Pyar ke Indradhanush - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार के इन्द्रधुनष - 11

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डॉ. वर्मा उस रात जब सोने लगी तो मनमोहन द्वारा विमल के बारे की गई टिप्पणी पर विचार करने लगी। मनमोहन ने कहा था - एक लम्बी और दुखद दास्तान। अवश्य ही उसके वैवाहिक जीवन में कोई विस्फोटक स्थिति उत्पन्न हुई होगी वरना तो अपने मित्र की पहली सन्तान के पहले उत्सव पर न आने का कोई कारण नहीं बनता। वैवाहिक सम्बन्धों में ऐसी विस्फोटक स्थिति क्या हो सकती है, बहुत सोचने के बाद भी वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाई। फिर मनमोहन के साथ अपने सम्बन्धों को लेकर सोचने लगी। मंजरी दीदी से तो कोई बात छिपी नहीं। क्या मनमोहन ने रेनु को भी सब कुछ बताया होगा? यदि बताया होगा तो रेनु की क्या प्रतिक्रिया रही होगी, उसका पता होना तो आवश्यक है, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि किसी ग़लतफ़हमी के कारण मनमोहन की सुखी गृहस्थी में किसी तरह के दु:ख का आगमन हो। ..... चलो, किसी ऑफ डे को मनमोहन को बुलाकर सारी बातों का पता करती हूँ। इस प्रकार मन में उभरे संशय से मुक्त होकर सोने का उपक्रम करने लगी।

डॉ. वर्मा ने गुड्डू को समयावधि पर लगने वाले इंजेक्शनों के लिए अपने परिचित एक चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर का पता मनमोहन को दिया और डॉक्टर को भी मनमोहन के बारे में फ़ोन कर दिया। डॉ. वृंदा चाहती थी कि गुड्डू की परवरिश में किसी तरह की कोताही न हो।

कुछ दिनों बाद रविवार के दिन सुबह मनमोहन अभी सैर से वापस आया ही था कि उसके मोबाइल पर डॉ. वर्मा का नाम फ़्लैश करने लगा। मोबाइल ऑन करते ही उधर से आवाज़ आई - ‘मनु, आज ब्रेकफास्ट या लंच मेरे साथ करने के लिए आओ, जैसा तुम्हें कन्वीनियंट लगे।’

‘वृंदा, ब्रेकफास्ट पर आना तो सम्भव नहीं, क्योंकि हफ़्ते के इकट्ठे हुए कई काम निपटाने में रेनु की मदद करनी है। हाँ, मैं लंच के समय आ जाऊँगा।’

रेनु के सामने मनमोहन ने पहली बार डॉ. वर्मा को उसके प्रथम नाम से सम्बोधित किया था। अत: बात पूरी होने पर उसने पूछा - ‘आप डॉ. दीदी को केवल ‘वृंदा’ कहकर बुलाते हैं?’

‘रेनु, जब अस्पताल में पहली बार वृंदा को डॉक्टर के रूप में देखा था और मैंने उसे ‘डॉक्टर साहब’ कहकर नमस्ते की थी तो उसी ने मुझे अकेले में केवल वृंदा कहकर बुलाने के लिये आग्रह किया था। ... आज वृंदा ने मुझे लंच पर बुलाया है।’

‘वो तो मैंने सुन लिया। .... मैं देख रही हूँ कि डॉ. दीदी अब भी आपसे बहुत प्यार करती हैं।’

‘रेनु, मैंने तुमसे कुछ भी छिपाया नहीं। वृंदा ने मेरे लिए अपने प्यार को अपने जीवन का आधार बना लिया है। उसने अपने पवित्र प्यार के लिये जो त्याग किया है, वह एक मिसाल है। आज के समय में ऐसा त्याग करने वाला लाखों में एक मिलना भी मुश्किल है। मैं भी उसकी भावनाओं की कद्र करते हुए तथा तुम्हारे प्रति अपने उत्तरदायित्व को ध्यान में रखते हुए अपने विवाह के बाद कभी वृंदा से नहीं मिला। अर्से बाद वृंदा को तुम्हारी डिलीवरी के समय देखा। .... तुमने तो गुड्डू के होने से पहले वृंदा को कभी देखा नहीं था। उसके बारे में उतना ही जानती थी, जितना मैंने तुम्हें बताया था। कहीं तुम्हारे मन में ईर्ष्या तो नहीं हो रही?’

‘आप ऐसा क्यों सोचते हैं? आपसे जो सुना था, वो तो ठीक है, लेकिन गुड्डू के होने से अब तक मैंने डॉ. दीदी को जितना देखा-परखा है, उससे मेरे मन में उनकी इज़्ज़त बहुत बढ़ गई है। वे जीती-जागती देवी स्वरूपा हैं।’

रेनु के मनोभाव सुनकर मनमोहन आनन्दविभोर हो गया। उसने कहा - ‘तो तुम्हारी सहमति है कि मैं वृंदा के यहाँ लंच के लिए जाऊँ?’

रेनु ने मज़ाक़िया लहजे में कहा - ‘डॉ. दीदी को तो आप पहले ही लंच के लिए ‘हाँ’ कर चुके हो। अब यदि मैं चाहूँ भी तो क्या आप जाने से मना कर पाओगे? अब झूठमूठ की लीपापोती का कोई मतलब नहीं रह जाता।’

‘रेनु, मैंने तुमसे पूछे बिना ‘हाँ’ इसलिए की थी, क्योंकि मुझे पता था कि तुम्हारे मन में वृंदा के प्रति कितनी इज़्ज़त है और तुम ख़ुद कितनी समझदार हो!’

‘अब यह मक्खनबाजी छोड़ो। आपने डॉ. दीदी को कहा था - हफ़्ते के इकट्ठे हुए कई काम निपटाने में रेनु की मदद करनी है - तो निपटाओ पेंडिंग काम।’

‘लो, सबसे ज़रूरी काम से शुरुआत करता हूँ’, कहकर मनमोहन ने रेनु को बाँहों में भर लिया।

‘अरे, यह क्या करते हो?’

‘महारानी का हुक्म बजा रहा हूँ, और क्या कर रहा हूँ।’

‘छोड़ो भी, बाई आने वाली है।’

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