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चक्रव्यूह - 1






जैसलमेर के एक अस्पताल में एक बड़े से कमरे में दोनों तरफ बिस्तरों पर कुछ मरीज लेटे हुए थे । उनके साथ एक - एक अटेंडेंट भी मौजूद थे जो कि उनके ही परिवार के सदस्य थे। दिन के समय वो अटैंडेंट अपने मरीजों के पास कुर्सी पर बैठते थे और रात में वहीं कमरे में मरीजों के लिए मौजूद खाली बेडों पर सो जाते । जिन मरीजों का इलाज पूरा हो जाता था , उन्हें यहाँ इस कमरे में कुछ दिन निरीक्षण के लिए रखा जाता था,जब सब कुछ सही रहता तो उन्हें छुट्टी दे दी जाती थी इसलिए यहाँ कम ही भीड़ रहती थी।

कमरे के दाहिने तरफ तीसरे बिस्तर पर तकरीबन 57-58 साल की महिला मौसमी जी लेटी हुई थीं , उनके साथ उनके पति प्रभात जी बतौर अटेंडेंट वहां मौजूद थे ।

मौसमी जी की बुलंद आवाज अक्सर उस कमरे की शांति को भंग कर देती थी । उनकी इन हरकतों को देख कई बार प्रभात जी को वहाँ उपस्थित बाकी लोगों से माफी भी माँगनी पड जाती थी।

हर बार की तरह आज भी रात को खाने के वक्त दोनों पति पत्नी में बहस शुरू हो गई ।

मौसमी जी - आपसे कितनी बार बोला है कि मेरे लिए कुछ चटपटा सा मंगवाया करो लेकिन नहीं , हर बार यही बेस्वाद खाना! मुझे तो पहले से ही शक था आपकी बहू पर कि मेरे बिस्तर पकड़ते ही वो उस घर पर राज करेगी पर आपने नही सुनी मेरी। अब देखो, कैसा खाना भेज रही है वो चुडैल? उसका बस चले तो घास फूस ही भेज दे मुझे।

प्रभात जी उन्हें शांत करने की कोशिश कर रहे थे - तुम हर बात का बतंगड़ क्यों बनाती रहती हो ? पहले घर पर मेरे साथ साथ अपने बेटे ,बहू की नाक में दम करती थीं, अब यहाँ भी चैन नहीं है। ये अस्पताल है , यहां और भी मरीज हैं पर वो तुम्हारी तरह गला फाड़ कर चिल्लाते नहीं हैं फिर तुम क्यों चीख चीख कर उन्हें परेशान कर रही हो ? क्या यहाँ किसी और की तुमने हल्की सी भी तेज आवाज भी सुनी ? हर बात पर दूसरों को जली कटी सुनाना बंद करो ,तुम्हारा ऑपरेशन हुआ है , यह खाना नहीं खाओगी तो क्या मलाई कोफ्ता खाओगी? एक बार ठीक हो जाओ फिर जो मन करे, बनवा कर खाना ।

मौसमी जी मुँह बिचकाने लगीं- मुझे घर पहुंचने दो, तब बेटे को शिकायत करूंगी।

प्रभात जी लापरवाही से बोले - कुछ नया हो तो बताओ। और आता ही क्या है तुम्हें?

मौसमी जी उदास सी बोलीं - जरा बताना तो कि कब आएगा वरूण? बहुत दिन हो गए उसे देखे हुए।

प्रभात जी - जल्दी ही आ जाएगा, कह रहा था कि छुट्टी मिलते ही सबसे पहले तुमसे ही मिलने आएगा।

मौसमी जी - ठीक है। अच्छा तिजोरी की चाबी तो उसी जगह है ना , जहां मैंने रखी थी। कहीं कोयल ने तो नहीं ले ली?

प्रभात जी - नहीं भाग्यवान , नहीं ली और कभी पूछा भी नहीं ।

मौसमी जी - ये वरूण कुछ ज्यादा ही व्यस्त नहीं रहने लगा आजकल?

प्रभात जी - तुम्हे तो पता है ना कि काम मे बिजी है, कह रहा था कि कल परसों मे आता हूँ माँ से मिलने।

मौसमी जी ने चैन की सांस ली।

कुछ समय पश्चात दोनोंं मियाँ बीवी खाना खाने लगे , कमरे में शांति पसर गई थी ।

एक तरफ अपने बेड पर लेटे तपन बोस मन ही मन सोच रहे थे कि अच्छा हुआ, मेरी बीवी यहाँ नहीं है वरना उसकी और मौसमी जी की खूब जमती। दोनों ही चीख चीख कर आसमान सिर पर उठा लेतीं।

मौसमी जी के बेड के ठीक सामने वाले बेड पर लेटे हुए अखिलेश सिंह के करीब बैठी उनकी 23 साल की बेटी कविता ने मुस्कुराकर पापा की ओर देखा और धीरे से उनके कान में बोली - पता नहीं, प्रभात अंकल कैसे इन्हें इतने सालों से हैंडल कर रहे हैं ?

अखिलेश जी मुस्कुरा दिए - बिलकुल वैसे ही , जैसे मैं तुम्हारी मां को कर रहा हूं ।

दोनों चुपके से हंस दिये।

उसी रात तकरीबन दो बजे कमरे में कुछ कदमों की आहट हुई और धीरे-धीरे फुसफुसाने की आवाजें आना शुरू हो गईं।

इन आवाजों से पापा के पास वाले बेड पर सोती कविता की आंखें खुल गई , उसने चेहरा उठाकर देखा तो सामने मौसमी जी के बगल वाले खाली पडे बेड के पास तीन पहलवान जैसे हट्टे कट्टे लोग खडे थे और उनके साथ एक 34-35 साल का दुबला पतला आदमी जिसका रंग सांवला सा था , एकदम खामोश खड़ा था। वह बीच बीच में मुँह पर हाथ रख कर खाँस रहा था।

उन तीनों आदमियों में से एक ने उस दुबले से आदमी को इशारा किया तो वह चुपचाप जाकर बेड पर लेट गया।

कविता की नजर उन तीनों लोगों की कमर मे पीछे की तरफ लगी हुई गन्स पर पडी तो डर गई। तभी एक पुलिस वाले की नजर उस पर पड़ गई तो उसके चेहरे के उडे रंग और गन पर उसकी नजर देख मामला समझ गया। उसने कविता से चुपचाप आंखें बंद कर सोने का इशारा किया लेकिन तब तक शायद काफी देर हो चुकी थी क्योंकि मौसमी जी और तपन बाबू भी जाग चुके थे।

तीनों शख्स में से एक ने दूसरे को पुकारा - नागेश, जल्दी से लगाओ।

उन्हीं मे से एक शख्स आगे बढा , उसके हाथ में हथकडी थी। उसने उसका एक सिरा उस बेड पर बैठे आदमी के हाथ में लगा दिया और दूसरा सिरा बेड के कोने से बाँध दिया।

कविता, मौसमी जी और तपन बाबू समझ गए कि ये आदमी कोई कैदी है और ये तीनों शख्स पुलिस वाले हैं।

तभी वहाँ एक डाँक्टर और एक नर्स आई। उनमें और तीनों पुलिस ऑफिसर्स मे आहिस्ता से कुछ बातें होने लगीं कि तपन बाबू डरे सहमे से बोले - डाँक्टर साहब, ये गलत बात है।

सभी उस ओर देखने लगे, अब तक अखिलेश सिंह जी और प्रभात जी भी जाग चुके थे। सभी को जागा देख कर उस कमरे की लाइट्स ऑन कर दी गईं।

तपन बाबू - आप हमारे बारे में क्यों नही सोच रहे? हम सिविलियन के साथ अगर एक क्रिमिनल रहेगा तो कैसे चलेगा? अगर इसने हमें कुछ नुकसान पहुंचा दिया तो? आप इसे यहाँ से बाहर रखो।

वह कैदी चुपचाप बैठा था, नर्स ने उसे इंजेक्शन लगाया।

मौसमी जी, प्रभात जी और अखिलेश सिंह भी तपन बाबू की बात का समर्थन करने लगे। कविता तो बस चुपचाप सब देख रही थी।

बात बिगडती देख उन तीन ऑफिसरो मे से एक आगे बढ कर उन सभी के बीच जा खड़ा हुआ, यह वही था जिसने कविता को चुपचाप सोने का इशारा किया था ।

राजन - मेरा नाम राजन है , मै सीनियर इंस्पेक्टर हूँ और ये दो मेरे साथी नागेश और करीम हैं । आप लोगों को थोड़ा सा भी परेशान होने की या इस कैदी से डरने की कोई जरूरत नही है। बस कुछ दिन की बात है और ये यहाँ हथकडी से बाँध के रखा जाएगा । हम में से एक ऑफिसर हर वक्त इसके साथ मौजूद रहेगा और बाकी दो ऑफिसर यहीं कमरे के बाहर पास में बैठेंगे। हम लोगों पर भरोसा रखिये, हम आपको इसकी वजह से कोई भी असुविधा नहीं होने देंगे। आशा है कि यह बात इसी कमरे तक रहे ताकि पूरे अस्पताल में डर का माहौल उत्पन्न ना हो।

राजन ने अपनी बात इतनी दृढता के साथ उन लोगों के सामने रखी कि कोई भी उसकी विरोध नहीं कर पाया था और इस तरह वह मामला राजन ने अपने पक्ष में कर लिया।


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