वो पहली बारिश - भाग 6 Daanu द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वो पहली बारिश - भाग 6

"ओए.. तूने फिर से सब गंदा करके रखा है, क्या यार निया, सफाई कर ले कुछ, और तू पागल वागल है क्या? रात को मैंने देखा की तू आइसक्रीम का पूरा टब उठा कर घूम थी, और अभी वो टब खाली पड़ा है", रिया सिंक में रखे खाली डब्बे की और इशारा करते हुए बोली।




"मेरी आइसक्रीम.. मेरी मर्जी", कमरे से बाहर निकलते हुए निया ने जवाब दिया।




"हां.. क्यों नहीं, पर इस घर में मैं भी रहती हूं, और अगर तू कम से कम घर साफ़ नहीं रख सकती, तो तू जा सकती है यहां से।"




"शाम को आकर करदूंगी।"




"अभी.. अभी चाहिए मुझे, करके जा। पता नहीं, क्या की बिगड़ा था मैंने किसी का, जो ऐसी रूममेट मिली है मुझे।"




"कर रही हूं यार, ज्यादा मत बोल।"




"ज्यादा क्या, जरूरत जितना ही बोला है मैंने। अब कोई कुछ समझाए भी ना तुझे।"




रिया की इस बात का जवाब दिए बिना, निया साफ सफाई में लग गई, और सब साफ करके बोली, "मैं जा रही हूं, शाम को मिलते है, वैसे ना ही मिले तो अच्छा है।"




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"दो दिन और बचे है वीकेंड में.. जल्दी से वीकेंड आए और मैं इस जगह से बाहर निकलूं।", अपने आप से ये कहते हुए निया अपने डेस्क पे आकर बैठी ही थी, की अचानक आई आवाज़ों से उसका ध्यान भटक गया।




"अच्छा.. आप सही में खाना बहुत बढ़िया बनाते हो।"




"थैंक्यू, आप को अच्छा लगा, तो मैं कल दोबारा से आपके लिए बना लाऊ?"




"अरे नहीं नहीं.. फालतू में इतनी मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है।"




ध्रुव और उसकी जूनियर बात कर रहे थे।




"लगता है वेदर फोरकास्ट के साथ ये भी इसकी हॉबी है", निया एक झलक ध्रुव की तरफ देख कर अपनी स्क्रीन को वापस निहारते हुए दबे स्वर में बोली।




"क्या, कुछ कह रही हो निया?" ध्रुव पूछता है।




"मैं.. नहीं.. नहीं तो, लंच हो गया तुम्हारा?" निया बात बदलते हुए फट से बोली।




" हां, तुम्हारा?"




"हां, बस अभी आकर काम ही खत्म कर रही हूं।"




"अन्नू.. मुझे लग रहा है, की हम मिस निया को परेशान कर रहे है, तो बाद में आराम से बात करते है।", ध्रुव अपनी जूनियर से बोला।




"ठीक है..", निया का पीछे मुंह कर कोई नहीं बोलने का इंतजार करती हुई अन्नू बोली और वहां से उठ कर अपनी सीट की ओर चल दी।




"सुनील.. ये जो तुम कह रहे हो ना, प्रैक्टिकली इंपॉसिबल है", मीटिंग रूम से बाहर निकलते हुई चंचल सुनील को किसी बात को लेकर सुना रही थी।




"मैं करके दिखा सकता हूं ये..", अपनी बात रखते हुए सुनील ने भी जोरो से बोला।




"देखते है.. देखते है.. कौन इसे कर पाएगा और कितने अच्छे से..", उसी मीटिंग से बाहर आती हुई, नीतू ने उन दोनो को बोला।




"पर अभी इसपे मुझे भी आगे बात करनी होगी, पर आप दोनो तब तक तैयारी शुरू कर सकते हो, हम ये देखेंगे की दोनो में से कौन इसे ज्यादा अच्छे से कर सकता है। ", नीतू ने ये बोला, और आगे निकल गई।




चंचल और सुनील, एक दूसरे को बड़ी बड़ी आंखों से देखते हुए, अपनी अपनी सीट पे पहुंचते है।




"निया.. हमे पूरी टीम के लिए प्राइवेसी फिल्टर चाहिए, मंगा लेना", सीट पे बैठी चंचल निया को कहती है।




"ध्रुव तुम्हें हमारे आस पास जो फालतू लोग है, उनसे कोई बात नहीं करनी, और पूरी तरह काम पे ध्यान देना है, साथ ही जो प्राइवेसी फिल्टर मैंने तुम्हें ला कर दिए थे, उनको काम में लाना शुरू कर दो अब।"




"ठीक है.. " निया और ध्रुव दोनो एक सी आवाज़ में बोले।




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"यार क्या है, चल क्यों नहीं रहा", स्पेसबार को ज़ोर से प्रेस करते हुए, निया अपनी लैपटॉप स्क्रीन की ओर देखते हुए बोली।




"हेय.. सब ठीक है ना?", ध्रुव धीरे से निया के पास आता हुआ पूछता है।




"हां.. मुझे बस कॉफी चाहिए।", निया मग लेकर उठ कर जाते हुए बोली।




"निया.. तुम्हें कोड रिव्यू कराने के लिए देना था ना आज?"




"मै’म उसपे काम चल रहा है अभी, पर मैं आज शाम तक खत्म कर लूंगी उसे, फिर दिखाती हूं आपको।"




"ठीक है.. पर आज शाम तक हो जाना चाहिए।"




"ठीक है", "जिस हिसाब से ये चल रहा है, लगता है, आज यही रुकना पड़ेगा।", निया धीरे से खुद से कहते हुए अपनी सीट पे बैठी और कॉफी का मग डेस्क पे दे पटका।




निया को जो दिमाग सुबह से सही से काम नहीं कर रहा था, अचानक से ही दोबारा चलने लग गया था, शायद चंचल की डांट का डर था ये।




अपने काम में मग्न हुई निया को समय का ख्याल ही नहीं रहा, पर अचानक जब उसका फोन बजा तो उसने देखा की 8:30 बज गए।




"ओ नहीं, कोई बात नहीं निया, ये करले फिर निकलते है", अपने फोन को साइड से साइलेंट पे रखते हुए निया ने दोबारा काम शुरू किया।




फोन को साइलेंट करे अभी 5 मिनट हुए होंगे की ध्रुव निया के पीछे आकर बोला।




"ओए.. चलो।"




"क्या?"




"मैं घर जा रहा हूं, साथ ही निकलते है.. रास्ता सेम ही है हमारा।"




"पर क्यों? मुझे नहीं जाना तुम्हारे साथ।"




"देखो 8:30 बज गए है, मेरे यहां से निकलने के बाद, तुम्हे वैसे भी कोई यहा नहीं बैठने देखने देगा। लड़कियों को देर रात ऑफिस में नहीं बिठा सकते, पॉलिसी ही ऐसी है। "




"ठीक है.. जब भेजेंगे यहां से तो निकल जाऊंगी।"




"खा नहीं रहा हूं मैं तुम्हे.. और वैसे ही बस में जाना है मैंने भी। और तुम यहां नई भी हो, बस इसलिए पूछा, बाकी नहीं चलना है तो मत चलो।" ध्रुव थकी हुई आवाज़ में बोला।




"एक मिनट.. बस में ही जाओगे?"




"हां"




"चलो फिर..", निया फट से अपना लैपटॉप वेड़ते हुए बोली।




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ध्रुव और निया दोनो बाहर निकल कर बस स्टैंड पे पहुंचे ही थे की ध्रुव बोला,


"अच्छा.. किसी को कहना नहीं, की हम साथ निकले थे.. नहीं तो फालतू ही बात का बतंगड बना देंगे।"




"हां.. मैं ध्यान रखूंगी।",स्टैंड पर आकर खड़ी हुई बस में चढ़ते हुए निया बोली।




"वैसे अगर बुरा ना मानो तो एक बात पूछना चाहता था, मैं तुमसे।", निया की साथ वाली सीट पे बैठते हुए ध्रुव बोला।




"पूछो"




"कैसी हो तुम?"




"हहह?"




"कल आइस क्रीम शॉप पे अपने आंसू छुपाती हुई एक लड़की को देखा, तो बस इसलिए पूछ लिया। तुम्हें नहीं बताना है तो मत बताओ।"


"पता नहीं.. कैसी हूं, क्या बताना है, क्या नहीं.. कुछ नहीं पता है अभी.. पता लगेगा तो ज़रूर बताऊंगी।"




ध्रुव को देखते हुए निया बोली, जिसके बदले ध्रुव ने भी बस अपना सिर हिला दिया और निया अपने सिर पीछे सीट से टेक लगा कर आँख बंद करके बैठ गई।