स्त्री.... - (भाग-8) सीमा बी. द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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स्त्री.... - (भाग-8)

स्त्री......(भाग-8)

पिताजी से बात करते करते कुछ देर पहले जो थकान लग रही थी वो बहुत दूर भाग गयी थी......शायद पिताजी भी अपनी पुरानी जानकी की कमी महसूस कर रहे होंगे तभी तो अब वो चमक उनकी आँखों में देख रही थी, जिसकी जगह कुछ देर पहले शायद असमंजस के भाव थे......शायद भी इसलिए कह रही हूँ क्योंकि ये उन्होंने नहीं कहा था, बस मैंने अपनी समझानुसार सोच लिया था। ताँगे वाले काका भी हमारी बातें बड़ी ध्यान से सुन रहे थे।तभी बीच बीच में पिताजी की हाँ में हाँ मिला रहे थे, बस यूँ ही बातें करते करते घर पहुँच गए......हमारा ही इंतजार हो रहा था।
जल्दी से नहा धो कर सबसे मिली और खूब बातें की.....मेरी सास ने जो सबके लिए तोहफे दिए थे ,वो दिए और पिताजी की घड़ी मैंने खुद उनकी कलाई पर बांध दी......सब बहुत खुश थे मुझे देख कर, और मैं सब को खुश देख कर खुश हो रही थी....सबने मिल कर खाना खाया और रात को देर तक बातें करते करते सो गए......ससुराल मैं सुबह जल्दी उठने की आदत बन गयी थी तो अपने समय पर उठ गयी.....माँ ने जबरदस्ती दुबारा सोने को भेज दिया, पर ज्यादा देर मैं नहीं लेट पायी तो फिर से उठ कर बाहर आ गयी...। चाय पीने के बाद मैं आँगन में चारपायी बिछा कर बैठ गयी, बहुत दिनों के बाद यूँ खुला आसमान दिख रहा था। सूरज की पहली किरणें और ठंडी चलती हवा बहुत भली लग रही थी और बिल्कुल तरोताजा महसूस कर रही थी......।
अड़ोसी पड़ोसी सब आते जाते कुछ मिनट रूक कर बात करके चले जाते। शोभा की दादी बहुत देर तक मेरे पास बैठी रहीं और मेरी सास और पूरे परिवार के बारे में पूछती रहीं.......दादी की सुई एक ही बात पर अटकी थी कि अब जल्दी से खुशखबरी सुना दे, तेरे बाद हुई थी हमारी शोभा की शादी, अब वो पेट से है और भी बहुत सारी बातें दादी बोलती जा रही थीं, पर मैं सुन ही नहीं रही थी जैसे क्योकि मेरे दिमाग में तो सिर्फ एक ही बात हथौड़े से बज रही थी कि शोभा पेट से है!!! दादी को जब मेरी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो वो चली गयीं।
जैसे जैसे दिन चढ़ रहा था और सबके घरों का काम निपट रहा था वैसे वैसे आस पास के जान पहचान वाले मिलने आ रहे थे.......माँ को मेरे आगे पढने की बात पसंद तो नहीं आयी थी, पर जब मैंने कहा कि आपके दामाद यही चाहते हैं तो वो कुछ नहीं बोली पर अब एक एक को खुश हो कर बता रही थी कि उनका दामाद बिल्तुल शहरी सोच वाला है, वो जानकी को आगे पढ़ा रहा है, सब सुन कर हैरान हो रहे थे,क्योंकि कभी उन्होंने ऐसा कुछ सुना जो नहीं था । शोभा की भाभी और दूसरी भाभियाँ तो मुझसे ये जानने को बैचेन थी कि मेरी सुहागरात कैसी रही और मेरे पति मेरे साथ कैसे पेश आते हैं....वगैरह ।मेरे पास बताने को कुछ नहीं था तो क्या कहती....बस मुस्कुरा कर चुप ही रही। इतने दिन बाद सब मिल रहे थे तो उनको मेरे बारे में जानने की उत्सुकता थी। उन्होंने मेरी चुप्पी को मेरी झिझक समझ ली और फिर वो चुप हो गयीं.......शोभा की भाभी ने बताया कि शोभा के भाई उसे लिवाने गए हैं वो भी आती होगी। माँ से पता चला कि शोभा की शादी पास के ही एक गाँव में हुई है। मैं खुश थी कि शोभा से मिलना हो जाएगा.....। अब मेरी जगह छाया माँ की स्कूल से आ कर मदद करने लगी थी। माँ सब मेरी पसंद का खाना बना रही थी, अपनी समझ में मैंने माँ को मुझसे इतना प्यार जताते नहीं देखा था। ऐसा लग रहा था कि मैं कोई सपना देख रही हूँ। जो माँ हर वक्त मुझसे नाराज रहती थी घर के कामों को ले कर वो आज मुझे पानी भी खुद से नहीं लेने दे रही थी। अब ये मुझे अच्छा कम और बुरा ज्यादा लग रहा था। राजन भी मेरी एक आवाज पर दौड़ा आ रहा था। एकदम से पराए होने का एहसास हो रहा था जैसे मैं अपने पिताजी के घर में ही मेहमान हूँ, शायद सब लड़कियों को ऐसा ही लगता होगा। दोपहर ढलने से पहले ही शोभा आ गयी थी, मैं तुरंत उसे मिलने जाना चाह रही थी, पर माँ ने कहा कि थोडा रूक कर जाना । ज्यादा देर मैं खुद को नहीं रोक पायी और चल दी उसके घर।
उसके घर गयी तो उसकी माँ, दादी और भाभी सब उसे घेरे बैठी थी.....मुझे देख कर काकी ने कहा, चलो अब तुम दोनो सहेलियाँ मिल लो और बातें करो। मैंने शोभा को देखा तो देखती रह गयी, पहले से थोड़ा रंग साफ लग रहा था और पतली दुबली सी शोभा कुछ ठीक सी हो गयी थी, फिर मेरा ध्यान उसके पेट पर गया, मुझे पेट को देखते वो बोली देख कैसे फूला है न ?? मैंने अपना हाथ उसके पेट पर रख दिया।। इधर उधर की बहुत बातें की, उसने बताया कि उसका ससुराल बहुत बड़ा है 2 जेठानी, 3 ननद सास ससुर और दादी सास भी हैं। सारा दिन बस काम ही करती रहती हैं हम तीनों दोनों जेठानी के 2-2 बच्चे हैं। घर बहुत बड़ा है तो सारे घर के काम गाय, भैंस का काम करना होता है, उस पर भी सास और दादी सास हर वक्त हम पर चिल्लाती रहती हैं, पर तेरे जीजा बहुत अच्छे हैं और मेरा खूब ध्यान रखते हैं। मैं इसकी बातें बहुत ध्यान से सुन रही थी.......सुन जानकी तू तो वैसी की वैसी ही है। बिल्कुल नहीं बदली, हमारे जीजा तेरा ध्यान तो रखते हैं न?? तेरी ससुराल में भी मेरी सास जैसी सास है क्या ? मैंने बताया कि मेरी सास तो मेरी माँ से भी अच्छी हैं, कभी गुस्सा नहीं करती , ननद तो बहन जैसा प्यार करती हैं और देवर तो बड़े भले हैं। वो मुझे ऐसे सुन रही थी जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया के लोगों की बात कर रही हूँ!! वो बोली और जीजा वो भी तेरे को खूब प्यार करते होंगे न ?? प्यार का पता नहीं शोभा, पर ध्यान तो रखते हैं। अच्छा तू तो बहुत बड़ी बडी बातें करने लगी है, उसकी हैरानी देख मुझे अजीब सी खुशी का एहसास हुआ, मैंने आगे बताया कि मैं अब 10वीं कक्षा की परीक्षा दूँगी, ये सुन उसने कहा कि तुझे पढना था ना देख भगवान ने तेरी सुन ली। हाँ शोभा तू ठीक कह रही है बहन। मैंने बड़ी बूढी जैसे अपना उपदेश सा झाड़ा। तेराये बच्चा कब पैदा होने वाला है? अच्छा एक बात बता ये बच्चा कैसे होता है? मैंने पूछा तो वो बोली बड़ी बेशर्म है या भोली बन रही है,जो तुझे नहीं पता कि बच्चा कैसे होता है? मेरी उत्सुकता चरम सीमा पर थी, इसलिए मैंने उसकी बात पर ध्यान न दे कर कहा, बता न तू तो मेरी सहेली है न!!! मेरी खुशामद करने पर बोली कि चल पहले तू ये बता पहली रात तुम दोनों ने क्या किया? मैंने उसको वो सब बताया जो मेरे पति ने मुझे पहली रात कहा था तो वो मजाक सा बनाते हुए बोली तो जीजा ने तुझे छुआ भी नहीं, मैंने कहा कि नहीं कभी नहीं छुआ, वो बोले पहले पढो बाकी की सब बात बाद में। अच्छा....कहते हुए उसकी आँखे हैरानी से फैल गयी, अब मैं बैचेन हो रही थी अपने सवालों के जवाब के लिए। अब मेरी बारी थी हैरान होने की ,वो मपझे सब बताती चली गयी और मैं चुप चाप उसे सुन रही थी....उस दिन मुझे पचा चल गया था कि मेरे गुरूजी उस दिन क्यों गुस्सा हो गए थे?? मैंने कुछ गलत नहीं किया था, वो डर गए थे कि अगर हम दोनों में कुछ होता तो उसका क्या अंजाम होता!!! मैं उस ग्लानि से एक झटके से बाहर आ गयी कि मैं गुरूजी को खुश नहीं कर पायी, मेरी नादानी मुझे कहीं का नहीं छोड़ती। शोभा से सब सुन ऐसे लगा कि शोभा मुझसे ज्यादा जानती है। मैंने उसे कहा कि हमारी आपस की बात वो किसी से न कहे और घर आ गयी। रात को सोते समय मैंने राजन से पूछा कि नदी के पार जो गुरूजी की नृत्यशाला है, वो कैसी चल रही है? राजन बोला , अरे दीदी पता नहीं क्या हुआ था, गुरूजी को कुछ लोगों ने मार मार कर भगा दिया था....कह कर राजन पिताजी के पास चला गया। मैंने माँ से पूछा कि क्या हुआ था तो माँ ने बताया कि किसी लड़की के साथ गलत काम करते हुए पकड़ा था, गाँव वाले तो मार ही डालते अगर किसी ने थाने में शिकायत न की होती। माँ की बात सुन कर खुद से ही कहा, जानकी तू उस दिन बच गयी ।
क्रमश:
स्वरचित