दो रास्ते - भाग-3 S Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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दो रास्ते - भाग-3

भाग -3 कहानी दो रास्ते


नोट - पिछले अंक में आपने पढ़ा कि एक तरफ अमर का बेटा गुम हो गया और दूसरी तरफ दूसरे प्रान्त में चोपड़ा परिवार का बेटा विजय भी गुम हो जाता है , अब आगे .....

अमर के बेटे संजू और चोपड़ा के बेटे विजय दोनों को गुम हुए दो साल से कुछ ज्यादा ही बीत गए . उनके राज्यों को छोड़ कर एक तीसरे राज्य से अमर की पत्नी रीमा को एक सूचना मिली . उसकी एक सहेली गीता ने बताया कि संजू से मिलते जुलते चेहरे वाले एक लड़के को उसने लोकल मार्केट में देखा है . रीमा के मन में संजू को ले कर आशा की एक किरण जाग उठी .


रीमा ने जब अपनी सहेली से विस्तार में पूछा तो वह बोली “ संजू को देखे मुझे काफी दिन हो चुके थे इसलिए मैं शत प्रतिशत निश्चित तौर पर तो नहीं कह सकती हूँ पर फोटो देख कर मुझे वह तेरे बेटे जैसा ही लगा था . उसे एक दिन बाजार में एक औरत के साथ देखा था . देखने में वह गरीब परिवार की लगती थी . मैंने बातों बातों में उसके बेटे की तारीफ़ करते हुए पूछा कि यह आपका लड़का है न . उसके हाँ कहने पर मैंने कहा कि आपका बेटा बहुत क्यूट है . उसने बताया कि वह शहर की झोपड़ी पट्टी में एक झोपडी में रहती है . वह झोपड़ी भी उसकी अपनी नहीं है उसने किराए पर ली है . उसने यह भी बताया कि उसका पति लापता है और उसने जाते समय एक पत्र लिख कर छोड़ा था , लिखा था - मुझे खोजने की कोशिश नहीं करना . मेरे जीवित बचने की कोई उम्मीद नहीं है . मैं तो कम्पनी का एक मामूली सा मुलाजिम था पर लोग यही समझते हैं कि सबका पैसा ले कर मैं भाग गया हूँ और लोग मेरी जान के पीछे पड़े हैं . इसके आगे न उसने कुछ कहा और न ही मैं उस से कभी मिली हूँ . “


रीमा ने अपनी सहेली गीता से झोपड़ पट्टी में जा कर उस औरत से मिलने को कहा . कुछ दिनों के बाद वह उस औरत को खोजते हुए झोपड़ कॉलोनी में गयी . वहां के लोगों ने बताया कि दो दिन पहले ही वह इस झोपड़ पट्टी को छोड़ कर किसी दूसरी झोपड़ पट्टी में चली गयी है . सहेली ने रीमा को यह सूचना दे दी .


रीमा ने अपने पति अमर से गीता की कही बातें विस्तार से बतायी . अमर ने कहा “ चलो , हमलोग इस की सूचना पुलिस थाने में दे देते हैं . “


रीमा कुछ देर सोचने लगी फिर बोली “ एक दूसरा विकल्प मेरे मन में आ रहा है . “


“ वह कौन सा तरीका है ? “


“ पहले हम लोग स्वयं चल कर देख लें कि वह अपना बेटा संजू ही है या नहीं . गीता भी पूरी तरह आश्वत नहीं थी कि वह हमारा बेटा संजू ही है . “


“ शायद यही ठीक भी होगा . सरकारी कार्रवाई में काफी समय लग सकता है . ठीक है तुम अपनी सहेली से बात कर चलने की तैयारी करो . अभी मौका भी अच्छा है , तुम्हारी बहन आयी है . रंजीत को वह देख लेगी और सीमा बिटिया हमारे साथ चलेगी . “


रीमा ने अपनी सहेली गीता को फोन कर कहा “ हमलोग कल ही यहाँ से निकल रहे हैं . दो चार दिन तुम्हारे यहाँ तो रुक ही सकते हैं न ? अगर तुम्हें कोई दिक्कत है तो फ्रैंकली बता देना , हम यहीं से कोई होटल बुक कर लेंगे . “


“ कैसी बकवास कर रही हो , ऐसा तुम सोच भी कैसे सकती हो ? जितने दिन चाहो यहाँ रह सकती हो . मुझे तो बल्कि ख़ुशी हो रही है कि इतने दिनों के बाद साथ रहने का मौका मिल रहा है . तुम्हारे जीजू तो दो सप्ताह के लिए कुछ दफ्तरों के ऑडिट करने गए हैं . “ गीता ने कहा


रीमा ने कहा “ एक बात और है . इस बीच हो सके तो पता लगाने की कोशिश करो कि वह औरत जिसके पास तुमने संजू बेटे को देखा है अब कहाँ शिफ्ट कर गयी है . “


गीता ने कहा “ ठीक है , तुम क्या समझती हो मैं हाथ पर हाथ रखे यहाँ यूँ ही बैठी हूँ . वैसे भी मैं अपने कॉन्टेक्ट्स से इसके बारे में जानकारी लेने के लिए बोल चुकीं हूँ . हो सकता है जल्द ही कुछ पता चल जाए . “


अगले दिन अमर और रीमा अपनी बेटी सीमा के साथ ट्रेन में थे . वे अपने बेटे की तलाश में गीता के यहाँ जा रहे थे . गीता जहाँ रहती थी वहां हवाई जहाज द्वारा जाने की सुविधा उपलब्ध नहीं थी . पूरे 24 घंटों का सफर था . अगले दिन वे सभी गीता के घर पहुंचे . गीता ने बड़ी गर्मजोशी से सभी का स्वागत किया और कहा “ काफी लम्बा सफर था . आप लोग थक गए होंगे , पहले फ्रेश हो लें और कुछ खा पी लें तब आराम से बातें होंगीं . “


थोड़ी देर में नहाने धोने के बाद फ्रेश हो कर सभी एक साथ खाने बैठे . उसी दौरान असली मुद्दे पर यानि संजू के बारे में बातें होने लगीं .


रीमा ने गीता से पूछा “ उस औरत के नए ठिकाने का कुछ पता चला है क्या ? “


“ बिलकुल निश्चित तौर पर नहीं कह सकती हूँ पर उस झोपड़ पट्टी के काफी लोगों से पूछताछ करने पर पता चला है कि वह दो झोपड़ कॉलोनियों में किसी एक में हो सकती है . हमलोग कल चल कर दोनों जगह पता करेंगे . डोंट वरी , उसे ढूंढ ही लेंगे . “ गीता ने कहा


अमर बोला “ तब हम चलें किसी एक जगह आज ढूंढना शुरू करते हैं . “


“ नो जीजू , हमें काफी दूर जाना है और अब शाम हो चली है . पहुँचते पहुँचते रात हो जाएगी . झोपड़ पट्टियों में स्ट्रीट लाइट नहीं होती है . उन्हें शाम छः बजे से सिर्फ चार घंटों के लिए बिजली मिलती है .अँधेरे में हम नहीं ढूंढ सकते हैं .और उस स्लम एरिया में कुछ गुंडे बदमाश नहीं हो सकते हैं . इसलिए दिन में ही जाना ठीक रहेगा “ गीता बोली


अगले दिन सुबह नाश्ता पानी के बाद वे लोग गीता की कार में उस औरत की तलाश में निकले . गीता ही कार ड्राइव कर रही थी . उन्हें एक लेबर कॉलोनी , जिसे स्थानीय लोग शिमला कॉलोनी कहते थे , वहां जाना था . कार को रोड पर एक ढाबे के सामने रोक कर गीता ने उस झोपड़ पट्टी के बारे में पूछा . उस से कुछ जानकारी मिलने के बाद वह बोली “ अब यहाँ से आगे हमें पैदल ही जाना होगा क्योंकि संकरी गलियों में जाना है और वहां कार नहीं जा सकती है . “


क्रमशः