हारा हुआ आदमी (भाग 46) Kishanlal Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हारा हुआ आदमी (भाग 46)

एक नयापन नज़र आता।भले ही माया ,निशा से बड़ी थी लेकिन गर्मी भरपूर थी।रात को तो माया ने उसे जबरदस्ती सम्बन्ध बनाने को मजबूर किया था।लेकिन अब वह स्वंय इसके लिए लालायित था।
देवेन अपने काउंटर पर बैठा था तभी चपरासी आकर बोला,"आपको मैनेजर साहिब बुला रहे है,"
"अच्छा।अभी आता हूँ"चपरासी उसकी बात सुनकर चला गया।
"आपने बुलाया"।मैनेजर के चेम्बर में प्रवेश करते हुए देवेन बोला था।

"हां"मैनेजर कोई पत्र पढ़ रहा था।वह नज़रे उठाकर बोला,"बाहर जाना है।"
"बाहर,"देवेन बोला,"बाहर कहां जाना है,?'
'आगरा जाना है।बैंक से कुछ ब्यौरा लाना है।"मैनेजर ने उसे काम के बारे में बताया था।
आगरा का नाम सुनते ही देवेन को माया याद आ गयी।उसके साथ गुज़ारे क्षण साकार हो उठे।और उन मादक क्षणों को फिर से जीवंत करने की कल्पना साकार हो उठी।और वह बोला,"चला जाऊंगा।कब जाना है?'
"रात को या सुबह जिसमे भी तुम्हे सुविधा हो।एक या दो दिन का काम है।
देवेन आगरा जाने के लिए तैयार हो गया।वह जरूरी कागज लेकर घर आ गया।उसे देखते ही निशा बोली,"आज जल्दी कैसे आ गए?"
"आगरा चलोगी?"देवेन, पत्नी की बात सुनकर बोला।
"आगरा,"निशा पति की बात सुनकर बोली,"आगरा क्यो?"
"बैंक के काम से जा रहा हूँ।"
"कौनसी ट्रेन से जाओगे?"
"जो भी मिल जाएगी"
"कल ही या परसो,"देवेन बोला,"तुम्हे भी चलना है तो चलो।"
"नही।तुम ही जाओ।"निशा बोली।
निशा ने देवेन के साथ चलने से मना कर दिया था।इससे देवेन खुश हुआ था।वह अकेले ही जाना चाहता था।लेकिन दिल की बात पत्नी के सामने जाहिर भी नही होने देना चाहता था।इसलिय दिखाने को पत्नी से पूछा था।
"जैसी तुम्हारी मर्जी।"
"लो राहुल को खिलाओ।मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूँ।"देवेन ,राहुल को लेकर सोफे पर बैठ गया।राहुल अभी सिर्फ छः महीने का था।निशा उसका पूरा ख्याल रखती थी।देवेन बेटे को खिलाने लगा।निशा चाय बनाकर ले आयी।पति पत्नी ने बैठकर चाय पी थी।चाय पीने के बाद निशा खाना बनाने के लिए किचन में चली गयी।खाना खाने के बाद देवेन जाने के लिए तैयार होने लगा।उसे तैयार होता देखकर निशा बोली,"कल रात को लौट आओगे?"
"मेरे
"मेरे लौटने ना लौटने से तुम्हे क्या फर्क पड़ता है?"
"फर्क नही पड़ता तो मैं क्यो तुमसे बैंक का फार्म भरने के लिये कहती।मैं चाहती थी तुम मेरे पास रहो।इसीलिए मैंने तुमसे बैंक का फॉर्म भरने के लिए कहा था।"
निशा ने प्यार भरी नज़रो से पति की तरफ देखा था।निशा कितनी भोली,प्यारी और मासूम लग रही थी।उस लगा वह निशा की नज़रो का सामना नहीं कर पायेगा। उसके मन मे चोर जो बैठा था।वह पाप के इरादे से आगरा जा रहा था।पर पत्नी को देखकर सोच में पड़ गया।एक तरफ उसकी सास माया दूसरी तरफ उसकी पत्नी निशा।वह किंकर्तव्यविमूढ़ सा सोचने लगा।इस तरह सोच में खड़ा देखकर निशा बोली,"क्या सोचने लगे?"
"मेरा जाना तुम्हे बुरा लग रहा है,तो नही जाता।"
देवर्न का मन चंचल हो रहा था।वह पत्नी को धोखा देना नही चाहता था।उसके साथ विश्वासघात नही करना चाहता था।लेकिन माया के अनचाहे समर्पण ने उसके मन मे प्यास जगा दी थी।वह उसके तन को फिर से पाना चाहता था।उसके शरीर को भोगना चाहता था।उसे हम बिस्तर बनाना चाहता था।पहले बेमन से भोगना पड़ा।अब मन से वह ऐसा चाहता था।लेकिन मन मे डर भी था।पत्नी का डर।अगर निशा को उसके इस कृत्य का पता चल गया तो