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स्त्री.... - (भाग-25)

स्त्री.........(भाग-25)

दुनिया की हर औरत माँ बनना चाहती है, उस रात दिल अलग अलग कल्पनाओं को शक्ल देता रहा, पर कोई भी साफ तस्वीर नहीं बना पाया। रात बीत गयी और नयी सुबह हो गयी। ऊपर घर और नीचे वर्कशॉप के होने से बहुत कुछ आसान हो गया था मेरे लिए....। धागे और बाकी सलमा सितारे,दबका, ज़रकन, मोती और कुंदन जैसा बहुत सारा सामान लाना होता था, इसके साथ ही साड़ियो और दुपट्टों का कपड़ा अपने सैंपल्स के लिए ले आते थे, कई बार जिस फैब्रिक पर बनाना होता था वो शोरूम वाले ही देते थे या फिर हमारे बनाओ गए सैंपल्स को पसंद करते तो हमें सब कुछ खुद से ही लाना पड़ता। मैंने कभी सोचा नहीं था कि हम ये सामान घर बैठे भी मँगवा सकते हैं तो बस दुकान पर चली गयी जहाँ से सालो से हम सामान ले रहे थे, उन्होंने बताया कि सारा सामान वो कैसे दिखाएँगे आपके पास ला कर!! बात तो सही थी आइटम्स छोटे बडे होते हैं, पर फिर हमने कढाई के सारे सामान के सैंपल्स इकट्ठा कर लिए, उन्होंने धागो का एक कैटलॉग दे दिया जिसमें सारे रंग थे, हमें बस कोड नं ही लिखवाना होगा और वो सब आ जाएगा। ये तो कामिनी के पिताजी ने सही रास्ता दिखा दिया। कपडे़ की पहचान मुझे करना आ गयी थी और नाम भी पता चलने लगे थे, उन्होंने भी कहा कि हम उनको लिखवा देंगे तो वो भिजवा देंगे....बस पेमेंट दोनो को कैश चाहिए था, दो मेरे लिए मुश्किल भी नहीं था.....इस तरह मेरे कुछ काम वाकई कम होते नजर आ रहे थे।घर वापिस आयी तो तारा खाने पर मेरा इंतजार कर रही थी....कितनी बार कहा है तारा कि तुम अपने समय पर खाना खा लिया करो। नहीं,ये नहीं होता मुझसे आप के खाने से पहले मैं नहीं खा सकती, मेरी बात का जवाब तारा ने कुछ इस तरह दिया। हम दोनों ज्यादातर साथ ही खाना खाते थे। मैंने सुनील भैया को कह कर एक सेल्समेन को ढूँढने को कहा......पर कामिनी का कहना था कि सेल्सगर्ल रखनी चाहिए क्योंकि लड़का या आदमी जल्दी बेइमानी कर सकता है, पर लड़की जल्दी से काम में हेरा फेरी नहीं करेगी। मैं लड़की को रखने से डरती थी क्योंकि लोग कैसे देखते हैं लड़कियों को वो मुझसे बेहतर कौन जा सकता है पर कामिनी का कहना एक हद तक ठीक है, क्योंकि बहुत बार सुना है कि एक नौकर ने सब काम वालों को अपनी तरफ अपने मालिक का काम ही छीन लिया.....! बहुत सोच विचार कर जो मेरे सबसे पुराने क्लाइंट जिन्होंने मुझे वर्कशॉप और रहने की जगह दी है, उनसे भी राय लेने का सोच लिया। अभी मैं कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं थी तो अगले दिन उनके पास चली गयी.....उनका कहना था कि मुझे अपने क्लाइंटस से खुद ही मिलते रहना चाहिए और ऑडर्स खुद लेने चाहिए क्योंकि सेल्समेन के लिए वो सिर्फ नौकरी होगी, पर तुम्हारा अपना काम है तो तुम्हें काम की कितनी जरूरत है, तुम्हारे किया सपने हैं, ये कोई नहीं समझेगा और इसका असर तुम्हारे काम पर पडेगा.....किसी लड़की को अपनी वर्कशॉप में रख लो ,जो तुम्हारे न होने पर वहाँ आने वालों को अटैंड कर सके। अपने ट्रेड सीक्रेट्स किसी को नहीं बताओ.....उनकी बात बिल्कुल सही लगी मुझे। मुझे एक बड़ी गलती करने से बचा लिया था। उनके वहाँ से जितना भी ऑर्डर हमें मिलता है, उसकी पेमेंट वो साथ ही कर देते हैं। बाकी जगह हमें 15दिन के बाद मिल पाते हैं.....। ऐसे लोगो से मिलने पर लगता है कि अच्छे लोग भी हैं इस दुनिया में.....शायद सही रास्ते पर चलने वालों के लिए भगवान कोई न कोई भेज ही देते हैं मदद करने के लिए.....भगवान पर विश्वास पहले भी था और हमेशा रहेगा.....कई बार दुखी हो कर निराश भी होती रही हूँ, पर हर सुबह मेरे लिए आशा की किरणें लेकर आती है। बच्चों के जन्मदिन की पार्टी के बाद सुमन दीदी से बात नहीं हो पायी थी। न मैंने फोन किया और न ही उन्होंने किया।
सुनील भैया फिर भी बात कर लेते थे हर दूसरे दिन चाहे एक मिनट के लिए ही करते....सिर्फ हालचाल जानने के लिए। सुनील भैया ने अपने भाई साहब के आने या बुलाने के बारे में न कोई सफाई दी और न ही कोई बात की.....बहुत सुलझे हुए हैं भैया बिल्कुल माँ की तरह। खैर ये सब तो चलता ही रहना था और चलता रहेगा.....! कुछ दिनों की खोज के बाद एक लड़की मिल ही गयी, ये मेरी किस्मत थी या उसकी जरूरत पर मेरी तलाश पूरी हो गयी थी......अनिता नाम की लड़की जिसने 1 साल का ड्रैस डिजाइनिंग का काम किया था, पर नौकरी नहीं मिल पा रही थी और अपना काम खोलने के लिए पैसा नहीं था। मैंने उसे काम पर रख लिया और इसी लाइन की थी तो काम समझाने में दिक्कत नहीं हुई....और मेरा काम अब बँट गया था तो मेरा पूरा फोकस आगे अपने काम को कैसे बढाया जाए ये सोचने का था। मैंने किसी को कहते सुना था कि अपने काम के साथ साथ मार्किट में और क्या चल रहा है, उस पर भी ध्यान देना चाहिए......बस अब मेरे पास टाइम था ये सब देखने का। बाजार जाती और सब समझने की कोशिश करती रहती। तब तक तो काफी कैटलॉग्स भी आसानी से मिल जाते थे, जिनमें हम लेटेस्ट ट्रैंड, कलर, स्टाइल और मैटीरियल सब का पता कर सकते थे। काम में मजा तो पहले भी आ रहा था, पर अब मैं और अनिता हर चीज पर नजर रख रहे थे। अनिता को भी रंगों की अच्छी समझ थी.....और तारा वो तो कोई भी काम करने को तैयार रहती थी।सब अच्छा ही तो चल रहा था, पर फिर जिंदगी में उथल पुथल होने वाली है, ये नहीं पता था। कामिनी एक बार फिर आयी थी मुझसे मिलने, पर अकेली नहीं साथ एक लड़का भी था......। कामिनी ने बताया कि वो उसके चाचा जी का बेटा है, विदेश से कुछ दिन पहले ही आया है। मेरे पास वो अपनी माँ के लिए साड़ी लेने आए हैं। मैं उन दोनो को ऊपर ले गयी और तारा को नीचे भेज कर साडियाँ मँगवा ली.........कामिनी का भाई जिनका नाम उसने विपिन बताया था, वो साडियों को कम मुझे ज्यादा देख रहा था। मैं उनके ऐसे देखने से थोड़ा अजीब महसूस कर रही थी....पर कामिनी के भाई हैं तो कुछ बोल नहीं पायी। तारा के हाथ की कॉफी पी कर बहुत खुश हो गए और एक कप बनाने के लिए बिना संकोच के कह दिया तो ये अच्छा लगा।
दो साड़ी उन्होंने अपनी माँ के लिए पसंद कर ली और पैसे देने लगे तो मैंने पैसे लेने से मना किया तो बोले कि बिजनेस तो बिजनेस है और रिश्तेदारी अलग बात। कामिनी भी जिद करने लगी तो पैसे लेने पड़े....काफी हँसमुख लगे पहली बार में काफी खुल कर बात कर रहे थे, पर उनकी आँखो में कुछ तो ऐसा था कि मैं परेशान हो रही थी, ऐसा लग रहा था कि मेरा पीछा कर रही हैं नजरें, मैं एक दो बार उठ कर किचन में गयी तो ऐसा लगा कि उनकी नजरें पीठ पर गड़ी हुई हैं। कुछ देर इधर उधर की बातें करने के बाद चलते चलते बोले, "आपकी कलेक्शन आपकी तरह ही बेहद खूबसूरत है"। मैं चुपचाप खड़ी ही रह गयी और वो दोनो चले गए....कुछ तो था उनकी नजरों में या फिर किसी ने पहली बार इस तरह से मेरी तारीफ की थी कि गाल भी लाल हो रहे थे, पर मैंने अपने दिल में आए ख्यालों को झटक डाला क्योंकि किसी पर यकीन करने का अब मन नहीं करता। फिर ये तो कामिनी का भाई है, कामिनी बदल गयी लगती है, पर उसने जो माँ का अपमान किया था वो चाह कर भी भूला नहीं पा रही। शायद पहले उसे मैं गँवार लगती थी, अब जब मैं अपने पैरों पर खडी हो कर कमा रही हूँ तो अच्छी लगने लगी हूँ, बात जो भी हो पर ये कहावत भी तो सुनी सी है कि," चोर चोरी से जाए पर हेरा फेरी से नहीं"! अपने आप को समझा खुद को काम में लगा लिया।
क्रमश:
स्वरचित
सीमा बी.

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