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स्त्री.... - (भाग-37)

स्त्री.....(भाग-37)

मैं होटल से लेकर घर तक के पूरे रास्ते मन ही मन में लिस्ट तैयार कर रही थी कि क्या क्या काम करने हैं, वो भी 3-4 घंटो में! तकरीबन 30 लोगो का स्टॉफ और 8-10हम घर के लोग तो हम हैं ही। मैं खुद पर गुस्सा हो रही थी कि किसी केटरर्स को ही खाने का आर्डर दे देती। पर अब क्या किया जा सकता है! अब तो इतने कम टाइम में कैसे होगा, खैर जो हो पाएगा देखते हैं! तारा और राजन बार बार कह रहे थे कि परेशान न हो, सब हो जाएगा।
बस इसी सोचते सोचते घर पहुँच गए। वर्कशॉप की चाभी एक मेरे पास, एक तारा के पास रहती है, तो तारा ने जल्दी से ताला खोला। मैं उसके पीछे पीछे वर्कशॉप में घुसी और लाइट ऑन की तो वहाँ का नजारा देख कर हैरान रह गयी। वर्कशॉप में कढाई करने के लिए अड्डों को एक साइड कर रखा था और पूरा हॉल सजा हुआ था गुब्बारों और रंगबिरंगे कागजों से......नीचे गलीचा बिछा हुआ था.....ऑफिस की टेबल पर डिस्पॉजेबल क्रॉकरी रखी हुई थी और साथ में पानी के बिसलेरी ग्लॉस ।मैं देख कर बहुत खुश हो गयी थी....तारा और राजन की ये मिलीभगत थी। दीदी कैसा लगा आपको सरप्राइज? बहुत बढिया पर तुम लोगो ने कब किया ये? हमने कुछ नहीं किया। आपने लंच का कह तो दिया था, पर हम सोच रहे थे कि आप सब मैनेज कैसे करोगी तो मुकेश को फोन करके मैंने कल सुबह ही बुलाया था, उसको चाभी दे कर कहा था कि सब इंतजाम कर देगा। उसने टैंट वाले से गलीचा और कुर्सियाँ मंगवा ली हैं, और खाना मैंने परसो रात को ही बोल दिया था 50 लोगो के लिए।1 दाल, 2 सब्जी, रायता, चावल और पूरियाँ। एडवांस भी तो देना पड़ा होगा न? हाँ, मैंने पिताजी से ले कर दे दिया। पूरे रास्ते मैं परेशान हो रही थी और तुम लोगों ने कुछ नहीं बताया। दोनो बोले फिर आप को इतना खुश कैसे देखते! पर दीदी आपकी वाली चाभी मैंने आपके परिस से निकाल कर तारा को दे दी थी, उसके लिए सॉरी पर क्या करते? कोई बात नहीं भाई, तुम दोनो ने तो सब तैयारी कर ली....हम सबने ऊपर जा कर चाय पी सुकून से, फिर नहा धो कर तारा और मैं सब समेटने लगे और सफाई भी कर ली। राजन नहा धो कर नाश्ता लेने चला गया। 11:30 तक सोमेश जी सब को ले कर आ गए थे। सोमेश जी तो तैयार हो कर ही आए थे। बाकी सब नहा कर तैयार होने लगे। राजन और सोमेश जी बाहर निकल गए। 12:30-1 बजे तक पूरा स्टॉफ आ गया और खाने की मेज भी लग गयी थी। राजन, तारा, मुकेश और आरती सब को खाना परोस रहे थे। मैं और सोमेश जी सब कुछ देख रहे थे। बहुत अच्छे ढंग से सब कुछ संभाल लिया सबने मिल कर।मुझे अच्छा लगा जब सोमेश जी सबके साथ बात कर रहे थे और वो लोग भी सोमेश जी के सरल स्वभाव से बहुत खुश थे....जबसब जाने लगे तो पिताजी ने सब को मिठाई के डिब्बे दिए, पर अभी सरप्राइज बाकी था।
हर मिठाई के डिब्बों पर एक एक शगुन का लिफाफा सोमेश जी रखते जा रहे थे।सब कुछ ससुर और दामाद ने खुद ही डिसाइड कर लिया था। सब के जाने के बाद हम सबने भी खाना खाया और सोमेश जी ये कह कर चले गए कि वो कल शाम को आँएगे क्योंकि परसों सब ने जाना था। सोमेश जी के जाने के बाद मैंने पिताजी से पूछा, आपने शगुन के लिफाफे दिए या सोमेश जी ने? पिताजी बोले, सोमेश ने दिए हैं, मैं तो कह रहा था कि हम अपनी तरफ से देंगे, पर वो माने नही,तो क्या करते। मैंने उन्हें ही देने दिए। मैंने भी सोचा कि मैंने कैश देने का नहीं सोचा था, पर अच्छा किया कि दे दिया। पूरा स्टॉफ कल तो आएगा ही, सो कुछ काम भी समेटने थे, जो आर्डर हाथ में थे, वो अब जल्दी ही पूरे करने थे.....।सिर्फ कल का ही दिन रह गया है, फिर सब चले जाएँगे.....वक्त कितनी जल्दी बीत गया और कितना कुछ हो गया मेरी जिंदगी में। माँ पिताजी के पास बैठ कर बातें करने बैठ गए तो टाइम का पता नहीं चला। जितना खाना हमने खाना था खा कर बाकी का खाना मैंने तारा और राजन को बोल कर जरूरतमंदो को बाँटने के लिए भेज दिया। रात को हमनें सिर्फ खिचड़ी गही बना ली और टाइम से खा कर सो गए। बहुत थकान हो गयी थी पूरा हफ्ता ही भागदौड़ में रहे। नींद भी खूब अच्छी आयी।नयी सुबह, नया सूरज और मेरी नयी जिंदगी की खूबसूरत शुरूआत।खुशी खुशी सबने जल्दी से मिल कर काम निपटाए। तारा रास्ते के लिए मठरी, नमक पारे और कचौरियाँ माँ के साथ बनवा रही थी। मैंने नीचे सब काम समझाया और फिर राजन के साथ बाजार चली गयी। छाया मेरे पास पहली बार आयी थी, तो राजन से पूछ कर छाया के पति और ससुर के लिए कपडे़ ले लिए। रेडिमेड तो नहीं ले सकते थे क्योंकि साइज ठीक से पता नहीं था, इसलिए बिना सिले ही ले लिए। सास के लिए साड़ी और एक साडी छाया के लिए भी ले ली। राजन के लिए घड़ी ली और पिताजी के लिए एक मोबाइल फोन। राजन को सिम वहीं से लेने को कह दिया और माँ के लिए एक पर्स भी खरीदा और दोनों बच्चों के लिए खिलौने। मिठाई तो रास्ते में खराब हो जाएगी ये सोच कर छाया और राजन के लिए थोड़े ड्राइफ्रूट ही खरीद लिए। मन तो कर रहा था कि सब कुछ खरीद लूँ, माँ पिताजी के लिए। फिर भी मन को तो रोकना पड़ता है क्योंकि सब कुछ का कहीं अंत नही है। सोमेश जी का साथ मुझे ये भरोसा दिला रहा था कि सोमेश जी दोनो परिवारों का ध्यान रखेंगे और कभी भी मुझे राजन या माँ पिताजी के लिए कुछ करने से रोकेंगे नही.....सब सामान ले कर घर आए तो छाया पैकिंग कर रही थी अपनी भी और माँ पिताजी की भी। शाम को सोमेश जी और पापा भी आ गए। माँ ने कुछ गिफ्टस भिजवाए थे सबके लिए वही देने आए थे और अपनी तरफ से विदा करने भी..... बहुत रोका पर वो लोग खाने तक नहीं रूके और मुझे शाम को तैयार रहना कह कर चले गए। छाया और माँ की साड़ियाँभी तैयार हो गयी थी और मैंने सारा सामान पैक करवा दिया।पिताजी गुस्सा कर रहे थे कि इतना खर्च करने की क्या जरूरत थी? मैंने कहा पिताजी, अब मैं काम करती हूँ और फिर मैं तो आपका बेटा हूँ तो आप फिर कभी ऐसे नहीं कहना। मेरे ससुराल से भी छाया और माँ की साडियाँ और पिताजीऔर राजन के कपडे, बच्चों के लिए कैश और साथ में कुछ मिठाई और फल भी थे....सुबह 9 बजे की गाड़ी थी, तो पिताजी ने 7:30बजे तक निकलने को कह दिया था। सुबह तारा और मैंने जल्दी उठ कर रास्ते के लिए खाना बना कर पैक कर दिया तब तक सब तैयार थे और चाय पी कर तैयार हो गए जाने के लिए। राजन टैक्सी ले आया था....ऐसा लग रहा था कि मेरी विदाई हो रही है....आँखे भर आयी थी मेरी....मैंने माँ को राजन की शादी जल्दी कराने को कहा,तभी तो आने को मिलेगा......माँ मुस्कुरा दी बोली कि उससे पहले मिलने आना तुम दामाद जी के साथ। हाँ माँ हम जरूर आएँगे और जाते जाते माँ की फिर वही हिदायतें चालू हो गयी। मैं और पिताजी एक दूसरे को देख कर हँस दिए......जाते जाते पिताजी ने तारा को शगुन का लिफाफा दियाऔर उसको धन्यवाद दिया कि वो मेरे बुरे टाइम में मेरे साथ रही। वो लिफाफा नहीं ले रही थी, मैंने उसे लेने का इशारा किया तो उसने रख लिया...मुझे कुछ याद आया तो मैंने 2 मिनट टैक्सी को रूकने के लिए कहा और भाग कर अल्मारी से एक पैकेट ले आयी। राजन ये रख लो, तुम ड्यूटी जॉइन करने जाओगे तो काम आँएगे। तुम क्या दे रही हो जानकी राजन को मुझे दिखाओ..राजन खोल कर पिताजी को दिखाने लगा पर मैंने उसे इशारा कर दिया तो वो बोला जो भी हो पिताजी दीदी ने मुझे दिया है, और मैंने रख लिया है। टैक्सी आँखो से ओझल हो रही थी.....हमारी वर्कशॉप और घर की चहल पहल बंद हो गयी तो अजीब सा लग रहा था। मैं अपने काम में लग गयी और तारा ऊपर सब समेटने चली गयी। सबके जाने से मन उदास तो था, पर मन में खुशी भी थी सोमेश जी मेरी जिंदगी में जो आ गए हैं....मन में एक अजीब सा सुकून था और उत्साह भी। आरती और मुकेश को सब बता कर ऊपर आयी तो तारा लेटी हुई थी। मुझे देख कर उठ गयी। क्या हुआ तारा इतनी उदास क्यों हो? बच्चे चले गए इसलिए! मैंने अनुमान लगाते हुए कहा। हाँ दीदी, एक बात और है जो सोच कर उदास हूँ? वो क्या है? दीदी अब आप तो ससुराल चले जाओगे तो मैं क्या करूँगी, फिर भाई के घर जाना पडेगा, बस यही सोच कर उदास हूँ? क्यों जाना पडेगा भाई के घर? ये घर थोड़े ही साथ ले कर जा रही हूँ? न अपना काम बंद कर रही हूँ.... तुम यही रहना और काम की देखभाल करना। दीदी आप को रोज आने देंगे? बहुत दूर है न सोमेश साहब का घर? हाँ तारा पूरा दिन शायद न रूक पाऊँ कुछ दिन पर रोज आया करूँगी, मैं सब बता कर जाया करूँगी, तुम हो न देखती रहना।मेरी सास ने कहा है कि अपना काम करती रहना। फिलहाल जितने आर्डर हैं,वो तो पूरे करने ही हैं, फिर आगे का प्लान करेंगे, पर ये बात तुम मुकेश या किसी कारीगर को न कहना, कहीं वो सोचे कि काम बंद होने वाला है और कोई काम छोड़ कर चला जाए। अपने तक रखना तारा। ठीक है दीदी मैं किसी को नहीं बोलूँगी। तकरीबन 3 बजे सोमेश जी का फोन आया कि 1 घंटे में तैयार रहना, मैं आ रहा हूँ लेने! ऊपर नहीं आऊँगा लेट हो गए तो ट्रैफिक में फँस जाएँगे। मैंने बोला नीचे ही मिलूँगी। तैयार हो कर वो ही गहने पहन लिए जो होटल में पहने हुए थे, ये सोच कर कि माँ नाराज न हो जाएँ। अपने कपड़े और जो गहने थे वो भी रख लिए। मैंने कुछ पैसे और अपने कान के जो मैंने शायद ही कभी पहने थे, वो तारा को दे दिए और साड़ी तो पहले ही मैं दे चुकी थी। तारा ये पैसे रखो, सामान ले आना जिसकी जरूरत हो, और तुम अपने लिए रोज सब्जी दाल जो खाना हो जरूर बनाना क्योंकि दिन में खाना तुम्हारे साथ खाऊँगी रोज। मैं तैयार थी, मैंने अपने कारीगरों को भी बता दिया कि काम को आपस में अच्छे से मैनेज करना है और अनिता को भी शाम की शिफ्ट का काम समझा कर जाने को कहा....सब लोग आराम से काम करते रहते हैं, पर फिर भी चिंता तो रहती ही है न! सोमेश जी सचमुच ऊपर नहीं आए, तारा ने मेरा सूटकेस कार में रखा और हम घर की और चल दिए। रास्ते भर बातें होती रही और कब घर पहुँच गए पता ही नहीं चला। रास्ते से मैंने मिठाई लेने को कहा तो वो बोले बहुत सारी मिठाई रखी है घर पर.....सीधा घर चलते हैं, मम्मी इंतजार कर रही होंगी......
क्रमश:
मौलिक एवं स्वरचित
सीमा बी.

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