Pyar ke Indradhanush - 26 books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार के इन्द्रधुनष - 26

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दिल्ली में मनमोहन ने रेनु को बता दिया था कि अब तो मैं परीक्षा की समाप्ति पर ही आऊँगा, बीच में आना सम्भव नहीं होगा। मौसम बदलने लगा था। सुबह-शाम की ठंड होने लगी थी। एक दिन शाम को ड्यूटी से आने के पश्चात् डॉ. वर्मा ने फ़ोन करके रेनु को कहा - ‘ठंड होने लगी है, स्पन्दन को सुबह-शाम गर्म कपड़े ज़रूर पहनाये करो, रेनु।’

‘दीदी, मैंने तो हफ़्ता पहले से ही एहतियात बरतनी शुरू कर दी है,। .... आपसे मिलना था, आप कब फ़्री होंगी?

‘मैं तो फ़्री हूँ, चाहे अब आ जाओ’, कहने के बाद उसे ख़याल आया कि अकेली रेनु स्पन्दन को लेकर कैसे आएगी, सो उसने कहा - ‘रेनु, तुम स्पन्दन को लेकर इस समय मत आओ। बाहर मौसम ठंडा है। यदि बहुत ज़रूरी है तो मैं आ जाती हूँ।’

‘ज़रूरी तो था, लेकिन आप क्यों इस समय कष्ट करेंगी। मैं कल दिन में आ जाऊँगी।’

‘अरे, मुझे कोई कष्ट नहीं होगा। इस बहाने बहन के हाथ का बना खाना खा लूँगी और थोड़ा स्पन्दन से लाड़ लड़ा लूँगी।’

‘फिर तो अवश्य आ जाइए। आप क्या खाना पसन्द करेंगी?’

‘जो तुम प्यार से खिलाओगी, वही। ...... तो मैं आती हूँ आधे घंटे तक’, कहकर डॉ. वर्मा ने कॉल काट दी।

स्पन्दन सोई हुई थी, इसलिए रेनु के लिए आधा घंटा काफ़ी था दाल-सब्ज़ी बनाने के लिए । चपातियाँ खाने के समय गर्मागर्म बनाने की सोचकर वह रसोई में व्यस्त हो गई।

डॉ. वर्मा ने आते ही पूछा - ‘इतनी ख़ामोशी क्यों है, स्पन्दन सोई हुई है क्या? .... मुझसे क्या बात करनी थी रेनु?’

‘गुड्डू सोई हुई है, इसलिए आपको खामोशी लग रही है। …. दीदी, आपसे तो पर्सनल बात करनी थी।’

‘ऐसी क्या पर्सनल बात करनी है?’

‘दीदी, दरअसल इस बार मेन्सेज नहीं आए। ड्यू डेट से तीन दिन ऊपर हो गए हैं। क्या करना चाहिए, टेस्ट करवाऊँ क्या?’

‘अरे, करना क्या है? यह तो ख़ुशी की बात है। लगता है, दिल्ली की सौग़ात है! बधाई हो। मनु को बताया कि नहीं?’

‘नहीं, अभी तो नहीं बताया। बेवजह परेशान होंगे। लेकिन दीदी, हम तो अभी और बच्चा नहीं चाहते थे।’

‘मनु के परेशान होने की क्या बात है! जब तक बेबी होगा, तब तक स्पन्दन दो साल की हो जाएगी। दो बच्चे तो होने ही चाहिएँ। मैं अकेली हूँ, कई बार महसूस होता है, एक भाई या बहन होती तो कितना अच्छा लगता!’

रेनु अपनी बात भूलकर बोली - ‘दीदी, मैं हूँ ना आपकी छोटी बहन? आपको अकेला महसूस करने की क़तई ज़रूरत नहीं।’

डॉ. वर्मा ने रेनु को गले लगा लिया और कहा - ‘रेनु, जब से तुमसे मिली हूँ, अकेलापन कभी महसूस नहीं हुआ। .... अब मनु को ‘गुड न्यूज़’ देती हूँ’, कहकर उसने मनमोहन को कॉल किया और बताया कि तुम दुबारा पापा बनने वाले हो।

‘वृंदा, कहाँ से बोल रही हो? रेनु ने तो मुझे बताया नहीं।’

‘मनु, मैं रेनु के पास ही बैठी हूँ। पगली कहती है - हम तो अभी और बच्चा नहीं चाहते थे। मैंने उसे समझाया है कि दो बच्चे तो होने ही चाहिएँ। जैसे स्पन्दन के आने से तुमने आगे बढ़ने के लिए कमर कस ली है, उसी तरह दूसरे बेबी के आने तक तुम ऑफ़िसर भी बन जाओगे!’

‘वृंदा, इस शुभ समाचार को पाकर चूम ही लेता पास जो तुम मेरे होती!’ ख़ुशी के आलम में मनमोहन कह तो गया, किन्तु मन-ही-मन सोचने लगा कि वृंदा को कैसा लगा होगा!

उधर डॉ. वृंदा की प्रतिक्रिया थी - ‘अच्छा! समय आने पर देखूँगी। .... लो, रेनु से बात कर लो’, उसने मोबाइल रेनु को पकड़ा दिया।

इनकी बातें चल रही थी कि स्पन्दन ‘मम्मी-मम्मी’ करती इनके पास आ पहुँची। डॉ. वर्मा ने झट से उसे अपनी गोद में ले लिया। उसने भी डॉ. वर्मा के गले में बाँहें डाल दीं।

रेनु उठी। स्पन्दन के लिये दूध बना लाई।

‘दीदी, आप इसे दूध पिलाओ। मैं खाना तैयार कर लेती हूँ, फिर इकट्ठे बैठकर खाएँगे।’

खाना खाते हुए डॉ. वर्मा ने स्पन्दन को अपनी गोद में बिठाए रखा और बीच-बीच में उसके मुँह में रोटी का कोर डालती रही। खाना खाने के बाद डॉ. वर्मा जाने लगी तो रेनु ने कहा - ‘दीदी, आज यहीं रुक जाओ।

‘नहीं, मुझे जाना होगा। अस्पताल में इन्फ़र्मेशन के बिना मैं बाहर नहीं रह सकती, क्योंकि रात को कई बार डिलीवरी के लिये कॉल आ जाती है।’

इसके बाद रेणु ने दुबारा आग्रह नहीं किया। डॉ. वर्मा ने स्पन्दन को चूमा और विदा ली।

रसोई समेटने के पश्चात् जब रेनु स्पन्दन को लेकर बेड पर लेटी तो मनमोहन और डॉ. वर्मा के बीच मोबाइल पर हुई बातचीत जो उसके कानों में पड़ी थी, पर विचार करने लगी - जैसे स्पन्दन के आने से तुमने आगे बढ़ने के लिए कमर कस ली है, उसी तरह दूसरे बेबी के आने तक तुम ऑफ़िसर भी बन जाओगे! ..... वृंदा, इस शुभ समाचार को पाकर चूम ही लेता पास जो तुम मेरे होती! .... अच्छा! समय आने पर देखूँगी।

मुम्बई में ‘कौन बनेगा अरबपति’ में पचास लाख जीतने पर होटल-रूम में पहुँचते ही डॉ. वर्मा ने मनमोहन को बाँहों में लेकर ‘किस’ किया था तो इन्होंने उसे आगे बढ़ने से रोका था और अब खुद कह रहे थे, चूम ही लेता पास जो तुम मेरे होती! और डॉ. दीदी ने भी ख़ुश होते हुए जैसे चुनौती दी हो - अच्छा! समय आने पर देखूँगी। …. इस सब का क्या मतलब है? क्या ये ख़ुशी का मौक़ा आने पर ऐसा कर सकते हैं? लगा तो ऐसा ही था जैसे इन्होंने यह बात गम्भीर होकर कही हो, मज़ाक़ में नहीं। डॉ. दीदी का उत्तर तो स्पष्ट था। इसमें उनकी अतृप्त इच्छा की झलक साफ़ दिख रही थी। … वे शायद ऐसे मौक़े को हाथ से नहीं जाने देने वाली! .... वैसे डॉ. दीदी भली तो ग़ज़ब की हैं - मैं अपनी समस्या डिस्कस करने के लिए जाना चाहती थी। स्पन्दन को ठंड न लग जाए, सोचकर उन्होंने मुझे रोक दिया और खुद ही चली आईं। …. दिल से मेरा भला चाहती हैं। सगी बहन से भी अधिक प्यार करती हैं। .... वे इनसे भी प्यार करती हैं, यह मैं जानती हूँ। …. फिर क्यों मेरे मन में इन छोटी-छोटी बातों को लेकर शंका का कीड़ा डंक मारने लगता है? …. मुझे अपने मन को समझाना होगा, छोटी-छोटी बातों को नज़रअंदाज़ करना सीखना होगा। …. यहाँ आकर उसका मन शान्त हुआ और उसे नींद आने लगी।

चारेक बजे होंगे कि स्पन्दन के लगातार तीन-चार बार छींकने से रेनु की नींद टूट गई। उसने देखा, स्पन्दन कम्बल से बाहर छिटकी पड़ी थी। उसने उसे अपने पास खींचा तो उसे लगा कि स्पन्दन का शरीर थोड़ा गर्म है। उसने उसे अपने साथ लिपटा लिया। उसके शरीर की गर्मी से स्पन्दन का छींकना बन्द हो गया, किन्तु रेनु दुबारा न सो पाई। थोड़ी देर बाद रेनु को महसूस हुआ कि स्पन्दन के शरीर का ताप बढ़ रहा है। किसी तरह उसने कुछ समय निकाला। उसे पता था कि डॉ. वर्मा सुबह पाँच बजे उठ जाती हैं, इसलिए उसने सवा पाँच बजे फ़ोन किया। डॉ. वर्मा फ़्रेश होकर योगाभ्यास के लिए तैयार हो रही थी कि रेनु की कॉल देखकर सोचने लगी, इतनी सुबह फ़ोन करने की क्या वजह हो सकती है! मोबाइल ऑन किया तो रेनु ने घबराई आवाज़ में कहा - ‘दीदी, गुड्डू को बुख़ार हो गया है।’

‘रात को तो अच्छी-भली थी, अचानक क्या हुआ?’

तब रेनु ने उसे सारी बात बताई। सुनते ही डॉ. वर्मा ने कहा - ‘तुम घबराओ मत, मैं आ रही हूँ।’

डॉ. वर्मा ने बाहर झाँका तो अभी अँधेरा था। उसने वासु को जगाया और कार पर कपड़ा मारने के लिए कहा। कार निकालते हुए उसने वासु को कहा - ‘मैं थोड़ी देर में आती हूँ, तुम साफ़-सफ़ाई और रसोई का काम कर लेना।’

डॉ. वर्मा ने रेनु के पास पहुँचकर स्पन्दन के माथे को छूकर देखा। फिर रेनु से पूछा - ‘घर में पैरासिटामोल सिर्प है?’

‘पिछली सर्दी में लाए तो थे। देखती हूँ, कुछ बचा है या नहीं’, कहकर रेनु अलमारी खोलकर एक शीशी उठा लाई। डॉ. वर्मा ने देखा तो उसकी डेट एक्सपायर हो चुकी थी। उसने कहा - ‘रेनु, इसे डस्टबिन में फेंको। कोई भी दवाई एक्सपायरी डेट चेक किए बिना इस्तेमाल नहीं करनी चाहिए। .... रेनु, तुम तैयार हो जाओ। जब तक स्पन्दन पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाती, तुम्हें मेरे साथ ही रहना है।’

घर पहुँचकर डॉ. वर्मा ने स्पन्दन का टेम्प्रेचर चेक किया। फिर एक स्लिप पर दवाई लिखी और वासु को सरकारी मेडिकल स्टोर पर भेजा। दवाई देने के कुछ देर बाद स्पन्दन सो गई। डॉ. वर्मा और रेनु नहाने-धोने में लग गईं।

शाम को का फ़ोन आया तो रेनु ने उसे कल रात से तब तक की सारी जानकारी दी। उसे जानकर तसल्ली हुई कि बीमारी की हालत में स्पन्दन डॉ. वर्मा की देखरेख में है।

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