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अनजान रीश्ता - 72

अविनाश कमरे से निकलकर सीढ़ियों से उतर कर सीधा बार पर जाकर बैठता है । उसका दिल थमने का नाम ही नहीं ले रहा । वह बोतल को खोलने की कोशिश करता है लेकिन ढक्कन को जोर से खोलने के प्रयास में उसके हाथ में लगे जख्म में से फिर से खून बहने लगता है । वह हाथ को हवा में पटकता है जिस वजह से खून के छींटे हवा में इधर उधर गिर रहे थे । अविनाश के हाथ में से कुछ ज्यादा ही खून बह रहा था पर उसे इस बात से शायद ही फर्क पड़ रहा था। वह उल्टे हाथ से ग्लास में शराब डालते हुए एक ही बार में पूरा ग्लास पी जाता है । इस सोच में की शायद ये शराब की थोड़ी बहुत कड़वाहट पारुल के जाल से उसके दिल आजाद करा दे। पर उल्टा इस शराब में भी उसे कड़वाहट की जगह मिठास ज्यादा मिल रही थी । या फिर यूं कहे की उसकी जिंदगी में अब कड़वाहट के लिए कोई जगह बाकी ही नहीं थी। अब एक नई जगह बनाने की जरूरत थी वह थी इस शराब में जो थोड़ी बहुत मिठास थी उसी की तरह पारुल के मिठास को अपनाने की पर शायद अभी वह तैयार नहीं था । या खुद को तैयार करना ही नहीं चाहता था । क्योंकि वह माने या ना माने अविनाश अच्छी तरह से जानता था की पारुल कितनी हद तक उसकी जिंदगी पर, उसके फैसले पर, हावी है। बस यहीं बात शायद उसे खल रही है । की क्यों वह उसे अपने दिल से निकाल नहीं पा रहा !?। ऐसा तो नहीं है की वह दोनों कभी एक साथ होंगे!!। और जो आज उसने किया है उसके बाद तो पारुल उसकी परछाई से भी नफरत करने लगेगी । अविनाश मुस्कुराते हुए अपने हाथ में ग्लास लेते हुए सामने की फेंक देता है । जिसकी आवाज मानो पूरे घर में गूंज रही थी । क्योंकि वैसे भी उसके और पारुल के अलावा इतने बड़े घर में कोई नहीं था । वह फिर बॉटल को उठाकर जमीन पर फेकने लगता है । एक के बाद एक चीज जो भी उसके हाथ में आ रही थी उसे इधर उधर फेक रहा था । जैसे यह टूटी हुई चीजें शायद उसका गुस्सा या ये जो भी भावनाएं है उसे दूर कर दे। पर कोई फायदा नहीं हो रहा था सारी चीज़े तहस नहस हो चुकी थी । शराब की बोतलों के कांच जमीन पर बिखरे हुए थे । उसमे से जो भी शराब थी वह फर्श पर बह रही थी । कुर्शिया टूटी हुई इधर उधर पड़ी हुई थी। सारा सामान जैसे जो अनहोनी हुई है उसका परिचय अविनाश को करा रही थी । इन सारी तहस नहस के बीच अविनाश के हाथ में से खून पानी की तरह बहते हुए जमीन पर पड़ी शराब के संग मिल रहा था । वह फिर हंसते हुए ये सारा मातम देख रहा था । चारो और अंधेरा, ये टूटी हुई चीज़े,ना कोई इंसान ना कोई उसके पीछे देखने वाला, बिलकुल बेरंग और अंधेरों से भरी उसकी जिंदगी की तरह इस रूम का माहोल लग रहा था । इस जिंदगी में वह उसे घसीट कर लाया जिससे वह मिलो दूर रहना चाहता था । अगर अविनाश आग है तो पारुल पानी। वह अंधेरी रात है तो पारुल सुनहरा दिन। मानो जैसे दोनों को दूर ही रखे तो ही बेहतर है क्योंकि ये दोनों साथ रहे तो पता नहीं क्या होगा । या शायद बर्बादी.... जैसे की अभी हो रही है । पारुल और अविनाश की दोनो ही खुद को चौंट पहुंचा रहे है । वहां पारुल खुद को पानी में भीगकर तो यहां अविनाश चीजों को तोड़कर पर दोनों चाहकर भी अलग नहीं हो पा रहे ये बात भी दोनो से छुपी नहीं है ।


अविनाश ऐसे ही टूटे फूटे सामान को जमीन पर देखते हुए कुछ सोच में डूबा हुआ था । की तभी किसी के धीमे कदमों की आहट उसे सुनाई देती है । वह जानता था कि कौन था!? इसलिए मुड़कर देखता नहीं । और जिस स्थिति में था उसी स्थिति में खड़ा रहता है । कदमो की आवाज और नजदीक आ रही थी । तभी वह चुटकी बजाता है जिससे बार की लाइट चालू हो जाती है । जिस वजह से पारुल अचानक रोशनी की वजह से अपनी आंखे बंद कर लेती है । एक तो वैसे ही डरी हुई थी क्योंकि जिस तरह से चीज़े टूटने फूटने की आवाज आ रही थी । उसका दिल डर की वजह से कांप रहा था l और भीगने की वजह से वैसे ही उसका बदन कांप रहा था । वह जैसे तैसे हिम्मत करके खुद को यहां तक लाई थी । l वह आंखे बंद करते हुए कदम आगे बढ़ाने वाली थी की तभी अविनाश कहता है ।


अविनाश: स्टॉप..... कांच है वहां... ।


पारुल: ( आंखे खोलते हुए देखती है तो अविनाश की पीठ की और ध्यान पढ़ता है । उसका मुंह अभी भी दूसरी और था । और जब पूरे कमरे में नजर घुमाती है। तो शायद ही कोई चीज बिना टूटे गिरी थी । शराब की बोतले सारा सामान बिखरा हुआ था । और जब फिर से अविनाश की और ध्यान जाता है तो कुछ लाल रंग सा बह रहा था । तब उसकी आंखे गबराहट में बड़ी हो जाती है । ) अ..... ।


अविनाश: ( पारुल की बात काटते हुए ) क्या लेने आई हो यहां....!? अपने कमरे में जाओ!? ।


पारुल: ( डरते हुए ) अवि..... तुम.... हारे हाथ से खून बह.... रहा..... है.....क्या!?।


अविनाश: ( पीछे मुड़े बिना ) इससे तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए!!! मत भूलो की मैं वहीं इंसान हूं जो तुम्हे उन हर इंसान से दूर कर दिया है जो तुम्हारे अपने थे । और आगे भी यहीं करूंगा । तो तुम अपने काम से काम रखो तो तुम्हारे लिए भी बेहतर होगा और मेरे लिए और हां... ( पारुल की और मुड़ते हुए । जब उसकी नजर पारुल की और पड़ती है तो उसका पूरा बदन भीग हुआ था । और आंखे लाल थी । वह फिर दूसरी ओर देखते हुए ) । जस्ट बिकोज हमारी शादी हुई है इसका मतलब ये नहीं की तुम खुद को सच में मेरी बीवी मान लो... मेरे लिए ये रीश्ता सिर्फ और सिर्फ नाम का है जो मैने बदला लेने के लिए तुमसे जोड़ा है तो कोई भी गलतफहमी में मत पालना। क्योंकि आगे भी हमारा रीश्ता सिर्फ नाम का ही है और नाम का ही रहेगा ।


पारुल अविनाश की बात सुनकर ना चाहते हुए भी उसके दिल में चुभ रही थी । ऐसा नहीं था कि उसे किसी भी तरह की भावना अविनाश से जुड़ी हुई थी । वह तो बस एक इंसान की हैसियत से ऐसे ही पूछ रही थी । जब अविनाश ऊपर की ओर जा रहा था तब पारुल कहती है।


पारुल: मिस्टर. अविनाश खन्ना!!! तुम्हे लगता है की तुमने जो कुछ भी किया है उसके बाद में किसी भी तरह का रीश्ता तुमसे रखना चाहूंगी। मैं मरना पसंद करूंगी उससे पहले ।


अविनाश: ( जहां था वही थमते हुए ) गुड इसी बात पर अड़ी रहना!!! ।


अविनाश दो कदम आगे बढ़ाता है की तभी उससे धुंधला धुंधला दिखने लगता है । जिस वजह से वह सीढ़ियों का कटहरा पकड़ लेता है । लेकिन हाथ में चोट लगने की वजह से वह ज्यादा देर तक पकड़ नहीं पाता । तभी अविनाश सीढ़ियों के सहारे बैठते हुए दांए हाथ से फोन निकलते हुए विशी को कॉल करता है । लेकिन उसे कुछ साफ नहीं दिखाई देता । तभी पारुल उसके हाथ में से मोबाइल ले लेती है । इस दौरान पानी की कुछ बूंदे अविनाश के चहेरे पर पढ़ती है । अविनाश पारुल की और देखते हुए कहता है।


अविनाश: ये क्या कर रही हो!? क्या मारने का इरादा है मुझ!! पर लेट मि टेल यू बीवी! मैं कमजोर पड़ा हूं लेकिन मैं अभी भी अविनाश ...।


पारुल: ( अविनाश की बात को कांटते हुए ) शट अप!!


अविनाश: ( आंखे मलते हुए पारुल को देखने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसे पारुल का चहेरा साफ दिखाई नहीं दे रहा था । ) तुम.... मुझे चुप करवा रही हो...?।


पारुल: हां अब चुपचाप बैठो.... ।


पारुल: अम!!! हैलो आप!! विशी जी बोल रहे है!? ।


विशी: जी लेकिन आप कौन है!? और अविनाश के फोन आपके पास कैसे!?।


पारुल: देखिए ये जानना जरूरी नहीं की मैं कौन हूं ...पर उसको चौंट लगी है तो आप जितनी जल्दी हो सके यहां आ जाए ।


विशी: क्या!? कैसे!? कहां है वह!? जल्दी बताओ!? ।


पारुल: जी!!? एड्रेस मुझे नहीं पता!!? पर उसका घर है बस यहीं जानती हूं ।क


विशी: तुम प्लीज अवि को फोन दे सकती हो अभी क्या!?।


पारुल: जी!!?।


अविनाश को फोन देते हुए ।


पारुल: ये लो!? ।


अविनाश: हमम!!?क


विशी: क्या नई पागलपंती की है तुमने और ये लड़की कौन हैं!? ।


अविनाश: कुछ नहीं बस हाथ से थोड़ा खून बह रहा है ! और ( पारुल की और देखते हुए ) वह कौन है ये तुम्हे जानने की कोई जरूरत नहीं है!! ।


विशी: अवि... डांट टेल मि यू फ**की*ग डिड ईट समथिंग रॉन्ग... बट वो सब छोड़ो बाद में बात करूंगा उसके बारे में हम बाद में बात करेगे पर अभी मैं डॉक्टर को भेज रहा हूं और में भी निकल रहा हूं यहां से ।


अविनाश: हमम!! ( यह कहते हुए वह कॉल काट देता है। ) ।

अविनाश बस वहीं सिर को कटहरे के सहारे टिका कर आंखे बंद कर बैठ जाता है । तभी पारुल के कदमों के जाने की आवाज आती है । अविनाश कुछ नहीं कहता लेकिन जाते जाते पारुल कहती है ।

पारुल: और हां ये मदद मैने इसलिए की है क्योंकि यहीं फर्क तुम में और मुझ में है । नफरत अपनी जगह होती है और इंसानियत अपनी जगह ।

अविनाश मुस्कुराते हुए पारुल की बात सुन रहा था । और कुछ नहीं बोलता। पारुल इसी के साथ कमरे की और चली जाती है । और अविनाश जहां था वही बैठे बैठे पारुल की बात दोहरा रहा था ।


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