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एक अविश्वसनीय घटना


"हे भगवान! यह क्या हो गया? मैं यहाँ कैसे आ गया? आनंद, क्या तुम वास्तव में इस बंगले में खड़े हो?"
मेरे साथ एक बहुत ही चौंका देने वाली और अविश्वसनीय घटना घटी, कल्पना से परेह! मैं, आनंद अजमेरा, इतिहास का प्रोफेसर, रात को अपने कमरे में बैठकर क्राइम थ्रिलर पढ़ रहा था। मैं तकरीबन उपन्यास के अंत तक पहुँच ही चुका था और अचानक, मैं अपने कमरे में नहीं था।

हैरानी की बात है, लेकिन मैं अपने उपन्यास के अंदर प्रवेश कर गया था! आश्चर्यचकित हो कर, मैंने चारों ओर देखा। मेरी ओर किसी का ध्यान नहीं था। मेरे उपन्यास का नायक कैलाश कुमार अपने पिता की लाश के पास बैठा था और फूट-फूट कर रो रहा था। हर जगह पुलिसवाले, तलाशी कर रहे थे, सवाल पूछ रहे थे और सम्पूर्ण रूप से पूरे मामले की जांच कर रहे थे। पिछले अध्यायों को पढ़ने के बाद, मुझे संदेह था और लगभग निश्चित था कि हत्यारा स्वयं कैलाश ही है। उसने विरासत के लिए अपने पिता को मार डाला था। लेकिन यह साबित कैसे होगा?

"हर एक कोने की जाँच करो, कुछ भी नहीं छोड़ना। भले ही सब कुछ तहस नहस हो जाए। लेकिन ध्यान रहे, कुछ भी छूटना नहीं चाहिए। किसी भी क़ीमत पर, मुझे हत्यारे के खिलाफ सबूत चाहिए। क्या यह समझ में आ गया?!?"
पुलिस निरीक्षक सभी आरक्षकों को बहुत कठोर स्वर में आदेश दे रहा था।
"इंस्पेक्टर, मेरे पिता के हत्यारे को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए!"
मैं कैलाश का पाखंड देखकर चकित रह गया। निश्चय ही वह एक अच्छा अभिनेता था। अब उसे दुनिया के सामने बेनकाब करना और भी जरूरी हो गया था। पर कैसे?

रूम में कंप्यूटर को देख कर मेरे दिमाग में एक विचार उतपन्न हुआ। मेरी छठी इंद्री दृष्टि सतर्क हो गई और मेरी नजर सीसीटीवी कैमरे पर पड़ी। मैं तुरंत कंप्यूटर के पास गया और उसे चालू कर दिया। सीसीटीवी फुटेज के फोल्डर को खोलकर, मैंने उसे स्क्रीन पर प्रदर्शित किया, उम्मीद की, कि यह किसी का ध्यान आकर्षित करेगा।

मेरी आँखें झटके से खुली, और एक बार फिर मैं अपने कमरे में टेबल पर बैठा था। क्या मैं सपना देख रहा था? क्या पढ़ते-पढ़ते मेरी आँख लग गई थी? अपनी सुस्त आँखों को मलते हुए, मैंने थोड़ा पानी पिया और दुबारा अपने रोमांचक उपन्यास को पढ़ना शुरू किया। अब मैं आगे की कहानी जानने के लिए व्याकुल था। जैसे-जैसे मैंने पढ़ना जारी रखा, मेरा दिल ज़ोर से धड़क ने लगा, और मेरी आँखें अविश्वास से बाहर निकल आईं। जो क्लाइमेक्स लिखा गया था, उसे पचाना बेहद मुश्किल था।

"ऐसा लग रहा है कि कमरे में कोई अदृश्य शक्ति मौजूद है। कंप्यूटर अपने आप कैसे ऑन हो सकता है? सीसीटीवी फुटेज का फोल्डर किसने खोला? लेकिन, सभी संदेह दूर हो गए, और स्क्रीन स्पष्ट रूप से कैलाश कुमार को अपने सोए हुए पिता के चेहरे पर तकिया दबाते हुए दिखा रहा था।"!!!

शमीम मर्चन्ट, मुंबई
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