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अनजान रीश्ता - 92

पारुल टेबल पर से फर्स्ट एड बॉक्स लेते हुए भागते हुए फिर से बालकनी की ओर जाती है। अविनाश अभी भी वह जैसी हालत में छोड़कर आई थी वैसे ही बेहोश पड़ा था। पारुल जमीन पर पड़े कांच के टुकड़ों से बचते हुए अविनाश के पार आकर बैठती है। वह अविनाश के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए... खून से लपालप पट्टी निकलने की कोशिश करती है। अविनाश को कुछ ज्यादा ही चोंट लगी थी । इसीलिए शायद वह इस हालत में भी दर्द की वजह से उसके चेहरे पर थोड़े भाव आ रहे थे। पारुल आहिस्ता आहिस्ता पट्टी खोलती है। उसके हाथ इतना खून देखकर कांप रहे थे ऊपर से अविनाश होश में भी ना होकर! कुछ गुनगुना रहा था। पारुल को समझ नहीं आ रहा था की क्या था लेकिन इतना पक्का था की कुछ बुरा सपना देख रहा था। पारुल एंटीसेप्टिक लेते हुए... उसके हाथ में लगा खून साफ कर रही थी। जब वाह घाव पर दवाई लगाती है तो अविनाश थोड़ी बहुत हरकत करता है। जिस वजह से पारुल फूक मारते हुए.. हाथ में दवाई की वजह से जो जलन हो रही है वह कम करने की कोशिश करती है।

पारुल ने जैसे तैसे खुद को संभाल के तो रखा था लेकिन उसकी आंखे अविनाश की ऐसी हालत देखकर मानो! भर ही आई थी। लेकिन वह आंसू को ज्यादा देर तक रोक नहीं पाई थी। और कब आखों से बहने लगे उसे पता ही नहीं चला। अविनाश के हाथ में पट्टी बांधते हुए वह अपनी आंखो से आंसू पोंछे जा रही थी लेकिन आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। इतने सालों बाद वह उस इंसान के लिए रॉ रही है! जिसको खुद पारुल ने दूर किया था। वह फर्स्ट एड बॉक्स बंद करते हुए साइड में रख देती है। और एक नजर अविनाश की ओर देखती है। उसके बाल आंखो को ढक रहे थे!। पारुल हिचकिचाते हुए! उसके बालो को आंखों से दूर साइड में करती है। जब उसकी नजर अविनाश की ओर पढ़ती है तो मानो जैसे पारुल के दिल में एक तेज तरंग सी पैदा हुई हो। वह अविनाश के चेहरे को गौर से देखें जा रही थी। मानों जैसे इतने सालो में कुछ भी नहीं बदला सिवाय अविनाश के बरताव के! या फिर आज के बाद जो हुआ उसके बाद वह भी पुराने अविनाश जैसा ही स्वभाव है। तो कह सकते है वह बस दिखावा करने लगा है।

पारुल अविनाश के चेहरे को इतने साल बाद इतना करीब से देख रही थी। पहले उसकी नजर सिर पर लगी चौंट पर जाती है! फिर उसकी आंखे, जो की बंद थी, उसकी नाक और आखिर में उसके होठ पर मानो जैसे अविनाश का चेहरा! चेहरा ना होकर कोई अजायबी हो। अविनाश के चेहरे पर आंसू की कुछ बूंदे सुख गई थी। जिससे पारुल देख रही थी और जितना वह उसे देखती उतना पारुल के दिल में एक अजीब सा भाव पैदा हो रहा था। शायद अपराध बोध की भावना कह सकते है। वह अविनाश के गाल को कापते हुए हाथो से छू ती है। तो एकाएक उसे अनुभव होता है की अविनाश के गाल बर्फ की तरह ठंडे है। वह जल्दी से खुद पर काबू पाते हुए, रेलिंग पर पड़े जैकेट से अविनाश को ढकने की नाकाम कोशिश कर रही थी। हवा का रुख जैसे जैसे रात बढ़ रही थी बढ़ता जा रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था की कैसे अविनाश को कमरे तक ले जाए क्योंकि उठाकर ले जाने की हिम्मत उसमे है नहीं! और अगर नीचे से किसीको बुलाया तो बात का बतंगड़ बन जाएगा! तो वह ऐसा रिस्क नहीं ले सकती । मजबूरन वह अविनाश को जगाने की कोशिश करती है। काफी मेहनत के बाद अविनाश को थोड़ा बहुत होश आता है। लेकिन अभी भी वह शायद नशे की हालत में था।

पारुल अविनाश के हाथ को अपने कंधे पर रखते हुए सहारा देने की कोशिश कर रही थी। जो की पारुल के ऊपर अविनाश का आधा शरीर था! एक तो उसकी हाइट छोटी होने की वजह से और दूसरा अविनाश को खुद को चलने की हिम्मत नहीं थी। पारुल जैसे तैसे कर के अविनाश को बेड तक ले जाती है। और अविनाश को बेड पर लेटाते हुए! खुद भी पास में लेट जाती है। मानो बालकनी से रुम तक का सफर जैसे दरिया पार करने जितना कठिन था। पारुल थोड़ी देर बाद देखती है तो अविनाश अभी भी वैसे ही सोया हुआ था। आधे पैर बेड के बाहर और आधा शरीर बेड के ऊपर । पारुल अविनाश तकिए तक ले जाने की निरर्थक कोशिश करती है। अंत में हार मानते हुए वह कोशिश करना छोड़ देती है। वह कंबल से अविनाश को ढकने की कोशिश कर रही थी । तभी फिर से उसका ध्यान अविनाश के चेहरे की ओर जाता है। वह एक पल के लिए मानो फिर से थोड़ी देर पहले छोड़े हुए ख्यालों में डूब जाती है। उसे पता ही नहीं चला की वह देखते ही देखते कब ख्यालों में लीन हो गई । और कब अविनाश ने अपनी आंखे खोली! ।

अविनाश: वाईफी! मारने का इरादा है क्या!?।
पारुल: ( हड़बड़ाते हुए अविनाश की ओर देखती है और एक दो कदम पीछे ले लेती है। ) मैं.. वो तुम्हे कंबल ओढ़ा रही थी! ।
अविनाश: मुझे कंबल तुम क्यों ओढ़ा रही थी। मैं क्या कोई बच्चा हूं जो तुम मुझे! ( उल्टी को रोकते हुए ) जल्दी से खड़ा होता है लेकिन उसके कदम लड़खड़ा जाते है।
पारुल: ( सहारा देते हुए ) तुम क्या कर रहे हो!? ।
अविनाश: मैराथन में जाने की... ( उल्टी रोकते हुए ) ।
पारुल: अमम! मैं तुम्हे बाथरुम तक ले जाती हूं! ।
अविनाश: ( आश्चर्य और शोक में पारुल की ओर देखता है की इसे क्या हो गया है! लेकिन ज्यादा देर तक रुक नहीं सकता था इसलिए वह पारुल के कंधे पर हाथ रखते हुए बाथरुम तक पहुंच जाता है। दरवाजा खोलते हुए ) यहां से में चला जाऊंगा! ।
पारुल: पर... ।
अविनाश: बीवी.. अविनाश खन्ना इतना कमजोर नहीं हुआ की ... ( जल्दी से अंदर भागते हुए ) ।
पारुल: ( वही खड़े सोच रही थी की अविनाश होश में आने के बाद कैसे रिएक्ट करेगा। क्या वह फिर से अपने नफरत भरे व्यवहार में। तभी दरवाजा खुलने की आवाज आती है। जिससे पारुल बाथरुम की ओर देखती है। ) ।
अविनाश: बीवी! यहां क्यों खड़ी हो! देखो एक तो मेरा सिर दर्द के मारे फटा जा रहा है तो प्लीज! जो भी बहस करनी है सुबह अभी नहीं । ( इतना कहते ही वह बेड पर जाकर औंधे मुंह लेट जाता है। ) ।
पारुल: ( समझ नहीं पाती कि अविनाश नाटक कर रहा है या उसे सच में याद नहीं! लेकिन वह इतनी बड़ी घटना ऐसे कैसे भुल सकता है। फिर वह जब अविनाश की ओर देखती है तो वह अपने सिर को पकड़कर लेता हुआ था। पारुल ना चाहते हुए भी अविनाश के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर बन चुका था लेकिन शायद वह जान नहीं पाई। वह बॉक्स में से पेन किलर निकालते हुए अविनाश से कहती है। ) ये लो... ।
अविनाश: ( सिर पकड़कर पारुल की ओर देखता है फिर उसके हाथ की ओर । ) यह क्या है!? ।
पारुल: दवाई! इससे सिर दर्द कम हो जाएगा! ।
अविनाश: ( बिना कुछ कहे पेन किलर पारुल के हाथ में से ले लेता है। वह जैसे ही पानी का ग्लास लेने जाता है पारुल उसे ग्लास भरकर उसके सामने रख देती है। जिस वजह से वह कहे बिना रह नहीं पाता । ) वाइफी आज मुझे तुम बदली बदली क्यों लग रहीं हों!? कुछ चाहिए क्या!? या क्या बात है!? ।
पारुल: ( आश्चर्य में अविनाश की ओर देखती है लेकिन कुछ बोल नहीं पाती । ) नहीं! कुछ नहीं।
अविनाश: ( और कुछ बोलना नहीं चाहता था। सिर को हां में हिलाते हुए। ) ठीक है फिर सो जाओ! ( बेड पर हाथ रखते हुए। इशारा करता है। )  रात काफी हो गई है।

अविनाश इतना कहते ही सो जाता है। पारुल बेड के  दूसरी तरफ जाकर सो जाती है। दोनों ही बिना कुछ कहें आंखे बंद करके चुपचाप बेड पर सोए हुए थे। और कब दोनों नींद में खो गए! पता ही नहीं चला।

( Guys don't forget to comment 😊 have a bless day ) 

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