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अनजान रीश्ता - 88

पारुल प्लेट को प्लेटफार्म पर रखकर,सीढ़िया चढ़ते हुए भागकर कमरे में चली जाती है। वह रुम का दरवाजा बंद करके उसके सहारे बैठ जाती जाती है । उसका दिल जोरो से धड़क रहा था । वह धड़कते दिल पर हाथ रखते हुए उसे काबू करने की कोशिश कर रही थी। पर उसका दिल और भी जोरो से धड़क रहा था। वह भी उस इंसान के लिए जो सिर्फ उसके साथ सिवाय नफरत के और कोई रीश्ता नहीं रखना चाहता था । ना ही पारुल कोई रीश्ता रखना चाहती थी । पर फिर आज अविनाश के इतना करीब पाकर फिर से धड़कन क्यों बढ़ने लगी!? क्यों हर बार जब उसे अपने करीब आता देखती हूं तो! एक अजीब सी फीलिंग दिल में महसूस होती है!? और आखिर क्यों!? । क्योंकि शायद तुम अभी भी पसंद करती हो!? ...पारुल का मन उसे जवाब देता है। " पारुल अपना सिर हिलाकर जवाब देती है। नहीं! बिलकुल भी नहीं! मैं मर जाऊंगी! लेकिन उसे कभी भी पसंद नहीं करूंगी! कभी भी नहीं! जो उसने किया है उसके बाद तो बिल्कुल भी नहीं!। " तो अगर उसने ये सब नहीं किया होता तो तुम उसे पसंद करती है ना!? और सोचो तुमने कहां की तुम पसंद नहीं करोगी! मतलब तुम उसे पसंद करती हो! है ना!? । पारुल अपने बाल को भींचते हुए! आआहह! आई सेड नो! में उसे पसंद नहीं करती! समझ नहीं आता क्या! जस्ट शट अप ख्याली पुलाव बनाना बंद करो! ये कोई मूवी नहीं है की इतनी बदसुलूकी के बाद भी मैं गधों की तरह उसे पसंद करु! फॉर गॉड सेक! ये रियल लाइफ है! ऐसा सोच भी कैसे सकती हूं में!?। वो भी उस इंसान के बारे में जिसने सिवाय दर्द के मुझे कुछ नहीं दिया। और ना तो में उसे कभी पसंद करुंगी ना वो मुझे! तो प्लीज! इस मुसीबत से बाहर निकलने के बारे में सोचो! ना की इस फिल्मी खयालों के बारे में! । पारुल खुद को ही समझा रही थी अगर कोई इंसान से पारुल को दूर से देखता तो वह पागलों जैसी लग रही थी। क्योंकि उसके चहेरे पर आते विचित्र भाव मानो कभी नर्म भाव, कभी गुस्सा, कभी सवाल भरी नजर, कभी एक विचित्र भाव जो पारुल खुद भी नहीं समझ रही थी। शायद या वह खुद समझना नहीं चाहती थी। कई वजह थी उस भाव को ना पहचानने की! उसके दिल में पल रही अविनाश के लिए नफरत, या उसके सिद्धांत जो उसे इस बात की इज़ाजत नहीं देते की वह एक ऐसे इंसान को पसंद करे जो इंसान कहलाने के लायक ही नहीं है। पारुल के मन और मस्तिष्क के बीच मानो जैसे लड़ाई चल रही थी। मन पारुल को अहसास दिलाने की कोशिश कर रहा था की उसका दिल आज भी अविनाश की एक झलक पर भी धड़कता है। तो दिमाग उसे याद दिलाने की कोशिश कर रहा था की वह कैसे कुछ महसूस कर सकती है! वह भी अविनाश जैसे इंसान के लिए! क्या वह पागल हो गई है! दिमाग तो ठिकाने पर है ना!। एक और भावना थी तो दूसरी ओर लोजिक! और शायद दोनों कभी भी साथ में नहीं रह सकते! । क्योंकि इंसान अक्सर भावना में बहकर पागलों जैसी हरकते भी करता है! और लोजिकली वह बात संभव हो नहीं सकती ! । पारुल को समझ नहीं आ रहा था की वह इतनी नर्म दिल कब से बन गई की वह खुद पर काबू नहीं पा सकती! । वह बस ऐसे खुद को ही सवाल करती और खुद ही जवाब देती थी उसका। वह बस ऐसे खुद से लड़ रही थी की तभी उसके दीमाग में मानो उसके ओर अविनाश के पल प्रकाश की गति की तरह आते है। जब अविनाश ने पहली बार किस किया वह! उसके बाद की सारी मुलाकाते! फिर उसके साथ सभी कड़वे पल ! उसका ब्लैकमेल करना! पारुल के साथ जो अभी थोड़ी देर पहले उसने सुलूक किया वह! । पारुल को मानो होश आ रहा था की वह क्या सोच रही है!। वह खुद के दोनो गालों पर थप्पड़ मारते हुए कहती है। " फोकस पारुल व्यास फोकस... भूलो मत वह इंसान तुम्हे सिवाय चौंट पहुंचाने के कुछ नहीं चाहता! बचपन में भी और अभी भी! वह भरोसे के लायक नहीं है! संभालो! । " यह कहते हुए वह वॉशरूम में फ्रेश होने चली जाती है ।

अविनाश फॉन कांटते हुए! वह मुस्कुराते हुए! थाली में खुद के लिए खाना निकालता है । वह चैयर पर बैठते हुए एक निवाला मुंह में रखा ही था की मानो उसका मुंह चबाना ही भूल गया था। अचानक उसके चेहरे पर गुस्से के भाव झलक रहे थे । वह निवाला निगलने की कोशिश करता है । पर मानो जैसे वह कोई खाना नहीं जहर हो। जिसे ना वह निगल पा रहा था और ना ही उगल पा रहा था। अविनाश पानी का ग्लास भरते हुए... उसे पीने लगता है। वह मानो जैसे कई साल पीछे चला गया था! ।

गोलू देखता है की परी और उसकी मां दोनों किचन में कुछ कर रहे थे । वह दबे पांव परी के पास जाते हुए! अचानक आवाज निकालकर उसे डरा देता है। जिस वजह से उसकी मां उसे डांटते हुए कहती है की क्यों किया उसने ऐसा! अविनाश बिना कोई जवाब दिए बस हंसे जा रहा था । तभी परी पूरा पानी का ग्लास उसके सिर पर डालते हुए उसे भीगो देती है। अविनाश गुस्से में परी की ओर देखता है लेकिन परी जीभ दिखाते हुए उसे चिढ़ाती है। तभी अविनाश अपनी मां को पूछता है ।

गोलू: मां आप इसे किचन में क्यों लाई है!? आपको क्या पूरे किचन में आग लगानी है!? ।
जानवी: आशु! ( आंखे दिखाते हुए ) ऐसे भला बात करते है!? और तुम मेरी बेटी के बारे में ऐसा कैसे बोल सकते हो! ।
गोलू: ( मुंह बिगाड़ते हुए ) आपकी इस प्यारी सी बैटी कल अपने घर में इतनी अच्छी दाल बनाई थी की आधी दाल छत पर चिपकी और बाकी की पूरे किचन की दीवाल पर! वह तो अच्छा हुआ आंटी ने इसे घर से नहीं निकाल दिया!। सिर्फ किचन में जाने से मना किया! ।
परी: गोलू के बच्चे तू चुप नहीं हुआ तो इस आटे की जगह तुझे गूथ दूंगी! समझे निकल यहां से ।
गोलू: क्या बात है भाई! एक जमाना था जब सच बोलने के लिए लोगों को नवाजा जाता था और अब देखो धमकियां मिल रही है। खैर! भलाई का जमाना ही नहीं रहा! ।
परी: ( चाकू उठाते हुए ) अब अगर एक शब्द भी बोला तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा! ।
गोलू: हेय! परी की बच्ची वो खेलने की चीज नहीं है! लग जाएगी! छोड़! उसे?।
जानवी: परी! बेटा! ऐसा नहीं करते लाओ! चाकू मुझे दे दो! लग जाएगी ! ।
परी: ( चाकू देते हुए ) आप इसे कहिए ना मुझे परेशान ना करे! पता नहीं इसे क्या मिलता है! यहां में इतनी मेहनत कर रही हूं और यह! ।
जानवी: कोई बात नहीं चलो ( मुस्कुराते हुए ) जब तुम एक दम टेस्टी खाना बनाओगी तो यह अपने आप समझ जाएगा ।
परी: ( मुस्कुराते हुए ) मैं ना बिलकुल आप जैसा खाना बनाऊंगी! आपके हाथों में पता नहीं क्या जादू है! ।
जानवी: ( नादानी पर हंसते हुए ) हाहाहाहा... बिल्कुल.।
गोलू: बड़ी बड़ी बाते... वड़ा पाऊं खाते! ।
परी: ( गुस्से में ) देख लेना एक दिन मैने आंटी जैसे खाना नहीं बनाया तो मेरा नाम पारुल व्यास नहीं ।
गोलू: ( कीचन से जाते हुए कहता है ।) हाहाहाहाहा.... देखेंगे हम! ।

गोलू वहां से चला जाता है । और परी खाना बनाने में व्यस्त हो जाती है ।

अविनाश को तभी कोई कंधे पे हाथ रखता है । जिससे वह ख्याल से बाहर आता है । जब वह देखता है तो माई थी । वह एक दर्द भरी जूठी मुस्कुराहट के साथ माई की ओर देखता है । तभी माई कहती है ।

माई: क्या हुआ! बेटा! तुमने अभी तक खाना नहीं खाया!? ।
अविनाश: ( सिर को ना में हिलाते हुए ) भूख नहीं है माई!। आप एक काम कीजिए ये खाना या तो फ्रिज में रखवा दीजिए या फिर किसी के साथ गरीबों में बटवा दीजिए! ।
माई: पर... बेटा... ब.. हूं.. ।
अविनाश: ( माई की बात काटते हुए ) प्लीज... अभी मेरा बिल्कुल मुड़ नहीं है बात करने का! ।
माई: ठीक है ।

अविनाश सिर को हां में हिलाते हुए किचन से बहार चला जाता है। उसे घुटन सी महसूस हो रही थी । मानो चाहकर भी वह जितना पारुल से दूर भागना चाहता था उतना ही जाने अनजाने वह उसके करीब जा रहा था । आज उसने सोचा था कि पारुल को इतना सारा खाना बनवाकर पारुल को सजा देगा अपनी नफरत की शुरुआत करेगा। लेकिन हर बार की तरह वह नाकाम रहा । हर बार की तरह पारुल ने उसके दिल तक रास्ता बना ही लिया। क्यों आखिर चाहकर भी वह पारुल से दूर नहीं हो पा रहा । क्यों आज जब उसने खाना खाया तो मानो जैसे उसकी माने खाना बनाया हो ऐसा उसे लगा! । इतने सालो बाद वहीं महक वही स्वाद! और उसी के साथ अविनाश को अपराध भाव का अहसास की वह जो भी कर रहा है वह गलत है। अगर उसकी मां होती तो उसे यही कहती! । अविनाश गार्डन में खड़े खड़े आसमान की ओर देखते हुए कहता है। " मां क्यों! मैं उसे चाहकर भी दर्द नहीं पहुंचा पा रहा! क्यों में हर बार कमजोर पड़ रहा हूं! वह मेरी किसी भी फीलिंग की हकदार नहीं है मां । और ना ही में उसकी जो कुछ भी मैने उसके साथ किया है उसके बाद तो वह मुझे नफरत के लायक भी नहीं समझती । फिर मैं क्यों उससे दूर नहीं जा पा रहा!? क्यों मां क्यों हरबार मुझे उस जगह लाकर खड़ा करती है! जहां पर मैं नहीं चाहता!। क्यों उसको देखकर मेरा दिल आज भी बेकाबू हो जाता है। मैं उसके साथ भी दिमाग से क्यों नहीं सोच पाता मां! क्यों हर बार मैं उसे चौंट पहुंचाने के बजाए! उसे हर गम हर चौंट से बचाना चाहता हूं। क्यों में जिंदगी में पहली बार अपनी बात पर कायम नहीं रह पा रहा!? । अभी कुछ घंटो पहले में उसे दर्द पहुंचाने का वादा करके आया हूं और देखो मेरी बुनियाद डगमगा रही है। मैं इतना कमजोर नहीं पड़ सकता मां। मुझमें फिर से एक बार टूटने की हिम्मत नहीं है। एक बार मैं सबकुछ खो चुका हूं। अब मैं पागलों की तरह दिल की नहीं सुन सकता। मैं अब सिर्फ दिमाग की ही सुनूगा मां... और दिमाग में सिवाय नफ़रत के और कुछ नहीं है! और ना ही होगा! । वह इतना कहते हुए कार लेकर घर से निकल जाता है।

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