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अनजान रीश्ता - 81

पारुल भारी कदमों से अपने घर का गेट खोलती है। वह फिर से एक बार कार की ओर मुड़कर देखती है। तो अविनाश अपने हाथ में पट्टी बांध रहा था । पारुल का दिल तो कार में ही वापस जाना चाहता था । उसमे हिम्मत ही नहीं थी की वह एक भी कदम आगे बढ़ाए। उसका दिल चिंता की वजह से हलक तक आ रहा था । वह धीरे-धीरे अपने घर की ओर आगे बढ़ती है । एक एक कदम बोझ की तरह लग रहा था । उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। पारुल एक गहरी सांस लेते हुए कांपते हाथो से अपने घर की घंटी बजाती है। वह बुत बनकर ऐसे ही इंतजार कर रही थी पारुल को पता ही नहीं चला कि कब दरवाजा खुला और किसने खोला वह अपनी ही सोच में डूबी हुई थी ।

जया: ( पारुल को चौंकते हुए पारुल को देखते हुए उसे गले लगा लेती है । ) पारुल.... ( रोते हुए ) कहां चली गई थी.... पता है तुम्हारे पापा.... ( किरीट को बुलाते हुए ) किरीट.... जल्दी से आओ.... ।
किरीट: ( दौड़कर आते हुए ) क्या! है जया! ( पारुल की ओर ध्यान जाता है। ) पारुल.... ।
जया: देखो ना! ये कुछ बोल ही नहीं रही! पता नहीं क्या हुआ है!? ।
किरीट: तुम ऐसे दरवाजे पे खड़े होते हुए क्या सवाल-जवाब कर रही हो! अंदर ले आओ उसे! ।
जया: ( पारुल का हाथ थामते हुए उसे अंदर हॉल में ले जाती है। ) ( पारुल को हड़बड़ाते हुए ) पारुल कहां चली गई थी! दो दिन से पता है हम सब कितने परेशान थे। कितने बुरे बुरे ख्याल आ रहे थे । कहीं कुछ अनहोनी ना हो गई हो! समीर... दो दिन से अपने घर नहीं गया...। पागलों की तरह तुम्हे इधर उधर ढूंढ रहा है।
पारुल: ( बिना किसी भाव के मॉम की ओर देखते हुए ) से... म... यहां आया था... क्यों !? ।
जया: क्या मतलब है क्यों!? दो दिनों से तुम्हारा कोई अता पता नहीं था... ना तुम्हारा फॉन लग रहा था ना ही कोई खबर कहा हो!? कैसी हो!? और कहां गई थी तुम बिना बताए!? कोई फिक्र विक्र है हमारी! या नहीं!! ।
किरीट: जया शांत हो जाओ उसे बात तो करने दो!? ।
जया: कैसे शांत रहूं किरीट! इस लड़की को हमारी जरा भी फिक्र है! हमारी इज्जत की!? अगर कुछ हो जाता तो क्या करते हम!? ।
किरीट: ( जया को संभालते हुए ) संभालो खुद को मेरे बच्चे को बोलने तो दो! मुझे पता है कोई ना कोई वजह होगी! बिना वजह थोड़े ही ऐसे चली जाएगी!। चांद बताओ कहां गई थी तुम।
जया: ( किरीट से दूर जाते हुए ) तुम्हारी वजह से ये इतनी बिगड़ गई है । और तुम इससे पूछ रहे हो कहां गई थी। ऐसी कोन-सी वजह होगी जो रात तो बिना बताए मां बाप को एक चिट्ठी लिखकर चली गई। तुम अच्छी तरह से जानते हो ऐसी लड़कियों को समाज में क्या कहते है जो आधी रात को घर से भाग जाती है।
किरीट: ( चिल्लाते हुए ) जया! लगाम दो अपनी जुबां को! माना गलती है! मेरे चांद की पर बोलने तो दो उसे!? एक्सप्लेन तो करने दो!? ।
जया: ये क्या एक्सप्लेन करेगी! तुम्हे दिख नहीं रहा इसकी चुप्पी सबकुछ बयान कर रही है। की कोई कांड... ! ।
किरीट: ( चिल्लाते हुए जया की बात काटते हुए ) जया बस अब बहुत हो चुका! एक और लफ्ज़ नहीं! बिलकुल चुप! ( पारूल का चेहरा अपने हाथ में लेते हुए ) चांद अपनी मां की बातो का बुरा मत मानना! गुस्से में है! और तुम्हारी चिंता भी इसीलिए ऐसी बाते कर रही है। तुम बताओ! ऐसे क्यों चली गई थी तुम! वो भी सिर्फ एक चिट्ठी लिखकर की तुम घर छोड़कर जा रही हो!? ऐसा क्यों कहां था चांद बोलो! मेरे बच्चे! कोई प्रोब्लम है! क्या! कोई परेशान कर रहा है क्या!? कुछ हुआ है क्या!? ।
पारुल: ( पारुल के आंखों में आंसू आ जाते है वह अपने पापा को कस के गले लगा लेती है। मानो जैसे अब उसे लगा हो जैसे उसके सारे डर! सारी चिंता कहीं दूर चली गई थी । ) (रोते हुए कहती है) डेड! ( फुट फुट के रोने लगती है । ) ।
किरीट: ( पारुल के सिर पर हाथ फेरते हुए ) शशहह! मैं यही हूं! हमेशा! तुम्हारा बाल भी कोई बाका नही कर सकता जब तक मैं जिंदा हूं! । शशह! ।
पारुल: डेड! आई... एम.... सॉरी..... ( रोते हुए ) में सच में बहुत बुरी बेटी हूं! हमेशा... आप.... लोगो को परेशानी... के अलावा कुछ नही.... दिया... । मॉम ने आज... जो.... भी कहां... सब...कुछ...सही... था...। मैं बहुत बुरी हूं डेड!।
किरीट: ( पारुल के आंसू पोंछते हुए ) नहीं मेरे बच्चे किसने कहां तुम बुरी हो!? तुम तो दुनिया की सबसे अच्छी बेटी हो!? और रही बात तुम्हारी मॉम की तो देखो जरा उनकी ओर ( पारुल का सिर जया की ओर करते हुए ) देखो उसे भी तुम्हारी चिंता थी इसीलिए! वह उल्टा सीधा बोल गई! ।
पारुल: ( अपनी मॉम की ओर देखती है तो वह भी रॉ रही थी । अपनी मॉम के पास जाते हुए उसके दोनो हाथ अपने हाथ में लेते हुए। ) प्लीज! मुझे माफ कर दे! जानती हूं बहुत चौंट पहुंचाई है मेरी इस हरकत ने! लेकिन मॉम मेरे बस में सच में कुछ नहीं था । परिस्थिति ही कुछ ऐसी थी कि मेरा यहां से जाना ही सबके लिए बेहतर था ।
जया: ( पारुल को गले लगाते हुए रोने लगती है। ) पारुल!.... तुम ऐसे कैसे बिना सोचे समझे जा सकती हो। हम क्या मर गए थे... अगर कोई प्रोब्लम थी तो हमे बताती... हम संभाल लेते! क्या तुम्हे हम पर भरोसा नहीं है क्या!? ।
पारुल: ( सिर को ना में हिलाते ) ऐसा नहीं है मॉम! बात ही कुछ ऐसी थी कि मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती थी! ।
जया: क्या! मतलब है पारुल!? कौन-सी ऐसी बात है जिस वजह से तुम्हे ऐसा कदम उठाना पड़ा!? बोलो बेटा! हम दोनों तुम्हारे साथ है! ऐसे अचानक क्यों!? तुम घर छोड़कर चली गई!? बोलो पारुल! कुछ तो बोलो! ( पारुल को हड़बड़ाते हुए ) ।
पारुल: ( जया और किरीट की ओर देखते हुए ) डेड... मॉम.... मेरी... बात समझने की कोशिश कीजिएगा... प्लीज... मैने जो भी किया है.... वह सबकी भलाई के लिए किया है.....। ( मॉम डैड की ओर फिर से देखते हुए ) ।
जया: बोलो बेटा.... ।
किरीट: ( सिर को हां में हिलाते हुए जवाब देता है। ) ।
पारुल: ( गला सुख रहा था ।..... मन ही मन... सच बता दो... पारुल... कोई ना कोई रास्ता निकल जाएगा....। फिर उसके मन में अविनाश की कहीं बात याद आती है: अगर किसी को भी पता चला कि यह शादी मैने जबरदस्ती की है तो! अगली बार हम सिर्फ बात नहीं करेंगे! और तुम्हारे परिवार के लिए भी अच्छा नहीं होगा। अविनाश बात याद आते ही सारा डर वापस सा आ गया था । पारुल के मन में कशमकश चल रही थी । दिल कह रहा था सच्चाई कह दो । और दिमाग मना कर रहा था । ) ( गहरी सांस लेते हुए ) मैने.... मैंने.......।
किरीट: ( पारुल का हाथ थामते हुए ) बोलो बेटा! ।
पारुल: मैने... शा....दी... क....र.....ली.....है....।
किरीट: क्या कह रही हो बेटा! कुछ समझ नहीं आ रहा!?।
पारुल: डेड.... मैने अविनाश खन्ना से शादी कर ली है।
किरीट: ( पारुल का हाथ छोड़ते हुए... दो कदम पीछे चला जाता है। ).... तुम.... जूठ बोल रही हो.... है... ना।( सोफे पर गिरते हुए ) ।
पारुल: ( रोते हुए सिर को ना में हिलाते हुए ) यही... सच है डेड..... मेरी शादी हो चुकी है...!... ( हाथ जोड़ते हुए ) प्लीज माफ कर दीजिए मुझे! ।
किरीट: क्यों!? आखिर वहीं इंसान क्यों!? जानती हो ना! तुम! कितनी चोंट पहुंचाई है उसने! फिर क्यों!? पारुल!?। ( चिल्लाते हुए ) क्या हमने तुम्हे अच्छी तरह नही पाला!? कोई कमी थी यहां पर!? फिर क्यों!? ऐसा क्यों किया तुमने बोलो!?।
पारुल: ( पहली बार है जब उसके डेड उसपर चिल्लाए है और उसका नाम लिया है। इससे पहले कभी भी उन्होंने पारुल को नाम से नहीं पुकारा था। पारुल के पैरो तले मानो जमीन खिसक गई हो। पारुल कुछ बोल ही नहीं पाती! वह बस किरीट की ओर देखे जा रही थी । ) ।
जया: ( पारुल को हड़बड़ाते हुए ) बोलो....!? क्यों....!? किया तुमने ऐसा...! आखिर क्या वजह थी..... की तुम्हे उस आदमी से शादी करनी पड़ी... और सेम..... सेम के बारे में सोचा है.... क्या बीतेगी उस पर....!? ।
पारुल: आई एम सॉरी.... मॉम... पर मेरे कंट्रोल में कुछ नही था ।
जया: क्या मतलब है कंट्रोल मैं नहीं था। वह क्या तुम्हे उठाके ले गया था! क्या!? नहीं ना तुम खुद गई थी यहां से! तो कैसे तुम्हारे बस में नहीं था ।
पारुल: मॉम में कुछ नहीं बता सकती! पर यकीन करे! सच में!!..... ।
जया: ( पारुल की बात कांटते हुए ) बस! अब बहाने बनाने से क्या फायदा!? तुम तो सच भी कुबूल नहीं कर रही की तुम अपनी मर्जी से उससे शादी के लिए भागी थी। तुम्हे जरा भी ख्याल नहीं आया की! हम पर क्या बीतेगी!? जब हमे पता चलेगा तुम ऐसा कांड करोगी!? माना मैने तुम्हे जन्म नहीं दिया! पर मैने तुम्हे कभी खुद से अलग नहीं समझा! अपनी बेटी की तरह तुम्हारी परवरिश की! और ये सिला दिया तुमने! हमारे प्यार का!? इस तरह भाग कर शादी करके!? कम से कम अपने मरे हुए मां - बाप का तो ख्याल करती! ।
पारुल: मॉम प्लीज.... ।
जया: ( पारुल के हाथ को खींचते हुए ) चलो! अब जब तुमने चुन ही लिया है तो जाओ खुश रहो! अपने आशिक के साथ! अब यहां कोई नहीं है! तुम्हारे लिए! समझ लो! आज से हम तुम्हारे लिए और तुम हमारे लिए मर गई! । ( दरवाजे की ओर ले जाते हुए ) ।
पारुल: मॉम प्लीज... डेड आप कहे ना मोम से ऐसा ना करे! प्लीज मेरी बात सुने... प्लीज... डेड... ( हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए ) ।
जया पारुल को दरवाजे के बहार धक्का मारते हुए बहार निकलती है । पारुल गिरने ही वाली होती है की तभी उसे कोई थाम लेता है । पारुल जब रोते हुए नजरे उठाती है तो उसका दिल मानो जैसे थम सा गया था । उसकी आंखे पलके जपकाना भूल गई थी। वक्त जैसे रुक सा गया था। पारुल खुद को जैसे सबकी जिंदगी से दूर जाना चाहती थी । क्योंकि सबके दर्द की ज़िम्मेदार कहीं ना कहीं वह खुद को मान रही थी। वह मन ही मन सोचती है की काश उसके मॉम डैड की मौत के दिन वह भी मर जाती तो इतने सारे लोगों के दिल को आज ठेस नहीं पहुंचती । पारुल सोच ही रही थी की तभी एक आवाज उसे ख्याल से बहार लाती है।



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