हारा हुआ आदमी (भाग 51) Kishanlal Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हारा हुआ आदमी (भाग 51)

उस रात माया पर वासना का भूत सवार था और आज देवेन पर।उस रात माया,देवेन की कोई बात सुनने के लिए तैयार नही थी।आज देवेन, माया की कोई बात नही सुनना चाहता था।
माया को देवेन से बचने का एक ही उपाय नज़र आया।वह बिस्तर से उठ गयी।
"मैं भी उस रात आपके चुंगल से बचना चाहता था।इसलिए बिस्तर से उठ गया लेकिन आपने चीखकर लोगो को बुलाने का डर दिखाकर आपने मुझे वापस बिस्तर में लौट आने को मजबूर कर दिया था,"देवेन ने माया का हाथ पकड़कर वापस बिस्तर में खिंचते हुए कहा,"आज मुझे लोगो का डर नही है।आप चाहे तो हल्ला मचाकर देख ले।आज मै किसी भी सूरत में आपको नही छोडूंगा।आपने स्वेछा से समर्पण नही किया तो मुझे जबरदस्ती करनी पड़ेगी।आप चाहे बलात्कार का मुकद्दमा लिखा दे।"
"तुम इमोशनल ब्लैक मेल कर रहे हो।"
"कैसे?"
"तुम जानते हो मैं ऐसा करके अपनी बेटी का घर बर्बाद नही करूंगी।"
"आप काफी समझदार है।"
देवेन ने माया को अपने आगोश में ले लिया।माया ने अपने आपको देवेन की पकड़ से छुड़ाने का प्रयास किया लेकिन देवेन की पकड़ इतनी मजबूत थी कि माया का विरोध तूफान में जैसे तिनके उड़ जाते है।वैसे ही माया पलँग पर आ गिरी।उसके गिरते ही देवेन उसके शरीर पर लेटकर ताबड़ तोड़ उसके अधरों का रसपान करने लगा।फिर उसने माया के शरीर से ब्लाउज अलग कर दिया।फिर वह उसके स्तन दबाने लगा और ब्रा भी शरीर से हटा दी।वह काफी देर तक माया के शरीर को चूमता रहा।
देवेन प्लीज मुझे छोड़ दो
लेकिन देवेन उसके अनुनय विनय को नही सुन रहा था।माया उसे डरा धमका भी नही सकती थी।पहल तो उसी ने की थी।चाहे वासना के वशीभूत होकर उसके कदम डगमगा गए हो।और वह उस रात जबरदस्ती ही सही देवेन को मजबूर कर दिया हो।उसी बात का देवेन फायदा उठा रहा था।वह लगातार गिड़गिड़ाती रही और देवेन एक एक करके उसके शरीर से कपड़े अलग करता रहा।
और वस्त्र विहीन करके देवेन ,माया के शरीर को निहारते हुए बोला,"सुंदर।अति सुंदर।अजंता एलोरा की गुफाओं पर उभरी आकृतियों से भी ज्यादा आप सुंदर है।वह माया के नाक आंख और अंग प्रत्यंग की सुंदरता का बखान करते हुए।उन्हें चूमने भी लगा।और आखिर कब तक माया का शरीर ठंडा बना रहता।देवेन की छेड़छाड़ और हरकतों से माया के शरीर मे दौड़ रहा खून गर्म होने लगा।उसकी आँखों मे वासना के डोरे तैरने लगे।और फिर देवेन का शरीर माया के शरीर से एकाकार होते ही वासना का सैलाब आ गया।जब सैलाब थमा तब देवेन पस्त होकर एक तरफ पड़ गया।माया भी।कुछ देर बाद माया उठकर जाने लगी तो देवेन उसका हाथ पकड़कर बोला,"यह खेल आज पूरी रात चलेगा।"
और उस रात देवेन बार बार माया के शरीर से खेलकर पस्त होता रहा।
फिर दिन निकलने पर देवेन जिस काम से आया था।उसके लिए चला गया।देवेन का काम एक ही दिन में हो गया था।लेकिन अभी माया के तन से उसका मन भरा नही था।जब वह बैंक से लौटा तो माया बोली,"काम हो गया?"
"हां।"
"तो क्या शाम की ट्रेन से वापस दिल्ली जाओगे?"
"नहीं। आज रात और आपके साथ गुज़ारनी है।"
माया कुछ नही बोली।वह जानती थी।देवेन उसे नही छोड़ेगा।इसलिए वह खुद ही उसके पास बिस्तर में लेटते हुए बोली,"मैं तैयार हूँ।"
और माया और देवेन