The Author Harshit Ranjan फॉलो Current Read राजसिंहासन - 3 By Harshit Ranjan हिंदी फिक्शन कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books साथिया - 127 नेहा और आनंद के जाने के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई... अंगद - एक योद्धा। - 9 अब अंगद के जीवन में एक नई यात्रा की शुरुआत हुई। यह आरंभ था न... कॉर्पोरेट जीवन: संघर्ष और समाधान - भाग 1 पात्र: परिचयसुबह का समय था, और एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी की... इंटरनेट वाला लव - 90 कर ये भाई आ गया में अब हैपी ना. नमस्ते पंडित जी. कैसे है आप... नज़रिया “माँ किधर जा रही हो” 38 साल के युवा ने अपनी 60 वर्षीय वृद्ध... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Harshit Ranjan द्वारा हिंदी फिक्शन कहानी कुल प्रकरण : 4 शेयर करे राजसिंहासन - 3 (1) 1.4k 3k बंधन से आज़ाद होजाने के बाद उस राजा ने मेरा शुक्रिया अदा किया । मुझे क्या पता था कि वो राजा और कोई नहीं ब्लकि खुद चाचाश्री शरणनाथ हैं । मैंने उनसे पूछा कि आप इस बीरान जंगल में अकेले क्या कर रहे थे ? तब उन्होंने बताया कि वो यहाँ पर अपने कुछ मंत्रियों के साथ शिकार खेलने आए थे । रात्रि में अपने मंत्रियों तथा सैनिकों के सो जाने के बाद वे अपनी छावनी के बाहर भ्रमण कर रहे थे तभी उन लुटेरों ने उन्हें बंदी बना लिया । हमारे बीच बातचीत हो ही रही थी तब तक उनके सैनिक और कुछ मंत्री उन्हें खोजते हुए आए । राजा ने उन्हें पूरा वृतांत सुनाया । मंत्रियों ने मुझे धन्यवाद कहा और राजा को यह सलाह दी कि वे मुझे राजमहल ले चलें और फिर दरबार में मेरा सम्मान करें । राजा ने इस बात का समर्थन किया और मुझे अपने साथ चलने के लिए कहा । मैंने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया । दो दिनों की यात्रा के पश्चात हम लोग राजमहल पहुँचे । राजमहल पहुँने के बाद उन्होंने दरबार में मेरा सम्मान किया और इसके बाद मुझसे मेरा परिचय पूछा । मैंने उन्हें बताया सच नहीं बताया और अपनी पहचान छुपाई । अपने वस्त्रों के कारण मैं अपने आपको साधारण नागरिक तो नहीं कह सकता था इसलिए मैंने अपने आपको एक सेठ का लड़का बताया । मैंने उन्हें बताया कि मेरे पिताजी चाहते हैं कि मैं उनके कारोबार को आगे बढ़ाऊँ लेकिन मेरी रुचि शुरू से ही तलवारबाज़ी में ज़यादा रही है । मैं एक योद्धा बनना चाहता हूँ । इसलिए मैं बिना बताए अपने घर से भाग आया हूँ । यह सुनकर उन्हें मुझपर दया आ गई और उन्होंने मेरी वीरता का परिक्षण करने के पश्चात मुझे अपने राज्य का सेनापति नियुक्त कर दिया । सेनापति नियुक्त होने के बाद मैंने उनके राज्य में हो रही देशविरोधी घटनाओं पर ताला लगा दिया । जाजाश्री मेरी वीरता से अत्यंत ही प्रसन्न थे । मेरे नेतृत्व में उनकी सेना ने विदेशी आक्रमणकारियों का खात्मा कर दिया । उन्होंने मुझे एक दिन अपने कक्ष में बुलाया और मुझसे कहा कि मेरी कोई संतान नहीं है जो आगे जाकर इस राज्य को संभाल सके । मैं सदैव इसी गम में डूबा रहता था कि क्या मेरी मृत्यु के बाद यह राज्य अनाथ हो जाएगा । लेकिन मेरी इस समस्या का निवारण हो गया है । मैं तुम्हारी बुद्धिमता से अत्यंत ही प्रभावित हूँ । इसलिए मैंने तय किया है कि मैं तुम्हें ही इस राज्य का नया राजा बना दूँ । आनेवाली पूर्णिमा को तुम्हें अपने राज्य का नया राजा बना दूँगा । मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे राज्याभिषेक में तुम्हारे पिता भी आएँ । मैं स्वयं तुम्हारे साथ उन्हें आमंत्रित करने चलूँगा । तब मैंने उन्हें बताया कि महाराज मैंने सदैव आपको भ्रम में रखा । मेरा पिता और कोई नहीं ब्लकि स्वयं आपके ज्येष्ठ भ्राता यानि महाराज जयसिंह हैं । और मैं आपका सबसे छोटा भतीजा यानि राजकुमार माधोसिंह हूँ । यह सुनकर उनकी आँखों में चिंगारियां सुलगने लगी और बिनि विलंभ किए उन्होंने अपनी तलवार मयान से निकाली और मेरी गर्दन पर रख दी । ‹ पिछला प्रकरणराजसिंहासन - 2 › अगला प्रकरण राजसिंहासन - 4 Download Our App