भारत - 2 नन्दलाल सुथार राही द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भारत - 2


भारत - भाग .2

आपके प्रेम और प्रोत्साहन के कारण "भारत "काव्य-संग्रह का दूसरा भाग आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। आशा है इसे भी आपके प्रेम और प्रोत्साहन का लाभ अवश्य प्राप्त होगा।
भाग- 2 की पहली काव्य रचना "नया सवेरा" है जिसमें एक नेतृत्व कर्ता के समक्ष आने वाली चुनोतियों और उसके लिए प्रेरणादायक पंक्तियां लिखने का प्रयास किया है।
दूसरी काव्य रचना "नींव" में समाज के उन वर्गों के कार्यो और बलिदान का वर्णन है जो अपना संपूर्ण जीवन अंधेरे में ही बिता देते है ताकि हम प्रकाशमान हो सके । उनके न होने पर क्या प्रभाव पड़ता है इसकी पंक्ति भी आप देख सकोगे।

"भारत" काव्य संग्रह के भाग -2 की तीसरी काव्य रचना "सिपाही"में भारत के उन खाखी के सिपाहियों की व्यथा का वर्णन है जो अपना जीवन तक हमारी सुरक्षा के कारण बलिदान कर देते है।
भाग -2 की अंतिम काव्य रचना " ये जग है एक सिनेमा" में हमारे इस संसार में आने व जाने के वर्णन की तुलना सिनेमा द्वारा की गई है।

आपके स्नेह एवं प्रोत्साहन का प्यासा
-नन्दलाल सुथार"राही"






(३)

(नया सवेरा)


*नया सवेरा*

हर कोई देगा साथ तुम्हारा
कांटे भी कोई चुभाएगा
पर तुम न अगर आये सामने
हालात वही फिर रह जायेगा।

मिलकर करना आसान बहुत है
पर सबको कौन मिलाएगा
तुमको ही बढ़ाना पहला कदम
फिर हर कोई पीछे आएगा।।

यह न कहना नुकसान मेरा यह
न तू अपनी व्यथा बताएगा
बलिदान देना पड़ेगा तुझको
तब जाके समाज बढ़ पाएगा।।

न कामना तू यश की करना
वरना इतराता रह जाएगा
रखना तुम धैर्य , सादगी से रहना
वरना पछताना पड़ जाएगा।

न एक कदम पर रुक जाना तुम
वरना सफर अंत हो जाएगा
ये तो सफर है अनंत राह का
तू थक तो कँही न जाएगा।।

हौसला है रखना तुझको
तू अंत तक भी जाएगा
होता सवेरा जिस जगह से
तू नया सवेरा बन के आएगा।।

*नन्दलाल सुथार"राही" रामगढ़*



(४)


(नींव)


नींव

यूँ ऊंचे ऊंचे कंगूरों पर
हमें चमकना नहीं आता
हम तो है नींव की ईंटे
हमें ऊपर उठना नहीं आता।

हिल जाए अगर हम
सब गिर जाए, कंगूरों की औकात ही क्या
पर जिन्हें समझते है हम अपना
हमें उन्हें गिराना नहीं आता।

मजबूत बने हम
होंगे मजबूत तब कंगूरे
आ जाये भूकंप फिर चाहे जैसे
ना हिल पाए तब कंगूरे।

नंदलाल सुथार



(५)


(सिपाही)

*सिपाही*

होली आए, आए दीवाली
आए ईद दशहरा
हो अंधेरी रात-राह पर
हम देते है पहरा।

घूमो तुम जब अपनों के संग
प्रसन्न परिवार तुम्हारा होता
हर त्योहार पे पहरा देता
दिल हमारा हरपल रोता।

तुम दंगा और झगड़ा करते
हम सुलझाने आते है
हम तो चाहे मिटे कलह, पर
उल्टे ही पत्थर खाते है।

कुछ दुर्जन जनों के कारण
क्यों सारे बदनाम है
हम सिपाही करे सुरक्षा
पर डर में निज परिवार है।

नन्दलाल सुथार ,जैसलमेर



(६)


(ये जग है एक सिनेमा)



ये जग है एक सिनेमा,
पर्दा है उठता,
पर्दा गिरता,
बीच में है किरदार निभाना।
ये जग है.....

परदा उठाकर हम आते है,
कुछ पल हँसते और गाते है,
आँसू कभी आये गम की वर्षा
फिर' परदा गिराकर हम जाते है
ये जग है....

ऐ मानव तेरे हाथ नहीं कुछ
वो ही है लिखता , वो ही चुनता
हम तो अभिनय करते जाते
दर्शक बनकर ,देख वो हँसता
ये जग है...

ढोल बजे थे,और नगाड़े
खुश थे सब तब, लोग तुम्हारे
आया समय जब तुमको जाना
संग नहीं , थे जो साथ तुम्हारे
ये जग है....

- नन्द लाल सुथार "राही"