Analysis of theatrical tendencies in Bhavabhuti's plays books and stories free download online pdf in Hindi

भवभूति के नाटकों में नाट्य वृत्तियों का विश्लेषण

संस्कृत नाटकों के विशाल साहित्यकाश मै जिन किंचित नाटक कारों रूपी सितारों की चमक आज भी विद्यमान है उनमें भवभूति अग्रगण्य है। उन्होंने भारतीय संस्कृति के जीवन्त स्वरों को तो अपनी नाट्य कला में मुखरित किया ही है , किंतु नाट्य धर्मिता की दृष्टि से भी उनके नाटक कसौटी पर खरे उतरते हैं। इस लेख में नाटकीय कार्य व्यापार के एक अत्यंत आवश्यक तत्व नाट्य वृत्ति पर ही ध्यानाकर्षण किया गया है।


वृत्ति चाहे कायिक हो या मानसिक क्रिया की बोधक होती है। उसकी अभिव्यक्ति में वाणी का बहुत बड़ा योगदान रहता है। वृत्ति से तात्पर्य ---"-नायक का कार्य व्यापारात्मक स्वभाव है जो उसे किसी विशिष्ट दिशा की ओर प्रवृत्त करता है।"---

"प्रवृत्ति रूपो नेतृ व्यापार स्वभावो वृत्ति:। "(दशरूपक 2/40)

व्यापार शब्द में वाचिक ,'कायिक, मानसिक आदि सभी प्रकार की गतिविधियों का समाहार हो जाता है ।अतः नाट्य वृत्ति का संबंध भी नाटक की भाषा तथा अभिनय दोनों से होता है। व्यापार नाट्य का प्राण तत्व होता है और इसकी उत्पत्ति कृतियों के बिना संभव नहीं। इसीलिए नाट्य दर्पण मै वृत्तियों को नाट्य की माता कहा गया है----" नाट्य मातर :।"--- नाट्य दर्पणकार ने वृत्तियां के चार प्रकार बताए हैं ----1भारती2सात्वती 3कैशिकी तथा 4आरभटी।

भारतीय सात्वती कैशिक्यारभटी च वृत्तय:।
रसभावाभिनयगाप्श्चतस्रो नाट्यमातर:।।--( नाटय दर्पण 3/1)

वृतियों के यह चार भेद नाटकीय व्यापार के स्वभाव गत वैशिष्टय को इंगित करते हैं। नाटक में जहां कायिक व्यापार की विशिष्टता दिखती है, वहां कैशिकी या आरभटी वृत्ति मानसिक व्यापार की प्रमुखता होने पर सात्वती तथा वाचिक व्यापार के सर्वोपरि होने पर भारती वृत्ति मानी जाती है।

आचार्य भरत ने वृतियो का संबंध चारों वेदों से बताया है---

ऋग्वेदाद् भारती वृत्ति : यजुर्वेवेदात् सात्वती ।
कैशिकी सामवेदात् च शेषा चाधवणा यथा ।। (नाट्शा' 22/24)

नाट्य शास्त्र में ही एक अन्य स्थान पर आचार्य भरत ने विभिन्न वृत्तियो को युद्ध में संलग्न भगवान विष्णु की विभिन्न चेष्टाओ से उत्पन्न बताया है । "भारतीय वृत्ति"- विष्णु के पद संचालन से पृथ्वी पर पड़े भार से उत्पन्न हुई। उनकी ओजस्वनी तथा वीरो चित चेष्टाओ से सात्वती का जन्म हुआ। उन्होंने ललित लीला एवं विचित्र आंगिक अभिनय के साथ अपनी शिखा बांधी-- उससे कैशिकी का उद्भव हुआ तथा उनकी आवेग युक्त विभिन्न युद्ध चेष्टाओ से आरभटी का जन्म हुआ। इस कथा का प्रतीकात्मक अर्थ भी कृतियों के आश्रय द्वारा नायक आदि के विविध व्यापार होने के सिद्धांत की ही पुष्टि करता है।

भारती वृत्ति जो वाग्व्यापार प्रधान होती है और संपूर्ण रसों से परिपूर्ण तथा प्रायः संस्कृत भाषा का अवलंबन करने वाली होती है। आचार्य भवभूति ने अपने तीनों ही नाटकों के आमुख भाग में इस वृत्ति का पूर्णत : समावलंबन किया है। भारती वृत्ति से युक्त इन आमुखो की भाषा केवल संस्कृत है। "नाट्य दर्पण"-- में भी भारती वृत्ति का प्रयोग ',नाट्य कृतियों के प्रारंभिक भागों ---आमुख तथा प्रशेचना ---में ही उपयोग होने के सिद्धांत की पुष्टि की है। (नाट्य दर्पण 3/2)


मानसिक, वाचिक तथा कायिक अभिनयो द्वारा व्यक्त होने वाले तथा वीर शांत,रौद्र एवं अद्भुत रसों से संबद्ध हर्ष व धैर्य से युक्त मानस व्यापार को ही सात्वती वृत्ति कहा गया है। (नाट्य दर्पण 3/5 )इस वृत्ति के चार अंग है --1सलापक 2उत्थापक 3सांघात्य तथा4 परिवर्तक। पात्रों में जब परस्पर नाना भाव एवं रस युक्त गंभीर उक्ति पाई जाती है तो वहां "संलापक "की स्थिति मानी जाती है। आचार्य भवभूति के महावीर चरितम् नाटक में संलापक के कई उदाहरण विद्यमान है। श्री राम एवं जमदग्नि के संवाद में सात्वती वृत्ति के संलापक का रूप दृष्टव्य है। (महावीर चरितम 2/34 )जहां एक पात्र दूसरे पात्र को युद्ध के लिए उत्तेजित करता है वहां उत्थापक होता है।( नाट्य दर्पण 2/49 )मंत्र शक्ति ,अर्थ शक्ति, देव शक्ति ,आदि के द्वारा जब शत्रु के संघ का भेदन होता है तब सांघात्य होता है । जब आरंभ किए गए किसी एक कार्य को छोड़कर दूसरे कार्य का संपादन किया जाए तो इसे परिवर्तक कहते हैं। (नाटय दर्पण 2/38)

आचार्य भवभूति के महावीर चरितम् एवं मालती माधव के वीर, रौद्रआदि रसों के पूर्ण व्यापारों में इस वृत्ति के निदर्शन प्रचुरता से मिलते हैं। महावीर चरितम् के भार्गव प्रसंग में धैर्य व हर्ष आदि के कलात्मक मिश्रण से युक्त नाटकीय व्यापार में सात्वती वृत्ति का उत्तम निदर्शन दृष्टव्य है। वस्तुतः सात्वती सत्त्व एवं आवेग से पूर्ण प्रत्येक मानव व्यापार में प्रस्फुटित होती है। मालती माधव के पंचम अंक में भी देवी चामुंडा आदि के चित्रण में सात्वती वृत्ति की प्रधानता दृष्टिगोचर होती है।

दशरूपक कार के अनुसार गीत, नृत्य, विलास ,आदि श्रंगार पूर्ण चेष्टाओं के कारण कैशिकी वृत्ति कोमल होती है।(दशरूपक 2/47 )इसमें शिष्ट हास्य परिहास तथा काम व्यवहार आदि का अंतरभाव होता है। लंबे केश आदि से युक्त होना नारी का लक्षण है। क्योंकि इस वृत्ति में नारियों की चेष्टाओं का प्राधान्य होता है अतः इसे कैशिकी वृत्ति की संज्ञा प्रदान की गई है । कैशकी के चार अंग माने गए हैं ---1नर्म 2नर्म स्फिंज 3नर्म स्फोट तथा 4नर्म गर्भ:। भवभूति के मालती माधव नाटक में कैशिकी वृत्ति के इन चारों अंगो का बखूबी निदर्शन किया गया है । प्रिया के चित् को प्रसन्न करने वाला माधव का विलासपूणॅ व्यापार नर्म का ही उदाहरण है ।( (मालती माधव 6/13 )परंतु बाद में कामंदकी के द्वारा मालती का भेद खुल जाने की आशंका व्यक्त करना नर्म स्फिंज की श्रेणी में आता है । मालती माधव के प्रथम अंक में मकरंद के कथन द्वारा लेश मात्र भावों द्वारा, श्रृंगार रस के सूचना व्यापार में नर्म स्फोट की सत्ता दिखाई देती है।

मकरंद :-----" गमनमलसं शून्या दृष्टि शरीरमसौष्ट्ठवं।
श्वसितमधिकम् किम् न्वैतत्स्यात्किमन्य दत्त्तो अथवा ।
भ्रमति भुवने कंदर्प आज्ञा विकारी च यौवनम् ।
ललित मधुरास्ते ते भावा : क्षिपन्ति च धीरताम् ।।( मा मा 1/17)

मालती माधव के छठे अंक में देवी मंदिर के भीतर लवंगिका के स्थान पर माधव का चोरी-छिपे प्रवेश तथा मालती द्वारा अनजाने ही उसका गाढ आलिंगन करना नर्म गर्भ का श्रेष्ठ उदाहरण कहा जा सकता है।( मालती माधव पृष्ठ 152-- 155)

आरभटी वृत्ति भी स्थाई एवं व्यभिचारी भावों से युक्त कायिक, वाचिक , मानसिक , सभी प्रकार के अभिनयों से युक्त सब प्रकार के व्यापार वाली होती है। इसके भी चार भेद हैं----1 संक्षिप्तका 2सम्फेट 3वस्तुत्थापन तथा 4अवपातन। एक नायक के निवृत्त होने पर दूसरे नायक का आना अथवा एक ही नायक द्वारा एक अवस्था को छोड़कर दूसरी अवस्था ग्रहण करना ही संक्षिप्तका कहलाता है। महावीर चरितम् में बाली की निवृत्ति हो जाने पर सुग्रीव का नायक के रूप में ग्रहण होना तथा परशुराम का औद्धत्य समाप्त होने पर "---" पुण्या ब्राह्मण जाति: "---इस प्रकार शान्तत्व को ग्रहण करना (महावीर चरितम 5/55 )भी संक्षिप्तका के उदाहरण है। मालती माधव के पंचम अंक में माधव एवं अघोर घंट द्वारा परस्पर निंदित व अपमानित करने के प्रसंग में सम्फेट की स्थिति है।( मालती माधव 5 /28_--32 )महावीर चरितम् के छठे अंक में श्री राम के साथ युद्ध करता हुआ रावण माया शक्ति के द्वारा अपने कटे हुए सिर के बदले जब पुनः अनंत सिर् प्रकट कर देता है( महावीर चरितम 6 /61) वहां वस्तुत्थापन कहा जा सकता है। मालती माधव के तृतीय अंक में लोहे के पिंजरे को तोड़ने वाले बाघ के भयंकर आक्रमण की सूचना दी जाती है उसके कारण लोगों में भगदड़ मच जाना अवपातन का ही उदाहरण है। (मालती माधव पृष्ठ 89----9 0)

इस प्रकार नाटकीय व्यापार के विविध रूपों में ही विभिन्न वृत्तियों की कल्पना की गई है । यह वृत्तियां शब्द गत एवं अर्थ गत दोनों ही होने के कारण विभिन्न रसों के साथ इनका स्वभावत : ही संबंध हो जाता है । धनिक के अनुसार कैशिकी वृत्ति का प्रयोग श्रंगाररस में ,सात्वती का प्रयोग वीर रस में तथा आरभटी वृत्ति का प्रयोग रौद्र एवं वीभत्स रसों में पाया जाता है। भारती वृत्ति शब्द वृत्ति होने के कारण उसकी स्थिति सभी रसों में पाई जाती है ।( दशरूपक 2/62 )आचार्य भवभूति का मालती माधव नाटकीय कार्य व्यापार की विविध शैलियों की दृष्टि से विशेषत : काफी संपन्न है। वैसे भवभूति के तीनों ही नाटकों में नाटकीय कार्य व्यापारों की ऐसी प्रचुरता एवं विविधता प्राप्त होती है कि उनमें प्राय: सभी वृत्तियों का सांगोपांग रूप से समाहार हो जाता है।



इति

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED