हारा हुआ आदमी (भाग49) Kishanlal Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हारा हुआ आदमी (भाग49)

और उन्हें शादी न करने के फैसले पर पुनः विचार करना पड़ा।रोज कौन बेटी को रखता।उन्होंने अपने पंडित से कहा'बेटी की देखभाल के लिए कोई नही है।"
"आप शादी कर लो"।
"आप कोई लड़की तलाशे जो बेटी की देखभाल भी कर सके"
"मेरी नज़र में है।"
"कौन है?"
"मेरे जजमान है दिनेशजी।उनके चार बेटी है। बड़ी बेटी शादी लायक है।आर्थिज सिथति सही नही है।देने लेने को कुछ नही है।"
"मुझे पैसा नही बेटी के लिए मां चाहिए"
"तो मैं बात चलता हूँ।"
और पंडितजी ने बात चलायी।दिनेश के चार चार बेटी थी।कहां से लाएंगे दहेज।और वह माया की शादी राम प्रसाद से करने को तैयार हो गये।दूजे है तो क्या?सरकारी नौकर है।कोई है नही परिवार में।बेटी राज करेगी।अकेली रहेगी।
और बीस साल की और राम प्रसाद चालीस के।बेमेल विवाह था लेकिन हुआ कुंवारी लड़की को दूजे से व्याह दिया गया।
राम प्रसाद की शारीरिक भूख मिट चुकी थी।उन्होंने शादी निशा को सम्हालने के लिए की थी।
माया जवान थी। उसके तन में वासना का उफान था।राम प्रशाद अधेड़ थे।उनके शरीर मे इतनी सामर्थ्य नही थी कि माया के वासना के तूफान को थाम सके।जवान पत्नी की वासना की प्यास बुझा सके।इसलिए माया शादी होने के बाद भी अतृप्त रह गयी।लेकिन माया पतिव्रता बनी रही।पति उसके शरीर की प्यास बुझा नही पाता था।फिर भी कभी भी माया ने न पर पुरुष की तरफ देखा,न ही कभी पराये मर्द से शारीरिक सम्पर्क जोड़ने का प्रयास किया।और धीरे धीरे माया भी सेक्स से विमुख होती गयी।शारीरिक सुख से विमुख होती गयी।हालात से उसने समझौता कर लिया।
समय तो अपनी गति से चलता रहता है।एक फिन राम प्रशाद को हार्ट अटैक पड़ा।तुरन्त उन्हें अस्पताल ले जाया गया।परन्तु किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।डॉक्टरों के लाख प्रयास के बावजूद राम प्रसाद को बचाया नही जा सका।माया की मांग का सिंदूर उजड गया
माया जवानी में ही विधवा हो गयी थी।अभी उसके सामने पूरी जिंदगी थी।कुछ रिश्तेदारों ने सलाह दी,"तुम्हे पुनर्विवाह कर लेना चाहिए।"
"नही।मैं दूसरी शादी नही करूंगी।"और उसने दूसरी शादी करने से साफ इंकार कर दिया था।
पति की मौत के बाद उसकी अनुकम्पा के आधार पर नौकरी लग गयी।उसने पति की मौत के बाद अपने को बदल डाला।पति कभी भी उसे तृप्त नही कर पाए।पति के जाने के बाद जो थोड़ा बहुत शारीरिक सुख मिलता था।पति के न रहने पर वो भी नही रहा।लेकिन उसने पति के न रहने पर भी कोई अनाधिकार चेष्टा नही की।शरीर की आग को भूल गयी।और वासना की आग दिल के किसी कोने में दब कर रह गयी।उसके मन मे पति के न रहने पर कभी भी सेक्स का विचार मन मे नही आया।
उस रात माया की पड़ोसन। राधा जो उसकी हम उम्र थी।उसे अपने घर ले गयी।राधा का पति सुरेश एक कम्पनी में काम करता था।उसका टूरिंग जॉब था।वह ज्यादा तर घर से बाहर ही रहता था।राधा और सुरेश की शादी को पन्द्रह साल हो गए थे।लेकिन अभी तक वे निसन्तान ही थे।लाख इलाज और मन्नतों झाड़, फूंक के बावजूद राधा को मातृत्व सुख की प्राप्ति अभी तक नही हुई थी।
पति के बाहर चले जाने के बाद राधा घर मे अकेली रह जाती थी।