प्यार के इन्द्रधुनष - 14 Lajpat Rai Garg द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार के इन्द्रधुनष - 14

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आज मुद्दतों बाद डॉ. वर्मा ने मनमोहन के साथ इतना लम्बा समय व्यतीत किया था। चाहे अधिकांश समय विमल की कहानी कहने-सुनने में ही व्यतीत हुआ, फिर भी कहीं भीतर मन में उसे अकेलेपन की भरपाई का अहसास भी हुआ। रात्रिभोज के उपरान्त बेड पर लेटी हुई डॉ. वर्मा विचारमग्न थी। सोच रही थी अनामिका के बारे में। क्या असामाजिक तत्त्वों की ब्लैकमेलिंग के कारण उसका जीवन चौपट हुआ, उसका ही नहीं, विमल का भी? अथवा अपनी नादानी का शिकार हुई होगी वह? मनु की बातों से तो लगता है जैसे कि अनामिका की मम्मी भी षड्यन्त्र का शिकार थी या हिस्सा थी। यदि उसकी मम्मी और चाचा की भागीदारी न होती तो पहली ही बार में वे अपनी लड़की के विवाह-विच्छेद के लिये क़तई तैयार न होते। लड़की का घर बसा रहे, इसके लिए उसके माँ-बाप सौ तरह के यत्न करते हैं।

इस हादसे पर सोच-विचार करते समय ख़्यालों ने एकाएक दूसरी ही राह अपना ली। जब मनु से विवाह की बात पापा ने एक सिरे से ख़ारिज कर दी थी, तब यदि मैं किसी अन्य लड़के से विवाह से साफ़ इनकार करने की बजाय माँ-पापा की ख़ुशी के लिए किसी और से विवाह कर लेती, और बाद में कभी मेरे पिछले प्रेम-प्रसंग का राज मेरे ‘उस’ पति के समक्ष खुलता तो मुझ पर भी अनामिका जैसा आरोप लग सकता था? इस ख़्याल के मन में आते ही उसका शरीर थरथराने लगा। लेकिन अगले ही क्षण मन ने कहा, खुद को अनामिका की जगह रखकर सोचने का कोई अर्थ नहीं वृंदा।

मनु ने तो सच्चे मन से ही आग्रह किया था कि मुझे एक जीवनसाथी चुनकर विवाह कर लेना चाहिए। उसके तर्क को भी नकारा नहीं जा सकता। उसने कहा था - ‘वृंदा, मैंने तुम्हारे कहने पर अपने प्यार को दबाकर भी विवाह किया है, उसी तरह तुम भी मेरी बात मानकर विवाह कर लो। आख़िर दुनियादारी भी तो निभानी है।’ लेकिन क्या यह इतना आसान होता? मानती हूँ कि मनु ने यह बात इसलिए कही थी कि वह मन-ही-मन चाहता था कि इस तरह से वह उऋण हो जाएगा। उसके मन पर पड़ा बोझ उतर जाएगा। .... यह एक शाश्वत सत्य है कि स्त्री और पुरुष के बीच प्यार दोनों के जीवन को प्रभावित करता है, किन्तु अलग-अलग ढंग से। जहाँ पुरुष एक प्यार के बाद अपने जीवन में आई दूसरी स्त्री, अपनी पत्नी के साथ भी सहजता से वफ़ादारी निभा सकता है, स्त्री के लिए प्रथम प्यार के बाद दूसरे पुरुष को पति रूप में स्वीकार कर लेने पर भी प्रथम प्यार के प्रति ललक कभी समाप्त नहीं होती। ऐसे में स्त्री भौतिक स्तर पर वफ़ादार रहते हुए भी अन्त:करण में स्वयं को निरापद नहीं कर पाती। .... मनु के लिए मेरे मन की धरती पर जो प्रेम का बीज अंकुरित होकर अपनी जड़ें जमा चुका है, क्या उस धरती पर नई पौध कभी फल सकती है? कदापि नहीं। मैंने मनु से सच्चे मन से प्रेम किया है। यदि माँ-पापा सहमत हो जाते तो मनु को जीवनसाथी के रूप में पाकर मेरा जीवन सार्थक हो जाता, किन्तु जब ऐसा सम्भव नहीं हुआ, उसके बाद मैंने प्यार के प्रतिदान के बारे में कभी सोचा नहीं। सच्चा प्यार प्रतिदान चाहता भी नहीं। ...... सोचने लगी, रेनु बड़ी समझदार लड़की है। लगता नहीं कि मनु के प्रति मेरे प्यार को लेकर उसके मन में किसी प्रकार की चिंता या दुविधा हो। डॉ. दीदी, डॉ. दीदी कहकर जब बुलाती है तो उसके लिए मेरे दिल में छोटी बहन-सा प्यार उमड़ता है। .... आख़िर एक बात अच्छी हुई - मनु जो पहले आगे पढ़ाई करने की स्थिति में नहीं था, और नौकरी लगने तथा विवाह होने के बाद अपने करिअर को आगे बढ़ाने की बात भूल ही गया था, अब कोरस्पोंडेंस से एम.ए. करने तथा कंपीटिशन का एग्ज़ाम देने के लिये तैयार हो गया है। जब मैंने उसे इस ओर प्रेरित किया तो जो उसने कहा था, वह कवि हृदय ही कह सकता है। उसने कहा था - ‘वृंदा, तुमने मुझे इस ओर प्रेरित करके मेरे अन्दर बढ़ते रेगिस्तान की दिशा मोड़कर हरियाली की ओर उन्मुख कर दी है। सत्य तो यह है कि तुम ही वह अँजुरी हो, जिसमें जल भरकर मैं जीवन-यज्ञ का कोई भी संकल्प ले सकता हूँ, क्योंकि यज्ञ करने के लिये संकल्प लेना अनिवार्य होता है।’

मनु का विचार मन में आया तो गुड्डू का नाम रखने का उसका आग्रह भी उभर आया। नामों पर विचार करते हुए सोचने लगी, नाम ऐसा होना चाहिए जिससे गुड्डू के लिए मेरा प्यार झलकता हो। विभिन्न नामों पर विचार करने के बाद दो नामों - स्वप्निल और स्पन्दन पर आकर उसका मन टिका। इनमें से कौन-सा नाम गुड्डू के लिये अधिक उपयुक्त रहेगा, पर विचार करने लगी। स्वप्निल द्योतक है, गुड्डू के लिए मेरे मन में एक स्वप्न का और स्पन्दन, गुड्डू यानी स्पन्दन तो मेरे दिल की धड़कन है ही। बस, स्पन्दन नाम से ही मैं हमारी गुड्डू - मनु और मेरी बेटी - को पुकारा करूँगी। इसके बावजूद मैं रेनु को कह दूँगी कि वह गुड्डू को किसी भी और नाम से बुलाने के लिये स्वतन्त्र है। इस विचार तक आते ही उसका मन शान्त हो गया। उसे लगने लगा कि मेरे इस निर्णय से किसी की भी भावना के आहत होने की गुंजाइश नहीं रहेगी। उसे लगा, शरीर विश्रामावस्था की ओर बढ़ रहा है।

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