दो रास्ते - भाग-5 - अंतिम भाग S Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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दो रास्ते - भाग-5 - अंतिम भाग

कहानी दो रास्ते अंतिम भाग - 5


नोट - पिछले अंक में आपने पढ़ा कि अमर और रीमा बेटे की तलाश में गए थे . उनका बेटा संजू मिलता है . इधर चोपड़ा दम्पत्ति का खोया बेटा विजय अभी तक नहीं मिला था और इसी सदमें में मिसेज चोपड़ा की मृत्यु हो गयी , अब आगे ….


समय बीतता रहा . उधर सुमित्रा बेटे को खोने के बाद बुरी तरह विक्षिप्त हो गयी थी . इधर उधर सड़कों और गलियों में महीनों से एक ही कपड़े में घूमती फिरती . जहाँ जो भी उसके आगे फेंक देता उसी को खा लेती . दूसरी तरफ अपने बेटे को खोने के बाद मिसेज चोपड़ा ज्यादा दिन जिन्दा न रहीं दो साल के अंदर ही चल बसीं . चोपड़ा ने कुछ दिनों तक बेटे की तलाश में दौड़ धूप किया . बाद में उनका स्वास्थ्य भी साथ नहीं दे रहा था तब घर से ही थाने में फोन कर बेटे के बारे में पूछ लेते थे .


इधर पुलिस ने समझ लिया था कि संजू मिल ही गया है , अब उसे चोपड़ा के बेटे विजय की तलाश करनी है . एक अंतर्राज्यीय मीटिंग में पुलिस ने पाया कि संजू तो मिल गया है और अब विजय की खोज करनी है . उन्हें यह देख कर आश्चर्य हुआ कि दोनों बच्चों के चेहरे करीब करीब हू बहू मिल रहे थे . उन्हें शक हुआ कहीं यह जुड़वें बच्चे तो नहीं थे .


एक दरोगा ने अमर के घर जा विजय का फोटो दिखा कर पूछा “ कहीं संजू का कोई जुड़वां भाई तो नहीं था और उनमें से एक अस्पताल से चोरी हो गया हो ? “


रीमा ने कहा “ मानता हूँ दोनों के चेहरे काफी मिलते जुलते हैं पर जुड़वाँ ऐसी कोई बात नहीं है . हमारे यहाँ आजतक कोई जुड़वां बच्चा नहीं हुआ है . “


पुलिस ने अपनी जांच जारी रखी . डॉक्टरों और मनोवैज्ञानिकों से भी दो बच्चों के चेहरे मिलने की बात पर चर्चा की . उन्होंने कहा कि बिना जुड़वां हुए भी एक ही चेहरे के दो आदमी हो सकते हैं और अक्सर एक ही चेहरे के कम से कम दो व्यक्ति देखने को मिले भी हैं . पुलिस ने सुमित्रा से मिल कर खुद उसके मुंह से सच्चाई जाननी चाही . वह सुमित्रा तक पहुँचने में कामयाब भी हुई पर सुमित्रा तो पागल हो चुकी थी उस से बात करना मुमकिन नहीं था और उसकी किसी बात को कानून मानता भी नहीं . उस पागल को गिरफ्तार कर कोर्ट के आदेश से पागलखाना भेज दिया गया .


इधर चोपड़ा ने बिस्तर पकड़ लिया था . उनकी एक विधवा बड़ी बहन उनकी देख भाल कर रही थी . वह बीच बीच में लापता भतीजे विजय के बारे में पूछताछ किया करती थी . वह अपने भाई से अक्सर बोलती “ ऐसे में हमें विजय की कमी खल रही है . मेरा भी स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है .काश आज वह यहाँ होता तो दोनों की देखभाल कर लेता . “


लगभग बीस साल गुजर गए . इस बीच अमर और रीमा भी चल बसे . अब उनकी संपत्ति का बंटवारा होना था , इसी को लेकर उनके दोनों बेटों रंजीत और संजू में तना तनी हो गयी . छोटी बहन तो तटस्थ थी , उसे माता पिता ने शादी के समय ही जो देना था दे दिया था . पहले तो रंजीत संजू को सगा भाई मानने को तैयार ही नहीं था फिर भी बहन और बहनोई के समझाने पर एक तिहाई हिस्सा देने को राजी हुआ . संजू आधे हिस्से से रत्ती भर कम लेने को तैयार न था . रंजीत और संजू आपस में कोई समझौता न कर सके और दोनों ने अंततः कचहरी का दरवाजा खटखटाया .


केस की सुनवाई के दौरान रंजीत के वकील ने जज से कहा “ श्रीमान , मेरे मवक्किल को शक ही नहीं पूरा विश्वास है कि संजू उसका सगा भाई नहीं है . इसलिए कानूनन पैतृक सम्पत्ति पर उसके तथाकथित भाई संजू का कोई हक़ नहीं है . फिर भी चूंकि उसके माता पिता ने उसे पाला पोसा है इसलिए इंसानियत के नाते संपत्ति में मेरा मवक्किल स्वेच्छा से एक तिहाई हिस्सा दे रहा है . मेरे मवक्किल का कहना है कि दो साल बाहर रहने के बाद जब संजू वापस आया तो काफी दिनों तक उसका बर्ताव और टेस्ट बिलकुल अलग था . “


संजू के वकील ने जबाब में कहा “ लम्बे समय तक दूसरे माहौल में रहने से संजू का बर्ताव या टेस्ट बदल सकता है . श्रीमान , मेरे मवक्किल के माता पिता स्वर्गीय अमर और रीमा ने खुद छान बीन कर काफी मशक्क़त के बाद अपने खोये हुए पुत्र यानि संजू का पता लगाया और उसे घर लाया . वे पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही उसे घर लाये थे . “


रंजीत के वकील ने फिर कहा “ श्रीमान , संजू को किसी सुमित्रा नाम की औरत ने अगवा किया था . मैंने सुमित्रा के पड़ोसियों से बात की तब पता चला कि सुमित्रा ने स्वीकार किया था कि संजू उसका बेटा नहीं था . पर साथ में उसने यह भी कहा था कि वह अमर और रीमा का बेटा न हो कर किसी और का बेटा है . उस समय सुमित्रा की दिमागी हालत ठीक थी . श्रीमान , सिर्फ चेहरा मिलने से कोई बायोलॉजिकल माता पिता नहीं हो सकता है . इसलिए मैं कोर्ट से रंजीत और संजू दोनों के DNA टेस्ट कराने की प्रार्थना करता हूँ . “

कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद रंजीत और संजू दोनों के DNA टेस्ट कराने का आदेश दिया और टेस्ट की रिपोर्ट आने तक कोर्ट को एडजर्न किया .


कुछ दिन बाद दोनों के DNA टेस्ट की जो रिपोर्ट आयी वह चौंकाने वाली थी . दोनों के DNA बिलकुल अलग थे , मुश्किल से 10 परसेंट मैच कर रहे थे . कोर्ट ने DNA स्पेशलिस्ट को बुलाया . उसने कोर्ट को बताया कि सगे भाईयों में कम से कम 50 परसेंट DNA तो मैच करते हैं . यहाँ तक कि सौतेले भाईयों में जिनके माता या पिता एक कॉमन होता है 25- 30 प्रतिशत DNA मैच करता ही है . इसलिए हमारा मानना है कि रंजीत और संजू सगे भाई नहीं हैं . कोर्ट ने एक बार फिर दोनों के DNA टेस्ट किसी दूसरे लैब से कराने का आर्डर दिया . कुछ दिन बाद उसका रिपोर्ट भी मिला जो पहले जैसा ही था . आखिर में कोर्ट ने रंजीत के हक़ में फैसला देते हुए कहा - संजू रंजीत का सगा भाई नहीं है इसलिए कानूनन पैतृक सम्पत्ति पर उसका कोई हक़ नहीं बनता है . वैसे रंजीत स्वेच्छा से कुछ देना चाहे तो दे सकता है .


संजू फैसले से नाराज था पर उसने इसके विरुद्ध कोई अपील नहीं की . साथ ही उसने रंजीत से सम्पत्ति में कोई हिस्सा न लेने की बात करते हुए कहा “ मुझे भीख या खैरात में कुछ नहीं चाहिए . “


इधर अमर और चोपड़ा के राज्यों के अखबारों में संजू और चोपड़ा के बेटे विजय की ख़बरें छपती रहती थीं . चोपड़ा की बहन ने जब संजू की फोटो और कोर्ट के फैसले के बारे में देखा तो अपने भाई पर कोर्ट में अर्जी दे कर संजू और चोपड़ा के DNA टेस्ट कराने की मांग करने के लिए कहा . चोपड़ा ने कोर्ट में संजू के पिता होने का दावा पेश करते हुए पैटर्निटी टेस्ट के लिए अर्जी दी , जिसे कोर्ट ने स्वीकार किया . दोनों के DNA टेस्ट हुए जो करीब 80 परसेंट मिल रहे थे . इसके अतिरिक्त उन्होंने विजय के कुछ बर्थ मार्क्स का विवरण भी दिया . कोर्ट ने इस दावे को भी सही पाया और संजू को चोपड़ा का बेटा विजय प्रमाणित किया .


संजू के लिए एक रास्ता बंद हो गया था पर अब उसे नया नाम विजय मिल गया . इस के चलते उसके लिए दूसरा रास्ता खुल गया . इस तरह दरअसल अमर और रीमा का खोया बच्चा संजू कभी मिला ही नहीं पर उनके जीवन काल में उनका बेटा संजू बन कर ही रहा और वही चोपड़ा के अंतिम क्षणों में उनका सगा बेटा विजय बन कर आया . सुमित्रा आज भी पागलखाने में अपनी मौत का इंतजार कर रही थी .


समाप्त


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