प्यार के इन्द्रधुनष - 17 Lajpat Rai Garg द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

प्यार के इन्द्रधुनष - 17

- 17 -

स्टुडियो से जब वे बाहर आए तो डॉ. वर्मा उदास थी और मनमोहन उसे ढाढ़स बँधा रहा था। सप्ताह का पहला दिन था। कार्यक्रम आरम्भ होते ही अभिजीत लल्लन, फ़िल्मी दुनिया के सुप्रसिद्ध अभिनेता, ने स्टेज पर पदार्पण करते हुए कहा - ‘मैं, अभिजीत लल्लन ‘कौन बनेगा अरबपति’ में आप सभी को नमस्कार, आदाब, सतश्री अकाल करता हूँ। आप सभी का स्वागत, अभिनन्दन करता हूँ। यह एक ऐसा खेल है जिसमें प्रतिभागी अपनी एकाग्रता, बुद्धिमत्ता, प्रतिभा के बल पर ढेर सारी राशि जीत सकते हैं और अपने सपनों को साकार कर सकते हैं। आज का खेल प्रारम्भ करने से पहले इस सप्ताह के सभी प्रतिभागियों का परिचय हो जाए।’

परिचय के पश्चात् अभिजीत ने कहा - ‘चलिए, शुरू करते हैं कौन बनेगा अरबपति।’ इसके साथ ही ‘सबसे तेज कौन’ के लिए जो प्रश्न कम्प्यूटर स्क्रीन पर आया, डॉ. वर्मा सहित चार प्रतिभागी बीस सैकिंड की निर्धारित समयावधि में उसका उत्तर नहीं दे पाए। ‘सबसे तेज कौन’ में सबसे कम समय में सही उत्तर देने वाले प्रतिभागी का अभिजीत लल्लन तथा अन्य प्रतिभागियों ने ज़ोरदार तालियों से स्वागत किया। स्टुडियो में दर्शक-दीर्घा खचाखच भरी हुई थी। प्रकाश-व्यवस्था में लेजर लाइटों का प्रयोग किया गया था। अभिजीत ने ‘सबसे तेज कौन’ के सफल प्रतिभागी जोकि नालन्दा (बिहार) से आया था, का हाथ जोड़कर स्वागत किया और उससे अपने सामने वाली कुर्सी पर विराजमान होने के लिए निवेदन किया। जब दोनों अपनी-अपनी कुर्सी पर बैठ गए तो अभिजीत ने बधाई देते हुए कहा - ‘कभी ज्ञान के महातीर्थ रहे नालन्दा से पधारे मिस्टर गोकर्ण का एक बार पुनः स्वागत। गोकर्ण जी, इससे पहले कि हम ‘कौन बनेगा अरबपति’ खेल शुरू करें, मैं आपको जल्दी से खेल के नियम बता देता हूँ। …. एक से ग्यारह तक एक-एक करके सवाल आपके कम्प्यूटर स्क्रीन पर आएँगे। प्रत्येक सवाल के पाँच विकल्प होंगे, जिनमें से एक सही होगा। .... खेल में दो पड़ाव आएँगे - पहला, तीसरे प्रश्न पर और दूसरा, सातवें प्रश्न पर। पहले पड़ाव तक हर सवाल के जवाब के लिए मिलेंगे केवल तीस सैकिंड। उसके बाद दूसरे पड़ाव तक हर सवाल के जवाब के लिए मिलेंगे साठ सैकिंड यानी एक मिनट। इसके पश्चात् हर सवाल का जवाब देना होगा दो मिनट में। ..... पहले सवाल के सही जवाब देने पर मिलेंगे एक लाख रुपए, दूसरे पर दो लाख और तीसरे पर पाँच लाख। यदि तीसरे सवाल का जवाब हो गया ग़लत, तो आपको ख़ाली हाथ लौटना पड़ेगा। चौथे सवाल के साथ शुरू होगा खेल का दूसरा पड़ाव और चौथे सवाल का सही जवाब देने पर आपको मिलेंगे दस लाख। इसका उत्तर न देने पाने या ग़लत उत्तर देने पर भी आप पाँच लाख रुपए अवश्य जीतेंगे। पाँचवाँ सवाल पच्चीस लाख, छठा सवाल पचास लाख और सातवाँ सवाल यानी दूसरे पड़ाव का आख़िरी सवाल जितवा सकता है एक करोड़। आठवें सवाल का सही जवाब दिलाएगा दस करोड़, नौवें का पच्चीस करोड़, दसवें का पचास करोड़ और ग्यारहवाँ सवाल बना सकता है आपको अरबपति, यदि आप सही जवाब दे देते हैं दो मिनटों में। किसी भी अगले प्रश्न का जवाब देने से पहले आप निर्धारित समय में स्वयं को खेल से अलग कर सकते हैं, यदि आपको उसका उत्तर मालूम नहीं और जीती हुई धनराशि आपकी होगी। .... दसवें सवाल तक आपकी सुविधा के लिये दो लाइफ़ लाइनें भी हैं - एक, आप अपने साथी से सहायता ले सकते हैं। साथी को जवाब देना होगा साठ सैकिंड में। दूसरे, आप प्रश्न बदलवा सकते हैं। विकल्प के रूप में इसके लिये पाँच विषय निर्धारित किए गए हैं -

1. विश्व साहित्य

2. पौराणिक लोक कथाएँ

3. वैज्ञानिक आविष्कार

4. वैश्विक राजनीति

5. जीव-जन्तुओं का संसार।

सौभाग्यवश यदि आप दस सवालों के सही जवाब दे देते हैं और आपके पास लाइफ़ लाइन बची हुई है, तब भी ग्यारहवें सवाल का जवाब देने के लिए आप उसका उपयोग नहीं कर पाएँगे। ....इस खेल में गेसवर्क नहीं चलता, लेकिन हम आपको ऐसा करने से रोकेंगे भी नहीं। …. चलिए, शुरू करते हैं ‘कौन बनेगा अरबपति’। गोकर्ण जी, यह रहा आपके कम्प्यूटर स्क्रीन पर पहला सवाल और इसके पाँच ऑप्शन।’

गोकर्ण दोनों लाइफ़ लाइनों की सहायता से चार प्रश्नों के सही उत्तर देकर दस लाख जीत पाया। पाँचवें प्रश्न का उत्तर उसे मालूम नहीं था। इसलिए दस लाख की धनराशि जीतने के पश्चात् उसने खेल छोड़ने का निर्णय लिया।

जब अभिजीत ने दुबारा ‘सबसे तेज कौन’ के लिए प्रश्न पूछा तो डॉ. वर्मा ने उत्तर तो सही दिया, किन्तु सबसे तेज जवाब देने वाले प्रतिभागी से दो सैकिंड के अन्तर से पिछड़ गयी। इन्हीं दो सैकिंडों के अन्तर ने उसे गमगीन कर दिया था।

होटल में आने पर मनमोहन ने उसे कॉफी बनाकर पिलाई। बातों में लगाने की कोशिश करते हुए कहा - ‘वृंदा, सफ़र अभी समाप्त नहीं हुआ, बल्कि आरम्भ हुआ है। आज खेल का पहला दिन था। मुझे पूरा विश्वास है कि कल तुम अवश्य अभिजीत के सामने वाली सीट पर विराजमान होगी।’

‘हाँ मनु, विश्वास तो मुझे भी है। मैं जल्दी से हार मानने वालों में से नहीं हूँ। दूसरे, तुम्हारी मॉरल सपोर्ट तथा उपस्थिति भी मेरी सफलता में अहम भूमिका निभाएगी। ..... थोड़ी देर आराम कर लें, फिर घूमने निकलेंगे।’

शाम उन्होंने जुहू बीच पर बिताई। दूर क्षितिज तक फैले गहरे नीले अथाह समुद्र के वक्षस्थल से उठती और किनारे की ओर लपकती लहरों का किनारे तक आना और लौट जाना मानव जीवन-चक्र को ही परिभाषित कर रहा था। जन्म के समय अत्यधिक उत्साह, संध्याकाल की शिथिलता, विवशता। जुहू बीच पर अच्छी-खासी भीड़ थी। खाने-पीने का सामान बेचने वाली स्टॉलों पर तो भीड़ थी ही, घूम-फिरकर बेचने वाले भी ग्राहकों से घिरे हुए थे। मनमोहन और डॉ. वर्मा ने भी भेलपूरी तथा पानी-पूरी का स्वाद चखा। मनचलों पर नज़र रखने तथा क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए कुछ पुलिसकर्मी ड्यूटी निभा थे। मनमोहन और डॉ. वर्मा दोनों ने आज पहली बार समुद्र में विलीन होते सूरज की छवि निहारी थी। लगभग सभी उपस्थित लोग एकटक क्षितिज पर नज़रें टिकाए हुए थे। क्षण-क्षण नीचे जाते प्रकाश के गोले को देखना सच में एक अद्भुत नजारा था। गीली नमकीन हवा की छुअन से डॉ. वर्मा के चेहरे की स्वाभाविक रौनक़ लौट आई थी। गहराती शाम के साथ ऊँची-ऊँची इमारतों पर विभिन्न रंगों की कृत्रिम रोशनी दूर से टिमटिमाते जुगनुओं-सी प्रतीत होती थी। उफनती लहरों के सान्निध्य में हर उम्र के लोगों को टहलते देखते और उनके हाव-भाव, चाल-ढाल का अवलोकन करते, उनके क्रियाकलापों को लेकर कल्पना के घोड़े दौड़ाते कब दो घंटे बीत गए, उन्हें पता ही नहीं चला।

दूसरे दिन डॉ. वर्मा तरोताज़ा होकर मनमोहन के साथ स्टुडियो पहुँची। पहले दिन के रोल-ऑवर प्रतिभागी ने पच्चीस लाख जीतने के बाद पचास लाख के प्रश्न का उत्तर देते हुए अभिजीत की चेतावनी के बावजूद रिस्क लिया। उसका रिस्क उसको बड़ा महँगा पड़ा। जीती हुई पच्चीस लाख की धनराशि में से उसे बीस लाख खोने पड़े और सिर्फ़ पाँच लाख पर ही सब्र करना पड़ा। कहावत यूँ ही नहीं बनी - लालच बुरी बला।

तदुपरान्त ‘सबसे तेज कौन’ पुनः खेला गया। इस बार भाग्य ने डॉ. वर्मा का साथ दिया। न केवल उसका उत्तर सही था, बल्कि उसने उत्तर देने में सबसे कम समय लिया - 5.20 सैकिंड। अरबपति बनने के सपने को आँखों में सँजोए उसने मनमोहन की ओर मुस्कान भरी नज़रों से देखा। मनमोहन ने थम्सअप करके ‘ऑल द बेस्ट’ का संकेत किया।

अभिजीत ने अपनी सीट से उठकर डॉ. वर्मा का स्वागत किया और उसे अपने सामने वाली सीट पर बैठने के लिए कहा। उसके बैठने के बाद अभिजीत ने अपने चिर-परिचित अंदाज में कहा - ‘स्वागत, स्वागत डॉ. वर्मा। आपको अपने सामने देखकर मन अति प्रफुल्लित है, क्योंकि इस सीज़न में आप पहली महिला प्रतिभागी हैं, जो इस मुक़ाम पर पहुँची हैं। दूसरे, आपके प्रोफेशन से भी आप पहली प्रतिभागी हैं। इसके लिए हम ज़ोरदार तालियों से आपका स्वागत करते हैं, अभिनन्दन करते हैं। …. आप अपने साथी के रूप में किसे साथ लेकर आई हैं?’

‘मेरे मित्र साथी के रूप में मेरे साथ आए हैं।’

‘बहुत ख़ूब। मित्र भी और साथी भी!’ फिर अभिजीत ने मनमोहन को सम्बोधित करते हुए पूछा - ‘मान्यवर, आपका नाम?’

‘सर, मनमोहन।’

‘मनमोहन जी, आपका इस खेल में स्वागत है, अभिनन्दन है। आपको मालूम है कि खेल के दौरान किसी एक प्रश्न के उत्तर देने में आप अपनी मित्र की सहायता कर सकते हैं?’

‘जी, डॉ. वर्मा ने मुझे बताया था।’

‘तो तैयार रहना। जब भी डॉ. वर्मा को आपकी सहायता की आवश्यकता पड़े, इन्हें सही जवाब देने में सहायता देकर एक सच्चे मित्र का कर्त्तव्य निभाना।... तैयार रहिएगा!’

‘जी, अवश्य।’

‘डॉ. वर्मा, लेट्स प्ले ‘कौन बनेगा अरबपति’। शुरुआत करते हैं कि खेल के पहले प्रश्न से। यह रहा आपकी स्क्रीन पर पहला प्रश्न, जिसके सही उत्तर देने पर मिलेंगे आपको एक लाख रुपए।’

तीसरा सवाल स्क्रीन पर डालने से पहले अभिजीत ने डॉ. रवि को सावधान करते हुए कहा - ‘डॉ. वर्मा, हम यहाँ आकर प्रत्येक कंटेस्टेंट को कहते हैं कि इस प्रश्न का उत्तर तभी दीजिएगा यदि आप हंड्रेड परसेंट श्योर हों, क्योंकि उत्तर ग़लत होने पर ख़ाली हाथ घर लौटना पड़ेगा। अत: आप भी सोच-समझकर उत्तर दीजिएगा।

‘ओ.के. सर।’

तीसरे प्रश्न का सही उत्तर देने पर अभिजीत ने डॉ. रवि को पहला पड़ाव पूरा कर लेने पर बधाई देते हुए कहा - ‘डॉ. वर्मा, आज यहाँ से आप कम-से-कम पाँच लाख अवश्य ले जाएँगी। वैसे हम चाहते हैं कि आप ढेर सारी राशि जीतें। ..... यदि आपको बुरा न लगे तो कुछ व्यक्तिगत बातें हो जाएँ?’

‘सर, मेरा जीवन खुली किताब है। आप कुछ भी पूछ सकते हैं।’

‘वैरी गुड। मनमोहन जी आपके मित्र हैं। आप अलग-अलग कॉलेजों में पढ़े हैं। मित्रता की शुरुआत कैसे हुई?’

‘हमारे कॉलेज में आयोजित इंटर कॉलेज डेक्लेमेशन कंटेस्ट में मनमोहन भाग लेने आए थे। इनकी आवाज़ तथा बोलने के अंदाज़ ने मुझे इनकी ओर आकर्षित किया। जब इन्हें प्रथम पुरस्कार मिला तो मैं इन्हें बधाई देने से स्वयं को रोक नहीं पाई। बस, इसी तरह हमारी दोस्ती की शुरुआत हुई।’

‘बहुत ख़ूब। आप दोनों का प्रेम विवाह में परिणत नहीं हो सका, क्योंकि आपके माता-पिता मनमोहन को सामाजिक एवं आर्थिक स्तर पर अपने बराबर का नहीं मानते थे। आपने माता-पिता की इच्छा के अनुसार स्वयं विवाह न करके भी अपने दोस्त को दूसरी लड़की से विवाह करने पर विवश किया और स्वयं सिंगल रहने का फ़ैसला किया।’

‘जी। माँ-बाप का पूरा सम्मान करते हुए भी विवाह के विषय में मैं उनकी सोच से सहमत नहीं थी। मैं जातिगत भेदभाव को नहीं मानती।’

‘हम आपके विचारों की कद्र करते हैं। ... आप अब भी मनमोहन जी को उतना ही चाहती हैं जितना इनके विवाह से पूर्व चाहती थीं ?’

‘मनमोहन के लिए मेरे प्यार में कभी कमी नहीं आ सकती, किन्तु मैं कभी नहीं चाहूँगी कि मेरी वजह से इनके पारिवारिक जीवन की ख़ुशियों पर किसी तरह की आँच आए। मुझे ख़ुशी है कि इनकी पत्नी बहुत ही सुलझे हुए विचारों वाली स्त्री है।’

‘आपके जज़्बात को सलाम। आजकल ऐसा नि:स्वार्थ प्यार बहुत कम देखने-सुनने में आता है। क्या कभी भी आपके मन ने विद्रोह नहीं किया?’

‘सर, अगर मैं ‘न’ कहूँ तो ग़लत होगा। आपसे बेहतर कौन जानता है कि मन कभी किसी के बस में नहीं रहता। लेकिन, इसे नियन्त्रित करना पड़ता है।’ जब डॉ. वर्मा ने गेंद अभिजीत के पाले में डाल दी तो उसने इस विषय को यहीं छोड़ना उचित समझा।

‘डॉ. वर्मा, एक अंतिम प्रश्न - हमारे पास आपकी जो वीडियो है, उसमें एक जगह आपकी गोद में एक प्यारी-सी बच्ची है। क्या मैं जान सकता हूँ कि वह बच्ची किसकी है?’

‘वह मेरी बेटी है, ऑय मीन, है तो वह मनमोहन की बेटी, किन्तु मैं उसे अपनी ही बेटी मानती हूँ। मनमोहन और उसकी पत्नी की सहमति से मैंने उसके जीवन को अपनी इच्छा अनुसार ढालने का निर्णय लिया है।

‘डॉ. वर्मा, हमें यह सुनकर बड़ा अच्छा लगा कि आपने अपने मित्र की बेटी को अपनाया है। जिस बच्ची के अभिभावक आप और आपके मित्र हैं, उसका भविष्य तो अवश्य ही उज्जवल होगा। आपकी बेटी को हमारी हार्दिक शुभकामनाएँ। आपने जिस बेबाक़ी तथा सच्चाई के साथ अपने विचार तथा मनोभाव प्रकट किए हैं, हम उसकी सराहना करते हैं। …. चलिए, गेम को आगे बढ़ाते हैं। अब आ रहा है चौथा प्रश्न। इसे खेलिएगा अवश्य। दुर्भाग्यवश, आपका उत्तर ग़लत भी हुआ तो भी आप खोएँगी कुछ नहीं।

‘जी।’

‘यह रहा आपके स्क्रीन पर चौथा प्रश्न।’

चौथे प्रश्न का उत्तर सही था। अभिजीत ने एक बार फिर डॉ. वर्मा को बधाई दी, किन्तु पाँचवें प्रश्न पर डॉ. वर्मा अटक गई। जब बीस सैकिंड शेष रह गए तो अभिजीत ने जल्दी उत्तर देने के लिए टोका। तब उसने लाइफ़ लाइन लेने का फ़ैसला लिया। जब अभिजीत ने पूछा - ‘कौन-सी लाइफ़ लाइन लेंगी?’ तो डॉ. वर्मा को लगा, इस प्रश्न का उत्तर शायद मनमोहन भी न दे पाए, अत: उसने प्रश्न बदलने के लिए कहा। अभिजीत ने उसकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए नया प्रश्न प्रस्तुत करने से पहले दर्शकों को सही उत्तर बताने के लिये उसे किसी एक विकल्प पर उँगली रखने को कहा। जिस विकल्प पर उसने उँगली रखी, वह सही उत्तर था, लेकिन लाइफ़ लाइन लेने की प्रार्थना अंकित हो चुकी थी, इसलिए उस प्रश्न की जगह उस द्वारा चयनित विषय - वैज्ञानिक आविष्कार - पर आधारित नया प्रश्न रखा गया, जिसका उसने सही उत्तर दिया।

मनमोहन डॉ. वर्मा द्वारा पच्चीस लाख रुपए जीतने पर भावुक हो गया, क्योंकि उसने अपने जीवन में इतनी बड़ी धनराशि कभी देखी तो क्या उसकी कल्पना भी नहीं की थी। अभिजीत की तीक्ष्ण दृष्टि से उसकी भावुकता छिपी न रही। उसने इसे लक्ष्य करके कहा - ‘डॉ. वर्मा, जहाँ आप पच्चीस लाख रुपए जीतने पर भी सामान्य दिखाई दे रही हैं, आपके मित्र बहुत भावुक हो गए हैं। आपके सामान्य व्यवहार तथा ज्ञान को देखकर हमें लगता है कि आज आप बहुत आगे जाएँगी। हमारी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं। ….. अब समय हो गया है एक छोटी-सी ब्रेक लेने का। ब्रेक के बाद गेम को आगे बढ़ाएँगे।’, साथ ही उसने हाथ जोड़कर दर्शकों से निवेदन किया - ‘कृपया बने रहिएगा, जल्दी लौटकर मिलते हैं। डॉ. वर्मा आपको यहीं बैठी मिलेंगी।’

डॉ. वर्मा ने अभिजीत की मनमोहन को लेकर की गई टिप्पणी के पश्चात् पीछे मुड़कर देखा। मनमोहन को अति भावुक अवस्था में देखकर उसके अपने मन में उसके लिए प्यार का समुद्र उमड़ पड़ा।

ब्रेक के बाद अभिजीत ने छठा प्रश्न रखा। इस प्रश्न के उत्तर को लेकर भी डॉ. वर्मा के मन में दुविधा थी। दुविधा की स्थिति में उत्तर देना भारी पड़ सकता था, यही सोचकर उसने अपनी दूसरी लाइफ़ लाइन का प्रयोग करना उचित समझा। दूसरे, प्रश्न हिन्दी साहित्य से सम्बन्धित था। मनमोहन हिन्दी में एम.ए. कर रहा था, इसलिए भी उसे विश्वास था कि वह अवश्य ही इस प्रश्न का सही उत्तर दे सकता है। अत: उसने अभिजीत से लाइफ़ लाइन लेने की प्रार्थना की, जिसे अंकित करने के बाद अभिजीत ने मनमोहन को सम्बोधित करते हुए कहा - ‘आइए श्रीमान जी, आपकी मित्र आपकी सहायता चाहती हैं। पचास लाख जीतने में अपनी मित्र की सहायता कीजिए।’

मनमोहन अपनी सीट से उठकर डॉ. वर्मा की सीट के पास आया तो अभिजीत ने पूछा - ‘तैयार हैं आप?’

‘जी, मैं पूरी कोशिश करूँगा कि डॉ. वर्मा यह धनराशि अवश्य जीतें।’

‘अपनी मित्र की कम्प्यूटर स्क्रीन पर सवाल देखिए और साठ सैकिंड में उत्तर दीजिए।’

मनमोहन ने ज्यों ही उसने स्क्रीन पर दृष्टि डाली, अभिजीत ने कहा - ‘आपका समय शुरू होता है अब।’

कुछ सैकिंड सोचने के बाद उसने डॉ. वर्मा को कहा कि प्रश्न का सही उत्तर है विकल्प सी। डॉ. वर्मा को उसकी योग्यता पर रत्तीभर भी संदेह नहीं था। उसने तुरन्त अभिजीत को मनमोहन द्वारा सुझाए गए निर्णय से अवगत करवा दिया। अभिजीत ने कुछ देर एक्टिंग की और फिर चिल्ला कर बोला - ‘डॉ. वर्मा, आपके मित्र ने आपको पचास लाख रुपए जितवाकर मित्रता का फ़र्ज़ बख़ूबी निभाया है। आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई।’

इतनी बड़ी धनराशि जीतने पर डॉ. वर्मा के मन में आया कि मनमोहन को अपनी बाँहों में भर लूँ, किन्तु उसने केवल उसके हाथ को अपने हाथों में लेकर दबाते हुए ‘बहुत-बहुत धन्यवाद’ कहकर ही सब्र कर लिया। मनमोहन अपनी सीट पर लौट आया। पचास लाख जीतने की प्रसन्नता से डॉ. वर्मा विचारमग्न हो गई।

अभिजीत ने उसकी तन्द्रा को भंग करते हुए कहा - ‘डॉ. वर्मा, तैयार हो जाइए, आने वाला है आपको करोड़पति बना सकता है। तैयार हैं आप?’

डॉ. वर्मा ने स्वयं को व्यवस्थित करते हुए कहा - ‘सर, मैं तैयार हूँ।’

सातवाँ सवाल स्क्रीन पर देखकर डॉ. वर्मा सोच में पड़ गई। पाँच में से दो विकल्प ठीक लग रहे थे, लेकिन सही तो एक ही था। दो में से किस एक पर उँगली रखे, यही दुविधा थी उसके सामने। ठीक होने पर जहाँ एक करोड़ मिल सकते थे, वहीं ग़लत होने पर पैंतालीस लाख रुपए खोने का डर भी था।

उसे दुविधा में देखकर अभिजीत ने कहा - ‘डॉ. वर्मा, आपकी दोनों लाइफ़ लाइनें चली गई हैं। यहाँ रिस्क लेना बहुत महँगा पड़ सकता है। पचास लाख भी कोई छोटी रक़म नहीं होती! फिर भी आप रिस्क लेना चाहें तो हम रोकेंगे नहीं। यदि आप गेम छोड़ना चाहें तो पचास लाख आपके पक्के हुए।’

काफ़ी सोच-विचार के बाद डॉ. वर्मा ने समयावधि समाप्त होने से पूर्व ही खेल छोड़ने का निर्णय ले लिया।अभिजीत ने उसे गेम छोड़ने की अनुमति देकर पचास लाख जीतने पर बधाई देते हुए कहा - ‘प्लीज़, जाने से पहले किसी एक विकल्प पर उँगली रखिए ताकि दर्शक सही उत्तर जान सकें।’

डॉ. वर्मा ने जिस विकल्प पर उँगली रखी, वह ग़लत था।

अभिजीत - ‘डॉ. वर्मा, आपने सही समय पर सही निर्णय लिया। अगर आप खेलतीं तो आज पचास नहीं, केवल पाँच लाख ही घर ले जा पातीं। वेल प्लेड। बहुत-बहुत बधाई। अब हम आपसे विदा लेंगे।’

खेल छोड़ने के अपने सही निर्णय से डॉ. वर्मा बहुत प्रसन्न थी। जब वह वापस अपनी सीट पर आई तो मनमोहन ने खड़े होकर उसे सही फ़ैसला करके पचास लाख जीतने पर बधाई दी और अपने साथ वाली सीट पर बैठने का संकेत किया। डॉ. वर्मा ने बैठकर मनमोहन का हाथ अपने हाथों में लेकर कहा - ‘इस जीत का श्रेय तुम्हें समर्पित करती हूँ। तुम न होते तो यह सम्भव न होता।’

‘वृंदा, यह तुम्हारी क़ाबिलियत का इनाम है। इस अवसर पर तुम्हारे साथ होना मेरा सौभाग्य है।’

इनकी बातचीत के बीच ही अभिजीत ने बचे प्रतिभागियों के समक्ष ‘सबसे तेज कौन’ का प्रश्न रखा। सबसे तेज और सही उत्तर देने वाला प्रतिभागी एक विद्यार्थी था। लेकिन उसके साथ खेल शुरू हो पाता, इससे पहले ही खेल समाप्ति की घोषणा हो गई।

स्टुडियो से निकलकर जब डॉ. रवि और प्रह्लाद होटल-रूम में पहुँचे तो कमरा बन्द करते ही डॉ. वर्मा ने मनमोहन को आलिंगन में ले लिया। डॉ. वर्मा की इस अप्रत्याशित पहल से वह स्तब्ध रह गया। उसके मुख से निकला - ‘अरे! यह क्या करती हो?’

‘मनु, अपनी ख़ुशी तुमसे शेयर न करूँ तो किससे करूँगी? तुम्हें कैसे बताऊँ कि मैंने अब तक कैसे खुद पर कंट्रोल किया है? जैसे ही तुम्हारे द्वारा सुझाए गए उत्तर को अभिजीत लल्लन ने सही करार दिया था, उसी समय मन किया था कि तुम्हें बाँहों में भर लूँ, किन्तु उस समय सार्वजनिक स्थल पर ऐसा करना उचित न था, इसलिए अपनी भावनाओं का दमन करना पड़ा। लेकिन मनु, अब तुम मुझे नहीं रोक सकते’, कहते ही उसने मनमोहन के अधरों का रसपान करना आरम्भ कर दिया। डॉ. वर्मा के उत्तप्त अधरों के खिंचाव से मनमोहन ने स्वयं को अलग किया और कहा - ‘वृंदा, ख़ुशी मुझे भी कम नहीं है, किन्तु क्या यही एक तरीक़ा है ख़ुशी मनाने का?’

‘मनु, मैंने दिलोजान से तुम्हें चाहा है, प्यार किया है। माना कि तेरा ना मिलना मेरे नसीब में लिखा था, मगर मेरी भी फ़ितरत है तुझे टूट कर चाहना। इतना होते हुए भी मैंने कभी ‘किस’ तक की चाह नहीं की। आज अगर ‘किस’ कर लिया तो कौन-सा पहाड़ टूट पड़ा?’

जब डॉ. वर्मा के आग्रह को मानकर मनमोहन ने रेनु से विवाह कर लिया था, तब से उसने डॉ. वृंदा की देह के प्रति किसी भी प्रकार की आसक्ति को सदैव के लिए मन से निकाल दिया था। वह तो उसकी देह को छोड़ उसके नारीत्व के गुणों का ग्राहक बन गया था। उसने उसे शान्त करते हुए कहा - ‘रिलैक्स वृंदा, रिलैक्स। मेरा मतलब तुम्हें आहत करने का नहीं था। मैं तो केवल भविष्य में इसके परिणाम को लेकर आशंकित हूँ। यदि हमने अपने आपको कामनाओं के भँवर में बह जाने दिया तो ज़रा सोचो! बड़ी होने पर तुम्हारी स्पन्दन को इस तरह के सार्वजनिक न कर सकने वाले सम्बन्धों के बारे में पता लगने पर वह किस तरह से रिएक्ट करेगी!’

डॉ. वर्मा मनमोहन की इतनी दूरगामी सोच की क़ायल हुए बिना न रह सकी। उसने तत्काल अपनी भूल स्वीकार की और कहा - ‘सॉरी मनु, मैं भावनाओं में बह गई थी। तुमने मेरी आँखें खोल दी हैं। आज मुझे अपने मनु पर गर्व हो रहा है।’

‘वृंदा, रेनु को ख़ुशख़बरी सुना दें?’

‘क्यों नहीं? यह भी बताना है कि पचास लाख में से पच्चीस लाख स्पन्दन के हैं। मैं उसके नाम एफ़.डी. करवाऊँगी।’

मनमोहन डॉ. वर्मा की अप्रत्याशित बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गया। तत्काल उसे कुछ भी नहीं सूझा कि डॉ. वर्मा की इस बात पर क्या प्रतिक्रिया दे। पलों का समय सदियों का अन्तराल-सा लगा उसे। अन्ततः उसने कहा - ‘वृंदा, माना स्पन्दन को तुम जी-जान से प्यार करती हो, लेकिन उसके नाम इतनी बड़ी रक़म!’

‘मनु, असल में तो इस रक़म पर तुम्हारा अधिकार है, क्योंकि तुम न होते तो मुझे गेम इससे पहले ही छोड़नी पड़ती। लेकिन मुझे पता है कि स्वाभिमान के कारण तुम कभी भी इसे स्वीकार नहीं करते। दूसरे, स्पन्दन हमारी बेटी है। उसके नाम एफ़.डी. करवाने में तुम्हारा स्वाभिमान भी आड़े नहीं आएगा। वैसे तो मेरा जो कुछ भी है, वह स्पन्दन का ही होगा।’

‘वृंदा, एक बार फिर तुम मेरी निगाहों में बहुत ऊँची उठ गई हो! कोई भी अन्य व्यक्ति ये सब बातें सुनेगा तो इन्हें पचा नहीं पाएगा; उसे यह सब कपोल-कल्पित लगेगा।’

‘मनु, रेनु को फ़ोन मिलाओ। और उसे कहना कि स्पन्दन के मुँह और कान से भी फ़ोन लगाए। मैं उसकी आवाज़ सुनना चाहती हूँ और उसके कान में कुछ कहना चाहती हूँ। ... मनु, छुट्टियाँ तो हमने सप्ताह भर की ली हैं। क्यों न हम दो दिन गोआ भी लगा आएँ?’

‘वृंदा, गोआ फिर कभी चलेंगे, रेनु और गुड्डू को साथ लेकर। मैंने मुम्बई में देखने योग्य स्थलों की जानकारी वाला पेम्फेल्ट देखा था। कल ‘गेट वे ऑफ इंडिया’ और ‘एलिफ़ेंटा केव्स ’ देखने चलते हैं।’

डॉ. वर्मा का मन तो गोआ जाने का था, किन्तु उसे लगा कि मनमोहन के मन में गोआ जैसी रोमांटिक जगह उसके साथ अकेले जाने में कमजोर पड़ने का डर है, अत: उसने गोआ जाने की अपनी इच्छा को दबाकर उसकी बात मान ली। लेकिन सोते समय फिर उसके अन्तर्मन ने कहा - वृंदा, चाहे मनु द्वारा स्पन्दन के भविष्य को लेकर तुमने उसके तर्क को मानकर ‘सॉरी फ़ील’ कर लिया, किन्तु क्या वाक़ई तुमने ऐसा महसूस नहीं किया था जैसे कि मनु को स्पर्श करते ही तुम एक नदी की तरह बहने लगी थी! तत्काल उत्तर मिला - हाँ, कुछ क्षणों के लिए मेरे निजस्व का मनु के अस्तित्व में विलय हो गया था।

॰॰॰॰॰॰