बरसो रे मेघा-मेघा - 2 sangeeta sethi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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बरसो रे मेघा-मेघा - 2

भाग दो

रिमझिम गिरे सावन

नीले साफ़ आसमान में बादल आते तो आसमान को तो गहरे रंग में रंगते ही, धरती पर भी धुंधलका फैला देते | बादलों को धैर्य ही नहीं होता कि कौन आगे चले | उनकी धक्का-मुक्की के इस खेल में एक दूसरे से टकराते हुए धन और ऋण के कण एक दूसरे के पास आकर बिजली की चमकीली लकीरें चमकती और आसमान को दो भागों में बांटते हुए खुद ही गर्जना करने लगती | बदल फट पड़ते झमाझम बारिश होने लगती | रंग-बिरंगी छतरियों से धूसर सड़कें छिप जाती | डिज़ाईनर छतरियों पर तड़-तड़ बूंदों की आवाजें सातवीं मंजिल पर बालकॉनी में खड़ी मेघना का ध्यान आकृष्ट करने में सफल होती |

बचपन की यादों को समेटे मेघना ऋषि के साथ विवाह के बाद मुम्बई चली आयी थी | यहां मानसून से पहले और मानसून के बाद बरसातों का ही मौसम था | बरसात जम कर होती थी पर पक्की सडकों पर पानी ठहरता ही कहाँ | पानी का रेला समुद्र में जा मिलता और उसे रौद्र बना देता | पानी की बूंदों में भीगती ऊंची अट्टालिकाएं खिल उठती | सडकों पर रंग-बिरंगे छतरियों की बहार आ जाती |

राजस्थान की बरसात और यहाँ की बरसात में बहुत अंतर है | रेगिस्तान की धरती पर बादल छा कर रह जाते हैं | बरसते कम गरजते ज्यादा हैं | कभी कभार आने वाली बरसात के पानी को साल भर की प्यासी धरती ऐसे जज़्ब कर लेती है मानों बरसों से प्यासी हो | गीली मिट्टी ऐसी कि उसमें पैर रख कर कितनी बार उसने घरौंदे बनाए | उनको कीकर के पेड़ से गिरी पत्तियों से सजाया लेकिन मुंबई की बरसात ऐसी कि बादल आए तो बरसे बिना नहीं जायेंगे |

सातवें मंजिल की बालकॉनी पर खड़े हुए मेघना बारिश का लुत्फ़ उठा सकती थी लेकिन यहाँ जमीन पर जाकर उसके गड्डों में कागज़ की नाव नहीं चलाई जा सकती थी, ना ही छत पर जाकर भीगा जा सकता था | लोहे की जालियों से ढकी बालकॉनी से आती बरखा की थोड़ी फुहारें उसके बालों को छू भर जाती थी |

“ चलो ना ऋषि ! एक दिन बारिश में भीग कर आते हैं बाइक पर ! ” मेघना ने ऋषि को प्लेट में बेसन-भजिया देते हुए कहा |

“ पागल हो मेघना !”

“ क्यों ! इसमें पागल की क्या बात है | अमिताभ बच्चन भी तो मौसमी चटर्जी के साथ मंजिल पिक्चर में मुंबई की सडकों पर बारिश में भीगते हैं |”

“ वो फिल्म है मेघू ! कितनी भोली हो तुम | बारिश में भीग कर बीमार हो जाते हैं | ”

“ नहीं होंगे ना बीमार | चलो ना एक दिन जूहू बीच, चौपाटी, मरीन ड्राइव, बैण्ड स्टैण्ड....” मेघना बच्चों की तरह ठुनकते हुए ऋषि की झोली में जा गिरी |

“ अरे तुम्हें इतने नाम मालूम चल गए, मेरी रानी !” ऋषि ने झोली में गिर आई मेघना को संभालते हुए कहा था |

उस रात बादल खूब घिर आए | गहरी रात का आसमान भी बादलों के आने से और गहरा हो जाता है | ये अहसास मेघना ने आज अपने शयन कक्ष की खिड़की से झांक कर किया था | उसने खिड़की के मोटे मैरून परदों को सरका दिया था | आज उसे चाँद की चांदनी की दरकार नहीं थी | आज उसकी आँखें बूंदों से लबरेज बादलों को खिड़की के रास्ते आने की बाट जोह रहा था | खिड़की के बाहर बादलों की रेलमपेल थी | बिजली के लकीरें आसमान में तड़प पैदा कर रही थी | आज चुपके से घुस आये थे बादल मेघना के कमरे में और जम कर बरसे थे मेघना के तन पर और मन पर भी |

समय रुकता ही कहाँ है ? बादलों की तरह चलता है, बरसता है, सराबोर कर फिर चल देता है खुद को बूंदों से भरने | मेघना को आज याद आ रही थी अपनी विज्ञान की अध्यापिका लता की जो सफेद गुलाबी और नीले चॉक से काले ब्लैक बोर्ड पर पढ़ाया करती थी | कैसे धरती पर पड़े पानी के स्त्रोत पर सूरज की किरणें पानी को वाष्प बनाती हैं | वाष्प आसमान में सघन होती हैं और बूँद बूँद इकठ्ठा हो जाती हैं तो बादल बन जाती हैं | जब बादल बूंदों का भार नहीं सहन कर पाते तो बरस पड़ते हैं धरती पर जिसे हम वर्षा कहते हैं | लता मैडम अपनी चाक से ब्लैक बोर्ड पर इतना खूबसूरत रेखाचित्र बनाती कि मेघना मंन्त्रमुग्ध-सी उसे निहारती ही रह जाती | लता मैडम के कक्षा से जाने के बाद बोर्ड के नज़दीक जाकर अपनी अँगुलियों को उन रेखाओं पर फिराती |

जीवन भी तो ऐसा ही होता है ना | बादलों के जैसा, सूरज के जैसा, वर्षा के चक्र जैसा | नेहा और नुपुर के साथ फिर जिया उसने अपना बचपन, उनके बचपन को संवारा, उनकी किशोरावस्था में खुद भी सराबोर हुई | अब बड़ी हुई दोनों बेटियाँ तो कैरियर बनाने में फुर्र हो गई | नेहा को पुणे का डिजाइन कॉलेज मिला तो नुपुर हैदराबाद से पर्यावरण में शिक्षा लेने चली गयी |

“ माँ ! आपको मालूम है हमारे कोर्स में पोखरण के परमाणु परीक्षण का ज़िक्र है ” नुपुर बताती है माँ को | मेघना का मायका पोखरण के पास ही तो है |

“ हाँ ! जब परमाणु परीक्षण हुआ था तो तू मेरे पेट में थी | तेरी नानी ने 2 मई 1998 की  इतनी गर्मी में भी मुझे चार रजाइयों में ढक दिया था ” यह बताते हुए मेघना के चेहरे पर आज भी भय के भाव उभर आये थे |

“ क्यों माँ ! ” नुपुर ने हैरानी से पूछा था |

“ ताकि एक भी कंपन तुझे नुकसान ना पहुंचाए मेरी लाडो !” मेघना ने प्यार से नुपुर के चेहरे को छू लिया था |

“पर उस कंपन ने वातावरण की पूरी हवाओं को अपने आगोश में ले लिया था माँ ! उस परीक्षण का वातावरण में प्रतिक्रियाओं का पूरा पाठ है मेरी किताब में ” नुपुर आज अपनी माँ को वो पाठ पढ़ाने को आमदा थी |

“ माँ मालूम है पोखरण परमाणु परीक्षण ने वातावरण का तापमान बढ़ा दिया है, इसी से अलनीनो बढ़ा है ”

“ ये अलनीनो क्या होता है लाडो ! ” मेघना ने हैरानी से पूछा था |

“ अलनीनो महासागरों का सामान्य तापमान होता है जिसके बढ़ने से वर्षा प्रभावित होती है ” नुपुर ने माँ के सामने अपने ज्ञान का बघार लगाया था |

“ अच्छा तभी माँ मुझे कह रही थी कि पोखरण के विस्फोट के बाद गाँव में वैसी बारिश नहीं हो रही जैसे पहले हुआ करती थी ”

मेघना अपने गाँव की वर्षा की यादों में फिर पहुँच गई जब वो कागज़ की कश्ती को बारिश के पानी में चलाया करती थी |

इधर कुछ बरसों से मेघना के घुटनों में दर्द रहने लगा है | गठिया की ये बीमारी बरसात के मौसम में मुखर होने लगती है | वही मेघना जो बरसता को देखकर झूम उठाती थी वो बरसात को देखकर कराह उठती है | मुम्बई की बरसात मई से चलती है जो अगस्त तक खिंच जाती है | मेघना के मुँह से यही निकलता है -“ अब बस भी करो ईश्वर ! मुझ पर ही रहम करो ”

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