हलचल - पार्ट 7 Darshika Humor द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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हलचल - पार्ट 7

दोस्ती का उसूल

अब तक आपने देखा:-
अद्वय और आकृति के बीच दोस्ती की छोटी सी शुरुआत होती दिखाई देती है जब अद्वय आकृति की मदद करता है।

अब आगे:-
आकृति अपनी सोच से बाहर ही निकलती है कि bell बज जाती है। टीचर सभी स्टूडेंट्स को होमवर्क दे कर निकल जाते है पर आकृति कुछ नोट नहीं कर पाती। ऐसा लग रहा होता है जैसे उसका शरीर तो वहीं है पर मन कहीं और। सारी क्लास बाहर निकल जाती है अद्वय भी अपना बैग पैक कर ले जाने को ही होता है कि तभी उसकी नज़र मायूस आकृति पर पड़ती है।

उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे chear करते हुए अद्वय कहता है:- don't worry आकृति। तुम चिंता मत करो तुम्हारे बहुत सारे दोस्त बनेंगे। हम्म

आकृति धीमी आवाज़ में कहती है:- आई थिंक की मेरे दोस्त ही नहीं बनेंगे क्योंकि अब तो आधा सेमेस्टर बीत चुका है। सब लोगो का ग्रुप भी तो बन चुका है और तुम्हारा भी तो इतना बड़ा ग्रुप है??

अद्वय थोड़ा सोचता है और फिर कहता है:- तुम सोचती हो कि मेरा बड़ा ग्रुप है तो मै कोई स्कूल का गैंगस्टर बन गया हूं जो तुम जैसे इनोसेंट स्टूडेंट्स को अपने ग्रुप में शामिल नहीं करूंगा।।

आकृति सिर हिलाते हुए:- हां। मुझे यही लगता है। तभी तो तुमने मुझसे दो बार बात नहीं की। मेरे बुलाने पर भी

और फिर आकृति अपना सिर मोड़ लेती है।

अद्वय उसके सामने आ जाता है और कहता है:- जो तुम सोच रही हो वो एकदम उल्टा है। देखो तुमने मुझे जब पहली बार बुलाया था तब सर हमारी तरफ ही देख रहे थे। इसलिए मै तुम से बात नहीं कर पाया और lunch time मैं जल्दी इसलिए चला गया था क्योंंकि मेरा भाई मेरा इंतज़ार कर रहा था तो में उसके पास चला गया। आज मेरा दोस्त सेम नहीं आया था इसलिए मेरा मूड ऑफ था। पर तुमने ये सब सोचा कैसे?? कहीं रेयांश ने तो तुम्हे भड़काया??

आकृति:- तुम्हे कैसे पता??

अद्वय मुस्कुराते हुए:- इस स्कूल के पत्ते पत्ते के रग रग से वाकिफ हूं मै मोहतरमा।कहो तो एक एक के राज़ से परदा उठा दू।।

आकृति मुस्कुराते हुए:- क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगे??

अद्वय थोड़ी शरारत से कहता है:- हां करूंगा।। पर मेरी दोस्ती का एक उसूल है ?? पहले अपना थैंक्यू वापिस लो??

आकृति थोड़ी गंभीरता से:- seriously!पर क्यों??

अद्वय फिल्मी अंदाज में:- वो क्या है ना दोस्ती का एक उसूल है नो sorry no thankyou.

आकृति थोड़ी खुशी से:- ok। मैंने अपना थैंक्यू वापस लिया जनाब। चलो हाथ मिलाते है

अद्वय खुशमिजाजी से:- जो हुकुम मेरे आका

आकृति थोड़ी सोचते हुए:- ये कितना अजीब नहीं है अद्वय कि कुछ देर पहले हम एक दूसरे को जानते ही नहीं थे और अब ऐसा लग रहा जैसे कितनी लंबी यारी है

अद्वय:- आदत डाल लो क्योंंकि अद्वय की दोस्ती चंद समय की नहीं बहुत लंबी चलती है।।

आकृति समझदारी से:- क्या खूब कहा है तुमने। तुम्हारी मेरी खूब जमेगी। पर मुझे तुम्हारे फ्रेंड सेम के लिए डर लग रहा है कही उसकी दोस्ती फीकी ना पड़ जाए

अद्वय गंभीरता से:- डरने की क्या जरूरत!!दोस्तो की दोस्ती निभाने में अद्वय सा दूसरा कोई नहीं

आकृति:- चलो देखते है तुम्हारी दोस्ती।🙂🙂🙂

अद्वय:- ठीक है चलो देखता हूं तुम्हारी भी दोस्ती।😌😌

इस तरह देखते है कि दोनो की दोस्ती क्या रंग लाएगी।
एक बेहतरीन दास्तान बनकर जो हमें याद रह जाएगी।