यापार के चलते विदेष जा बसे थे। काफी दिनों तक उन्होंने अपनी वालिदा की खातिर ब्याह नहीं किया। उनकी सेवा करते रहे। एक दिन उनके बीमार होकर गुज़र जाने के बाद देखा कि सभी भाई अपनी गृहस्थी में मग्न थे। दिल में समाज सेवा का ज़ज्बा था। उन्हें ये मालूम था कि उनका जमा हुआ कारोबार है। जब दिल होगा शादी भी कर ली जाएगी। एक दिन अचानक ही मेट्रीमोनियल साइट पर उन्हें एक खूबसूरत महिला नीलोफर नज़र आई। जिसकी प्रोफाइल में सपष्ट लिखा था कि वो डाइवोर्सी है और दो बेटियों की मां भी है। उसका पति टर्की से था और अमेरिका में जॉब कर रहा था। उसे अमेरिका की नागरिकता भी मिली हुई थी। करीब आठ साल के बाद नीलोफर का तलाक भी हो गया। अब नीलोफर को तलाष थी, एक ऐसे बंदे की जो उसकी बेटियों की ज़िंदगी में पिता की कमी को पूरा करते हुए उसकी तन्हाई भी दूर कर सके। वो एक कंपनी में जॉब कर रही थी। साहिल को भी वो एक एजूकेटेड खातून नज़र आई। फोन पर बात हुई दोनों ने एक दूसरे के दिल का हाल जाना। कुछ अरसे बाद उनकी शादी हो गई। केवल एक साथ महीने भर का साथ दोनों ने हिंदुस्तान में गुज़ारा और हमेषा साथ रहने का वादा कर साहिल अपने काम पर लौट गए। नीलोफर अपनी जगह वापिस चली गई। पहले नीलोफर ने वायदा किया था कि वो अपनी बेटियों के साथ अमेरिका छोड़कर भारत आ जाएगी और साहिल भी यही बस जाएंगे। फिर पूरा परिवार एक साथ रहेगा। बाद में उसे लगा कि साहिल ही दुबई से अमेरिका आ जाए। अब साहिल को भी अपना जमा जमाया कारोबार समेटने में करीब दो साल का वक्त लगा। कंपनी के ऑर्डर सप्लाय किए। सबसे पेंमेट लिया और खुषी-खुषी अमेरिका जा पहंुचे। मगर इस बार एयरपोर्ट पर ही उन्हें नीलोफर के रंग-ढंग कुछ बदले हुए नज़र आए। उन्होंने महसूस किया कि जैसे नीलोफर को साहिल के आने की कोई खुषी नहीं हुई। रस्मी तौर पर दुआ सलाम हुई। बेगम नीलोफर ने उन्हें घर पर ड्रॉप कर कहा कि खाना फ्रिज में रखा है। उन्हें जब भूख लगे खा ले। वो उस दिन अपने दोस्तों के साथ नाइट स्टे के लिए जा रही थी। दोनों बेटियों को वह पढ़ाई के नाम पर पहले ही घर से दूर हॉस्टल में डाल चुकी थी।

साहिल को उसकी बेरूखी समझ नहीं आ रही थी। बहरहाल वह थका हुआ था तो उसने दिमाग पर ज्यादा बोझ नहीं डाला। आकर सो गया। अगले दिन जब नीलोफर जब वापिस आई तो उसने कहा कि साहिल में इस शादी को जारी नहीं रख सकती। यहां तक कि में अपनी बेटियों को भी साथ में रखना नहीं चाहती। इससे मेरी प्राइवेसी खत्म होती है। मैं आज़ाद ख्याल महिला हूं जो किसी भी बंधन को स्वीकार नहीं कर सकती। बेहतर होगा कि तुम वापिस चले जाओ और वहां जाकर डाइवोर्स पेपर्स भेज देना। साहिल तो एकदम शॉक रह गया क्योंकि वो दन सबके साथ रहने के लिए दुबई से कारोबार खत्म कर  आया था। जिस एक महीने वो अपनी पत्नी और बेटियों के साथ हिंदुस्तान में रहा था। वो समय उन सबने बहुत खुषहाल गुज़रा था। बहुत सोचा मगर उसे ऐसा कोई कारण नहीं मिला जिसमें उसकी कोई गलती पकड़ आए। उसने नीलोफर से पूछा भी वो उसके साथ परायों जैसा व्यवहार क्यों कर रही है। बदले में कोई जवाब नहीं मिला। तभी नीलोफर के पास एक फोन आया। वो एकदम चहकने लगी बोली यस आई एम रेडी। बातों से पता चला कि वो उसके बॉस का फोन था। इसके बाद नीलोफर को लेने एक कार आई जिसे उसके बॉस ही ड्राइव कर रहे थे। वो बोली डिनर पर जा रही हूं। तुम अपनी टिकट्स बुक कर लो वापिस जाने के लिए इतना कहकर चली गई।

अब साहिल को दो साल के अंतराल की कहानी समझ आने लगी थी। पहले वह सोचता तो था कि नीलोफर उसके साथ पहले जैसी उमंग और उत्साह में बात नहीं करती फिर ये सोचता कि व्यस्त होगी। खैर साहिल ने अमेरिका छोड़कर भारत में अपने परिवार के पास आने का फैसला किया। कुछ समय यहां रहा भी। वह तो उसके पास काफी जमा पंूजी थी तो उसे किसी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। दो साल बाद उसकी काबलियत की वजह से उसके पास दुबई में फिर से काम करने का बुलावा मिल गया। इस बार फिर दुबई जाकर दोबारा व्यवसाय शुरू किया जो जल्दी ही चल निकला। यह हादसा साहिल के लिए एक सबक तोे था ही बहरहाल ज़िंदगी की गाड़ी फिर से पटरी पर दौड़ने लगी थी।

एक दिन शबनम ने उन्हें फोन पर निगहत के बारे में बताया। हमदर्द तबियत के साहिल अभी भी अपने दिल में दूसरों की मदद का ज़ज्बा रखते थे लिहाज़ा पहला गम भूलने में उन्हें समय नहीं लगा। इसलिए तय हुआ कि जब भी वे हिंदुस्तान आएंगे तब एक बार निगहत से मुलाकात जरूर कर लेंगे। इस बार उनके आने पर शबनम ने उन्हें सब विस्तार  से बताया और वे निगहत के घर पहंुचे। जब वे मां बेटी दोनों से मिले तो उन्हें अंबर की मासूमियत ने छू लिया। उन्होंने तय किया कि अगर ये रिष्ता हुआ तो वे दुनिया के सामने अच्छे पिता बनकर एक मिसाल जरूर पेष करना चाहेंगे।

मगर बला अभी टली न थी। दूसरी शादी करने के लिए अभी निगहत का रेहान से तलाक होना बाकी था। जिस पर रेहान राज़ी न था। पहले तो वो कुवैत में होने के नाम पर बहाने बनाता रहा। फिर जब आया तब भी बीच में किसी की मध्यस्ता के बाद भी बहुत सी मुष्किलों का सामना करना पड़ा। निगहत और उनके परिवार वालों को इंतजार था कि रेहान नाम की बला से पीछा छूटे तो निगहत और मासूम अंबर की ज़िंदगी में खुषियां लौटकर आए। बड़ी लानत-मनालात के साथ रेहान से बात हुई। तब जाकर बहुत मुष्किल से रेहान काज़ी साहब के समझाने पर बिना कोई खर्चा और हर्जाना दिए हुए तलाक दिए जाने पर राजी हुआ।

अब दूसरी षादी हो जाने के बाद निगहत के हाथों से पसीने छूट रहे थे। दिल में सब तरह के ख्याल आ जा रहे थे कि खुदा जाने साहिल बाद में कैसे निकलें। अंबर को अपनाएंगे भी या नहीं वगैरह-वगैरह। इतने में दरवाजा नॉक हुआ और उसकी जिठानी याने साहिल की भाभी खाने की ट्रे लिए सामने थी। कुछ देर में साहिल भी आ गए। सबने खाना खाया। इसके बाद घर के पास ही जो डूपलैक्स साहिल ने बुक किया था। वहां जाने का समय हो गया। उस घर में जाकर निगहत ने देखा कि साहिल ने उसे बहुत खूबसूरती के साथ सजाया था। अपने स्वागत में यह सब देखकर निगहत को बहुत सुकून मिला। साहिल  उसके साथ बहुत अदब कायदे से पेष आया। सबसे पहले साहिल ने उसे वो कमरा ले जाकर दिखाया जो उसने अंबर के लिए तैयार किया था। वर्ना अभी तक निगहत को लग रहा था कि कहीं बेटी उससे नाराज होकर दूर न हो जाए। उसका कमरा देखकर निगहत की आंखे भर आई। यह देखकर साहिल ने उसके हाथ थामकर वादा किया कि पहले तुम दोनों पर क्या गुजरी अब उसे हमेषा के लिए भूल जाओ। हम एक साथ मिलकर नया आषियाना बसाएंगे। जिसमें हमारी कायनात होगी। हम तीनों के सिवा वहां कोई नहीं होगा और हां इस कायनात में सबके दिल खुषी से भरपूर रहेंगे और दमकते हुए चेहरों पर सिर्फ मुस्कान होगी। किसी को दुखी होने की इजाज़त नहीं होगी। अब तक साहिल के मिजाज़ को जानने के साथ निगहत को बेफ्रिकी होने लगी थी। अगले दिन रिसेप्षन था। दावत में उसके मायके वाले, साहिल के दोस्त और रिष्तेदार सब षामिल हुए। अंबर भी परी की तरह तैयार हुई अपनी दोस्तों के बीच खुष नज़र आई। अगले दिन निगहत की उसके मायके में दावत थी। जब वो साहिल के साथ दावत खाने के बाद वापिस आने लगी तब साहिल ने अंबर से कहा बेटे अपने घर चलो। यह सुनकर सब खुषी से अचंभित रह गए। मगर साहिल की सास ने कहा कि इतनी जल्दी नहीं अभी वो कुछ अरसे दोनों एक दूसरे के साथ रहें। कहीं घूमने चले जाएं। इसके बाद अंबर को जब चाहे तब ले जाए आखिरकार वो उन्हीं की बेटी है। 

जैसे ही एक सप्ताह के टूर से घूमकर दोनों दिल्ली वापिस आए। सबसे पहले बेटी को लेने घर पहंुच गए। अंबर भी इतने दिनों से अम्मी से अलग थी। वो जल्दी से अपना बैग जमाकर उनके साथ आ गई। बस अब क्या था सोने पर सुहागा। साहिल और निगहत दोनों अंबर के साथ घूमते और एंजाय कर रहे थे। कभी गीत संगीत की महफिल घर पर जमती तो कभी फिल्म जाने का प्रोग्राम बन जाता। कुछ दिनों बाद साहिल को दुबई वापिस जाना था। इसके बाद फैमिली वीसा मिलने के बाद इन दोनों को वहां बुला लेना था। साहिल के जाने का समय आ रहा था। बहुत भारी मन से निगहत और अंबर ने साहिल को विदा किया और अगले ही दिन से इंतजार करने लगी कि कब साहिल उन लोगों को वहां बुलाने की खुषखबरी सुनाए और फिर पूरी फैमिली एक साथ रहे। कुछ अंतराल बाद साहिल ने इन दोनों को वहां बुला लिया। अब सब एक साथ थे। निगहत बहुत खुष थी कि अब उसकी किस्मत ने उसका साथ दिया था। रब की मेहरबानी से उसके दिन पलट गए थे। साहिल बहुत प्यार और खुलूस के साथ इन दोनों का ख्याल रखता था। इसके पहले रेहान और उसके परिवार की जिस तरह से जु़ल्म और ज्यादती का षिकार दोनों बनी थी। अब मानो ईष्वर ने उस बुरे वक्त की भरपाई एक साथ ही कर दी थी। एक नेक फरिष्ते के तौर पर साहिल उसका शौहर था। उसकी बेटी पर जान छिड़कने वाले साहिल ने उसे अपनी शहजादी बेटी ही माना। यहां तक कि निगहत भी बाप बेटी के प्यार को देखकर ईष्वर से यही दुआ करती कि उनकी जिं़दगी यंू ही हंसी खुषी गुज़रती रहे। इन सबको साथ देखकर कोई अनजान व्यक्ति ये अंदाज भी नहीं लगा सकता था कि अंबर  साहिल की बेटी नहीं है। साहिल ने भी बेटी के साथ नाइंसाफी न हो जाए इसलिए यही तय किया कि वो अपना परिवार आगे नहीं बढायेगा उसकी सिर्फ एक ही बेटी अंबर रहेगी।

इतने में डोरबेल की आवाज सुनाई दी। अंबर कह रही थी कि उफ अम्मी न जाने किन ख्यालों में गुम हो जाती है। देख नहीं रही कि अब्बा हुजूर आ गए हैं और सबके पेट में चूहे कूद रहे हैं। निगहत मुस्कुराते हुए किचिन में जाते हुए यही सोच रही थी कि रब ने उस पर मेहरबानी की और उसकी दुआ कबूल कर नन्हीं सी बेटी को ही उसका रहनुमा बनाकर भेज दिया था और उसकी तमाम खोई हुई खुषियां उसे लौटा दी थी।

                                                                                                           कीर्ति चतुर्वेदी